क्या ध्यान के माध्यम से कुंडली जागरण किया जा सकता है?एक छोटी सी कहानी है रामायण से, की जब भगवान् श्री राम ने माता सीता को लंकापति राक्षस राजा रावण के चंगुल से मुक्त कराया और हंसी-ख़ुशी माता सीता और हनुमान जी के साथ अयोध्या अपने देश लौटकर शाही महल में विश्राम फरमाने लगे | कुछ समय पश्चात भगवान् राम को ज्ञात हुआ की सीता जी को हनुमान जी से कुछ ईर्ष्या हो गयी है क्यूंकि भगवान् राम का ध्यान सीता जी के बनिस्पत हनुमान जी पर ज्यादा रहता था, माता सीता को लगने लगा की श्रीराम, हनुमान जी पर मोहित हो गए हैं | ऐसा सोंचते हुए हर्ष में भरकर श्री राम ने हनुमान जी के शरीर से एक बाल को तोड़ लिया और उस बाल को सीता जी के कान के समीप ले गए | तब माता सीता को उस बाल में से मंत्र सुनाई दिया जो की लगातार गूँज रहा था "राम-राम-राम" तत्पश्चात श्री राम जी ने सीता जी से कहा की यह मैं नहीं जो हनुमान जी की तरफ खिंचा या मोहित हुआ जा रहा हूँ बल्कि यह वह हनुमान जी हैं जो मुझे लगातार अपनी तरफ खींच रहे हैं |तो कुछ ऐसी महिमा है अजपा जप की जिसमें मंत्र सदैव चलता रहता है, अनवरत, निरंतर प्रवाह के साथ, बड़े ही सहज रूप से, चाहे आप जाग रहे हों या सो रहे हों, इसके माध्यम से भगवान् से एक निर्बाध सम्बन्ध स्थापित रहता है इसलिए कहते हैं की मंत्र दोहराते रहो जब तक की अपने दिल में भगवान् को महसूस न करने लगो, यहीं से आपका ईश्वर के प्रति प्रेम, लालसा, जिज्ञासा, एक तड़प पैदा होती है और अन्ततः यह तड़प एक पूर्णता को प्राप्त होती है आपके ईश्वर के मिलने के साथ | तभी कहता हूँ मानसिक जप, अजपा जप की बात ही निराली है और इसको अपने तन-मन में चलाने के लिए हर एक मिनट-सेकंड चेक करते रहिये की राम नाम चल तो रहा है ना, बस फिर क्या कुछ समय बाद यह अजपा-जप स्थिति-प्रग्य अवस्था में सुचारू हो जाएगा |Image from Google !कहा जाता है की हनुमान जी सदा यह सुनिश्चित करने के लिए की उनका अजपा-जप बाधित तो नहीं हो रहा तो वह जम्हाई लेते समय भी राम-राम-राम कहते और चुटकी बजाते जाते थे | आज वर्तमान में जो निष्ठवान और श्रेष्ठ चरित्र ब्राहण हैं वो इस जम्हाई वाली चुटकियों को उपयोग में लाते हैं राम-राम-राम कहते हुए | यह तो रही रामायण की और ध्यान-अजपा-जप जप वाली बात बाकी फिर से मेरा विनम्र आग्रह है, विनती है, प्रार्थना है सभी अनुभवी और विद्वान कोरा लेखकों से की जब भी कोई अच्छा प्रश्न पूंछा जाए तो उसका पर्याप्त निष्ठा से उत्तर दें कृपया नाकि प्रश्नकर्ता को हतोत्साहित करें अपने ज्ञान और विद्वानता के मद में, विषेतः जब कुण्डलिनी, ध्यान, योग, चक्र-साधना, पूजा, पाठ आदि से समबन्धित संदेह मानव मन में घर कर गया हो तो उसका विस्तृत इलाज एक अच्छे उत्तर के रूप में किया जाना तो बनता है न मित्रों |आखिर आप कैसे एक ही पंक्ति का उत्तर देकर चलते बनते हैं जैसे की प्रश्नकर्ता ने कुछ गुनाह कर दिया हो या फिर वह उस जानकारी के लायक ही ना हो क्यूंकि बस एक मैं या आप ही योग्य हैं, लायक हैं, नहीं ना | एक पंक्ति में उत्तर देने का मतलब है या तो आपको प्रश्न के बारे में कुछ पता ही नहीं ? या पता तो बहुत कुछ है लेकिन बताना नहीं चाहते क्यूंकि आपको लगता है की वह जानकारी केवल आपके लिए ही है बस कोई और ना ही जान पाए | उत्तरों को पढ़ने पर मुझे खुद इतना अजीब और अपमानित सा लगा तो जिसने प्रश्न किया उसको कैसा लगा होगा, खैर माफ़ी मांगता हूँ अगर भावनाओं में आकर कुछ गलत लिख दिया हो तो |ऊपर जो लिखा उसके बाद मुख्य टॉपिक पर आता हूँ जो की है ध्यान के द्वारा कुण्डलिनी जागरण किया जा सकता है या नहीं ? देखिये एक बहुत ही बेसिक बात या भ्रान्ति हमारे महान भारत देश में कुण्डलिनी को लेकर यह फ़ैली हुई है कि केवल जो ध्यान, मैडिटेशन, योग करते हैं खासकर कुछ स्थान जैसे कि हिमालय की कन्दराओं, गुफाओं में, या किसी वन, वाटिका, उपवन आदि के नयनाभिरामी आश्रम में, किसी मठ में, मंदिरों में यानी की वो सब स्थान जहाँ हम जैसे आम व्यक्ति को सोंचने में कुछ झिझक होने लगती है और फिर यह मन में अहसास घर कर जाता है की हम लोग इस लायक ही नहीं, नाकाबिल हैं, रोजाना इतने झूंठ बोलते हैं, गलत सोंचते हैं दूसरों का, मन में टनों मैल भरा होता है, पाप कर्मों में फंसे रहने का अहसास तो मतलब ये सब बातें एक आम आदमी को इस सबसे अलग-थलग कर देती हैं और वह बस या तो घर से मंदिर और मंदिर से घर और या फिर घर में ही पूजा अर्चना के जरिये अपने आपको भगवान् से जोड़े हुए रहता है, इस सबसे आगे का सोंचना मतलब की उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात, उसके कर्मों की दीनता का अहसास, केवल पंडे-पुजारी, साधु, महंत, मठाधीश आदि ही यह सब कर सकते हैं, यह अहसास हमे आगे बढ़ने से रोकता है और यहीं से पाखंड और आडंबरों की शुरुआत होती है, हम गुरु ढूंढते हैं और गुरु मिल जाएं तो बात ही क्या, किसी दाढ़ी वाले बाबाजी को देखते हैं तो लगता है की यही वो है जिसको सबका भविष्य, वर्तमान और भूत पता है, यहाँ जब हम इन सबके संपर्क में आते हैं तो कुछ शुरूआती रुझानों के बाद परिणाम आने में देर नहीं लगती और फिर घोर निराशा क्यूंकि गुरु जी कुछ और ही निकले |Image from Google !सबसे पहली बात ये की आज हर छोटे-बड़े शहर की गली-गली में, नुक्कड़ों पर ना जाने कितने ही योगा सेंटर्स, वैलनेस, हीलिंग केंद्र, जिम आदि खुले हुए हैं और इन सभी में रोजाना सुबह-शाम ध्यान ही करवाया जाता बाकी बचे-खुचे अभिलाषी स्त्री और पुरुष अपने घरों पर ही योग और घ्यान करते हैं और करते आ रहे हैं सालों से तो क्या इन सभी का कुंडलिनी जागरण हो चूका है ? सभी बड़ी-बड़ी शक्तियों, सिद्धियों के स्वामी बन गए हैं ? भगवान् के लगातार संपर्क में रहते हैं ? कुछ भी जादू टाइप कर सकते हैं ?कुंडलिनी का मायाजाल कुछ ऐसा ही है की इसको बहुत बड़ा रहस्य बनाकर पेश किया जाता रहा है हालाँकि यह रहस्य वाली बात कुछ हद तक सच है लेकिन उस तरह से नहीं की सामान्य व्यक्ति इसको एक जादुई छड़ी की तरह देखने लगता है | यह बिलकुल भी सही नहीं है |श्रीमद्भागवत गीता में लिखा है की बस भगवान् को स्मरण करते हुए अपने कर्म करते रहो ! अब सोंचिये की भला इससे ज्यादा सरल और क्या है भला ? लेकिन यही आज सबसे कठिन बना दिया गया है, बात ये समझने की है कि सैंकड़ों तरह की पूजा-अर्चना करने के तरीके हैं, ना जाने कितने वेद, ग्रन्थ, काव्य, महाकाव्य, पुराण, शास्त्र, तंत्र, स्तोत्र, मंत्र, साधनायें हैं लेकिन सबका अंतिम उद्देश्य एकमात्र है ईश्वर से जुड़ना, ईश्वर से मिलना तो एक तरह से रास्ते अलग-अलग हैं लेकिन मंजिल सभी की एक ही है, यह केवल आपको चुनना है की आप कैसे जुड़ना चाहते हो भगवान् से ?ध्यान करना अच्छा है, बहुत अच्छा है लेकिन ध्यान-योग-साधना आदि से तो आपको सीधे-सीधे कुण्डलिनी और इसकी सिद्धियों, शक्तियों के भ्रम में डाला हुआ है तो फिर यह तो बिलकुल अलग ही हो गया ना ? भगवान् से जुड़ना है तो सिंपल राम नाम लें, शिवजी का नाम लें, हनुमान जी, गणेश महाराज जी, राधा रानी, सीता मैया, दुर्गा जी, आप एक बार शुरू तो करें !लेकिन ऐसे नहीं जैसे कि आप अभी तक करते हुए आ रहे थे, ऐसे तो बिलकुल भी नहीं ! बस थोड़ा सा तरीका बदलिए और वो तरीका है क्या भला ? तो वह तरीका है अजपा-जप, मानसिक - जप जिसमें जब भी राम जी का नाम लें तो हर कुछ मिनट्स में चेक करें, करते रहे की आप नाम ले रहे हैं या नहीं, अच्छा मैं एक उदाहरण देकर समझाता हूँ एक सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर जब कोडिंग करता है तो लाइन बाई लाइन कोड को चेक करता रहता है की कोड सही तो लिख रहा है ना और उसके बाद उसको कम्पाइल, एक्सीक्यूट करता है बस ऐसे ही राम नाम लेते रहें और चेक करते रहे की राम नाम लिया जा रहा है न, कहीं रुक तो नहीं गया और चूँकि आप हर मिनट्स में चेक कर रहे हैं तो फिर राम नाम लेना रुकेगा नहीं , फिर यह हर सेकण्ड्स में होने लगेगा, आप हर सेकण्ड्स में चेक करने लगेंगे की अरे मैं राम नाम ले रहा हूँ या नहीं !Image From Google !बस फिर क्या यहाँ से आपका ध्यान घटित होने लगेगा मतलब की जब आप हर सेकण्ड्स पर यह चेक करने लगोगे की राम-नाम लिया जा रहा है या नहीं ! तो वह सारा समय जो अभी आप अपने भौतिक कर्मों, भौतिक दिनचर्या के प्रोजेक्ट्स, काम-धन्धे-व्यापार आदि पर से ध्यान हटाकर शिफ्ट कर चुके हो हर उस सेकंड के चेक करने पर और इसको कहा जाता है सिद्दत, इंटेंसिटी, तीव्रता, चाहत, प्रेम, भावना और यहाँ से असली कुण्डलिनी जागरण शुरू होगा क्यूंकि अब शुरुआत हुई है, पहले आप चेक करेंगे, करते रहेंगे, ध्यान शिफ्ट होकर भौतिक से शून्य की तरफ लगेगा तो शून्य आपमें घटित होने लगेगा, आप अब पृथ्वी से थोड़ा ऊपर आ गए हो, गुरुत्वाकर्षण थोड़ा कमजोर होने लगेगा, शून्य यानि की ब्रहांड जब आपमें घटित होगा उसके गुण-धर्म आपमें उतरेंगे तो कथित कुण्डलिनी शक्तियों का एहसास होने लगेगा, शून्य से सूक्ष्म का मिलना होगा, आप बदलने लगोगे, सबकुछ बदल जायेगा जब कुण्डलिनी जागरण होगा संपूर्ण नहीं नहीं पर थोड़ा-थोड़ा ही सही |आपका ध्यान अर्थात एक आम व्यक्ति का ध्यान और एक योग-साधना करने वाले व्यक्ति या योगी के ध्यान में केवल एक अंतर ही है बस की वह योगी डंट कर बैठा हुआ है, हठ में, धूनी रमाकर जैसे कह रहा हो ईश्वर से की ये ले भगवान् मैं बैठ गया हूँ बस तेरे ध्यान में, अब केवल और केवल तू ही है तो आना तो पड़ेगा ही इस योगी से मिलने | और एक आम व्यक्ति अपना काम भी कर रहा है क्यूंकि कर्मयोगी है और साथ में हर एक सेकण्ड्स चेक कर रहा है कि ईश्वर का नाम लिया जा रहा है या नहीं तो यह एक योगी के तुलना में कुछ कठिन है इसलिए मेरी नज़र में हर वो आम इंसान जो अपने भौतिक कर्म करते हुए ध्यान घटित करने पर लगनशील है, ज्यादा सम्माननीय है |हर एक सेकंड चेक करते रहना है | अजपा-जप चलाकर ही दम लेना है | जय श्री राम |धन्यवाद !ॐ नमः शिवाय !
अगर किसी को ईश्वर पर पूर्ण विश्वास हो तो ये हकीकत है और न हो तो ये उसके लिए फसाना है.
कर्ज से मुक्ति का कुछ सरल और ज्योतिष उपाय क्या हैं?
हमारे शास्त्रो मे ऋण मुक्ति के अनेकानेक उपाय विधियो का उल्लेख किया गया है जिसमे से एक अत्यंत शीघ्र प्रभावकारी स्त्रोत जो मुझे श्री गुरु मुख से प्राप्त हुआ का उल्लेख रूद्रयामल तंन्त्र मे किया गया है जो कि इसप्रकार से है ।
विधि- शुक्ल पक्ष के किसी बुधवार को श्री गणेश जी के प्रतिरूप को वाजोट पर लाल रंग के आसन पर स्थापित कर विधिवत पूजन कर लडडू का भोग अर्पित करे के बाद उत्तराभिमुख होकर " ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट् " का एक माला ( 108 बार ) जप करे के बाद निम्नवत स्त्रोत का 11 बार पाठ नित्य नियत समय पर करे -
अथ ऋणमुक्तिगणेश स्त्रोत्
अस्य श्री ऋण विमोचन महागणपति स्त्रोत मंत्रस्य शुक्राचार्य ऋषिः , ऋण विमोचन महागणपति र्देवता , अनुष्टुप् छन्दः, ऋण विमोचन महागणपति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ स्मरामि देवदेवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।
षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये । ।
महागणपतिं वन्दे महासेतुं महाबलम् ।
एकमेवाद्वितीयं तु नमामि ऋणमुक्तिये । ।
एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम् ।
महाविध्नहरं देवं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
शुक्लाम्बरं शुक्लवर्ण शुक्लगन्धानुलेपनम् ।
सर्वशुक्लमयं देवं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
रक्ताम्बरं रक्तवर्ण रक्तगन्धानुलेपनम् ।
रक्तपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्ण कृष्णगन्धानुलेपनम् ।
कृष्णयज्ञोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तिये ।।
पीताम्बरं पीतवर्ण पीतगन्धानुलेपनम् ।
पीतपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये ।।
सर्वात्मकं सर्ववर्ण सर्वगन्धानुलेपनम् ।
सर्वपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तिये । ।
एतद् ऋणहरं स्त्रोतं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
षणमासाभ्यन्तरे तस्य ऋणच्छेदो न संशयः । ।
सहस्त्रदशकं कृत्वा ऋणमुक्तो धनी भवेत् । ।
अन्त मे एक माला "ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हूँ नमः फट् " का जप करने के बाद श्री गणेश जी क्षमा प्रार्थना करने से शीघ्र ऋणमुक्ति प्राप्त होती है अद्वितीय एवं विलक्षण स्त्रोत है जो शीघ्रता फल प्रदान करने वाला है ।
अत्यंत उपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार श्री गणेश ऋद्धि सिद्धी सहित सभी को ऋण से मुक्ति प्रदान करे साथ ही सभी कामनाओ को पूर्ण करे ऐसी मंगल कामना के साथ सभी पाठको का ह्दय से वंदन।
मूल स्रोत- श्री गुरु कृपा
इमेज स्रोत गूगल
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