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राम जी की सेना में कितने सैनिक थे?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबश्री राम के सेना में असंख्य वानर थे। यही श्री राम की विशेषता है। कहां सीता हरण के पश्चात् केवल वे दो भाई ही रह गए थे। किन्तु अपने बल, पराक्रम, पुरुषार्थ और धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने सुग्रीव से मित्रता की और अपने अधीन करोड़ों वानरों को कर लिया जो कि उनके लिए अपने प्राण तक दे सकते थे।खैर अब उत्तर पर आते हैं। जब श्री राम की सेना ने समुद्र पार करके लंका पर डेरा डाला, तब रावण ने अपने दूत शुक को श्री राम की सेना में भेजा था। शुक ने श्री राम की सेना की संख्या का उल्लेख करते हुए रावण से कहा -#बाल_वनिता_महिला_आश्रमउद्धरण -इनकी संख्या इक्कीस कोटि सहस्र, सहस्र शङ्कु और सौ वृन्द है। ये सब-के-सब वानर सदा किष्किन्धामें रहनेवाले सुग्रीवके मन्त्री हैं। इनकी उत्पत्ति देवताओं और गन्धर्वोंसे हुर्इ है। ये सभी इच्छानुसार रूप धारण करनेमें समर्थ हैं॥ ४-५ ॥स्रोत : युद्ध कांड, अध्याय २८, वाल्मीकी रामायण, गीताप्रेस संस्करणइन संख्याओं का इसी अध्याय में आगे स्पष्टीकरण करते हुए वाल्मीकी लिखते हैं -उद्धरण -मनीषी पुरुष सौ लाखकी संख्याको एक कोटि कहते हैं और सौ सहस्र कोटि (एक नील)-को एक शङ्कु कहा जाता है॥ ३३ ॥एक लाख शङ्कुको महाशङ्कु नाम दिया गया है। एक लाख महाशङ्कुको वृन्द कहते हैं॥ ३४ ॥एक लाख वृन्दका नाम महावृन्द है। एक लाख महावृन्दको पद्म कहते हैं॥ ३५ ॥एक लाख पद्मको महापद्म माना गया है। एक लाख महापद्मको खर्व कहते हैं॥ ३६ ॥एक लाख खर्वका महाखर्व होता है। एक सहस्र महाखर्वको समुद्र कहते हैं। एक लाख समुद्रको ओघ कहते हैं और एक लाख ओघकी महौघ संज्ञा है॥ ३७ १/२ ॥इस प्रकार सहस्र कोटि, सौ शङ्कु, सहस्र महाशङ्कु, सौ वृन्द, सहस्र महावृन्द, सौ पद्म, सहस्र महापद्म, सौ खर्व, सौ समुद्र, सौ महौघ तथा समुद्र-सदृश (सौ) कोटि महौघ सैनिकोंसे, वीर विभीषणसे तथा अपने सचिवोंसे घिरे हुए वानरराज सुग्रीव आपको युद्धके लिये ललकारते हुए सामने आ रहे हैं। विशाल सेनासे घिरे हुए सुग्रीव महान् बल और पराक्रमसे सम्पन्न हैं॥ ३८—४१ ॥स्रोत : युद्ध कांड, अध्याय २८, वाल्मीकी रामायण, गीताप्रेस संस्करण

श्री राम के सेना में असंख्य वानर थे। यही श्री राम की विशेषता है। कहां सीता हरण के पश्चात् केवल वे दो भाई ही रह गए थे। किन्तु अपने बल, पराक्रम, पुरुषार्थ और धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने सुग्रीव से मित्रता की और अपने अधीन करोड़ों वानरों को कर लिया जो कि उनके लिए अपने प्राण तक दे सकते थे।

खैर अब उत्तर पर आते हैं। जब श्री राम की सेना ने समुद्र पार करके लंका पर डेरा डाला, तब रावण ने अपने दूत शुक को श्री राम की सेना में भेजा था। शुक ने श्री राम की सेना की संख्या का उल्लेख करते हुए रावण से कहा -

#बाल_वनिता_महिला_आश्रम

उद्धरण -

इनकी संख्या इक्कीस कोटि सहस्र, सहस्र शङ्कु और सौ वृन्द है। ये सब-के-सब वानर सदा किष्किन्धामें रहनेवाले सुग्रीवके मन्त्री हैं। इनकी उत्पत्ति देवताओं और गन्धर्वोंसे हुर्इ है। ये सभी इच्छानुसार रूप धारण करनेमें समर्थ हैं॥ ४-५ ॥

स्रोत : युद्ध कांड, अध्याय २८, वाल्मीकी रामायण, गीताप्रेस संस्करण

इन संख्याओं का इसी अध्याय में आगे स्पष्टीकरण करते हुए वाल्मीकी लिखते हैं -

उद्धरण -

मनीषी पुरुष सौ लाखकी संख्याको एक कोटि कहते हैं और सौ सहस्र कोटि (एक नील)-को एक शङ्कु कहा जाता है॥ ३३ ॥

एक लाख शङ्कुको महाशङ्कु नाम दिया गया है। एक लाख महाशङ्कुको वृन्द कहते हैं॥ ३४ ॥

एक लाख वृन्दका नाम महावृन्द है। एक लाख महावृन्दको पद्म कहते हैं॥ ३५ ॥

एक लाख पद्मको महापद्म माना गया है। एक लाख महापद्मको खर्व कहते हैं॥ ३६ ॥

एक लाख खर्वका महाखर्व होता है। एक सहस्र महाखर्वको समुद्र कहते हैं। एक लाख समुद्रको ओघ कहते हैं और एक लाख ओघकी महौघ संज्ञा है॥ ३७ १/२ ॥

इस प्रकार सहस्र कोटि, सौ शङ्कु, सहस्र महाशङ्कु, सौ वृन्द, सहस्र महावृन्द, सौ पद्म, सहस्र महापद्म, सौ खर्व, सौ समुद्र, सौ महौघ तथा समुद्र-सदृश (सौ) कोटि महौघ सैनिकोंसे, वीर विभीषणसे तथा अपने सचिवोंसे घिरे हुए वानरराज सुग्रीव आपको युद्धके लिये ललकारते हुए सामने आ रहे हैं। विशाल सेनासे घिरे हुए सुग्रीव महान् बल और पराक्रमसे सम्पन्न हैं॥ ३८—४१ ॥

स्रोत : युद्ध कांड, अध्याय २८, वाल्मीकी रामायण, गीताप्रेस संस्करण

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,। 🌹भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है.🌹पत्थर का स्वभाव है डूब जाना, अगर कोई पत्थर का आश्रय लेकर जल में उतरे तो वह भी पत्थर के साथ डूब जाता है। वानर का स्वभाव चीजों को तोड़ने वाला होता है, जोड़नेवाला नहीं। समुद्र स्वभाववश सबकुछ स्वयं में समा लेनेवाला है। नदियों के जल को स्वयं में समा लेनेवाला। वह किसी को कुछ सरलता से कहाँ देनेवाला है! तीनों ने रामकाज के लिए अपने स्वभाव से विपरीत कार्य कियापत्थर पानी में तैरने लग गए, वानरसेना ने सेतु बंधन किया, सागर ने सीना चीरकर मार्ग दिया और स्वयं सेतुबंधन में मदद की।इसी प्रकार जीवन में भी यदि कोई कार्य हमारे स्वभाव से विपरीत हो रहा हो पर वह सबके भले में हो तो जानना चाहिये कि शायद श्रीराम हमारे जीवन में कोई एक और सेतु बंधन कार्य कर रहे है। भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय सीताराम जी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹,

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