जाने क्या कहा जब यज्ञ में बैठी सीता जी की स्वर्ण मुर्तिया बोल पड़ी?
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🙏🙏🌹🌹
"सीता जी के वनगमन के दौरान राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ करवाने चाहे लेकिन बिना पत्नी के वो सम्भव नहीं थे ऐसे में उन्होंने सोने की प्रतिमाओं को सीता के स्थान प
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14 वर्षो के वनवास से लौटे तो श्री राम का राज्याभिषेक हुआ और वो राजा बने और उन्होंने सभी भाइयो के साथ मिलकर न्यायपूर्ण शासन आरम्भ किया. कष्टों के बाद सुख का समय आया और उन्होंने सीता जी के साथ अयोध्या की अशोक वाटिका में विहार आरम्भ किया.
जब उन्हें पहली बार उनमे गर्भवती होने के लक्षण दिखे तो उन्हें सीता जी से वरदान मांगने कहा तो उन्होंने बकाया रख लिया. गुप्तचरों से राम जी ने जब एक धोबी द्वारा अपनी पर पर लांछन लगाते हुए राम जी द्वारा सीता जी को रखने का उदाहरण दिया तो वो दुखी हो गए.
सीता जी ने ये बात सुन ली और तब उन्होंने राम जी से मिले वरदान का फायदा उठाया और वनवास मांग लिया (अवधि नहीं) वचन बद्ध राम जी ने उन्हें अश्रुपूर्व विदा किया. गंगा किनारे वाल्मीकि आश्रम में कुशलव जन्मे थे जिन्होंने बाद में आकर सीता जी को ससम्मान महारानी बनवाया था (दुबारा).
लेकिन इस दौरान राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ करवाए थे जिसमे उन्हें पत्नी की आवश्यकता थी तो दूसरी शादी नहीं की और सीता जी की सोने की प्रतिमा उन्होंने अपने बगल में बैठाई. लेकिन जब वो प्रतिमाये भी बोल पड़ी तो....
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सीता जी लौट आई थी तब राम जी को इन मूर्तियों की आवश्यकता नहीं पड़ी थी लेकिन उसके पहले के यज्ञो में जो स्वर्ण प्रतिमाये थी उन्हें सहेज कर रखा गया था. सीता जी के आने की ख़ुशी में जब उनके निस्तारण का समय आया तो वो प्रतिमाये सजीव हो बोल पड़ी और उन्होंने राम जी से कुछ माँगा.
उन्होंने कहा की हमने स्वर्ण रूप में आपकी पत्नी बन आपका धर्म निभाया है इसलिए आप हमें पत्नी रूप में अपनाइये! तब राम जी ने उन्हें कहा की इस जन्म में मर्यादा पुरुषोत्तम हु और एक पत्नी व्रत धारी भी हूँ, अगले जन्म में (कृष्णावतार) तुम्हारी ये इच्छा में अवश्य पूरी करूँगा.
ये प्रतिमाये ही तब द्वापर में जन्मी और श्री कृष्ण की उप-रानिया बनी थी.
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