राम Shri Ram Naam Vandana ⛳ and the glory of Rama NaamBandoon name to Ram Raghubar For Kusanu Bhanu Raghubar. 4Namu Prasad Sambhu Indestructible. Saju Amangal Mangal Rashi. 4 Narada Jaaneu name Pratapu. Jag
⛳श्री राम नाम वंदना ➖और राम नाम कि महिमा⛳
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
बंदउँ नाम राम रघुबर को।
हेतु कुसानु भानु रघुबर को ।।🚩
नामु प्रसाद संभु अविनाशी।
साजु अमंगल मंगल राशी ।।🚩
नारद जानेउ नाम प्रतापु ।
जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू।।🚩
सुख सनकादि सिद्ध मुनि जोगी।
नाम प्रसाद ब्रह्म सुख भोगी ।।🚩
भाव कुभाऊ अनख आलस हूँ।
नाम जपत मंगल दिसि दशाहू ।🚩
बंदऊँ नाम राम रघुवर को।
हेतु कृशानु भानु रघुबर को।॥॥🚩
भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम' की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् 'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है। वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥1॥🚩
*महामंत्र जोइ जपत महेसू।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ।
प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥॥ 🚩
भावार्थ:-जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥2॥🚩
सहस नाम सम सुनि सिव बाणी
नाम रूप गति अकथ कहानि🚩
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी।
उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥॥🚩
भावार्थ:-नाम और रूप की गति की कहानी (विशेषता की कथा) अकथनीय है। वह समझने में सुखदायक है, परन्तु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। निर्गुण और सगुण के बीच में नाम सुंदर साक्षी है और दोनों का यथार्थ ज्ञान कराने वाला चतुर दुभाषिया है॥॥🚩
दोहा :
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥1॥🚩
भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं, यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है, तो मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी देहली पर रामनाम रूपी मणि-दीपक को रख॥॥🚩
चौपाई :
नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी।
बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी॥🚩
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा।
अकथ अनामय नाम न रूपा॥॥🚩
भावार्थ:-ब्रह्मा के बनाए हुए इस प्रपंच (दृश्य जगत) से भलीभाँति छूटे हुए वैराग्यवान् मुक्त योगी पुरुष इस नाम को ही जीभ से जपते हुए (तत्व ज्ञान रूपी दिन में) जागते हैं और नाम तथा रूप से रहित अनुपम, अनिर्वचनीय, अनामय ब्रह्मसुख का अनुभव करते हैं॥🚩
जानी आदि कवि नाप प्रतापू।
भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी।
जपि जेईं पिय संग भवानी॥3॥ 🚩
नाम रूप गति अकथ कहानी।
समुझत सुखद न परति बखानी॥🚩
भावार्थ:-आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम के प्रताप को जानते हैं, जो उल्टा नाम ('मरा', 'मरा') जपकर पवित्र हो गए। श्री शिवजी के इस वचन को सुनकर कि एक राम-नाम सहस्र नाम के समान है, पार्वतीजी सदा अपने पति (श्री शिवजी) के साथ राम-नाम का जप करती रहती हैं॥🚩
⛳जय हो प्रभु राम की ➖जय हो राजाराम की⛳
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