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आज मंगलवार है, हनुमानजी महाराज का दिन है। आज हम आपको बतायेगें,अत्यन्त फलदायी हैं हनुमानजी के 108 नाम!!!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानसंसार में ऐसे तो उदाहरण हैं जहां स्वामी ने सेवक को अपने समान कर दिया हो, किन्तु स्वामी ने सेवक को अपने से ऊंचा मानकर सम्मान दिया है, यह केवल श्रीरामचरित्र में ही देखने को मिलता है । श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमानजी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मणजी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा–जैसे अनेक कार्य हनुमानजी ने किए । आज भी हनुमानजी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमानजी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं। कितने भी संकट में कोई हो, हनुमानजी का नाम उसे त्राण देता है ।हे रामदूत! हे पवनपुत्र! हे संकटमोचन! हे हनुमान !तुम दुष्टों के हो कालरूप, तुम महाबली, तुम ओजवान ।।जनकसुता के कष्ट हरे सब, रावण का मद चूर किया ।प्रेम-भाव से तुम्हें पुकारा, तुमने संकट दूर किया ।।मेरे अंतर में प्रतिदिन ही, गूंजे तेरा अमर गान ।हे रामदूत! हे पवनपुत्र! हे संकटमोचन! हे हनुमान! (श्रीअनूपकुमारजी गुप्त ‘अनूप’)भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भक्तगण हनुमानजी की आराधना बड़े ही श्रद्धा से करते हैं। हनुमानजी की जाग्रत देवता के रूप में मान्यता है; इसलिए इनकी आराधना से तत्काल फल की प्राप्ति होती है ।अष्टोत्तरशतनाम (१०८ नाम) का महत्व!!!!!भगवान के पूजन व अर्चन में अष्टोत्तरशतनाम व सहस्त्रनाम का अत्यधिक महत्त्व है। विशेष कामनाओं की पूर्ति के लिए अष्टोत्तरशत नामावली का पाठ या विशेष सामग्री द्वारा १०८ नामों से पूजा-अर्चना की शास्त्रों में बहुत महिमा बताई गयी है। इन नामों का पाठ अनन्त फलदायक, सभी अमंगलों का नाश करने वाला, स्थायी सुख-शान्ति को देने वाला, अंत:करण को पवित्र करने वाला और भगवान की भक्ति को बढ़ाने वाला है। यहां सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले हनुमानजी के अष्टोत्तरशत नाम दिए जा रहे हैं–हनुमानजी के प्रसिद्ध १०८ नाम अष्टोत्तरशत नामावली!!!!!!!!!!हनुमानजी के नाम स्मरण से ही बुद्धि, बल, यश, धीरता, निर्भयता, आरोग्य, सुदृढ़ता और बोलने में महारत प्राप्त होती है और मनुष्य के अनेक रोग दूर हो जाते हैं । भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस उनके नाम लेने मात्र से ही भाग जाते हैं१. ॐ अंजनीगर्भसम्भूताय नम:२. ॐ वायुपुत्राय नम:३. ॐ चिरंजीवने नम:४. ॐ महाबलाय नम:५. ॐ कर्णकुण्डलाय नम:६. ॐ ब्रह्मचारिणे नम:७. ॐ ग्रामवासिने नम:८. ॐ पिंगकेशाय नम:९. ॐ रामदूताय नम:१०. ॐ सुग्रीवकार्यकर्त्रे नम:११. ॐ बालिनिग्रहकारकाय नम:१२. ॐ रुद्रावताराय नम:१३. ॐ हनुमते नम:१४. ॐ सुग्रीवप्रियसेवकाय नम:१५. ॐ सागरक्रमणाय नम:१६. ॐ सीताशोकनिवारणाय नम:१७. ॐ छायाग्रहीनिहन्त्रे नम:१८. ॐ पर्वताधिश्रिताय नम:१९. ॐ प्रमाथाय नम:२०. ॐ वनभंगाय नम:२१. ॐ महाबलपराक्रमाय नम:२२. ॐ महायुद्धाय नम:२३. ॐ धीराय नम:२४. ॐ सर्वासुरमहोद्यताय नम:२५. ॐ अग्निसूक्तोक्तचारिणे नम:२६. ॐ भीमगर्वविनाशकाय नम:२७. ॐ शिवलिंगप्रतिष्ठात्रे नम:२८. ॐ अनघाय नम:२९. ॐ कार्यसाधकाय नम:३०. ॐ वज्रांगाय नम:३१. ॐ भास्करग्रसाय नम:३२. ॐ ब्रह्मादिसुरवन्दिताय नम:३३. ॐ कार्यकर्त्रे नम:३४. ॐ कार्यार्थिने नम:३५. ॐ दानवान्तकाय नम:३६. ॐ नाग्रविद्यानां पण्डिताय नम:३७. ॐ वनमाल्यसुरान्तकाय नम:३८. ॐ वज्रकायाय नम:३९. ॐ महावीराय नम:४०. ॐ रणांगणचराय नम:४१. ॐ अक्षासुरनिहन्त्रे नम:४२. ॐ जम्बूमालीविदारणे नम:४३. ॐ इन्द्रजीतगर्वसंहन्त्रे नम:४४. ॐ मन्त्रीनन्दनघातकाय नम:४५. ॐ सौमित्रप्राणदाय नम:४६. ॐ सर्ववानररक्षकाय नम:४७. ॐ संजीवनवनगोद्वाहिने नम:४८. ॐ कपिराजाय नम:४९. ॐ कालनिधये नम:५०. ॐ दधिमुखादिगर्वसंहन्त्रे नम:५१. ॐ धूम्रविदारणाय नम:५२. ॐ अहिरावणहन्त्रे नम:५३. ॐ दोर्दण्डशोभिताय नम:५४. ॐ गरलागर्वहरणाय नम:५५. ॐ लंकाप्रासादभंजकाय नम:५६. ॐ मारुताय नम:५७. ॐ अंजनीवाक्यसाधकाय नम:५८. ॐ लोकधारिणे नम:५९. ॐ लोककर्त्रे नम:६०. ॐ लोकदाय नम:६१. ॐ लोकवन्दिताय नम:६२. ॐ दशास्यगर्वहन्त्रे नम:६३. ॐ फाल्गुनभंजकाय नम:६४. ॐ किरीटीकार्यकर्त्रे नम:६५. ॐ दुष्टदुर्जयखण्डनाय नम:६६. ॐ वीर्यकर्त्रे नम:६७. ॐ वीर्यवर्याय नम:६८. ॐ बालपराक्रमाय नम:६९. ॐ रामेष्ठाय नम:७०. ॐ भीमकर्मणे नम:७१. ॐ भीमकार्यप्रसाधकाय नम:७२. ॐ विरोधिवीराय नम:७३. ॐ मोहानासिने नम:७४. ॐ ब्रह्ममन्त्रये नम:७५. ॐ सर्वकार्याणां सहायकाय नम:७६. ॐ रुद्ररूपीमहेश्वराय नम:७७. ॐ मृतवानरसंजीवने नम:७८. ॐ मकरीशापखण्डनाय नम:७९. ॐ अर्जुनध्वजवासिने नम:८०. ॐ रामप्रीतिकराय नम:८१. ॐ रामसेविने नम:८२. ॐ कालमेघान्तकाय नम:८३. ॐ लंकानिग्रहकारिणे नम:८४. ॐ सीतान्वेषणतत्पराय नम:८५. ॐ सुग्रीवसारथये नम:८६. ॐ शूराय नम:८७. ॐ कुम्भकर्णकृतान्तकाय नम:८८. ॐ कामरूपिणे नम:८९. ॐ कपीन्द्राय नम:९०. ॐ पिंगाक्षाय नम:९१. ॐ कपिनायकाय नम:९२. ॐ पुत्रस्थापनकर्त्रे नम:९३. ॐ बलवते नम:९४. ॐ मारुतात्मजाय नम:९५. ॐ रामभक्ताय नम:९६. ॐ सदाचारिणे नम:९७. ॐ युवानविक्रमोर्जिताय नम:९८. ॐ मतिमते नम:९९. ॐ तुलाधारपावनाय नम:१००. ॐ प्रवीणाय नम:१०१. ॐ पापसंहारकाय नम:१०२. ॐ गुणाढ्याय नम:१०३. ॐ नरवन्दिताय नम:१०४. ॐ दुष्टदानवसंहारिणे नम:१०५. ॐ महायोगिने नम:१०६. ॐ महोदराय नम:१०७. ॐ रामसन्मुखाय नम:१०८. ॐ रामपूजकाय नम:#Vnita🙏🙏❤️#हनुमानजी की ये अष्टोत्तरशतनामावली आज के भौतिक #युग में मनुष्य के कमजोर होते हुए विश्वास को पुर्नजीवित करने में संजीवनी बूटी का काम करेगी और विभिन्न संतापों से अशान्त #मन को शान्त करने में सहायक होगी।

आज मंगलवार है, हनुमानजी महाराज का दिन है। आज हम आपको बतायेगें,अत्यन्त फलदायी हैं हनुमानजी के 108 नाम!!!!!!!!!
#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान

संसार में ऐसे तो उदाहरण हैं जहां स्वामी ने सेवक को अपने समान कर दिया हो, किन्तु स्वामी ने सेवक को अपने से ऊंचा मानकर सम्मान दिया है, यह केवल श्रीरामचरित्र में ही देखने को मिलता है । श्रीरामचरितमानस में जितना भी कठिन कार्य है, वह सब हनुमानजी द्वारा पूर्ण होता है । मां सीता की खोज, लक्ष्मणजी के प्राण बचाना, लंका में संत्रास पैदा करना, अहिरावण-वध, श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा–जैसे अनेक कार्य हनुमानजी ने किए । आज भी हनुमानजी को जो करुणहृदय से पुकारता है, हनुमानजी उसकी रक्षा अवश्य करते हैं। कितने भी संकट में कोई हो, हनुमानजी का नाम उसे त्राण देता है ।
हे रामदूत! हे पवनपुत्र! हे संकटमोचन! हे हनुमान !
तुम दुष्टों के हो कालरूप, तुम महाबली, तुम ओजवान ।।
जनकसुता के कष्ट हरे सब, रावण का मद चूर किया ।
प्रेम-भाव से तुम्हें पुकारा, तुमने संकट दूर किया ।।
मेरे अंतर में प्रतिदिन ही, गूंजे तेरा अमर गान ।
हे रामदूत! हे पवनपुत्र! हे संकटमोचन! हे हनुमान! (श्रीअनूपकुमारजी गुप्त ‘अनूप’)

भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भक्तगण हनुमानजी की आराधना बड़े ही श्रद्धा से करते हैं। हनुमानजी की जाग्रत देवता के रूप में मान्यता है; इसलिए इनकी आराधना से तत्काल फल की प्राप्ति होती है ।

अष्टोत्तरशतनाम (१०८ नाम) का महत्व!!!!!

भगवान के पूजन व अर्चन में अष्टोत्तरशतनाम व सहस्त्रनाम का अत्यधिक महत्त्व है। विशेष कामनाओं की पूर्ति के लिए अष्टोत्तरशत नामावली का पाठ या विशेष सामग्री द्वारा १०८ नामों से पूजा-अर्चना की शास्त्रों में बहुत महिमा बताई गयी है। इन नामों का पाठ अनन्त फलदायक, सभी अमंगलों का नाश करने वाला, स्थायी सुख-शान्ति को देने वाला, अंत:करण को पवित्र करने वाला और भगवान की भक्ति को बढ़ाने वाला है। यहां सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले हनुमानजी के अष्टोत्तरशत नाम दिए जा रहे हैं–

हनुमानजी के प्रसिद्ध १०८ नाम अष्टोत्तरशत नामावली!!!!!!!!!!

हनुमानजी के नाम स्मरण से ही बुद्धि, बल, यश, धीरता, निर्भयता, आरोग्य, सुदृढ़ता और बोलने में महारत प्राप्त होती है और मनुष्य के अनेक रोग दूर हो जाते हैं । भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस उनके नाम लेने मात्र से ही भाग जाते हैं

१. ॐ अंजनीगर्भसम्भूताय नम:
२. ॐ वायुपुत्राय नम:
३. ॐ चिरंजीवने नम:
४. ॐ महाबलाय नम:
५. ॐ कर्णकुण्डलाय नम:
६. ॐ ब्रह्मचारिणे नम:
७. ॐ ग्रामवासिने नम:
८. ॐ पिंगकेशाय नम:
९. ॐ रामदूताय नम:
१०. ॐ सुग्रीवकार्यकर्त्रे नम:
११. ॐ बालिनिग्रहकारकाय नम:
१२. ॐ रुद्रावताराय नम:
१३. ॐ हनुमते नम:
१४. ॐ सुग्रीवप्रियसेवकाय नम:
१५. ॐ सागरक्रमणाय नम:
१६. ॐ सीताशोकनिवारणाय नम:
१७. ॐ छायाग्रहीनिहन्त्रे नम:
१८. ॐ पर्वताधिश्रिताय नम:
१९. ॐ प्रमाथाय नम:
२०. ॐ वनभंगाय नम:
२१. ॐ महाबलपराक्रमाय नम:
२२. ॐ महायुद्धाय नम:
२३. ॐ धीराय नम:
२४. ॐ सर्वासुरमहोद्यताय नम:
२५. ॐ अग्निसूक्तोक्तचारिणे नम:
२६. ॐ भीमगर्वविनाशकाय नम:
२७. ॐ शिवलिंगप्रतिष्ठात्रे नम:
२८. ॐ अनघाय नम:
२९. ॐ कार्यसाधकाय नम:
३०. ॐ वज्रांगाय नम:
३१. ॐ भास्करग्रसाय नम:
३२. ॐ ब्रह्मादिसुरवन्दिताय नम:
३३. ॐ कार्यकर्त्रे नम:
३४. ॐ कार्यार्थिने नम:
३५. ॐ दानवान्तकाय नम:
३६. ॐ नाग्रविद्यानां पण्डिताय नम:
३७. ॐ वनमाल्यसुरान्तकाय नम:
३८. ॐ वज्रकायाय नम:
३९. ॐ महावीराय नम:
४०. ॐ रणांगणचराय नम:
४१. ॐ अक्षासुरनिहन्त्रे नम:
४२. ॐ जम्बूमालीविदारणे नम:
४३. ॐ इन्द्रजीतगर्वसंहन्त्रे नम:
४४. ॐ मन्त्रीनन्दनघातकाय नम:
४५. ॐ सौमित्रप्राणदाय नम:
४६. ॐ सर्ववानररक्षकाय नम:
४७. ॐ संजीवनवनगोद्वाहिने नम:
४८. ॐ कपिराजाय नम:
४९. ॐ कालनिधये नम:
५०. ॐ दधिमुखादिगर्वसंहन्त्रे नम:
५१. ॐ धूम्रविदारणाय नम:
५२. ॐ अहिरावणहन्त्रे नम:
५३. ॐ दोर्दण्डशोभिताय नम:
५४. ॐ गरलागर्वहरणाय नम:
५५. ॐ लंकाप्रासादभंजकाय नम:
५६. ॐ मारुताय नम:
५७. ॐ अंजनीवाक्यसाधकाय नम:
५८. ॐ लोकधारिणे नम:
५९. ॐ लोककर्त्रे नम:
६०. ॐ लोकदाय नम:
६१. ॐ लोकवन्दिताय नम:
६२. ॐ दशास्यगर्वहन्त्रे नम:
६३. ॐ फाल्गुनभंजकाय नम:
६४. ॐ किरीटीकार्यकर्त्रे नम:
६५. ॐ दुष्टदुर्जयखण्डनाय नम:
६६. ॐ वीर्यकर्त्रे नम:
६७. ॐ वीर्यवर्याय नम:
६८. ॐ बालपराक्रमाय नम:
६९. ॐ रामेष्ठाय नम:
७०. ॐ भीमकर्मणे नम:
७१. ॐ भीमकार्यप्रसाधकाय नम:
७२. ॐ विरोधिवीराय नम:
७३. ॐ मोहानासिने नम:
७४. ॐ ब्रह्ममन्त्रये नम:
७५. ॐ सर्वकार्याणां सहायकाय नम:
७६. ॐ रुद्ररूपीमहेश्वराय नम:
७७. ॐ मृतवानरसंजीवने नम:
७८. ॐ मकरीशापखण्डनाय नम:
७९. ॐ अर्जुनध्वजवासिने नम:
८०. ॐ रामप्रीतिकराय नम:
८१. ॐ रामसेविने नम:
८२. ॐ कालमेघान्तकाय नम:
८३. ॐ लंकानिग्रहकारिणे नम:
८४. ॐ सीतान्वेषणतत्पराय नम:
८५. ॐ सुग्रीवसारथये नम:
८६. ॐ शूराय नम:
८७. ॐ कुम्भकर्णकृतान्तकाय नम:
८८. ॐ कामरूपिणे नम:
८९. ॐ कपीन्द्राय नम:
९०. ॐ पिंगाक्षाय नम:
९१. ॐ कपिनायकाय नम:
९२. ॐ पुत्रस्थापनकर्त्रे नम:
९३. ॐ बलवते नम:
९४. ॐ मारुतात्मजाय नम:
९५. ॐ रामभक्ताय नम:
९६. ॐ सदाचारिणे नम:
९७. ॐ युवानविक्रमोर्जिताय नम:
९८. ॐ मतिमते नम:
९९. ॐ तुलाधारपावनाय नम:
१००. ॐ प्रवीणाय नम:
१०१. ॐ पापसंहारकाय नम:
१०२. ॐ गुणाढ्याय नम:
१०३. ॐ नरवन्दिताय नम:
१०४. ॐ दुष्टदानवसंहारिणे नम:
१०५. ॐ महायोगिने नम:
१०६. ॐ महोदराय नम:
१०७. ॐ रामसन्मुखाय नम:
१०८. ॐ रामपूजकाय नम:
#Vnita🙏🙏❤️
#हनुमानजी की ये अष्टोत्तरशतनामावली आज के भौतिक #युग में मनुष्य के कमजोर होते हुए विश्वास को पुर्नजीवित करने में संजीवनी बूटी का काम करेगी और विभिन्न संतापों से अशान्त #मन को शान्त करने में सहायक होगी।

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आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है।लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे।1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।3- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया।तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं।इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।4- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।5- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम के द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।6- वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया l7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष की थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।8- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण (यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।9- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं। 10- रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।11- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।12- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक वानरों ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं, जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।24- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।25- रावण जब विशव विजय पर निकला तब वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां रावण और यमराज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने कालदंड के प्रयोग द्वारा रावण के प्राण लेने चाहे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।26- वाल्मीकि रामायण में 24 हज़ार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है।

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। बाल वनिता महिला आश्रम लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस

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