सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अयोध्यासमाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभगवान राम की जन्म व कर्म भूमिकिसी अन्य भाषा में पढ़ेंडाउनलोड करेंध्यान रखेंसंपादित करेंयह लेख शहर के बारे में है। इसका नामांकित मुख्यालय जिला के लिए, अयोध्या जिला देखें।अयोध्या, भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले का एक नगर और जिले का मुख्यालय है। सरयू नदी के तट पर बसा अयोध्या एक अति प्राचीन धार्मिक नगर है। मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे 'अयोध्या' का नाम दिया जिसका अर्थ होता है अ-युध्य अर्थात् 'जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके। ' इसे 'कोसल जनपद' भी कहा जाता था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी/रघुवंशी/अर्कवंशी राजाओं का राज हुआ करता था, जिसमें भगवान् श्री राम ने अवतार लिया। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। यह नगरी सप्त पुरियों में से एक है-अयोध्या— शहर —अयोध्या में सरयू तट पर दीपावली उत्सव का दृश्यअयोध्या में सरयू तट पर दीपावली उत्सव का दृश्यMap of उत्तर प्रदेश with अयोध्या markedLocation of अयोध्या अयोध्या समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)देश भारतराज्यउत्तर प्रदेशमहापौऋषिकेश उपाध्याय[1]जनसंख्या• घनत्व567456[कृपया उद्धरण जोड़ें] (2011 के अनुसार )• 5,458.01/किमी2 (14,136/मील2)क्षेत्रफल• ऊँचाई (AMSL)10.24 km² (4 sq mi)• 93 मीटर (305 फी॰)विभिन्न कोड• पिनकोड • 224345• दूरभाष • +91 05278• गाड़ियां • UP-42अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥(अर्थ : अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, काञ्चीपुरम, उज्जैन, और द्वारिका - ये सात पुरियाँ नगर मोक्षदायी हैं।)इतिहास संपादित करेंवेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या"[2] और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है- अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः॥ (अथर्ववेद -- 10.2.31). रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग १४४ कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग ३६ कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। [3] कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। स्कन्दपुराण के अनुसार सरयू के तट पर दिव्य शोभा से युक्त दूसरी अमरावती के समान अयोध्या नगरी है।[4] अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरो का शहर है। यहां आज भी हिंदू धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं।जैन मत के अनुसार यहां चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। क्रम से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी। इसके अलावा जैन और वैदिक दोनों मतो के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ। उक्त सभी तीर्थंकर और भगवान रामचंद्र जी सभी इक्ष्वाकु वंश से थे। इसका महत्त्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचन्द्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।[5]अयोध्या और फैज़ाबाद संपादित करेंकभी कभी बहुत से लोगों को इन दोनों शहरों में भ्रम होने लगता है। प्रायः लोग इन दोनों को एक ही शहर समझने लगते हैं। अयोध्या भारत के प्राचीनतम शहरों में शुमार है और करोड़ों भारतीयों के आराध्य भगवान श्रीराम की जन्मस्थली के रूप में विख्यात है। फैजाबाद भी एक शहर है जो अयोध्या से दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। फैजाबाद को अवध के सुबेदार नियुक्त किए गए एक ईरानी सआदत अली खान ने 1722 ईसवी में बसाकर अवध की पहली राजधानी बनाया था जिसे बाद में नवाब आसफुद्दौला द्वारा 1775 ईसवी में लखनऊ ले जाया गया जिसके बाद फैजाबाद का पतन हो गया। इस पचास वर्ष की अवधि तक के नवाबों ने उस राजधानी में बहुत सी खूबसरत इमारतों का निर्माण करवाया। लखनऊ की ही तरह ये शहर भी हमें नवाबकालीन दौर की याद ताजा करवाता है। अवध के नवाबों के बारे में अगर हम इतिहास में पढ़ते हैं तो पाते है कि उन्होंने अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर का जीर्णोद्धार और लखनऊ शहर के अलीगंज में स्थित एक हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया था। फैजाबाद शहर के बसने के बाद भी अयोध्या अपने धार्मिक स्वरूप और धार्मिक पराकाष्टा के कारण आम हिंदू जनमानस के बीच आस्था के केंद्र के रूप में विख्यात रहा। इसे हम इस नजरिए से भी देख सकते हैं कि सआदत अली खान ने भगवान श्रीराम के बाद अयोध्या को ही अवध की राजधानी बनाया पर एक ईरानी होने नाते वर्तमान अयोध्या नगर से तकरीबन दस किलोमीटर दूर जाकर अपनी फारसी जुबान में उसे फैजाबाद के नाम से स्थापित किया जिसका अर्थ कुछ विद्वान ऐसे शहर के रूप में निकालते हैं जहां पर सब बराबर हैं, कोई भेदभाव नहीं है। यह एक तरह से महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में वर्णित रामराज्य की अवधारणा से मेल खाता है। फिर हमारा देश जब अंग्रेजों के अधीन आया तब उन्होंने फैजाबाद शहर को एक जिले का दर्जा दिया और रामनगरी अयोध्या को भी उस जिले के अंतर्गत कर दिया। वही व्यवस्था तब से लेकर नवंबर 2018 तक रही। योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने अयोध्या शहर को जिला घोषित कर दिया और फैजाबाद शहर को उसका प्रशासनिक मुख्यालय बना दिया। मई 2017 तक फैजाबाद शहर की अलग नगरपालिका थी और अयोध्या शहर की अलग नगरपालिका थी जिसका बाद में सूबे की भाजपा सरकार ने विलय कर अयोध्या नगर निगम नाम से एक नए नगर निकाय को गठित कर दिया।फ़ैज़ाबाद एक बहुत ही खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर है। लखनऊ के बाद यह दूसरा शहर है जिसकी इमारतें नवाबकालीन दौर को फिर से जीवन्त कर देती हैं। इस शहर को बहुत से साहित्यकारों, कवियों और स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि और कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। रामायण का पहली दफ़े उर्द़ु में तर्ज़ुमा करने वाले महान उर्द़ु कवि और पेशे से वकील पंडित ब्रजनारायण चकबस्त का जन्मस्थल और कर्मस्थल भी फ़ैज़ाबाद ही था।मुख्य आकर्षण संपादित करेंमानव सभ्यता की पहली पुरी[6] होने का पौराणिक गौरव अयोध्या को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। फिर भी श्रीरामजन्मभूमि , कनक भवन , हनुमानगढ़ी , दशरथमहल , श्रीलक्ष्मणकिला , कालेराम मन्दिर , मणिपर्वत , श्रीराम की पैड़ी , नागेश्वरनाथ , क्षीरेश्वरनाथ श्री अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर , गुप्तार घाट समेत अनेक मन्दिर यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। बिरला मन्दिर , श्रीमणिरामदास जी की छावनी , श्रीरामवल्लभाकुञ्ज , श्रीलक्ष्मणकिला , श्रीसियारामकिला , उदासीन आश्रम रानोपाली तथा हनुमान बाग जैसे अनेक आश्रम आगन्तुकों का केन्द्र हैं।मुख्य पर्व संपादित करेंअयोध्या यूँ तो सदैव किसी न किसी आयोजन में व्यस्त रहती है परन्तु यहाँ कुछ विशेष अवसर हैं जो अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं। श्रीरामनवमी ,[7] श्रीजानकीनवमी , गुरुपूर्णिमा , सावन झूला , कार्तिक परिक्रमा , श्रीरामविवाहोत्सव आदि उत्सव यहाँ प्रमुखता से मनाये जाते हैं।श्रीरामजन्मभूमि संपादित करेंशहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट में स्थित अयोध्या का सर्वप्रमुख स्थान श्रीरामजन्मभूमि है। श्रीराम-लक्ष्मण-भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के बालरूप के दर्शन यहाँ होते हैं। यहां भारत और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।कनक भवन संपादित करेंहनुमान गढ़ी के निकट स्थित कनक भवन अयोध्या का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर सीता और राम के सोने मुकुट पहने प्रतिमाओं के लिए लोकप्रिय है। इसी कारण बहुत बार इस मंदिर को सोने का घर भी कहा जाता है। यह मंदिर टीकमगढ़ की रानी ने 1891 में बनवाया था। इस मन्दिर के श्री विग्रह (श्री सीताराम जी) भारत के सुन्दरतम स्वरूप कहे जा सकते है। यहाँ नित्य दर्शन के अलावा सभी समैया-उत्सव भव्यता के साथ मनाये जाते हैं।हनुमान गढ़ी संपादित करेंनगर के केन्द्र में स्थित इस मंदिर में 76 कदमों की चाल से पहुँचा जा सकता है। अयोध्या को भगवान राम की नगरी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां हनुमान जी सदैव वास करते हैं। इसलिए अयोध्या आकर भगवान राम के दर्शन से पहले भक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं। यहां का सबसे प्रमुख हनुमान मंदिर "हनुमानगढ़ी" के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। कहा जाता है कि हनुमान जी यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। हनुमान जी को रहने के लिए यही स्थान दिया गया था।प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को ये अधिकार दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा। यहां आज भी छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है। पवित्र नगरी अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी होती है। यह मंदिर अयोध्या में एक टीले पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 76 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इसके बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के दर्शन होते हैं,जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है। मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनी माता की प्रतिमा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोद में बालक के रूप में विराजमान हैं।इस मन्दिर के निर्माण के पीछे की एक कथा प्रचलित है। सुल्तान मंसूर अली अवध का नवाब था। एक बार उसका एकमात्र पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी तो सुल्तान ने थक हार कर संकटमोचक हनुमान जी के चरणों में माथा रख दिया। हनुमान ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और सुल्तान के पुत्र की धड़कनें पुनः प्रारम्भ हो गई। अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया। जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहां के चढ़ावे से कोई कर वसूल किया जाएगा। उसने 52 बीघा भूमि हनुमान गढ़ी व इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई।इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, लेकिन फिर भी एक स्थान जो हमेशा अपने मूल रूप में रहा वो हनुमान टीला है जो आज हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए निशान भी इसी मंदिर में रखे गए जो आज भी खास मौके पर बाहर निकाले जाते हैं और जगह-जगह पर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। मन्दिर में विराजमान हनुमान जी को वर्तमान अयोध्या का राजा माना जाता है। कहते हैं कि हनुमान यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।आचार्यपीठ श्री लक्ष्मण किला संपादित करेंमुख्य लेख: श्री लक्ष्मण किलामहान संत स्वामी श्री युगलानन्यशरण जी महाराज की तपस्थली यह स्थान देश भर में रसिकोपासना के आचार्यपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। श्री स्वामी जी चिरान्द (छपरा) निवासी स्वामी श्री युगलप्रिया शरण 'जीवाराम' जी महाराज के शिष्य थे। ईस्वी सन् १८१८ में ईशराम पुर (नालन्दा) में जन्मे स्वामी युगलानन्यशरण जी का रामानन्दीय वैष्णव-समाज में विशिष्ट स्थान है।आपने उच्चतर साधनात्मक जीवन जीने के साथ ही आपने 'रघुवर गुण दर्पण','पारस-भाग','श्री सीतारामनामप्रताप-प्रकाश' तथा 'इश्क-कान्ति' आदि लगभग सौ ग्रन्थों की रचना की है। श्री लक्ष्मण किला आपकी तपस्या से अभिभूत रीवां राज्य (म.प्र.) द्वारा निर्मित कराया गया। ५२ बीघे में विस्तृत आश्रम की भूमि आपको ब्रिटिश काल में शासन से दान-स्वरूप मिली थी। श्री सरयू के तट पर स्थित यह आश्रम श्री सीताराम जी आराधना के साथ संत-गो-ब्राह्मण सेवा संचालित करता है। श्री राम नवमी, सावन झूला, तथा श्रीराम विवाह महोत्सव यहाँ बड़ी भव्यता के साथ मनाये जाते हैं। यह स्थान तीर्थ-यात्रियों के ठहरने का उत्तम विकल्प है। सरयू की धार से सटा होने के कारण यहाँ सूर्यास्त दर्शन आकर्षण का केंद्र होता है।नागेश्वर नाथ मंदिर संपादित करेंकहा जाता है कि नागेश्वर नाथ मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था। माना जाता है जब कुश सरयू नदी में नहा रहे थे तो उनका बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद एक नाग कन्या को मिला जिसे कुश से प्रेम हो गया। वह शिवभक्त थी। कुश ने उसके लिए यह मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि यही एकमात्र मंदिर है जो विक्रमादित्य के काल के पहले से है। शिवरात्रि पर्व यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।श्रीअनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर संपादित करेंमुख्य लेख: पञ्चमुखी महादेव मन्दिरअन्तर्गृही अयोध्या के शिरोभाग में गोप्रतार घाट पर पञ्चमुखी शिव का स्वरूप विराजमान है जिसे अनादि माना जाता है।[8] शैवागम में वर्णित ईशान , तत्पुरुष , वामदेव , सद्योजात और अघोर नामक पाँच मुखों वाले लिंगस्वरूप की उपासना से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।राघवजी का मन्दिर संपादित करेंये मन्दिर अयोध्या नगर के केन्द्र में स्थित बहुत ही प्राचीन भगवान श्री रामजी का स्थान है जिस्को हम (राघवजी का मंदिर) नाम से भी जानते है मन्दिर में स्थित भगवान राघवजी अकेले ही विराजमान है ये मात्र एक ऐसा मंदिर है जिसमे भगवन जी के साथ माता सीताजी की मूर्ति बिराजमान नहीं है। सरयू जी में स्नान करने के बाद राघव जी के दर्शन किये जाते है।सप्तहरि संपादित करेंमर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की लीला के अतिरिक्त अयोध्या में श्रीहरि के अन्य सात प्राकट्य हुये हैं जिन्हें सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। अलग-अलग समय देवताओं और मुनियों की तपस्या से प्रकट हुये भगवान् विष्णु के सात स्वरूपों को ही सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। इनके नाम भगवान गुप्तहरि , विष्णुहरि, चक्रहरि, पुण्यहरि, चन्द्रहरि, धर्महरि और बिल्वहरि हैं।जैन मंदिर संपादित करेंहिन्दुओं के मंदिरों के अलावा अयोध्या जैन मंदिरों के लिए भी खासा लोकप्रिय है। जैन धर्म के अनेक अनुयायी नियमित रूप से अयोध्या आते रहते हैं। अयोध्या को पांच जैन र्तीथकरों की जन्मभूमि भी कहा जाता है। जहां जिस र्तीथकर का जन्म हुआ था, वहीं उस र्तीथकर का मंदिर बना हुआ है। इन मंदिरों को फैजाबाद के नवाब के खजांची केसरी सिंह ने बनवाया था।स्मरणीय सन्त संपादित करेंप्रभु श्रीराम की नगरी होने से अयोध्या उच्चकोटि के सन्तों की भी साधना-भूमि रही। यहाँ के अनेक प्रतिष्टित आश्रम ऐसे ही सन्तों ने बनाये। इन सन्तों में स्वामी श्रीरामचरणदास जी महाराज 'करुणासिन्धु जी' स्वामी श्रीरामप्रसादाचार्य जी , स्वामी श्रीयुगलानन्यशरण जी , पं. श्रीरामवल्लभाशरण जी महाराज , श्रीमणिरामदास जी महाराज, स्वामी श्रीरघुनाथ दास जी , पं.श्रीजानकीवरशरण जी , पं. श्री उमापति त्रिपाठी जी आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैंरेल मार्ग- अयोध्या, लखनऊ पंडित दीनदयाल रेलवे प्रखंड का एक स्टेशन है। लखनऊ से बनारस रूट पर फैजाबाद से आगे अयोध्या जंक्शन है। अयोध्या को एशिया के श्रेष्ठतम रेलवे स्टेशन के रूप में विकसित किये जाने का कार्मुय प्गरगति पर है। उत्तर प्रदेश और देश के लगभग तमाम शहरों से यहां पहुंचा जा सकता है। यहाँ से बस्ती, बनारस एवं रामेश्वरम के लिए भी सीधी ट्रेन हैसड़क मार्ग- उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम की बसें लगभग सभी प्रमुख शहरों से अयोध्या के लिए चलती हैं। राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग से अयोध्या जुड़ा हुआ है।Idols of Prabhu Shri Rama and Sita Mata, Kanak Bhavan, Ayodhya, Faizabad, U.P., India.JPG Ayodhya city.jpg Saryu.JPG Hanuman Garih Temple, Ayodhya, Faizabad (U.P.), India.JPG Vijayraghav Mandir, Ayodhya.jpg बाल वनिता महिला आश्रम

अयोध्याभारत के राज्य उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले का एक नगर और जिले का मुख्यालय है। सरयू नदी के तट पर बसा अयोध्या एक अति प्राचीन धार्मिक नगर है। मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे 'अयोध्या' का नाम दिया जिसका अर्थ होता है अ-युध्य अर्थात् 'जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके। ' इसे 'कोसल जनपद' भी कहा जाता था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी/रघुवंशी/अर्कवंशी राजाओं का राज हुआ करता था, जिसमें भगवान् श्री राम ने अवतार लिया। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। यह नगरी सप्त पुरियों में से एक है-

अयोध्या
—  शहर  —
अयोध्या में सरयू तट पर दीपावली उत्सव का दृश्य
अयोध्या में सरयू तट पर दीपावली उत्सव का दृश्य
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
महापौऋषिकेश उपाध्याय[1]
जनसंख्या
• घनत्व
567456[कृपया उद्धरण जोड़ें] (2011 के अनुसार )
• 5,458.01/किमी2 (14,136/मील2)
क्षेत्रफल
• ऊँचाई (AMSL)
10.24 km² (4 sq mi)
• 93 मीटर (305 फी॰)
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥
(अर्थ : अयोध्या, मथुराहरिद्वारकाशीकाञ्चीपुरमउज्जैन, और द्वारिका - ये सात पुरियाँ नगर मोक्षदायी हैं।)

इतिहाससंपादित करें

वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या"[2] और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है- अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः॥ (अथर्ववेद -- 10.2.31). रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग १४४ कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग ३६ कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। [3] कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। स्कन्दपुराण के अनुसार सरयू के तट पर दिव्य शोभा से युक्त दूसरी अमरावती के समान अयोध्या नगरी है।[4] अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरो का शहर है। यहां आज भी हिंदू धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं।

जैन मत के अनुसार यहां चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। क्रम से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी। इसके अलावा जैन और वैदिक दोनों मतो के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ। उक्त सभी तीर्थंकर और भगवान रामचंद्र जी सभी इक्ष्वाकु वंश से थे। इसका महत्त्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचन्द्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी था। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।[5]

अयोध्या और फैज़ाबादसंपादित करें

कभी कभी बहुत से लोगों को इन दोनों शहरों में भ्रम होने लगता है। प्रायः लोग इन दोनों को एक ही शहर समझने लगते हैं। अयोध्या भारत के प्राचीनतम शहरों में शुमार है और करोड़ों भारतीयों के आराध्य भगवान श्रीराम की जन्मस्थली के रूप में विख्यात है। फैजाबाद भी एक शहर है जो अयोध्या से दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। फैजाबाद को अवध के सुबेदार नियुक्त किए गए एक ईरानी सआदत अली खान ने 1722 ईसवी में बसाकर अवध की पहली राजधानी बनाया था जिसे बाद में नवाब आसफुद्दौला द्वारा 1775 ईसवी में लखनऊ ले जाया गया जिसके बाद फैजाबाद का पतन हो गया। इस पचास वर्ष की अवधि तक के नवाबों ने उस राजधानी में बहुत सी खूबसरत इमारतों का निर्माण करवाया। लखनऊ की ही तरह ये शहर भी हमें नवाबकालीन दौर की याद ताजा करवाता है। अवध के नवाबों के बारे में अगर हम इतिहास में पढ़ते हैं तो पाते है कि उन्होंने अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर का जीर्णोद्धार और लखनऊ शहर के अलीगंज में स्थित एक हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया था। फैजाबाद शहर के बसने के बाद भी अयोध्या अपने धार्मिक स्वरूप और धार्मिक पराकाष्टा के कारण आम हिंदू जनमानस के बीच आस्था के केंद्र के रूप में विख्यात रहा। इसे हम इस नजरिए से भी देख सकते हैं कि सआदत अली खान ने भगवान श्रीराम के बाद अयोध्या को ही अवध की राजधानी बनाया पर एक ईरानी होने नाते वर्तमान अयोध्या नगर से तकरीबन दस किलोमीटर दूर जाकर अपनी फारसी जुबान में उसे फैजाबाद के नाम से स्थापित किया जिसका अर्थ कुछ विद्वान ऐसे शहर के रूप में निकालते हैं जहां पर सब बराबर हैं, कोई भेदभाव नहीं है। यह एक तरह से महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में वर्णित रामराज्य की अवधारणा से मेल खाता है। फिर हमारा देश जब अंग्रेजों के अधीन आया तब उन्होंने फैजाबाद शहर को एक जिले का दर्जा दिया और रामनगरी अयोध्या को भी उस जिले के अंतर्गत कर दिया। वही व्यवस्था तब से लेकर नवंबर 2018 तक रही। योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने अयोध्या शहर को जिला घोषित कर दिया और फैजाबाद शहर को उसका प्रशासनिक मुख्यालय बना दिया। मई 2017 तक फैजाबाद शहर की अलग नगरपालिका थी और अयोध्या शहर की अलग नगरपालिका थी जिसका बाद में सूबे की भाजपा सरकार ने विलय कर अयोध्या नगर निगम नाम से एक नए नगर निकाय को गठित कर दिया।

फ़ैज़ाबाद एक बहुत ही खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर है। लखनऊ के बाद यह दूसरा शहर है जिसकी इमारतें नवाबकालीन दौर को फिर से जीवन्त कर देती हैं। इस शहर को बहुत से साहित्यकारों, कवियों और स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि और कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। रामायण का पहली दफ़े उर्द़ु में तर्ज़ुमा करने वाले महान उर्द़ु कवि और पेशे से वकील पंडित ब्रजनारायण चकबस्त का जन्मस्थल और कर्मस्थल भी फ़ैज़ाबाद ही था।

मुख्य आकर्षणसंपादित करें

मानव सभ्यता की पहली पुरी[6] होने का पौराणिक गौरव अयोध्या को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। फिर भी श्रीरामजन्मभूमि , कनक भवन , हनुमानगढ़ी , दशरथमहल , श्रीलक्ष्मणकिला , कालेराम मन्दिर , मणिपर्वत , श्रीराम की पैड़ी , नागेश्वरनाथ , क्षीरेश्वरनाथ श्री अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर , गुप्तार घाट समेत अनेक मन्दिर यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। बिरला मन्दिर , श्रीमणिरामदास जी की छावनी , श्रीरामवल्लभाकुञ्ज , श्रीलक्ष्मणकिला , श्रीसियारामकिला , उदासीन आश्रम रानोपाली तथा हनुमान बाग जैसे अनेक आश्रम आगन्तुकों का केन्द्र हैं।

मुख्य पर्वसंपादित करें

अयोध्या यूँ तो सदैव किसी न किसी आयोजन में व्यस्त रहती है परन्तु यहाँ कुछ विशेष अवसर हैं जो अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं। श्रीरामनवमी ,[7] श्रीजानकीनवमी , गुरुपूर्णिमा , सावन झूला , कार्तिक परिक्रमा , श्रीरामविवाहोत्सव आदि उत्सव यहाँ प्रमुखता से मनाये जाते हैं।

श्रीरामजन्मभूमिसंपादित करें

शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट में स्थित अयोध्या का सर्वप्रमुख स्थान श्रीरामजन्मभूमि है। श्रीराम-लक्ष्मण-भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के बालरूप के दर्शन यहाँ होते हैं। यहां भारत और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।

कनक भवनसंपादित करें

हनुमान गढ़ी के निकट स्थित कनक भवन अयोध्या का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर सीता और राम के सोने मुकुट पहने प्रतिमाओं के लिए लोकप्रिय है। इसी कारण बहुत बार इस मंदिर को सोने का घर भी कहा जाता है। यह मंदिर टीकमगढ़ की रानी ने 1891 में बनवाया था। इस मन्दिर के श्री विग्रह (श्री सीताराम जी) भारत के सुन्दरतम स्वरूप कहे जा सकते है। यहाँ नित्य दर्शन के अलावा सभी समैया-उत्सव भव्यता के साथ मनाये जाते हैं।

हनुमान गढ़ीसंपादित करें

नगर के केन्द्र में स्थित इस मंदिर में 76 कदमों की चाल से पहुँचा जा सकता है। अयोध्या को भगवान राम की नगरी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां हनुमान जी सदैव वास करते हैं। इसलिए अयोध्या आकर भगवान राम के दर्शन से पहले भक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं। यहां का सबसे प्रमुख हनुमान मंदिर "हनुमानगढ़ी" के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। कहा जाता है कि हनुमान जी यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। हनुमान जी को रहने के लिए यही स्थान दिया गया था।

प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को ये अधिकार दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा। यहां आज भी छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है। पवित्र नगरी अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी होती है। यह मंदिर अयोध्या में एक टीले पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 76 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इसके बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के दर्शन होते हैं,जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है। मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनी माता की प्रतिमा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोद में बालक के रूप में विराजमान हैं।

इस मन्दिर के निर्माण के पीछे की एक कथा प्रचलित है। सुल्तान मंसूर अली अवध का नवाब था। एक बार उसका एकमात्र पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी तो सुल्तान ने थक हार कर संकटमोचक हनुमान जी के चरणों में माथा रख दिया। हनुमान ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और सुल्तान के पुत्र की धड़कनें पुनः प्रारम्भ हो गई। अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया। जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहां के चढ़ावे से कोई कर वसूल किया जाएगा। उसने 52 बीघा भूमि हनुमान गढ़ी व इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई।

इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, लेकिन फिर भी एक स्थान जो हमेशा अपने मूल रूप में रहा वो हनुमान टीला है जो आज हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए निशान भी इसी मंदिर में रखे गए जो आज भी खास मौके पर बाहर निकाले जाते हैं और जगह-जगह पर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। मन्दिर में विराजमान हनुमान जी को वर्तमान अयोध्या का राजा माना जाता है। कहते हैं कि हनुमान यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

आचार्यपीठ श्री लक्ष्मण किलासंपादित करें

महान संत स्वामी श्री युगलानन्यशरण जी महाराज की तपस्थली यह स्थान देश भर में रसिकोपासना के आचार्यपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। श्री स्वामी जी चिरान्द (छपरा) निवासी स्वामी श्री युगलप्रिया शरण 'जीवाराम' जी महाराज के शिष्य थे। ईस्वी सन् १८१८ में ईशराम पुर (नालन्दा) में जन्मे स्वामी युगलानन्यशरण जी का रामानन्दीय वैष्णव-समाज में विशिष्ट स्थान है।

आपने उच्चतर साधनात्मक जीवन जीने के साथ ही आपने 'रघुवर गुण दर्पण','पारस-भाग','श्री सीतारामनामप्रताप-प्रकाश' तथा 'इश्क-कान्ति' आदि लगभग सौ ग्रन्थों की रचना की है। श्री लक्ष्मण किला आपकी तपस्या से अभिभूत रीवां राज्य (म.प्र.) द्वारा निर्मित कराया गया। ५२ बीघे में विस्तृत आश्रम की भूमि आपको ब्रिटिश काल में शासन से दान-स्वरूप मिली थी। श्री सरयू के तट पर स्थित यह आश्रम श्री सीताराम जी आराधना के साथ संत-गो-ब्राह्मण सेवा संचालित करता है। श्री राम नवमी, सावन झूला, तथा श्रीराम विवाह महोत्सव यहाँ बड़ी भव्यता के साथ मनाये जाते हैं। यह स्थान तीर्थ-यात्रियों के ठहरने का उत्तम विकल्प है। सरयू की धार से सटा होने के कारण यहाँ सूर्यास्त दर्शन आकर्षण का केंद्र होता है।

नागेश्वर नाथ मंदिरसंपादित करें

कहा जाता है कि नागेश्वर नाथ मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था। माना जाता है जब कुश सरयू नदी में नहा रहे थे तो उनका बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद एक नाग कन्या को मिला जिसे कुश से प्रेम हो गया। वह शिवभक्त थी। कुश ने उसके लिए यह मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि यही एकमात्र मंदिर है जो विक्रमादित्य के काल के पहले से है। शिवरात्रि पर्व यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

श्रीअनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिरसंपादित करें

अन्तर्गृही अयोध्या के शिरोभाग में गोप्रतार घाट पर पञ्चमुखी शिव का स्वरूप विराजमान है जिसे अनादि माना जाता है।[8] शैवागम में वर्णित ईशान , तत्पुरुष , वामदेव , सद्योजात और अघोर नामक पाँच मुखों वाले लिंगस्वरूप की उपासना से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

राघवजी का मन्दिरसंपादित करें

ये मन्दिर अयोध्या नगर के केन्द्र में स्थित बहुत ही प्राचीन भगवान श्री रामजी का स्थान है जिस्को हम (राघवजी का मंदिर) नाम से भी जानते है मन्दिर में स्थित भगवान राघवजी अकेले ही विराजमान है ये मात्र एक ऐसा मंदिर है जिसमे भगवन जी के साथ माता सीताजी की मूर्ति बिराजमान नहीं है। सरयू जी में स्नान करने के बाद राघव जी के दर्शन किये जाते है।

सप्तहरिसंपादित करें

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की लीला के अतिरिक्त अयोध्या में श्रीहरि के अन्य सात प्राकट्य हुये हैं जिन्हें सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। अलग-अलग समय देवताओं और मुनियों की तपस्या से प्रकट हुये भगवान् विष्णु के सात स्वरूपों को ही सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। इनके नाम भगवान गुप्तहरि , विष्णुहरिचक्रहरिपुण्यहरिचन्द्रहरिधर्महरि और बिल्वहरि हैं।

जैन मंदिरसंपादित करें

हिन्दुओं के मंदिरों के अलावा अयोध्या जैन मंदिरों के लिए भी खासा लोकप्रिय है। जैन धर्म के अनेक अनुयायी नियमित रूप से अयोध्या आते रहते हैं। अयोध्या को पांच जैन र्तीथकरों की जन्मभूमि भी कहा जाता है। जहां जिस र्तीथकर का जन्म हुआ था, वहीं उस र्तीथकर का मंदिर बना हुआ है। इन मंदिरों को फैजाबाद के नवाब के खजांची केसरी सिंह ने बनवाया था।


स्मरणीय सन्तसंपादित करें

प्रभु श्रीराम की नगरी होने से अयोध्या उच्चकोटि के सन्तों की भी साधना-भूमि रही। यहाँ के अनेक प्रतिष्टित आश्रम ऐसे ही सन्तों ने बनाये। इन सन्तों में स्वामी श्रीरामचरणदास जी महाराज 'करुणासिन्धु जी' स्वामी श्रीरामप्रसादाचार्य जी , स्वामी श्रीयुगलानन्यशरण जी , पं. श्रीरामवल्लभाशरण जी महाराज , श्रीमणिरामदास जी महाराज, स्वामी श्रीरघुनाथ दास जी , पं.श्रीजानकीवरशरण जी , पं. श्री उमापति त्रिपाठी जी आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं

रेल मार्ग- अयोध्या, लखनऊ पंडित दीनदयाल रेलवे प्रखंड का एक स्टेशन है। लखनऊ से बनारस रूट पर फैजाबाद से आगे अयोध्या जंक्शन है। अयोध्या को एशिया के श्रेष्ठतम रेलवे स्टेशन के रूप में विकसित किये जाने का कार्मुय प्गरगति पर है। उत्तर प्रदेश और देश के लगभग तमाम शहरों से यहां पहुंचा जा सकता है। यहाँ से बस्ती, बनारस एवं रामेश्वरम के लिए भी सीधी ट्रेन है

सड़क मार्ग- उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम की बसें लगभग सभी प्रमुख शहरों से अयोध्या के लिए चलती हैं। राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग से अयोध्या जुड़ा हुआ है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

,। 🌹भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है.🌹पत्थर का स्वभाव है डूब जाना, अगर कोई पत्थर का आश्रय लेकर जल में उतरे तो वह भी पत्थर के साथ डूब जाता है। वानर का स्वभाव चीजों को तोड़ने वाला होता है, जोड़नेवाला नहीं। समुद्र स्वभाववश सबकुछ स्वयं में समा लेनेवाला है। नदियों के जल को स्वयं में समा लेनेवाला। वह किसी को कुछ सरलता से कहाँ देनेवाला है! तीनों ने रामकाज के लिए अपने स्वभाव से विपरीत कार्य कियापत्थर पानी में तैरने लग गए, वानरसेना ने सेतु बंधन किया, सागर ने सीना चीरकर मार्ग दिया और स्वयं सेतुबंधन में मदद की।इसी प्रकार जीवन में भी यदि कोई कार्य हमारे स्वभाव से विपरीत हो रहा हो पर वह सबके भले में हो तो जानना चाहिये कि शायद श्रीराम हमारे जीवन में कोई एक और सेतु बंधन कार्य कर रहे है। भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय सीताराम जी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹,

*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🌹🙏🌹 #जय__श्री__राम_ 🌹🙏🌹🙏🙏#जय__जय__सिया__राम_🙏🙏⛳⛳#जय_पवनपुत्र_हनुमान_ ⛳⛳ *🛕राम राम🚩राम राम🛕* *🛕││राम││🛕* *🛕राम🛕* * 🛕*🌞जय श्री सीताराम सादर सुप्रभात जी🌞┈┉┅━❀꧁आज के अनमोल मोती꧂❀━┅┉┈*समस्याएँ हमारे जीवन मेंबिना किसी वजह के नहीं आती.....**उनका आना एक इशारा है किहमे अपने जीवन में कुछ बदलना है.....*🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏*कपड़े से छाना हुआ पानी**स्वास्थ्य को ठीक रखता हैं।*और...**विवेक से छानी हुई वाणी**सबंध को ठीक रखती हैं॥**शब्दो को कोई भी स्पर्श नही कर सकता..*_🙏🙏🙏_*....पर....*_🙏🙏🙏_*शब्द सभी को स्पर्श कर जाते है*🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏┈┉┅━❀꧁🙏"जय श्री राम"🙏 ꧂❀━┅┉┈*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🙏🙏*सभी भक्त प्रेम से बोलो*✍️ 🙏"जय श्री राम रामाय नमः 🙏⛳🙏#जय_जय_सिया_राम__🙏⛳🙏#सियावर_रामचन्द्र__की__जय#🙏*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*

🌹 #दुःख में स्वयं की एक अंगुली आंसू पोंछती है#और सुख में दसो अंगुलियाँ ताली बजाती है🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹 #जब स्वयं का शरीर ही ऐसा करता है तो#दुनिया से गिला-शिकवा क्या करना...!!🌹 🌹 #दुनियाँ की सबसे अच्छी किताब हम स्वयं हैं #खुद को समझ लीजिए #सब समस्याओं का समाधान हो जाएगा...🌹 बाल वनिता महिला आश्रम ❤️ #जय श्री कृष्णा जय श्री राधे ❤️🌹 #शुभ_प्रभात🌹

🌹 #दुःख में स्वयं की एक अंगुली       आंसू पोंछती है #और सुख में दसो अंगुलियाँ           ताली बजाती है🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹 #जब स्वयं का शरीर ही ऐसा            करता है तो #दुनिया से गिला-शिकवा          क्या करना...!!🌹          🌹 #दुनियाँ की सबसे       अच्छी किताब हम स्वयं हैं       #खुद को समझ लीजिए               #सब समस्याओं का          समाधान हो जाएगा...🌹                                                                                             बाल वनिता महिला आश्रम               ...