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Hanuman Prasad RecipesBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबबाल वनिता महिला आश्रमआज हनुमान जयंती है। आज के दिन हनुमान जी को लड्डू या बूंदी के प्रसाद का भोग लगाने से वे प्रसन्न होते है। वैसे तो पवनपुत्र हनुमान जी का पूजन मंगलवार और शनिवार के दिन करने का विशेष महत्व है। लेकिन अगर आप हनुमान जयंती के दिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए निम्न मिठाई, पकवानों का प्रसाद या भोग लगाएं, तो निश्चित ही आप पर उनकी कृपा बरसेगी और जीवन के हर संकट दूर होंगे।आपके लिए प्रस्तुत हैं हनुमान जी को प्रिय 5 विशेष भोग :-केसरिया बूंदी लड्‍डूसामग्री : 3 कटोरी बेसन (दरदरा पिसा हुआ), 2 कटोरी चीनी, एक छोटा चम्मच इलायची पावडर, काजू अथवा बादाम पाव कटोरी, केसर 5-6 लच्छे, मीठा पीला रंग चुटकी भर, तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में देसी घी, पाव कप दूध।विधि : सबसे पहले बेसन को छान लें। उसमें चुटकी भर मीठा पीला रंग मिलाइए और पानी से घोल तैयार कर लीजिए। अब एक तपेले में पानी एवं शकर को मिलाकर एक तार की चाशनी तैयार कर लें। चाशनी में थोड़ा-सा पीला रंग और केसर हाथ से मसलकर डाल दीजिए। साथ ही पिसी इलायची भी डाल दें।एक कड़ाही में घी गर्म करके छेद वाली स्टील की चलनी या झारे की सहायता से थोड़ी-थोड़ी करके सारे घोल की बूंदी बनाते जाइए और चाशनी में डालते जाइए। जब बूंदी पूरी तरह चाशनी पी लें, तब हाथ पर हल्का-सा घी या पानी लगाकर हल्के से दबाते हुए सभी बूंदी के लड्‍डू तैयार कर लें। लड्‍डू बनाते समय सभी पर एक-एक काजू अथवा बादाम लड्‍डू के ऊपर हाथ से दबा दें। घर पर तैयार किए गए इन खास लड्‍डूओं से भोग लगाएं।रसीली इमरतीसामग्री : 250 ग्राम छिल्केरहित उड़द की दाल, 50 ग्राम अरारोट, 500 ग्राम शकर, 1 चुटकी केसरिया पीला रंग खाने का, तलने के लिए घी, जलेबी बनाने वाला गोल छेद का रुमाल के बराबर मोटा कपड़ा।विधि : सबसे पहले उड़द की दाल को धोकर 4-5 घंटे पानी में गलाइए। निथारकर मिक्सर में हल्का-सा पानी का छींटा देकर चिकना पीसिए। पिसी हुई दाल में पीला रंग और अरारोट मिलाकर खूब अच्छी तरह फेंटिए (थाली या परात में हथेली की सहायता से फेंटने में आसानी रहेगी)। अब शकर की डेढ़ तार की चाशनी बनाइए। एक समतल कड़ाही लेकर उसमें घी गर्म करें।जलेबी बनाने वाले कपड़े में फेंटी हुई दाल का थोड़ा घोल भरें। मुट्ठी से कपड़ा बंद कर तेज आंच पर गोल-गोल कंगूरेदार इमरती बनाकर कुरकुरी तलिए। झारे से निथारकर इन्हें चाशनी में डुबोकर निकाल लें। लीजिए घर पर बनी रसीली इमरती तैयार है। इस पकवान से भगवान को भोग लगाएं।बेसन के लड्डूसामग्री : एक कप दरदरा पिसा मोटा बेसन, 4-5 बड़ा चम्मच घी, शकर बूरा एक कप, 1 चम्मच पिसी इलायची, चांदी का वर्क, मेवे की कतरन अंदाज से।विधि : सबसे पहले एक कड़ाही में बेसन लेकर 4-5 चम्मच घी डालें व लगातार चलाते रहें, जब तक कि बेसन हल्का भूरा ना हो जाए। यह भी ध्यान रखें कि बेसन जल न जाएं। अब ठंडा करें। अब शकर बूरा, पिसी इलायची व मेवे की कतरन डालकर चलाते रहें। जब गुनगुना हो जाए तब इसके लड्डू बनाएं और ऊपर से चांदी का वर्क लगाकर भगवान को भोग लगाएं। इसमें आप घी तथा शकर अपने हिसाब से कम-ज्यादा भी कर सकते हैं।मालपुआसामग्री : एक कप ताजा दूध, एक कप मैदा, एक कप चीनी, एक चम्मच नींबू रस, एक चम्मच सौंफ, तेल (तलने और मोयन के लिए), पाव कटोरी मेवे की कतरन।विधि : सबसे पहले मैदा छानकर उसमें 2 चम्मच तेल का मोयन मिलाकर दूध तथा सौंफ डालकर गाढ़ा घोल तैयार कर लें। अब एक बर्तन में चीनी, नींबू रस और पानी डालकर चाशनी तैयार कर लें।तत्पश्चात एक कड़ाही में तेल गरम करके एक कड़छी से घोल डालें और कुरकुरा होने तक तल लें। फिर चाशनी में डुबोकर एक अलग बर्तन में रखते जाएं। ऊपर से मेवे की कतरन बुरकाकर भोग लगाएं।मलाई-मिश्री के लड्‍डूसामग्री : सूखे खोपरे का बूरा 150 ग्राम, 200 ग्राम मिल्‍क मेड, एक कप गाय के दूध की फ्रेश मलाई, आधा कप गाय का दूध, इलायची पावडर, 5 छोटे चम्मच मिल्‍क पावडर, कुछेक लच्छे केसर।भरावन मसाला सामग्री : 250 ग्राम मिश्री बारीक पिसी हुई, पाव कटोरी पिस्ता कतरन, 1 चम्मच मिल्‍कमेड, दूध मसाला एक चम्मच।विधि : सर्वप्रथम खोपरा बूरा, मिल्क मेड, दूध, मिल्क पावडर और पिसी इलायची को अच्छी तरह मिला लें। तत्पश्चात माइक्रोवेव में 5-7 मिनट तक इसे माइक्रो कर लें। अब भरावन सामग्री को अलग से 1 कटोरे में मिक्स कर लें। 1 छोटी कटोरी में 4-5 केसर के लच्छे कम पानी में गला दें।अब माइक्रोवेव से निकले मिश्रण को 10-15 मिनट तक सूखने दें, फिर उसमें भरावन मसाला सामग्री डालकर मिश्रण को अच्छी तरह मिलाएं और उसके छोटे-छोटे लड्डू बना लें। सभी लड्‍डू तैयार हो जाने पर उनके ऊपर केसर का टीका लगाएं। ऊपर से केसर-पिस्ता से सजाएं और मलाई-मिश्री के लड्‍डू पेश करें।

Hanuman Prasad Recipes
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

आज हनुमान जयंती है। आज के दिन हनुमान जी को लड्डू या बूंदी के प्रसाद का भोग लगाने से वे प्रसन्न होते है। वैसे तो पवनपुत्र हनुमान जी का पूजन मंगलवार और शनिवार के दिन करने का विशेष महत्व है। लेकिन अगर आप हनुमान जयंती के दिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए निम्न मिठाई, पकवानों का प्रसाद या भोग लगाएं, तो निश्चित ही आप पर उनकी कृपा बरसेगी और जीवन के हर संकट दूर होंगे।
आपके लिए प्रस्तुत हैं हनुमान जी को प्रिय 5 विशेष भोग :-

केसरिया बूंदी लड्‍डू


सामग्री : 3 कटोरी बेसन (दरदरा पिसा हुआ), 2 कटोरी चीनी, एक छोटा चम्मच इलायची पावडर, काजू अथवा बादाम पाव कटोरी, केसर 5-6 लच्छे, मीठा पीला रंग चुटकी भर, तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में देसी घी, पाव कप दूध।विधि : सबसे पहले बेसन को छान लें। उसमें चुटकी भर मीठा पीला रंग मिलाइए और पानी से घोल तैयार कर लीजिए। अब एक तपेले में पानी एवं शकर को मिलाकर एक तार की चाशनी तैयार कर लें। चाशनी में थोड़ा-सा पीला रंग और केसर हाथ से मसलकर डाल दीजिए। साथ ही पिसी इलायची भी डाल दें।

एक कड़ाही में घी गर्म करके छेद वाली स्टील की चलनी या झारे की सहायता से थोड़ी-थोड़ी करके सारे घोल की बूंदी बनाते जाइए और चाशनी में डालते जाइए। जब बूंदी पूरी तरह चाशनी पी लें, तब हाथ पर हल्का-सा घी या पानी लगाकर हल्के से दबाते हुए सभी बूंदी के लड्‍डू तैयार कर लें। लड्‍डू बनाते समय सभी पर एक-एक काजू अथवा बादाम लड्‍डू के ऊपर हाथ से दबा दें। घर पर तैयार किए गए इन खास लड्‍डूओं से भोग लगाएं।

रसीली इमरती

सामग्री : 250 ग्राम छिल्केरहित उड़द की दाल, 50 ग्राम अरारोट, 500 ग्राम शकर, 1 चुटकी केसरिया पीला रंग खाने का, तलने के लिए घी, जलेबी बनाने वाला गोल छेद का रुमाल के बराबर मोटा कपड़ा।

विधि : सबसे पहले उड़द की दाल को धोकर 4-5 घंटे पानी में गलाइए। निथारकर मिक्सर में हल्का-सा पानी का छींटा देकर चिकना पीसिए। पिसी हुई दाल में पीला रंग और अरारोट मिलाकर खूब अच्छी तरह फेंटिए (थाली या परात में हथेली की सहायता से फेंटने में आसानी रहेगी)। अब शकर की डेढ़ तार की चाशनी बनाइए। एक समतल कड़ाही लेकर उसमें घी गर्म करें।

जलेबी बनाने वाले कपड़े में फेंटी हुई दाल का थोड़ा घोल भरें। मुट्ठी से कपड़ा बंद कर तेज आंच पर गोल-गोल कंगूरेदार इमरती बनाकर कुरकुरी तलिए। झारे से निथारकर इन्हें चाशनी में डुबोकर निकाल लें। लीजिए घर पर बनी रसीली इमरती तैयार है। इस पकवान से भगवान को भोग लगाएं।

बेसन के लड्डू

सामग्री : एक कप दरदरा पिसा मोटा बेसन, 4-5 बड़ा चम्मच घी, शकर बूरा एक कप, 1 चम्मच पिसी इलायची, चांदी का वर्क, मेवे की कतरन अंदाज से।

विधि : सबसे पहले एक कड़ाही में बेसन लेकर 4-5 चम्मच घी डालें व लगातार चलाते रहें, जब तक कि बेसन हल्का भूरा ना हो जाए। यह भी ध्यान रखें कि बेसन जल न जाएं। अब ठंडा करें। अब शकर बूरा, पिसी इलायची व मेवे की कतरन डालकर चलाते रहें। जब गुनगुना हो जाए तब इसके लड्डू बनाएं और ऊपर से चांदी का वर्क लगाकर भगवान को भोग लगाएं। इसमें आप घी तथा शकर अपने हिसाब से कम-ज्यादा भी कर सकते हैं।

मालपुआ

सामग्री : एक कप ताजा दूध, एक कप मैदा, एक कप चीनी, एक चम्मच नींबू रस, एक चम्मच सौंफ, तेल (तलने और मोयन के लिए), पाव कटोरी मेवे की कतरन।

विधि : सबसे पहले मैदा छानकर उसमें 2 चम्मच तेल का मोयन मिलाकर दूध तथा सौंफ डालकर गाढ़ा घोल तैयार कर लें। अब एक बर्तन में चीनी, नींबू रस और पानी डालकर चाशनी तैयार कर लें।

तत्पश्चात एक कड़ाही में तेल गरम करके एक कड़छी से घोल डालें और कुरकुरा होने तक तल लें। फिर चाशनी में डुबोकर एक अलग बर्तन में रखते जाएं। ऊपर से मेवे की कतरन बुरकाकर भोग लगाएं।
मलाई-मिश्री के लड्‍डू

सामग्री : सूखे खोपरे का बूरा 150 ग्राम, 200 ग्राम मिल्‍क मेड, एक कप गाय के दूध की फ्रेश मलाई, आधा कप गाय का दूध, इलायची पावडर, 5 छोटे चम्मच मिल्‍क पावडर, कुछेक लच्छे केसर।

भरावन मसाला सामग्री : 250 ग्राम मिश्री बारीक पिसी हुई, पाव कटोरी पिस्ता कतरन, 1 चम्मच मिल्‍कमेड, दूध मसाला एक चम्मच।

विधि : सर्वप्रथम खोपरा बूरा, मिल्क मेड, दूध, मिल्क पावडर और पिसी इलायची को अच्छी तरह मिला लें। तत्पश्चात माइक्रोवेव में 5-7 मिनट तक इसे माइक्रो कर लें। अब भरावन सामग्री को अलग से 1 कटोरे में मिक्स कर लें। 1 छोटी कटोरी में 4-5 केसर के लच्छे कम पानी में गला दें।

अब माइक्रोवेव से निकले मिश्रण को 10-15 मिनट तक सूखने दें, फिर उसमें भरावन मसाला सामग्री डालकर मिश्रण को अच्छी तरह मिलाएं और उसके छोटे-छोटे लड्डू बना लें। सभी लड्‍डू तैयार हो जाने पर उनके ऊपर केसर का टीका लगाएं। ऊपर से केसर-पिस्ता से सजाएं और मलाई-मिश्री के लड्‍डू पेश करें।

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,। 🌹भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है.🌹पत्थर का स्वभाव है डूब जाना, अगर कोई पत्थर का आश्रय लेकर जल में उतरे तो वह भी पत्थर के साथ डूब जाता है। वानर का स्वभाव चीजों को तोड़ने वाला होता है, जोड़नेवाला नहीं। समुद्र स्वभाववश सबकुछ स्वयं में समा लेनेवाला है। नदियों के जल को स्वयं में समा लेनेवाला। वह किसी को कुछ सरलता से कहाँ देनेवाला है! तीनों ने रामकाज के लिए अपने स्वभाव से विपरीत कार्य कियापत्थर पानी में तैरने लग गए, वानरसेना ने सेतु बंधन किया, सागर ने सीना चीरकर मार्ग दिया और स्वयं सेतुबंधन में मदद की।इसी प्रकार जीवन में भी यदि कोई कार्य हमारे स्वभाव से विपरीत हो रहा हो पर वह सबके भले में हो तो जानना चाहिये कि शायद श्रीराम हमारे जीवन में कोई एक और सेतु बंधन कार्य कर रहे है। भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय सीताराम जी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹,

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है।लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे।1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।3- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया।तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं।इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।4- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।5- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम के द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।6- वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया l7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष की थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।8- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण (यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।9- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं। 10- रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।11- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।12- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक वानरों ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं, जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।24- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।25- रावण जब विशव विजय पर निकला तब वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां रावण और यमराज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने कालदंड के प्रयोग द्वारा रावण के प्राण लेने चाहे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।26- वाल्मीकि रामायण में 24 हज़ार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है।

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। बाल वनिता महिला आश्रम लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस

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