"Pray to Lord Shri Raghunath"This request was made by Raghubir Gusai.And Aas-Biswas-Bharoso, Harau jiva-inertai. 1.Chahun na Sugati, Sumati, Sampathi Kachhu, Ridhi-sidhi, Nipul Brajai.Anurag Ram-pad increase, Anadin Adhyayi. 2
“भगवान् श्रीरघुनाथसे विनती”
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
यह बिनती रघुबीर गुसाईं ।
और आस-बिस्वास-भरोसो, हरौ जीव-जड़ताई ।। १ ।।
चहौं न सुगति, सुमति, संपति कछु, रिधि-सिधि, निपुल बड़ाई ।
हेतु-रहित अनुराग राम-पद बढ़ै अनुदिन अधिकाई ।। २ ।।
कुटिल करम लै जाहिं मोहि जहँ जहँ अपनी बरिआई ।
तहँ तहँ जनि छिन छोह छाँडियो, कमठ-अंडकी नाईं ।। ३ ।।
या जगमें जहँ लगि या तनुकी प्रीति प्रतीति सगाई ।
ते सब तुलसिदास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं ।। ४ ।।
हे रघुनाथजी ! हे नाथ ! मेरी यही विनती है कि इस जीवको दूसरे साधन, देवता या कर्मोंपर जो आशा, विश्वास और भरोसा है, उस मूर्खताको आप हर लीजिये ।१। हे राम ! मैं मुक्ति, सद्बुद्धि, धन-सम्पत्ति, ऋद्धि-सिद्धि और भारी बड़ाई आदि कुछ भी नहिं चाहता । बस, मेरा तो आपके चरणकमलोंमें दिनों दिन अधिक-से-अधिक अनन्य और विशुद्ध प्रेम बढ़ता रहे, यही चाहता हूँ ।२। मुझे अपने बुरे कर्म जबरदस्ती जिस-जिस योनिमें ले जायँ, उस-उस योनिमें ही हे नाथ ! जैसे कछुआ अपने अण्डोंको नहीं छोड़ता, वैसे ही आप पलभरके लिये भी अपनी कृपा न छोड़ना ।३। हे नाथ ! इस संसारमें जहाँतक इस शरीरका (स्त्री-पुत्र-परिवारादिसे) प्रेम, विश्वास और सम्बन्ध है, सो सब एक ही स्थानपर सिमट कर केवल आपसे ही हो जाय ।४।
(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘विनय-पत्रिका’ पुस्तकसे )
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