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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Why Lord Balaji of Tirupati is called Balaji, while Hanumanji is called Balaji and Lord Balaji of Tirupati is actually Vishnu, why is this?By social worker Vanita Kasani Punjab //4

क्यों तिरुपति के भगवान बालाजी को बालाजी कहा जाता है, जबकि हनुमानजी जी को बालाजी कहते हैं और तिरुपति के भगवान बालाजी वास्तव में विष्णुजी हैं, ऐसा क्यों है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब// 🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹✍️ यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार प्रभु वेंकटेश्वर (Venkateswara) या बालाजी (Balaji) को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था. यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब असुर और देवताओं ने सागर मंथन किया , तब कालकूट विष के अलावा चौदह रत्‍‌न निकले थे. इन रत्‍‌नों में से एक देवी लक्ष्मी भी थीं. लक्ष्मी के भव्य रूप और आकर्षण के फलस्वरूप सारे देवता, दैत्य और मनुष्य उनसे विवाह करने हेतु लालायित थे, किन्तु देवी लक्ष्मी को उन सबमें कोई न कोई कमी लगी. अत: उन्होंने समीप निरपेक्ष भाव से खड़े हुए विष्णुजी के गले में वरमाला पहना दी. विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को अपने वक्ष पर स्थान दिया. यह रहस्यपूर्ण है कि विष्णुजी ने लक्ष्मीजी को अपने ह्वदय में स्थान क्यों नहीं दिया? महादेव शिवजी की जिस प्रकार पत्‍‌नी...

राम राम जी

जाने क्या कहा जब यज्ञ में बैठी सीता जी की स्वर्ण मुर्तिया बोल पड़ी? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🙏🙏🌹🌹 " सीता जी के वनगमन के दौरान राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ करवाने चाहे लेकिन बिना पत्नी के वो सम्भव नहीं थे ऐसे में उन्होंने सोने की प्रतिमाओं को सीता के स्थान प images sources : srikrishnamandir 14 वर्षो के वनवास से लौटे तो श्री राम का राज्याभिषेक हुआ और वो राजा बने और उन्होंने सभी भाइयो के साथ मिलकर न्यायपूर्ण शासन आरम्भ किया. कष्टों के बाद सुख का समय आया और उन्होंने सीता जी के साथ अयोध्या की अशोक वाटिका में विहार आरम्भ किया. जब उन्हें पहली बार उनमे गर्भवती होने के लक्षण दिखे तो उन्हें सीता जी से वरदान मांगने कहा तो उन्होंने बकाया रख लिया. गुप्तचरों से राम जी ने जब एक धोबी द्वारा अपनी पर पर लांछन लगाते हुए राम जी द्वारा सीता जी को रखने का उदाहरण दिया तो वो दुखी हो गए. सीता जी ने ये बात सुन ली और तब उन्होंने राम जी से मिले वरदान का फायदा उठाया और वनवास मांग लिया (अवधि नहीं) वचन बद्ध राम जी ने उन्हें अश्रुपूर्व विदा किया. गंगा किनारे वाल्मीकि आश्रम में कुशलव जन्मे थे जिन्होंने...

जय श्री राम राम जी🌹🌹🙏🙏🌹🌹

जय श्री राम By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राम –  मानव का जीवन  तभी उन्नत हो सकता है जब उसके सामने कोई आदर्श हो. बिना आदर्श के शायद ही कोई बढ़ा बन पाया हो. दृढ़-निश्चय, आदर्श एवं कर्मण्यता- ये तीनों मिलकर किसी भी पुरुष को ‘पुरुषोत्तम’ बना सकते हैं. पर आदर्श के बिना दृढ़-संकल्प एवं कर्मण्यता की शक्ति दिशाहीन हो सकती है. हम आदर्श के रूप में उसी व्यक्तित्व को चुनना चाहते हैं जिसमें सभी सद्गुण हों. जिसने हमेशा ही धर्म का पालन किया हो. तब हमारे मन में सहसा ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी की ही छवि उभरती है. ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान श्रीराम तो स्वयं साक्षात धर्म का ही प्रतिरूप हैं. वाल्मीकि ऋषि ने रामायण में लिखा है- ‘रामो विग्रहवान धर्मः’ अर्थात श्री राम धर्म का मूर्तिमान स्वरुप हैं. महर्षि वाल्मीकि ऐसा लिखने के लिए इसलिए भी विवश हुए क्योंकि भगवान ने जो उपदेश दिए, उन्हें श्रीरामावतार में उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से जीकर दिखाया. आजकल लोग धर्म के मूल अर्थ को समझ नहीं पाते. अधिकांश लोग धर्म को मात्र कर्मकांड समझने लगे हैं. ये हमारी भूल है. धर्म का तो प्रथम संदेश ही यही है कि सदैव मर...

जय श्री राम राम जी

राम By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//     राम राम जी 🌹🌹🙏🙏🌹🌹 राम त्रेता युग के दशरथ के पुत्र हैं यह हिंदू संस्कृति के मूल पुरुष है/ भगवान विष्णु जी का अवतार किसी अन्य भाषा में पढ़ें डाउनलोड करें ध्यान रखें संपादित करें Learn more इस लेख में अनेक समस्याएँ हैं।  कृपया इसे  सुधारने में मदद करें  या  वार्ता पृष्ठ  पर इन समस्याओं पर चर्चा करें। राम  भगवान  विष्णु  के सातवें अवतार हैं, और इन्हें  श्रीराम  और  श्रीरामचन्द्र  के नामों से भी जाना जाता है।  रामायण  में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा, चक्रवर्ती सम्राट  दशरथ  ने पुत्र की कामना से यज्ञ कराया जिसके फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म देवी कौशल्या के गर्भ से अयोध्या में हुआ था। श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जयंती या राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। राम ( रामचंद्र ) निवासस्थान अयोध्या ,  वैकुण्ठलोक  (परमधाम) अस्त्र धनुष  (कोदंब/कोदण्ड)...

राम राम जी

जब श्रीराम विभीषण से मिलने दोबारा लंका गए, तब उन्होंने रामसेतु का एक हिस्सा स्वयं ही क्यों तोड़ दिया था? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//          🌹🌹🙏🙏🌹🌹 वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम ने राम सेतु का निर्माण रावण के वध हेतु लंका जाने के लिए करवाया था। समुद्र पर बने इस पुल का निर्माण वानरों, रीछ और नल नील भाइयों की निगरानी में हुआ था। नल नील विश्वकर्मा के पुत्र थे और उस समय के महान वास्तुविद माने जाते थे। बहुत से लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि रामसेतु को भगवान श्री राम ने स्वयं तोड़ा था। पद्म पुराण के सृष्टि खंड में इसकी कथा विस्तारपूर्वक मिलती है। पदम पुराण के मुताबिक जब श्री राम रावण का वध करके लक्ष्मण और सीता के साथ अयोध्या लौट आए थे और उनका राज्याभिषेक हो गया था, तब एक दिन उनके मन में विभीषण से मिलने का विचार आया। उन्होंने सोचा कि रावण की मृत्यु के बाद विभीषण किस तरह लंका का शासन कर रहे हैं? क्या उन्हें कोई परेशानी तो नहीं! ऐसा विचार मन में आने के बाद जब श्री राम लंका जाने की सोच रहे थे, उसी समय वहां भरत भी आ गए। भरत के पूछने पर श्री राम ने उन्हे...

जय शनि देव जी

किसी की राशि पर शनि की साढ़ेसाती लगने से जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? प्रिय मित्र, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब// सरल शब्दो मे ढाई साल कष्ट ऐव पिडा पिडा का अनुभव । दुसरे ढाई साल कार्य करने ऐव सफलता मे बाधित होना ।। तिसरे ढाई साल मे सफलता का अहसास ऐव कुछ नया ऐव जीवन मे नई ऊर्जा ऐव नये क्रांतिकारी अमूल्य परिवर्तन ।।। आशा करता हुए की ऊपयुकत लिखित जानकारी आपके ज्ञान के मार्ग को प्रशस्त कर ने मे अवश्य सहायक होगी ।।।। हर हर महादेव । ॐ 卐 ॐ 💅👀👂 👌💘🌍

बाल वनिता महिला आश्रम//

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🙏🚩🌺 जय श्री राम जी 🙏🚩🌺 🙏🚩🌺 जय पवनसुत हनुमान जी 🙏🌺🚩 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺जिनके मन में हैं श्री राम, जिनके तन में हैं श्री राम,जग में सबसे हैं वो बलवान, ऐसे प्यारे न्यारे मेरे हनुमान।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺#प्रभु_श्रीराम और #पवनसुत_हनुमान जी की कृपा से सभी के बिगड़े काम संवर जाएँ एवं सभी को धन-धान्य,सुख -समृद्धि एवं आरोग्य मिले।🙏🚩🌺 जय श्री राम जी 🙏🚩🌺 🙏🚩🌺 जय पवनसुत हनुमान जी 🙏🌺🚩

🙏🌼 जय श्रीराम 🌼 🙏 🙏🌼जय श्रीहनुमान 🌼🙏 🙏🌼 मूरति राम दुलारे,🌼🙏 🙏🌼 आन पड़ा अब तेरे द्वारे,🌼🙏 🙏🌼 बजरंगबली हनुमान,🌼🙏 🙏🌼 हे महावीर करो कल्याण ,🌼🙏 by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏🌼 हे महावीर करो कल्याण ॥🌼🙏

🙏🚩🌺जय श्री राम 🙏🚩🌺 🙏🚩🌺जय वीर बजरंगबली🙏🌺🚩🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 पवनतनय संकट हरण मंगल मुरति रूप। राम लखन सीता सहित ह्रदय बसहु सुर भूप।।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺#प्रभु_श्रीराम और #पवनसुत_हनुमान जी की कृपा से सभी के बिगड़े काम संवर जाएँ एवं सभी को धन-धान्य,सुख -समृद्धि एवं आरोग्य मिले |🙏🚩🌺जय श्री राम 🙏🚩 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌺 🙏🚩🌺जय वीर बजरंगबली🙏🌺🚩

🚩🙏#जय_श्री_राम वनिता पंजाब जय_श्री_हनुमान🙏🚩🙏श्रीहनुमान जी की रामभक्ति की अनुपम कथा🙏#महायुद्ध समाप्त हो चुका था। जगत को त्रास देने वाला रावण अपने कुटुंब सहित नष्ट हो चुका था। #कौशलाधीश_राम के नेतृत्व में चहुँओर शांति थी। श्री राम का राज्याभिषेक हुआ। राजा राम ने सभी वानर और राक्षस मित्रों को ससम्मान विदा किया। अंगद को विदा करते समय राम रो पड़े थे। हनुमान को विदा करने की शक्ति तो श्रीराम में भी नहीं थी। माता सीता भी उन्हें पुत्रवत मानती थीं। हनुमान अयोध्या में ही रह गए। राम दिन भर दरबार में, शासन व्यवस्था में व्यस्त रहे। सन्ध्या जब शासकीय कार्यों से छूट मिली तो गुरु और माताओं का कुशलक्षेम पूछने अपने कक्ष में आए। हनुमान उनके पीछे-पीछे ही थे। राम के निजी कक्ष में उनके सारे अनुज अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उपस्थित थे। वनवास, युद्ध, और फिर अनंत औपचारिकताओं के पश्चात यह प्रथम अवसर था जब पूरा परिवार एक साथ उपस्थित था। राम, सीता और लक्ष्मण को तो नहीं, कदाचित अन्य वधुओं को एक बाहरी, अर्थात हनुमान का वहाँ होना अनुचित प्रतीत हो रहा था। चूंकि शत्रुघ्न सबसे छोटे थे, अतः वे ही अपनी भाभियों और अपनी पत्नी की इच्छापूर्ति हेतु संकेतों में ही हनुमान को कक्ष से जाने के लिए कह रहे थे। पर आश्चर्य की बात कि हनुमान जैसा ज्ञाता भी यह मामूली संकेत समझने में असमर्थ हो रहा था। अस्तु, उनकी उपस्थिति में ही बहुत देर तक सारे परिवार ने जी भर कर बातें की। फिर भरत को ध्यान आया कि भैया-भाभी को भी एकांत मिलना चाहिए। उर्मिला को देख उनके मन में हूक उठती थी। इस पतिव्रता को भी अपने पति का सानिध्य चाहिए। अतः उन्होंने राम से आज्ञा ली, और सबको जाकर विश्राम करने की सलाह दी। सब उठे और राम-जानकी का चरणस्पर्श कर जाने को हुए। परन्तु हनुमान वहीं बैठे रहे। उन्हें देख अन्य सभी उनके उठने की प्रतीक्षा करने लगे कि सब साथ ही निकले बाहर। राम ने मुस्कुराते हुए हनुमान से कहा, "क्यों वीर, तुम भी जाओ। तनिक विश्राम कर लो।"हनुमान बोले, "प्रभु, आप सम्मुख हैं, इससे अधिक विश्रामदायक भला कुछ हो सकता है? मैं तो आपको छोड़कर नहीं जाने वाला।"शत्रुघ्न तनिक क्रोध से बोले, "परन्तु भैया को विश्राम की आवश्यकता है कपीश्वर! उन्हें एकांत चाहिए।""हाँ तो मैं कौन सा प्रभु के विश्राम में बाधा डालता हूँ। मैं तो यहाँ पैताने बैठा हूँ।""आपने कदाचित सुना नहीं। भैया को एकांत की आवश्यकता है।""पर माता सीता तो यहीं हैं। वे भी तो नहीं जा रही। फिर मुझे ही क्यों निकालना चाहते हैं आप?""भाभी को भैया के एकांत में भी साथ रहने का अधिकार प्राप्त है। क्या उनके माथे पर आपको सिंदूर नहीं दिखता?हनुमान आश्चर्यचकित रह गए। प्रभु श्रीराम से बोले, "प्रभु, क्या यह सिंदूर लगाने से किसी को आपके निकट रहने का अधिकार प्राप्त हो जाता है?"राम मुस्कुराते हुए बोले, "अवश्य। यह तो सनातन प्रथा है हनुमान।"यह सुन हनुमान तनिक मायूस होते हुए उठे और राम-जानकी को प्रणाम कर बाहर चले गए। ----------------------------------प्रातः राजा राम का दरबार लगा था। साधारण औपचारिक कार्य हो रहे थे कि नगर के प्रतिष्ठित व्यापारी न्याय मांगते दरबार में उपस्थित हुए। ज्ञात हुआ कि पूरी अयोध्या में रात भर व्यापारियों के भंडारों को तोड़-तोड़ कर हनुमान उत्पात मचाते रहे थे। राम ने यह सब सुना और सैनिकों को आदेश दिया कि हुनमान को राजसभा में उपस्थित किया जाए। रामाज्ञा का पालन करने सैनिक अभी निकले भी नहीं थे कि केसरिया रंग में रंगे-पुते हनुमान अपनी चौड़ी मुस्कान और हाथी जैसी मस्त चाल से चलते हुए सभा में उपस्थित हुए। उनका पूरा शरीर सिंदूर से पटा हुआ था। एक-एक पग धरने पर उनके शरीर से एक-एक सेर सिंदूर भूमि पर गिर जाता। उनकी चाल के साथ पीछे की ओर वायु के साथ सिंदूर उड़ता रहता। राम के निकट आकर उन्होंने प्रणाम किया। अभी तक सन्न होकर देखती सभा, एकाएक जोर से हँसने लगी। अंततः बंदर ने बंदरों वाला ही काम किया। अपनी हँसी रोकते हुए सौमित्र लक्ष्मण बोले, "यह क्या किया कपिश्रेष्ठ? यह सिंदूर से स्नान क्यों? क्या यह आप वानरों की कोई प्रथा है?"हनुमान प्रफुल्लित स्वर में बोले, "अरे नहीं भैया। यह तो आर्यों की प्रथा है। मुझे कल ही पता चला कि अगर एक चुटकी सिंदूर लगा लो तो प्रभु राम के निकट रहने का अधिकार मिल जाता है। तो मैंने सारी अयोध्या का सिंदूर लगा लिया। क्यों प्रभु, अब तो कोई मुझे आपसे दूर नहीं कर पाएगा न?"सारी सभा हँस रही थी। और भरत हाथ जोड़े अश्रु बहा रहे थे। यह देख शत्रुघ्न बोले, "भैया, सब हँस रहे हैं और आप रो रहे हैं? क्या हुआ?" भरत स्वयं को सम्भालते हुए बोले, अनुज, तुम देख नहीं रहे! वानरों का एक श्रेष्ठ नेता, वानरराज का सबसे विद्वान मंत्री, कदाचित सम्पूर्ण मानवजाति का सर्वश्रेष्ठ वीर, सभी सिद्धियों, सभी निधियों का स्वामी, वेद पारंगत, शास्त्र मर्मज्ञ यह कपिश्रेष्ठ अपना सारा गर्व, सारा 🚩🙏#जय_श्री_राम #जय_श्री_हनुमान🙏🚩--------------------------------

श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक हिन्दी अर्थ सहितबाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहुँ सो जात न टारो।देवन आनि करी बिनती तब, छाँड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।को नहिं जानत है जग मे कपि, संकट मोचन नाम तिहारो॥१॥अर्थ - हे हनुमान जी ! आप बालक थे तब आपने सूर्य को अपने मूख मे रख लिया जिससे तीनो लोकों मे अँधेरा हो गया। इससे संसार भर मे विपति छा गई, और उस संकट को कोई भी दूर नही कर सका। देवताओं ने आकर आपकी विनती की और आपने सूर्य को मुक्त कर दिया। इस प्रकार संकट दूर हुआ। हे हनुमान जी, संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महा प्रभु पंथ निहारो।चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।कै द्विज रुप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥२॥अर्थ - बालि के डर से सुग्रीव पर्वत पर रहते थे। उन्होनें श्री रामचन्द्रजी को आते देखा, उन्होनें आपको पता लगा के लिए भेजा। आपने अपना ब्राह्मण का रुप धर कर के श्री रामचन्द्र जी से भेंट की और उनको अपने साथ लिवा लाये, जिससे आपने सुग्रीव के शोक का निवारण किया। हे, हनुमानजी, संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।जीवत ना बचिहौ हम सों जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाए सिया सुधि प्रान उबारो।को नही जानत है, जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥३॥अर्थ- सुग्रीव ने अंगद के साथ सीता जी की खोज के लिए अपनी सेना को भेजते समय कह दिया था कि यदि सीता जी का पता लगाकर नही लाए तो हम तुम सब को मार डालेंगे। सब ढ़ूँढ़ ढ़ूँढ़कर हार गये। तब आप समुद्र के तट से कूद कर सीता जी का पता लगाकर लाये, जिससे सबके प्राण बचे। हे हनुमान जी संसार मे ऐसा कौन है, जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सो कहि सोक निवारो।ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाय महा रजनीचर मारो।चाहत सिय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।को नहीं जानत हैं, जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥४॥अर्थ - जब रावण ने श्री सीता जी को भय दिखाया और कष्ट दिया और सब राक्षसियों से कहा कि सीता जी को मनावें, हे महावीर हनुमानजी, उस समय आपने पहुँच कर महान राक्षसों को मारा। सीता जी ने अशोक वृक्ष से अग्नि माँगी परन्तु आपने उसी वृक्ष पर से श्री रामचन्द्रजी कि अँगूठी डाल दी जिससे सीता जी कि चिन्ता दूर हुई। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।बान लग्यो उर लक्षिमण के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।लै गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गृह द्रोन सु बीर उपारो।आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।को नहिं जानत हैं जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥५॥अर्थ - रावन के पुत्र मेघनाद ने बाण मारा जो लक्ष्मण जी की छाती पर लगा और उससे उनके प्राण संकट मे पड़ गए। तब आपही सुषेन वैद्य को घर सहित उठा लाए और द्रोणाचल पर्वत सहित संजीवनी बूटी ले आये जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बच गये। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।रावन जुद्ध अजान कियो तब, नाग की फाँस सबै सिर डारो।श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।आनि खगेस तबै हनुमान जु, बन्धन काटि सुत्रास निवारो।को नहि जानत है जग मे कपि,संकट मोचन नाम तिहारो॥६॥अर्थ - रावण ने घोर युद्ध करते हुए सबको नागपाश मे बाँध लिया तब श्री रघुनाथ सहित सारे दल मे यह मोह छा गया की यह तो बहुत भारी संकट है। उस समय, हे हनुमान जी आपने गरुड़ जी को लाकर बँधन को कटवा दिया जिससे संकट दूर हुआ। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।देविहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो॥७॥अर्थ - अब अहिरावन श्री रघुनाथ जी को लक्षमण सहित पाताल को ले गया, और भलिभांति देवि जी की पूजा करके सबके परामर्श से यह निशचय किया कि इन दोनों भाइयों की बलि दूंगा, उसी समय आपने वहाँ पहुंच कर अहिरावन को उसकी सेना समेत मार डाला। हे हनुमानजी, संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता॥काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु बेखि बिचारो।कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहिं जात है टारो।बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो।को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥अर्थ - हे महाबीर आपने बड़े बड़े देवों के कार्य संवारे है। अब आप देखिये और सोचीए कि मुझ दीन हीन का ऐसा कौन सा संकट है जिसकोआप दुर नहीं कर सकते। हे महाबीर हनुमानजी, हमारा जो कुछ भी संकट हो आप उसे शीघ्र ही दूर कर दीजीए। हे हनुमानजी, संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।॥दोहा॥लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥अर्थ- आपका शरीर लाल है, आपकी पूँछ लाल है और आपने लाल सिंदूर धारण कर रखा है, आपके वस्त्र भी लाल है। आपका शरीर बज्र है, और आप दुष्टों का नाश कर देते है। हे हनुमानजी आपकी जय हो, जय हो, जय हो॥!! जय श्री राम !!हुई तपस्या पूर्ण अब, सजा अयोध्या धाम।नैन बिछाए सब खड़े, आए हैं श्री राम!! वनिता पंजाब जय श्री राम !!