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मंगलवार विशेष,अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी!!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान 🙏🙏❤️हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी; जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था । हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है । तभी तो पैदा होते ही वे भयंकर भूख से पीड़ित होकर उगते हुए सूर्य को फल समझ कर उसे खाने के लिए आकाश में उछल कर सूर्यमण्डल तक पहुंच गए थे । ऐसी सामर्थ्य किसी महान योगी में ही हो सकती है ।श्रीराम-वल्लभा सीताजी ने हनुमानजी की भक्ति-भावना से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया—‘मारुतिनंदन ! अष्ट सिद्धियां तुम्हारे करतलगत हो जाएं और तुम जहां कहीं भी रहोगे, वहीं मेरी आज्ञा से सम्पूर्ण भोग (निधियां) तुन्हारे पास उपस्थित हो जाएंगे ।’अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।अस वर दीन्ह जानकी माता ।।अणिमा, महिमा आदि सभी सिद्धियां अपने उत्कृष्ट रूप में हनुमानजी में व्याप्त हैं; इसीलिए हनुमानजी अपने सच्चे उपासक को इन सिद्धियों से समृद्ध कर देते हैं ।अमरकोश में अष्ट सिद्धियां इस प्रकार बतायी गयी हैं—अणिमा महिमा चैव गरिमा लघिमा तथा ।प्राप्ति: प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्टसिद्धय:।।अर्थात्—(1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) ईशित्व और (8) वशित्व—ये अष्ट सिद्धियां हैं । हनुमानजी का जीवन केवल ‘राम काज’ के लिए है; जानते हैं कि हनुमानजी ने राम काज के लिए इन सिद्धियों का कैसे प्रयोग किया ? (1) अणिमा—इस सिद्धि से शरीर को अणु जितना छोटा बनाया जा सकता है । सीताजी का पता लगाने के लिए लंका जाते समय सुरसा के विशाल शरीर और मुख को देखकर हनुमानजी ने अत्यन्त लघु रुप धारण कर लिया । लंका में प्रवेश करते समय हनुमानजी ने मशक के समान अति लघुरूप धारण किया–मसक समान रूप कपि धरी ।लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ।। (मानस ५।४।१)अशोक वाटिका में सीताजी के समक्ष प्रकट होते समय हनुमानजी के रूप का ‘श्रीरंगनाथ रामायण’ में इस प्रकार वर्णन किया गया है–‘हनुमानजी अंगुष्ठमात्र का आकार ग्रहण कर उस अशोक वृक्ष पर चढ़ गए । बालक के रूप में वटवृक्ष के पत्रों में शयन करने वाले भगवान विष्णु के समान वे श्रेष्ठ वानर उस वृक्ष की घनी शाखाओं में बड़ी कुशलता के साथ छिपकर बैठ गए और उन विशालाक्षी सीताजी को बार-बार ध्यान से देखने लगे ।’(2) महिमा—इस सिद्धि से देह को चाहे जितना बड़ा या भारी बनाया जा सकता है । जब समुद्र पार करते समय सुरसा हनुमानजी को निगलने चली तो वे सौ योजन आकार वाले हो गए । हनुमानजी ने इसी सिद्धि से समुद्र लांघते समय अपने शरीर को पर्वताकार बनाया था—जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा ।तासु दून कपि रूप देखावा ।। (मानस ५।१।५)हनुमानजी सीताजी से कहते हैं—‘वानर-सेनाओं के साथ आकर श्रीराम लंका को क्षण भर में भस्म कर देंगें ।’तब सीताजी कहती हैं—‘तुम तो अत्यंत लघु शरीर वाले हो, अन्य भालू-वानर भी तुम्हारी तरह लघुकाय ही होंगे, फिर वे ऐसे विशाल शरीर वाले राक्षसों से कैसे लड़ेंगे ?’ उस समय हनुमानजी ने स्वर्ण-शैल के समान विशाल रूप धारण कर अपनी शक्ति का परिचय दिया—कनक भूधराकार सरीरा ।समर भयंकर अतिबल बीरा ।। (मानस ५।१५।४)(3) गरिमा—एक बार हनुमानजी गंधमादन पर्वत पर अपनी पूंछ फैलाकर लेटे हुए थे । उसी समय अपने बल के गर्व में चूर भीमसेन वहां आए । हनुमानजी ने उनसे कहा—‘बुढ़ापे के कारण मैं स्वयं उठने में असमर्थ हूँ, कृपया तुम मेरी इस पूंछ को हटाकर आगे बढ़ जाओ । भीमसेन हंसते हुए बायें हाथ से हनुमानजी की पूंछ हटाने लगे पर वह टस-से-मस नहीं हुई । भीमसेन हनुमानजी का विन्ध्य पर्वत के समान अत्यन्त भयंकर और अद्भुत शरीर देखकर घबरा गए और लज्जा से मुख नीचा कर कपिराज से क्षमा मांगने लगे । यहां हनुमानजी की गरिमा सिद्धि परिलक्षित होती है ।(4) लघिमा—इस सिद्धि के बल से शरीर को रुई से भी हलका और हवा में तैरने लायक बनाया जा सकता है । लंका-दहन के समय हनुमानजी का आकार तो अत्यंत विशाल था पर वे इतने हल्के थे कि वे शीघ्र ही राक्षसों के एक घर से दूसरे घर तक पहुंच जाते थे—देह बिसाल परम हरुआई ।मंदिर ते मंदिर चढ़ धाई ।। (मानस ५।२५।१)(5) प्राप्ति—इस सिद्धि से साधक को मनोवांछित पदार्थ की प्राप्ति हो जाती है । यद्यपि सीताजी की खोज के लिए अनेकों भालू व वानर चारों दिशाओं में भेजे गए; परन्तु हनुमानजी को ही लंका में पहुंचने के बाद अल्प समय में ही सीताजी का दर्शन हुआ ।(6) प्राकाम्य—प्राकाम्य नामक सिद्धि में इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर लेना और कहीं भी पहुंच जाना संभव होता है ।▪️किष्किन्धा के लिए प्रस्थान करते समय सीताजी से चूड़ामणि लेने से पहले उनका विश्वास प्राप्त करने के लिए हनुमानजी ने अपना विश्वरूप दिखाया जो विन्ध्याचल के समान विशाल दीख पड़ता था ।▪️श्रीरामचरितमानस के अनुसार किष्किन्धा में श्रीराम से मिलने हनुमानजी विप्र-वेष धारण करके गए थे–‘विप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ ।’▪️हनुमानजी ने विप्ररूप धारण कर ही विभीषण से भेंट की थी–बिप्र रूप धरि बचन सुनाए ।सुनत बिभीषण उठि तहँ आए ।। (मानस ५।५।३)▪️अध्यात्म रामायण के अनुसार हनुमानजी नन्दि ग्राम में भरतजी को भगवान श्रीराम के आगमन का संदेश सुनाने मनुष्य-शरीर धारणकर गए थे ।(7) ईशिता—माया और उसको कार्यों को इच्छानुसार संचालित करना ईशिता नाम की सिद्धि है । हनुमानजी प्रभु श्रीराम की वानर और भालुओं की सेना के अद्वितीय सेनानायक थे और साथ ही परम भक्त भी थे । वे देव, दानव और मानव आदि समस्त प्राणियों के लिए अजेय थे । जब मेघनाद ने हनुमानजी पर ब्रह्माजी द्वारा दिया गया अस्त्र चलाया, तब उस ब्रह्मास्त्र की महिमा रखने के लिए वे स्वयं उसमें बंध गए थे ।(8) वशिता—इस सिद्धि से कर्मों और विषय-भोगों में आसक्त न होने की सामर्थ्य प्राप्त होती है । हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी और पूर्ण जितेन्द्रिय थे । रावण के अंत:पुर में अस्त-व्यस्त अवस्था में सोई हुई स्त्रियों को देखने के बाद हनुमानजी के ये वचन उनके इन्द्रियजय ( जितेन्द्रियत्व) #सिद्धि को दर्शाते हैं—‘‘माता सीता स्त्रियों में ही मिलेंगी, इसी भावना से मैंने रावण के अंत:पुर में प्रवेश किया था । मैं तो माता जानकी को ढूंढ़ रहा था, किसी नारी के सौन्दर्य पर तो मेरी दृष्टि नहीं गई और ना ही मेरे मन में कोई विकार आया । ये जो स्त्रियों के अर्धनग्न देह मुझे देखने पड़े, ये तो मेरी दृष्टि में शव के समान ही थे, फिर मेरा अखण्ड ब्रह्मचर्य का व्रत कैसे भंग हो सकता है ?’#गोस्वामी #तुलसीदासजी ने #हनुमान #चालीसा में कहा है—जो यह पढ़े हनुमान चालीसा ।होय सिद्ध साखी #गौरीसा ।।अर्थात्—हनुमान चालीसा के नित्य पढ़ने मात्र से #हनुमानजी भक्त को समस्त #सिद्धियां प्रदान कर देते हैं । ऐसा मैं भगवान शिव का साक्षी देकर कहती हूँ ।

मंगलवार विशेष,अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी!!!!!!!!

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान 🙏🙏❤️

हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी; जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था ।

 हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है । तभी तो पैदा होते ही वे भयंकर भूख से पीड़ित होकर उगते हुए सूर्य को फल समझ कर उसे खाने के लिए आकाश में उछल कर सूर्यमण्डल तक पहुंच गए थे । ऐसी सामर्थ्य किसी महान योगी में ही हो सकती है ।

श्रीराम-वल्लभा सीताजी ने हनुमानजी की भक्ति-भावना से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया—
‘मारुतिनंदन ! अष्ट सिद्धियां तुम्हारे करतलगत हो जाएं और तुम जहां कहीं भी रहोगे, वहीं मेरी आज्ञा से सम्पूर्ण भोग (निधियां) तुन्हारे पास उपस्थित हो जाएंगे ।’

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस वर दीन्ह जानकी माता ।।
अणिमा, महिमा आदि सभी सिद्धियां अपने उत्कृष्ट रूप में हनुमानजी में व्याप्त हैं; इसीलिए हनुमानजी अपने सच्चे उपासक को इन सिद्धियों से समृद्ध कर देते हैं ।

अमरकोश में अष्ट सिद्धियां इस प्रकार बतायी गयी हैं—
अणिमा महिमा चैव गरिमा लघिमा तथा ।
प्राप्ति: प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्टसिद्धय:।।
अर्थात्—(1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) ईशित्व और (8) वशित्व—ये अष्ट सिद्धियां हैं । 
हनुमानजी का जीवन केवल ‘राम काज’ के लिए है; जानते हैं कि हनुमानजी ने राम काज के लिए इन सिद्धियों का कैसे प्रयोग किया ? 

(1) अणिमा—इस सिद्धि से शरीर को अणु जितना छोटा बनाया जा सकता है । सीताजी का पता लगाने के लिए लंका जाते समय सुरसा के विशाल शरीर और मुख को देखकर हनुमानजी ने अत्यन्त लघु रुप धारण कर लिया । लंका में प्रवेश करते समय हनुमानजी ने मशक के समान अति लघुरूप धारण किया–
मसक समान रूप कपि धरी ।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ।। (मानस ५।४।१)

अशोक वाटिका में सीताजी के समक्ष प्रकट होते समय हनुमानजी के रूप का ‘श्रीरंगनाथ रामायण’ में इस प्रकार वर्णन किया गया है–
‘हनुमानजी अंगुष्ठमात्र का आकार ग्रहण कर उस अशोक वृक्ष पर चढ़ गए । बालक के रूप में वटवृक्ष के पत्रों में शयन करने वाले भगवान विष्णु के समान वे श्रेष्ठ वानर उस वृक्ष की घनी शाखाओं में बड़ी कुशलता के साथ छिपकर बैठ गए और उन विशालाक्षी सीताजी को बार-बार ध्यान से देखने लगे ।’

(2) महिमा—इस सिद्धि से देह को चाहे जितना बड़ा या भारी बनाया जा सकता है । जब समुद्र पार करते समय सुरसा हनुमानजी को निगलने चली तो वे सौ योजन आकार वाले हो गए । हनुमानजी ने इसी सिद्धि से समुद्र लांघते समय अपने शरीर को पर्वताकार बनाया था—
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा ।
तासु दून कपि रूप देखावा ।। (मानस ५।१।५)
हनुमानजी सीताजी से कहते हैं—‘वानर-सेनाओं के साथ आकर श्रीराम लंका को क्षण भर में भस्म कर देंगें ।’

तब सीताजी कहती हैं—‘तुम तो अत्यंत लघु शरीर वाले हो, अन्य भालू-वानर भी तुम्हारी तरह लघुकाय ही होंगे, फिर वे ऐसे विशाल शरीर वाले राक्षसों से कैसे लड़ेंगे ?’ उस समय हनुमानजी ने स्वर्ण-शैल के समान विशाल रूप धारण कर अपनी शक्ति का परिचय दिया—
कनक भूधराकार सरीरा ।

समर भयंकर अतिबल बीरा ।। (मानस ५।१५।४)

(3) गरिमा—एक बार हनुमानजी गंधमादन पर्वत पर अपनी पूंछ फैलाकर लेटे हुए थे । उसी समय अपने बल के गर्व में चूर भीमसेन वहां आए । हनुमानजी ने उनसे कहा—‘बुढ़ापे के कारण मैं स्वयं उठने में असमर्थ हूँ, कृपया तुम मेरी इस पूंछ को हटाकर आगे बढ़ जाओ । भीमसेन हंसते हुए बायें हाथ से हनुमानजी की पूंछ हटाने लगे पर वह टस-से-मस नहीं हुई । भीमसेन हनुमानजी का विन्ध्य पर्वत के समान अत्यन्त भयंकर और अद्भुत शरीर देखकर घबरा गए और लज्जा से मुख नीचा कर कपिराज से क्षमा मांगने लगे । यहां हनुमानजी की गरिमा सिद्धि परिलक्षित होती है ।

(4) लघिमा—इस सिद्धि के बल से शरीर को रुई से भी हलका और हवा में तैरने लायक बनाया जा सकता है । लंका-दहन के समय हनुमानजी का आकार तो अत्यंत विशाल था पर वे इतने हल्के थे कि वे शीघ्र ही राक्षसों के एक घर से दूसरे घर तक पहुंच जाते थे—
देह बिसाल परम हरुआई ।

मंदिर ते मंदिर चढ़ धाई ।। (मानस ५।२५।१)

(5) प्राप्ति—इस सिद्धि से साधक को मनोवांछित पदार्थ की प्राप्ति हो जाती है । यद्यपि सीताजी की खोज के लिए अनेकों भालू व वानर चारों दिशाओं में भेजे गए; परन्तु हनुमानजी को ही लंका में पहुंचने के बाद अल्प समय में ही सीताजी का दर्शन हुआ ।
(6) प्राकाम्य—प्राकाम्य नामक सिद्धि में इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर लेना और कहीं भी पहुंच जाना संभव होता है ।

▪️किष्किन्धा के लिए प्रस्थान करते समय सीताजी से चूड़ामणि लेने से पहले उनका विश्वास प्राप्त करने के लिए हनुमानजी ने अपना विश्वरूप दिखाया जो विन्ध्याचल के समान विशाल दीख पड़ता था ।

▪️श्रीरामचरितमानस के अनुसार किष्किन्धा में श्रीराम से मिलने हनुमानजी विप्र-वेष धारण करके गए थे–‘विप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ ।’

▪️हनुमानजी ने विप्ररूप धारण कर ही विभीषण से भेंट की थी–
बिप्र रूप धरि बचन सुनाए ।
सुनत बिभीषण उठि तहँ आए ।। (मानस ५।५।३)

▪️अध्यात्म रामायण के अनुसार हनुमानजी नन्दि ग्राम में भरतजी को भगवान श्रीराम के आगमन का संदेश सुनाने मनुष्य-शरीर धारणकर गए थे ।

(7) ईशिता—माया और उसको कार्यों को इच्छानुसार संचालित करना ईशिता नाम की सिद्धि है । हनुमानजी प्रभु श्रीराम की वानर और भालुओं की सेना के अद्वितीय सेनानायक थे और साथ ही परम भक्त भी थे । वे देव, दानव और मानव आदि समस्त प्राणियों के लिए अजेय थे । जब मेघनाद ने हनुमानजी पर ब्रह्माजी द्वारा दिया गया अस्त्र चलाया, तब उस ब्रह्मास्त्र की महिमा रखने के लिए वे स्वयं उसमें बंध गए थे ।

(8) वशिता—इस सिद्धि से कर्मों और विषय-भोगों में आसक्त न होने की सामर्थ्य प्राप्त होती है । हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी और पूर्ण जितेन्द्रिय थे । रावण के अंत:पुर में अस्त-व्यस्त अवस्था में सोई हुई स्त्रियों को देखने के बाद हनुमानजी के ये वचन उनके इन्द्रियजय ( जितेन्द्रियत्व) #सिद्धि को दर्शाते हैं—
‘‘माता सीता स्त्रियों में ही मिलेंगी, इसी भावना से मैंने रावण के अंत:पुर में प्रवेश किया था । मैं तो माता जानकी को ढूंढ़ रहा था, किसी नारी के सौन्दर्य पर तो मेरी दृष्टि नहीं गई और ना ही मेरे मन में कोई विकार आया । ये जो स्त्रियों के अर्धनग्न देह मुझे देखने पड़े, ये तो मेरी दृष्टि में शव के समान ही थे, फिर मेरा अखण्ड ब्रह्मचर्य का व्रत कैसे भंग हो सकता है ?’
#गोस्वामी #तुलसीदासजी ने #हनुमान #चालीसा में कहा है—
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा ।
होय सिद्ध साखी #गौरीसा ।।

अर्थात्—हनुमान चालीसा के नित्य पढ़ने मात्र से #हनुमानजी भक्त को समस्त #सिद्धियां प्रदान कर देते हैं । ऐसा मैं भगवान शिव का साक्षी देकर कहती हूँ ।

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समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।3- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया।तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं।इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।4- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण 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प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।11- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।12- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक वानरों ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं, जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।24- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।25- रावण जब विशव विजय पर निकला तब वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां रावण और यमराज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने कालदंड के प्रयोग द्वारा रावण के प्राण लेने चाहे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।26- वाल्मीकि रामायण में 24 हज़ार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है।

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। बाल वनिता महिला आश्रम लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस

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