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SUNDER KAND( सुंदरकाण्ड)जय श्री राम जय श्री हनुमान सुंदरकांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का पंचम कांड है . सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका में जाना और लंका में सीता माता से मिल कर प्रभु की मुद्रिका और संदेश देना, लंका दहन करके हनुमान जी का वापस आना और श्री राम जी का सेना के साथ समुद्र तट के लिए प्रस्थान आदि प्रसंग आते हैं. तुलसीदास जी कहते हैं शांत ,अप्रमेय, मोक्ष रूप ,शांति देने वाले करुणा की खान, राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर कि मैं वंदना करता हूं . हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान  जाम्बवान् के वचन सुनकर हनुमानजी कहने लगे जब तक मैं लौट कर ना आऊं , आप मेरी राह देखना . यह कहकर रघुनाथ जी को शिश निवाकर हनुमान जी चले .   हनुमान जी समुद्र के किनारे जो पर्वत था उस पर बड़े वेग चढ़े तो वह पर्वत पाताल में धंस गया.समुंदर ने मैनाक पर्वत को हनुमान जी को राम जी का दूत जानकर उसकी थकावट दूर करने को कहा . लेकिन हनुमान जी ने उसे हाथ से छू दिया और कहा कि श्रीराम का काम किए बिना मुझे विश्राम कहां ?  हनुमान जी की सुरसा से मिलना  देवताओं ने जब हनुमान जी को जाते देखा तो उनकी परीक्षा लेने सुरसा नाम की सर्पों की माता को भेजा. वह हनुमान जी से कहने लगे कि आज देवताओं ने मुझे भोजन दिया है . हनुमान जी कहने लगे कि,मैं पहले श्रीराम का कार्य करके आऊ और उसके बाद सीता जी की खबर श्री राम को सुना दूं तो मुझे खा लेना. मैं सत्य कहता हूं. लेकिन उसने हनुमान जी को जाने नहीं दिया . उसने अपना मुंह योजन भर फैलाया. हनुमान जी ने अपने शरीर को दुगना कर लिया . उसने अपना मुख सोलह योजन फैलाया तो हनुमान जी बत्तीस योजन के हो गए . जैसे-जैसे सुरसा मुंह बढ़ाती गई हनुमान जी दुगना हो गए .जब उसने अपना मुख सौ योजन किया तो हनुमान जी बहुत छोटे हो गए . सुरसा के मुख से होकर बाहर आए और उनसे विदा मांगी . सुरसा ने कहा कि तुम बल बुद्धि के भंडार हो . तुम श्रीराम का कार्य अवश्य करोगे .वह हनुमान जी को आशीर्वाद देकर चली गई.  समुंदर में एक राक्षसी रहती थी जो माया से आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की परछाई पकड़ लेती थी . जिसे वो उड़ नहीं पाते थे और वह उन जीवो को खा लेती . उसमें वही कपट हनुमान जी के साथ किया . हनुमान जी ने उसे मार दिया और समंदर पार किया. हनुमान जी का लंका में प्रवेश और लंका के द्वार पर राक्षसी से मिलना वहाँ पहुँच कर हनुमान जी ने सुंदर वन की शोभा देखी . सामने विशाल पर्वत देखकर हनुमान जी भय त्याग कर उस पर चढ़ गए और उन्होंने लंका देखी .बहुत ही बड़ा किला है चारो और समुद्र है और सोने के परकोटे का प्रकाश हो रहा है .  नगर के रखवालों को देखकर हनुमान जी ने मच्छर के समान छोटा सा रूप धारण किया और लंका में चले गए.लंका नामक राक्षसी जो लंका के द्वार पर रहती थी.वह राक्षसी हनुमान जी से कहने लगी कि कहां जा रहा है ?  हनुमान जी ने उसे घुसा मारा तो उसे खून की उल्टी होने लगी . वह संभल कर कहने लगी कि,ब्रह्मा जी ने जब रावण को वरदान दिया था तो ,"मुझसे कहा था कि जब तुम किसी वानर के मारने से तुम व्याकुल हो जाओ तो समझ लेना कि राक्षसों का संघार होने वाला है ". मेरे बड़े पुण्य हैं जो मैं आपके दर्शन कर पाई. हनुमान जी ने लघु रूप धारण कर नगर में प्रवेश किया . हनुमान जी ने एक एक महल में सीता जी को खोजा . रावण के महल में भी उन्हें जानकी जी दिखाई नहीं दी .  हनुमान जी और विभिषण मिलन हनुमान जी को एक महल दिखा ,जिस पर उन्हें श्री राम के आयुध (धनुष बाण) के चिंह और तुलसी के वृक्ष दिखे .  हनुमान जी कहने लगे लंका तो राक्षसों का निवास है लेकिन यहां पर सज्जन पुरुष का निवास कैसे ?उसी समय विभीषण जी जागे . हनुमान जी ने साधु का रूप धारण किया.  विभिषण जी ने उनकी कुशलक्षेम पूछा . विभिषण जी ने पूछा कि ब्राह्मण देव क्या आप हरि भक्त हैं ? या फिर दीनों पर दया करने वाले स्वयं रामजी हैं . तब हनुमान जी ने श्री राम जी की सारी कथा कहीं और अपना नाम बताया . विभीषण कहने लगे कि ,"मैं यहां वैसे ही रहता हूं जैसे दांतों के बीच में जीभ रहती है ", मेरा तामसी (राक्षस) शरीर है. लेकिन मन में श्रीराम के लिए अनुराग है . इसलिए मुझे लगता है कि प्रभु श्रीराम की कृपा के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं . हनुमान जी कहने लगे कि,"मैं कौन सा कुलीन हूं"? मैं चंचल वानर हूं . प्रभु श्री राम ने ही मुझ अधम पर कृपा की है .  विभिषण ने माता जानकी कैसे लंका में रहती है ? वह सब कथा हनुमान जी से कहीं . विभिषण जी ने युक्तियां बताई कि किस तरह हनुमान जी सीता जी के दर्शन कर सकते हैं ? हनुमान जी ने फिर मसक के समान रूप बना लिया और अशोक वाटिका में यहाँ सीता जी रहती थी वहां चले गए.  हनुमान जी का अशोक वाटिका में सीता जी को देखना सीता जी को देखकर हनुमान जी ने मन में उन्हें प्रणाम किया . सीता जी मन ही मन श्री रघुनाथ का स्मरण करती रहती हैं . जानकी जी को दीन देख कर हनुमान जी को बड़ा दुख हुआ . हनुमान जी सोच रहे हैं ऐसा क्या करें जिससे मां जानकी का दुख कम हो जाए . रावण का सीता माता को धमकाना उसी समय रावण सज धज कर वहां आया और सीता जी को समझाने लगा के मंदोदरी आदि रानियों को तुम्हारी दासी बना दूंगा . तुम एक बार मेरी ओर देखो तो सही .  जानकी जी तिनके की ओट करके कहने लगी कि, "तू छल से मुझे हर लाया है , तुझे लाज नहीं आती ". सीता जी के कठोर वचन सुनकर रावण गुस्से से बोला . रावण कहने लगा कि या तो मेरी बात मान ले, नहीं तो मैं तुझे काट डालूंगा .  लेकिन मय दानव की पुत्री मंदोदरी (रावण की पत्नी) ने नीति कहकर रावण को समझाया . रावण ने राक्षसियों को सीता जी को भय दिखाने को कहा . रावण सीता जी से कहने लगा कि, " अगर एक महीने में मेरा कहा ना माना तो मैं इसे तलवार से मार डालूंगा ". रावण के जाते ही राक्षसियां सीता जी को भय दिखाने लगी . तभी त्रिजटा नाम की राक्षसी जिसे श्री राम के चरणों में अनुराग का था. वह कहने लगे कि, "मैंने सपने में देखा कि एक वानर ने लंका जलाई . राक्षसों की सेना मारी गई और रावण दक्षिण दिशा (यमपुरी) की ओर जा रहा है . लंका मानो विभिषण को मिल गई. श्री राम ने सीता को बुला भेजा है . यह सुन कर राक्षसियां डर गई और सीता जी के चरणों में गिर गई.   सीता जी सोच रही है एक महीने समाप्त होने पर रावण मुझे मार डालेगा . सीता जी त्रिजटा से कहने लगी कि कोई ऐसा उपाय करो कि मैं अपना शरीर त्याग सकूं . रावण की शूल के समान कष्ट देने वाली वाणी अब सुनी नहीं जाती . त्रिजटा ने सीता जी को बहुत प्रकार समझाया.  हनुमान जी का माता सीता को श्री राम की अंगूठी और संदेश देना सीता जी को बिरह से व्याकुल देखकर हनुमान जी का एक क्षण कल्प सामान बीत रहा है . तब हनुमान जी ने सीता जी के सामने श्री राम की अंगूठी डाल दी . सीताजी ने हर्षित होकर अंगूठी को उठा लिया . सीता जी सोचने लगी कि रघुनाथ तो अजय हैं. माया से अंगूठी बनाई नहीं जा सकती . उसी समय हनुमान जी श्री राम के गुणों का वर्णन करने लगे . जिसे सुनकर सीताजी का दुख दूर हो गया . सीता जी कहने लगी कि जिसने भी यह कथा सुनाई है वह प्रकट क्यों नहीं होता ?  जब हनुमान जी सीता जी के निकट चले गए . उन्हें देखकर जीता जी मुंह फेर कर बैठ गई . क्योंकि उन्हें आश्चर्य था नर और वानर संग कैसे हो सकते हैं ? हनुमान जी फिर पूरी कथा सुनाई. जिसे सुन कर सीता जी को विश्वास हो गया कि जय श्री राम का दास है .  सीता जी ने श्री राम लक्ष्मण जी का कुशल मंगल पूछा . सीता जी कहने लगे कि, "क्या रघुनाथ मुझे याद करते हैं " ?सीता जी कहती हैं कि हे नाथ ! आपने मुझे क्यों भुला दिया ?  सीता जी के विरह वचन सुनकर हनुमान जी कहते हैं कि, " माता श्री राम के हृदय में आप से दूना प्रेम हैं ".अब श्री रघुनाथ का संदेश सुनो .   श्री राम ने कहा है कि तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी पदार्थ प्रतिकूल हो गए हैं . मेघ मानो खोलता हुआ तेल बरसा रही हो . मन का दुख कहने से कम हो जाता है . पर कहूं किससे ? समझ लो कि मेरा मन सदा तेरे पास ही रहता है. प्रभु श्री राम के वचन सुनकर जानकी जी प्रेम मग्न हो गई.  हनुमान जी कहने लगे कि माता प्रभु श्री राम ने आपकी खबर पाई होती तो प्रभु विलंब नहीं करते . लेकिन अब आप राक्षसों को जला ही जाने. हे माता मैं आपको अभी यहां से लिवा जाऊं पर मुझे श्री राम की आज्ञा नहीं है . कुछ दिन और धीरज धरो . श्रीराम वानरों सहित जहां अवश्य आएंगे . हनुमान जी का सीता माता का संदेह दूर करने के लिए विशाल रुप प्रकट करना  सीता जी कहने लगी कि,"क्या सब वानर तुम्हारे ही समान हैं "? राक्षस तो बहुत बलवान योद्धा है .सीता जी के मन में संदेह देखकर हनुमान जी ने विशाल शरीर प्रकट किया. जिसे देखकर जीता जी के मन में विश्वास हो गया . हनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर लिया . हनुमान जी कहने लगे प्रभु के प्रताप से छोटा सा सर्प भी बड़े से गरुड़ को खा सकता है . हनुमान जी की वाणी सुनकर सीताजी को संतोष हुआ . सीता जी कहा कि हे पुत्र तुम अजर ,अमर और गुणों का खजाना हो जाओ .  हनुमान जी ने कहा माता आपका आशीर्वाद अमोघ हैं . हनुमान जी का अशोक वाटिका उजाड़ना हनुमान जी ने सीता जी से मीठे फल खाने की अनुमति मांगी . हनुमान जी ने कुछ फल खा कर बाग उजाड़ने लगे . बहुत से योद्धा रखवालों को उन्होंने मार डाला. जब कुछ ने रावण से पुकार की तो उसने अक्षय कुमार को सेना सहित भेजा.  अक्षय कुमार वध और मेघनाद का हनुमान जी को नागपाश में बांधना हनुमान जी ने कुछ को मार डाला ,कुछ को मसल डाला . कुछ ने फिर पुकार की महाराज बंदर बहुत बलवान है . पुत्र का वध सुनकर रावण ने क्रोधित होकर मेघनाथ से कहा कि बंदर को जीवित बांधकर लाना . हनुमान जी ने मेघनाथ के युद्ध में बिना रथ के कर दिया. फिर उसे घूंसा मारा जिसे वह कुछ क्षण के लिए मूर्छित हो गया . अंत में मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का संधान किया . हनुमान जी मन में विचार करने लगे कि अगर ब्रह्मास्त्र को नहीं माना तो इसकी महिमा मिट जाएगी .  हनुमान जी ब्रह्मास्त्र लगते हैं मूर्छित हो गए और मेघनाथ उन्हें नागपाश में बांध कर ले गया .  हनुमान जी और रावण संवाद हनुमान जी को देखकर रावण ने कहा वानर तू कौन है ? क्या तुमने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना ? तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा?  हनुमान जी कहने लगे कि जिन्होंने शिव जी के धनुष को तोड़ डाला ,त्रिशिरा ,खर दूषण और बालि को मार डाला , जिनकी प्रिय पत्नी को तू हर लाय हो मैं उनका दूत हूं .  मुझे भूख लगी थी मैंने फल खाए और वानर स्वभाव के कारण वृक्ष तोड़े . लेकिन जिन्होंने मुझे मारा मैंने उनको मारा . मैं तो अपने प्रभु का कार्य करना चाहता हूं . इसलिए मैं तुम से विनती करता हूं कि तुम अभिमान छोड़कर सीता जी को दे दो और श्री राम की शरण में चले जाओ .  हनुमान जी की भक्ति ,ज्ञान, वैराग्य , नीति की वाणी सुनकर रावण क्रोधित हो कर कहने लगा कि यह बंदर मुझे शिक्षा देने चला है . राक्षस हनुमान जी को मारने दौड़े . उसी समय में विभिषण जी आए और कहने लगे नीति के अनुसार दूत को मारना नहीं चाहिए . हनुमान जी का लंका दहन  रावण ने कहा कि बंदर की ममता पूंछ पर होती है . इसकी पूंछ पर कपड़ा तेल में डुबोकर बांध दो और उस पर आग लगा दो .  जिस मालिक की यह बहुत बड़ाई कर रहा था . जब बिना पूंँछ के बंदर वहां जाएगा तो अपने मालिक को जहां लेकर आएगा . हनुमान जी ने खेल किया और पूँछ लंबी हो गई . नगर में कपड़ा भी तेल नहीं रहा . हनुमान जी को नगर में फिरा कर पूँछ में आग लगा दी .  आग को जलते देखा हनुमान जी छोटे रूप में हो गए . भगवान जी की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगी . हनुमान जी ने अट्टहास कर देह विशाल और हल्की बना ली . हनुमान जी एक महल से दूसरे महल पर चढ़ जाते और नगर जलने लगा.  लेकिन हनुमान जी ने एक विभीषण का घर नहीं जलाया. हनुमान जी ने उलट-पुलट कर सारी लंका जलाई और फिर समुंदर में कूदकर पूँछ बुझाई . हनुमान जी का सीता माता से विदा मांगना हनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर श्री जानकी के सामने हाथ जोड़कर कहने लगे. माता मुझे कोई चिंह दीजिए . जैसे श्रीराम ने मुझे दिया था . सीता जी ने चूड़ामणि उतार कर दी . माता सीता ने हनुमान जी से कहा प्रभु से मेरा प्रणाम कहना . यदि महीने भर में नाथ नहीं आए तो मुझे जीती नहीं पाएंगे.हनुमान तुम्हें देखकर छाती ठंडी हुई थी लेकिन अब तुम जाने की को कह रहे हो. हनुमान जी ने जानकी जी को समझा कर विदा ली.   हनुमान जी का समुद्र लांघकर वापिस आना समुद्र लांघ कर हनुमान जी इस ओर आ गए. हनुमान जी को प्रसन्न देखकर सब समझ गए कि हनुमान प्रभु श्री राम का कार्य कर आए हैं. मानो सब को नया जीवन मिल गया. सब लोग श्री रघुनाथ जी के पास चले. हनुमान जी का श्री राम को सीता माता का संदेश देना श्री रघुनाथ सबसे प्रेम सहित गले मिले. फिर जाम्बवान् ने कहा प्रभु आप जिस पर दया करते हैं . उस का कल्याण होता है. प्रभु हनुमान जी ने जो किया है उसका वर्णन हजारों मुखों से नहीं किया जा सकता.   श्री रघुनाथ ने हनुमान जी को गले से लगा लिया और कहा-" हे तात! कहो सीता वहां किस प्रकार प्राणों की रक्षा करती है? " हनुमान जी ने कहा आपका नाम दिन रात पहरा देने वाला है. आपका ध्यान कपाट है और आंखें आपके चरणों में लगाए रहती है. माता सीता ने चलते समय मुझे चूड़ामणि दी . श्रीराम ने उसे हृदय से लगाया . हनुमान जी ने सीता जी का संदेश बताया " शरणागत का दुख हरने वाले मैं मन, वचन , कर्म से आपके चरणों को अनुरागिनी हूं. मेरा इतना दोष है कि आपके वियोग में मेरे प्राण नहीं गए. आपने मुझसे किस अपराध के कारण त्याग दिया है ?"उनका एक -एक पल कल्प समान बीत रहा है. हनुमान जी कहने कि प्रभु चलिए और दुष्टों को मारकर सीता जी को ले आइए.   श्री राम कहने लगे कि," हनुमान तेरा समान मेरी उपकारी कोई भी नहीं है ? मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता.  प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी विकल होकर श्री राम के चरणों में गिर पड़े . प्रभु श्री राम ने उठाकर हनुमान जी को हृदय से लगाया और हाथ पकड़ कर अपने निकट बिठाया . प्रभु श्री राम पूछने लगे कि बताओ कि रावण की सोने की लंका को तुम ने कैसे जलाया?   हनुमान जी कहने लगे कि ," प्रभु इसमें मेरी कोई बड़ाई नहीं है, जिस पर आपकी कृपा होती है उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है. हे नाथ! आप मुझे अपनी भक्ति प्रदान करें ". प्रभु श्री राम ने 'एवमस्तु ' कहा. श्री राम का सुग्रीव को वानर सेना सहित कूच करने का आदेश देना  तब प्रभु श्री राम ने सुग्रीव से कहा कि चलने की तैयारी करो अब विलंब किस कारण किया जाए? " वानर राज के बुलाने पर वानर सेनापतियों के झुंड आ गए. जिसमें अतुलित बल था. प्रभु श्री राम ने वानर सेना पर अपनी कृपा दृष्टि डाली और फिर सेना ने कूच किया.  प्रभु का प्रस्थान माता सीता ने जान लिया क्योंकि उनके बायें अंग फड़कने लगे. मंदोदरी का रावण को श्री राम से विरोध त्याग का परामर्श  हनुमान जी लंका जला कर गए तब से राक्षस भयभीत रहने लगे कि जिन के दूत के बल का वर्णन नहीं किया जा सकता अगर वे स्वयं नगर में आए तो हमारे कौन भलाई करेगा. नगर वासियों के वचन सुनकर रानी मंदोदरी रावण से कहा कि ," आप श्रीहरि से विरोध छोड़ दें. यदि आप भला चाहते हैं तो मंत्री को बुलाकर उनकी स्त्री को भेज दें ". श्रीराम के बांण सर्पों के समूह के समान है और राक्षस मेंढक के समान है. प्रभु आप हठ छोड़ कर उपाय कर ले. अभिमानी रावण यह सुनकर हंसा कि तुम स्त्रियाँ स्वभाव से डरपोक होती हो . लोकपाल भी जिसके भय से कांपते हैं उसकी स्त्री के लिए यह हंसी की बात है .  रावण इतना कहकर सभा में चला गया .सभा में बैठते ही उसने खबर आई कि शत्रु सेना समुंदर के पार आ गई है. रावण ने मंत्रियों से पूछा कि उचित सलाह दें . क्या किया जाए ? वे कहने लगे कि आपने देवताओं और राक्षसों को जीत लिया है. तो नर, वानर किस गिनती में है ? सचिव, वैद्य, और गुरु यदि भय डर, आशा से प्रिय बोले तो राज्य, धर्म ,तन - तीनों का नाश हो जाता है. रावण के लिए अभी वही संयोग बन गया सभी उसकी स्तुति कर रहे हैं.  रावण का विभीषण को लात मार कर राज्य से निकालना उसी समय में विभीषण सभा में आए और रावण की आज्ञा पाकर वचन बोले कि जो अपना कल्याण, सुयश, सुबुद्धि , शुभ गति चाहता है . उसे पर स्त्री को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग देना चाहिए .  श्रीराम को जानकी दे दीजिए और श्री राम का भजन कीजिए. हे दशाशीश ! मैं बार-बार आपके चरणों में विनती करता हूं . मुनि पुलस्त्य जी ने अपने शिष्य के हाथ यह बात कहला भेजी है . अवसर पाकर मैंने आपको कह दी .  माल्यवान नाम के बुद्धिमान मंत्री ने कहा कि आपके छोटे भाई विभीषण जो कह रहे हैं उन्हें हृदय से धारण करें . रावण ने कहा कि ," यह दोनों मूर्ख शत्रु की महिमा का बखान कर रहे हैं , इन्हें कोई दूर कर दे. तब माल्यवान घर चले गए . विभिषण ने हाथ जोड़कर फिर से प्रार्थना करी कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके हृदय में होती है . आपके हृदय में उल्टी बुद्धि आ गई है . इसलिए आप हित को अहित और शत्रु को मित्र मान रहे हैं. मैं चरण पकड़ कर आपसे विनती करता हूं. आप श्री राम को सीता जी लौटा दे और उसमें ही आप का हित है . विभिषण के वचन सुनकर रावण क्रोधित होकर उठा और कहने लगा के दुष्ट तेरी मृत्यु अब समीप है . तू मेरे पास रहकर शत्रु का पक्ष ले रहा है . तू उसी के साथ जा मिल .  रावण ने यह कहकर विभीषण को लात मारी . विभीषण ने फिर से चरण पकड़े और कहने लगा कि आप मेरे पिता समान हैं . मुझे मारा तो अच्छा ही किया परंतु आप का भला श्रीराम को भजने में हैं . विभिषण का श्री राम की शरण में जाना लेकिन रावण ने जिस क्षण विभीषण का त्याग किया . उसी क्षण वह वैभव से हीन हो गया . विभीषण जी हर्षित होकर श्री रघुनाथ के पास चले गए और शीघ्र ही समुंदर के पार आ गए . सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम को समाचार दिया कि प्रभु रावण का भाई आपसे मिलने आया है . मुझे लगता है कि यह हमारा भेद लेने आया है , उसे बांधकर रख लेना चाहिए. श्री राम ने कहा कि तुमने नीति तो अच्छी विचारी है . लेकिन मेरा प्रण तो शरणागत के भय को दूर करना है .  प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी हर्षित हुए कि भगवान शरणागतवत्सल है . श्री राम ने कहा की शरण में आए हुए को जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, मैं उसे भी नहीं त्यागता. यदि रावण ने उसे भेद लेने भेजा है तो भी हमें उस से भय या हानि नहीं है . क्योंकि लक्ष्मण क्षण भर में सब राक्षसों को मार सकता है . यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण में आया है तो, मैं उसे प्राणों की तरह रखूंगा . श्री राम ने कहा कि उसे ले आओ . भगवान के स्वरूप को देखकर विभिषण की आंखों में जल भर आया और शरीर पुलकित हो गया . फिर मधुर वाणी से बोले कि हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ. मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है . मैं आपका यश सुन कर आया हूं कि, "आप दुखियों के दुख दूर करने वाले है . प्रभु मेरी रक्षा करें " . प्रभु श्री राम ने जब विभिषण को दंडवत करते देखा तो उसे अपने हृदय से लगा लिया .विभीषण जी कहने लगे कि,"आपके दर्शन करके मेरे सारे भय मिटे गए .श्रीराम ने का समंदर का जल मंगा कर विभिषण का राजतिलक कर दिया . भगवान शिव ने जो संपत्ति रावण को दस सिर अर्पण करने पर दी थी . श्रीराम ने वही संपत्ति विभीषण को सकुचाते हुए दे दी. श्रीराम ने वनराज सुग्रीव और लंकापति विभिषण से कहा कि इस गहरे समुद्र को पार कैसे किया जाए ? समुद्र को पार करना कठिन है . क्योंकि यह मगर, सांप ,मछलियों से भरा है .  श्री राम का समुद्र से रास्ता बताने के लिए कहना विभिषण ने कहा कि प्रभु आप एक ही बाण से समुंदर को सुखा सकते हैं . लेकिन नीति के अनुसार आपको समुंदर से प्रार्थना करके रास्ता पूछना चाहिए . श्रीराम ने कहा कि, "तुमने अच्छा उपाय बताया है ". यह बात लक्ष्मण जी को अच्छी नहीं लगी . वह कहने लगे कि हे नाथ! देव का कौन भरोसा. श्रीराम ने हंसकर कहा कि धीरज रखो ऐसा ही करेंगे. श्री राम ने समुद्र को निवाया और कुश के आसन कर बैठ गए .  वानर सेना का रावण के भेजे दूतों को पकड़ना उधर जब विभिषण श्री राम के पास आया तो उसी समय रावण ने उसके पीछे दूत भेजे थे . जब वानरों ने जाना कि रावण के दूत हैं तो , वे उसे बांधकर सुग्रीव के पास ले गए . सुग्रीव ने कहा कि इन राक्षसों के अंग भंग करके भेज दो .  वानरों ने बहुत प्रकार दूतों को मारा. दूतों ने कहा कि जो हमारे नाक कान काटेगा उसे कौशलाधीश श्रीराम की सौगंध है . उसी समय लक्ष्मण जी आए और उन्होंने वानरों से छुड़ाया. लक्ष्मण जी ने राक्षसों से कहा कि रावण को मेरा संदेश कहना . सीता जी दे कर श्रीराम से मिले . नहीं तो तुम्हारा काल आया समझो. रावण के दूतों को रावण को समझना दूत जब रावण के पास पहुंचे . वह कहने लगा विभिषण का समाचार सुनाओ . दूत ने कहा कि जब आपका भाई श्री राम से मिला तब ही श्री राम ने उसे राज्य तिलक कर दिया है . आपने श्री राम की सेना पूछी है . उसका करोड़ों मुख्य से भी वर्णन नहीं हो सकता . जिसने नगर को जलाया और आपके पुत्र को मारा उसका बल तो सब वानरों में हैं . श्री राम की कृपा से उनमें अतुलित बल है.  वे तीनों लोकों को तृण समान समझते हैं . आप क्रोध त्याग कर जानकी श्रीराम को दे दीजिए . जब दूत ने जानकी श्रीराम को देने को कहा रावण ने दूत को लात मार दी . वह वही चला गया जहां श्री राम थे और राम की कृपा से उसने परम गति प्राप्त की .  श्रीराम का समुद्र को सबक सिखाना उधर तीन दिन बीत जाने पर भी जब समुंदर ने विनय नहीं मानी. श्रीराम क्रोध से बोले बिना भय के प्रीति नहीं होती . श्रीराम ने अग्निबाण का संधान किया जिससे समुंदर के हृदय के अंदर अग्नि जलने लगी .  समुंदर ने जीवो को जलते जाना तो अभिमान छोड़ कर ब्राह्मण का रूप धर कर सोने के थाल में अनेक मणियों को भरकर लाएं.  समुंदर ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़ लिए और कहा कि प्रभु अच्छा किया जो आप ने मुझे शिक्षा दी. प्रभु आपके प्रताप से मैं सुख जाऊंगा और सेना पर उतर जाएगी . आपकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता ऐसा वेदों में लिखा है . समुद्र के वचन सुनकर श्री राम ने कहा कि ऐसा उपाय बताओ जिससे वानर सेना पार उतर जाए. समुद्र पर सेतू बनाने का विचार देना  समुंदर ने कहा कि नल और नील नाम के दो भाई हैं . उन्हें लड़कपन में आशीर्वाद मिला था कि उनका स्पर्श होते ही पहाड़ भी तर जाएंगे . मैं आपकी प्रभुताई को हृदय में धर कर अपने बल के अनुसार सहायता करूंगा.  आप इस प्रकार समंदर को बांधे की तीनों लोकों में आपका सुंदर यश हो . आप इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले दुष्ट मनुष्य का वध करें . श्री राम ने समुद्र की पीड़ा को सुनकर उसे हर लिया और दुष्टों का वध कर दिया .  प्रभु श्री राम के बल और पुरुष को देखकर समुंदर उनके चरणों में वंदना कर के चला गया . श्री राम को यह मत अच्छा लगा .  By वनिता कासनियां पंजाब तुलसी दास जी कहते हैं कि यह चरित्र कलयुग के पापों को हरने वाला है .

SUNDER KAND( सुंदरकाण्ड)जय श्री राम जय श्री हनुमान सुंदरकांड तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस का पंचम कांड है . सुंदरकांड में हनुमान जी का लंका में जाना और लंका में सीता माता से मिल कर प्रभु की मुद्रिका और संदेश देना, लंका दहन करके हनुमान जी का वापस आना और श्री राम जी का सेना के साथ समुद्र तट के लिए प्रस्थान आदि प्रसंग आते हैं. तुलसीदास जी कहते हैं शांत ,अप्रमेय, मोक्ष रूप ,शांति देने वाले करुणा की खान, राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर कि मैं वंदना करता हूं . हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान  जाम्बवान् के वचन सुनकर हनुमानजी कहने लगे जब तक मैं लौट कर ना आऊं , आप मेरी राह देखना . यह कहकर रघुनाथ जी को शिश निवाकर हनुमान जी चले .   हनुमान जी समुद्र के किनारे जो पर्वत था उस पर बड़े वेग चढ़े तो वह पर्वत पाताल में धंस गया.समुंदर ने मैनाक पर्वत को हनुमान जी को राम जी का दूत जानकर उसकी थकावट दूर करने को कहा . लेकिन हनुमान जी ने उसे हाथ से छू दिया और कहा कि श्रीराम का काम किए बिना मुझे विश्राम कहां ?  हनुमान जी की सुरसा से मिलना  देवताओं ने जब हनुमान जी को जाते देखा तो उनकी परीक्षा लेने सुरसा नाम की सर्पों की माता को भेजा. वह हनुमान जी से कहने लगे कि आज देवताओं ने मुझे भोजन दिया है . हनुमान जी कहने लगे कि,मैं पहले श्रीराम का कार्य करके आऊ और उसके बाद सीता जी की खबर श्री राम को सुना दूं तो मुझे खा लेना. मैं सत्य कहता हूं. लेकिन उसने हनुमान जी को जाने नहीं दिया . उसने अपना मुंह योजन भर फैलाया. हनुमान जी ने अपने शरीर को दुगना कर लिया . उसने अपना मुख सोलह योजन फैलाया तो हनुमान जी बत्तीस योजन के हो गए . जैसे-जैसे सुरसा मुंह बढ़ाती गई हनुमान जी दुगना हो गए .जब उसने अपना मुख सौ योजन किया तो हनुमान जी बहुत छोटे हो गए . सुरसा के मुख से होकर बाहर आए और उनसे विदा मांगी . सुरसा ने कहा कि तुम बल बुद्धि के भंडार हो . तुम श्रीराम का कार्य अवश्य करोगे .वह हनुमान जी को आशीर्वाद देकर चली गई.  समुंदर में एक राक्षसी रहती थी जो माया से आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की परछाई पकड़ लेती थी . जिसे वो उड़ नहीं पाते थे और वह उन जीवो को खा लेती . उसमें वही कपट हनुमान जी के साथ किया . हनुमान जी ने उसे मार दिया और समंदर पार किया. हनुमान जी का लंका में प्रवेश और लंका के द्वार पर राक्षसी से मिलना वहाँ पहुँच कर हनुमान जी ने सुंदर वन की शोभा देखी . सामने विशाल पर्वत देखकर हनुमान जी भय त्याग कर उस पर चढ़ गए और उन्होंने लंका देखी .बहुत ही बड़ा किला है चारो और समुद्र है और सोने के परकोटे का प्रकाश हो रहा है .  नगर के रखवालों को देखकर हनुमान जी ने मच्छर के समान छोटा सा रूप धारण किया और लंका में चले गए.लंका नामक राक्षसी जो लंका के द्वार पर रहती थी.वह राक्षसी हनुमान जी से कहने लगी कि कहां जा रहा है ?  हनुमान जी ने उसे घुसा मारा तो उसे खून की उल्टी होने लगी . वह संभल कर कहने लगी कि,ब्रह्मा जी ने जब रावण को वरदान दिया था तो ,"मुझसे कहा था कि जब तुम किसी वानर के मारने से तुम व्याकुल हो जाओ तो समझ लेना कि राक्षसों का संघार होने वाला है ". मेरे बड़े पुण्य हैं जो मैं आपके दर्शन कर पाई. हनुमान जी ने लघु रूप धारण कर नगर में प्रवेश किया . हनुमान जी ने एक एक महल में सीता जी को खोजा . रावण के महल में भी उन्हें जानकी जी दिखाई नहीं दी .  हनुमान जी और विभिषण मिलन हनुमान जी को एक महल दिखा ,जिस पर उन्हें श्री राम के आयुध (धनुष बाण) के चिंह और तुलसी के वृक्ष दिखे .  हनुमान जी कहने लगे लंका तो राक्षसों का निवास है लेकिन यहां पर सज्जन पुरुष का निवास कैसे ?उसी समय विभीषण जी जागे . हनुमान जी ने साधु का रूप धारण किया.  विभिषण जी ने उनकी कुशलक्षेम पूछा . विभिषण जी ने पूछा कि ब्राह्मण देव क्या आप हरि भक्त हैं ? या फिर दीनों पर दया करने वाले स्वयं रामजी हैं . तब हनुमान जी ने श्री राम जी की सारी कथा कहीं और अपना नाम बताया . विभीषण कहने लगे कि ,"मैं यहां वैसे ही रहता हूं जैसे दांतों के बीच में जीभ रहती है ", मेरा तामसी (राक्षस) शरीर है. लेकिन मन में श्रीराम के लिए अनुराग है . इसलिए मुझे लगता है कि प्रभु श्रीराम की कृपा के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं . हनुमान जी कहने लगे कि,"मैं कौन सा कुलीन हूं"? मैं चंचल वानर हूं . प्रभु श्री राम ने ही मुझ अधम पर कृपा की है .  विभिषण ने माता जानकी कैसे लंका में रहती है ? वह सब कथा हनुमान जी से कहीं . विभिषण जी ने युक्तियां बताई कि किस तरह हनुमान जी सीता जी के दर्शन कर सकते हैं ? हनुमान जी ने फिर मसक के समान रूप बना लिया और अशोक वाटिका में यहाँ सीता जी रहती थी वहां चले गए.  हनुमान जी का अशोक वाटिका में सीता जी को देखना सीता जी को देखकर हनुमान जी ने मन में उन्हें प्रणाम किया . सीता जी मन ही मन श्री रघुनाथ का स्मरण करती रहती हैं . जानकी जी को दीन देख कर हनुमान जी को बड़ा दुख हुआ . हनुमान जी सोच रहे हैं ऐसा क्या करें जिससे मां जानकी का दुख कम हो जाए . रावण का सीता माता को धमकाना उसी समय रावण सज धज कर वहां आया और सीता जी को समझाने लगा के मंदोदरी आदि रानियों को तुम्हारी दासी बना दूंगा . तुम एक बार मेरी ओर देखो तो सही .  जानकी जी तिनके की ओट करके कहने लगी कि, "तू छल से मुझे हर लाया है , तुझे लाज नहीं आती ". सीता जी के कठोर वचन सुनकर रावण गुस्से से बोला . रावण कहने लगा कि या तो मेरी बात मान ले, नहीं तो मैं तुझे काट डालूंगा .  लेकिन मय दानव की पुत्री मंदोदरी (रावण की पत्नी) ने नीति कहकर रावण को समझाया . रावण ने राक्षसियों को सीता जी को भय दिखाने को कहा . रावण सीता जी से कहने लगा कि, " अगर एक महीने में मेरा कहा ना माना तो मैं इसे तलवार से मार डालूंगा ". रावण के जाते ही राक्षसियां सीता जी को भय दिखाने लगी . तभी त्रिजटा नाम की राक्षसी जिसे श्री राम के चरणों में अनुराग का था. वह कहने लगे कि, "मैंने सपने में देखा कि एक वानर ने लंका जलाई . राक्षसों की सेना मारी गई और रावण दक्षिण दिशा (यमपुरी) की ओर जा रहा है . लंका मानो विभिषण को मिल गई. श्री राम ने सीता को बुला भेजा है . यह सुन कर राक्षसियां डर गई और सीता जी के चरणों में गिर गई.   सीता जी सोच रही है एक महीने समाप्त होने पर रावण मुझे मार डालेगा . सीता जी त्रिजटा से कहने लगी कि कोई ऐसा उपाय करो कि मैं अपना शरीर त्याग सकूं . रावण की शूल के समान कष्ट देने वाली वाणी अब सुनी नहीं जाती . त्रिजटा ने सीता जी को बहुत प्रकार समझाया.  हनुमान जी का माता सीता को श्री राम की अंगूठी और संदेश देना सीता जी को बिरह से व्याकुल देखकर हनुमान जी का एक क्षण कल्प सामान बीत रहा है . तब हनुमान जी ने सीता जी के सामने श्री राम की अंगूठी डाल दी . सीताजी ने हर्षित होकर अंगूठी को उठा लिया . सीता जी सोचने लगी कि रघुनाथ तो अजय हैं. माया से अंगूठी बनाई नहीं जा सकती . उसी समय हनुमान जी श्री राम के गुणों का वर्णन करने लगे . जिसे सुनकर सीताजी का दुख दूर हो गया . सीता जी कहने लगी कि जिसने भी यह कथा सुनाई है वह प्रकट क्यों नहीं होता ?  जब हनुमान जी सीता जी के निकट चले गए . उन्हें देखकर जीता जी मुंह फेर कर बैठ गई . क्योंकि उन्हें आश्चर्य था नर और वानर संग कैसे हो सकते हैं ? हनुमान जी फिर पूरी कथा सुनाई. जिसे सुन कर सीता जी को विश्वास हो गया कि जय श्री राम का दास है .  सीता जी ने श्री राम लक्ष्मण जी का कुशल मंगल पूछा . सीता जी कहने लगे कि, "क्या रघुनाथ मुझे याद करते हैं " ?सीता जी कहती हैं कि हे नाथ ! आपने मुझे क्यों भुला दिया ?  सीता जी के विरह वचन सुनकर हनुमान जी कहते हैं कि, " माता श्री राम के हृदय में आप से दूना प्रेम हैं ".अब श्री रघुनाथ का संदेश सुनो .   श्री राम ने कहा है कि तुम्हारे वियोग में मेरे लिए सभी पदार्थ प्रतिकूल हो गए हैं . मेघ मानो खोलता हुआ तेल बरसा रही हो . मन का दुख कहने से कम हो जाता है . पर कहूं किससे ? समझ लो कि मेरा मन सदा तेरे पास ही रहता है. प्रभु श्री राम के वचन सुनकर जानकी जी प्रेम मग्न हो गई.  हनुमान जी कहने लगे कि माता प्रभु श्री राम ने आपकी खबर पाई होती तो प्रभु विलंब नहीं करते . लेकिन अब आप राक्षसों को जला ही जाने. हे माता मैं आपको अभी यहां से लिवा जाऊं पर मुझे श्री राम की आज्ञा नहीं है . कुछ दिन और धीरज धरो . श्रीराम वानरों सहित जहां अवश्य आएंगे . हनुमान जी का सीता माता का संदेह दूर करने के लिए विशाल रुप प्रकट करना  सीता जी कहने लगी कि,"क्या सब वानर तुम्हारे ही समान हैं "? राक्षस तो बहुत बलवान योद्धा है .सीता जी के मन में संदेह देखकर हनुमान जी ने विशाल शरीर प्रकट किया. जिसे देखकर जीता जी के मन में विश्वास हो गया . हनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर लिया . हनुमान जी कहने लगे प्रभु के प्रताप से छोटा सा सर्प भी बड़े से गरुड़ को खा सकता है . हनुमान जी की वाणी सुनकर सीताजी को संतोष हुआ . सीता जी कहा कि हे पुत्र तुम अजर ,अमर और गुणों का खजाना हो जाओ .  हनुमान जी ने कहा माता आपका आशीर्वाद अमोघ हैं . हनुमान जी का अशोक वाटिका उजाड़ना हनुमान जी ने सीता जी से मीठे फल खाने की अनुमति मांगी . हनुमान जी ने कुछ फल खा कर बाग उजाड़ने लगे . बहुत से योद्धा रखवालों को उन्होंने मार डाला. जब कुछ ने रावण से पुकार की तो उसने अक्षय कुमार को सेना सहित भेजा.  अक्षय कुमार वध और मेघनाद का हनुमान जी को नागपाश में बांधना हनुमान जी ने कुछ को मार डाला ,कुछ को मसल डाला . कुछ ने फिर पुकार की महाराज बंदर बहुत बलवान है . पुत्र का वध सुनकर रावण ने क्रोधित होकर मेघनाथ से कहा कि बंदर को जीवित बांधकर लाना . हनुमान जी ने मेघनाथ के युद्ध में बिना रथ के कर दिया. फिर उसे घूंसा मारा जिसे वह कुछ क्षण के लिए मूर्छित हो गया . अंत में मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का संधान किया . हनुमान जी मन में विचार करने लगे कि अगर ब्रह्मास्त्र को नहीं माना तो इसकी महिमा मिट जाएगी .  हनुमान जी ब्रह्मास्त्र लगते हैं मूर्छित हो गए और मेघनाथ उन्हें नागपाश में बांध कर ले गया .  हनुमान जी और रावण संवाद हनुमान जी को देखकर रावण ने कहा वानर तू कौन है ? क्या तुमने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना ? तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा?  हनुमान जी कहने लगे कि जिन्होंने शिव जी के धनुष को तोड़ डाला ,त्रिशिरा ,खर दूषण और बालि को मार डाला , जिनकी प्रिय पत्नी को तू हर लाय हो मैं उनका दूत हूं .  मुझे भूख लगी थी मैंने फल खाए और वानर स्वभाव के कारण वृक्ष तोड़े . लेकिन जिन्होंने मुझे मारा मैंने उनको मारा . मैं तो अपने प्रभु का कार्य करना चाहता हूं . इसलिए मैं तुम से विनती करता हूं कि तुम अभिमान छोड़कर सीता जी को दे दो और श्री राम की शरण में चले जाओ .  हनुमान जी की भक्ति ,ज्ञान, वैराग्य , नीति की वाणी सुनकर रावण क्रोधित हो कर कहने लगा कि यह बंदर मुझे शिक्षा देने चला है . राक्षस हनुमान जी को मारने दौड़े . उसी समय में विभिषण जी आए और कहने लगे नीति के अनुसार दूत को मारना नहीं चाहिए . हनुमान जी का लंका दहन  रावण ने कहा कि बंदर की ममता पूंछ पर होती है . इसकी पूंछ पर कपड़ा तेल में डुबोकर बांध दो और उस पर आग लगा दो .  जिस मालिक की यह बहुत बड़ाई कर रहा था . जब बिना पूंँछ के बंदर वहां जाएगा तो अपने मालिक को जहां लेकर आएगा . हनुमान जी ने खेल किया और पूँछ लंबी हो गई . नगर में कपड़ा भी तेल नहीं रहा . हनुमान जी को नगर में फिरा कर पूँछ में आग लगा दी .  आग को जलते देखा हनुमान जी छोटे रूप में हो गए . भगवान जी की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगी . हनुमान जी ने अट्टहास कर देह विशाल और हल्की बना ली . हनुमान जी एक महल से दूसरे महल पर चढ़ जाते और नगर जलने लगा.  लेकिन हनुमान जी ने एक विभीषण का घर नहीं जलाया. हनुमान जी ने उलट-पुलट कर सारी लंका जलाई और फिर समुंदर में कूदकर पूँछ बुझाई . हनुमान जी का सीता माता से विदा मांगना हनुमान जी ने फिर छोटा रूप धारण कर श्री जानकी के सामने हाथ जोड़कर कहने लगे. माता मुझे कोई चिंह दीजिए . जैसे श्रीराम ने मुझे दिया था . सीता जी ने चूड़ामणि उतार कर दी . माता सीता ने हनुमान जी से कहा प्रभु से मेरा प्रणाम कहना . यदि महीने भर में नाथ नहीं आए तो मुझे जीती नहीं पाएंगे.हनुमान तुम्हें देखकर छाती ठंडी हुई थी लेकिन अब तुम जाने की को कह रहे हो. हनुमान जी ने जानकी जी को समझा कर विदा ली.   हनुमान जी का समुद्र लांघकर वापिस आना समुद्र लांघ कर हनुमान जी इस ओर आ गए. हनुमान जी को प्रसन्न देखकर सब समझ गए कि हनुमान प्रभु श्री राम का कार्य कर आए हैं. मानो सब को नया जीवन मिल गया. सब लोग श्री रघुनाथ जी के पास चले. हनुमान जी का श्री राम को सीता माता का संदेश देना श्री रघुनाथ सबसे प्रेम सहित गले मिले. फिर जाम्बवान् ने कहा प्रभु आप जिस पर दया करते हैं . उस का कल्याण होता है. प्रभु हनुमान जी ने जो किया है उसका वर्णन हजारों मुखों से नहीं किया जा सकता.   श्री रघुनाथ ने हनुमान जी को गले से लगा लिया और कहा-" हे तात! कहो सीता वहां किस प्रकार प्राणों की रक्षा करती है? " हनुमान जी ने कहा आपका नाम दिन रात पहरा देने वाला है. आपका ध्यान कपाट है और आंखें आपके चरणों में लगाए रहती है. माता सीता ने चलते समय मुझे चूड़ामणि दी . श्रीराम ने उसे हृदय से लगाया . हनुमान जी ने सीता जी का संदेश बताया " शरणागत का दुख हरने वाले मैं मन, वचन , कर्म से आपके चरणों को अनुरागिनी हूं. मेरा इतना दोष है कि आपके वियोग में मेरे प्राण नहीं गए. आपने मुझसे किस अपराध के कारण त्याग दिया है ?"उनका एक -एक पल कल्प समान बीत रहा है. हनुमान जी कहने कि प्रभु चलिए और दुष्टों को मारकर सीता जी को ले आइए.   श्री राम कहने लगे कि," हनुमान तेरा समान मेरी उपकारी कोई भी नहीं है ? मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता.  प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी विकल होकर श्री राम के चरणों में गिर पड़े . प्रभु श्री राम ने उठाकर हनुमान जी को हृदय से लगाया और हाथ पकड़ कर अपने निकट बिठाया . प्रभु श्री राम पूछने लगे कि बताओ कि रावण की सोने की लंका को तुम ने कैसे जलाया?   हनुमान जी कहने लगे कि ," प्रभु इसमें मेरी कोई बड़ाई नहीं है, जिस पर आपकी कृपा होती है उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है. हे नाथ! आप मुझे अपनी भक्ति प्रदान करें ". प्रभु श्री राम ने 'एवमस्तु ' कहा. श्री राम का सुग्रीव को वानर सेना सहित कूच करने का आदेश देना  तब प्रभु श्री राम ने सुग्रीव से कहा कि चलने की तैयारी करो अब विलंब किस कारण किया जाए? " वानर राज के बुलाने पर वानर सेनापतियों के झुंड आ गए. जिसमें अतुलित बल था. प्रभु श्री राम ने वानर सेना पर अपनी कृपा दृष्टि डाली और फिर सेना ने कूच किया.  प्रभु का प्रस्थान माता सीता ने जान लिया क्योंकि उनके बायें अंग फड़कने लगे. मंदोदरी का रावण को श्री राम से विरोध त्याग का परामर्श  हनुमान जी लंका जला कर गए तब से राक्षस भयभीत रहने लगे कि जिन के दूत के बल का वर्णन नहीं किया जा सकता अगर वे स्वयं नगर में आए तो हमारे कौन भलाई करेगा. नगर वासियों के वचन सुनकर रानी मंदोदरी रावण से कहा कि ," आप श्रीहरि से विरोध छोड़ दें. यदि आप भला चाहते हैं तो मंत्री को बुलाकर उनकी स्त्री को भेज दें ". श्रीराम के बांण सर्पों के समूह के समान है और राक्षस मेंढक के समान है. प्रभु आप हठ छोड़ कर उपाय कर ले. अभिमानी रावण यह सुनकर हंसा कि तुम स्त्रियाँ स्वभाव से डरपोक होती हो . लोकपाल भी जिसके भय से कांपते हैं उसकी स्त्री के लिए यह हंसी की बात है .  रावण इतना कहकर सभा में चला गया .सभा में बैठते ही उसने खबर आई कि शत्रु सेना समुंदर के पार आ गई है. रावण ने मंत्रियों से पूछा कि उचित सलाह दें . क्या किया जाए ? वे कहने लगे कि आपने देवताओं और राक्षसों को जीत लिया है. तो नर, वानर किस गिनती में है ? सचिव, वैद्य, और गुरु यदि भय डर, आशा से प्रिय बोले तो राज्य, धर्म ,तन - तीनों का नाश हो जाता है. रावण के लिए अभी वही संयोग बन गया सभी उसकी स्तुति कर रहे हैं.  रावण का विभीषण को लात मार कर राज्य से निकालना उसी समय में विभीषण सभा में आए और रावण की आज्ञा पाकर वचन बोले कि जो अपना कल्याण, सुयश, सुबुद्धि , शुभ गति चाहता है . उसे पर स्त्री को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग देना चाहिए .  श्रीराम को जानकी दे दीजिए और श्री राम का भजन कीजिए. हे दशाशीश ! मैं बार-बार आपके चरणों में विनती करता हूं . मुनि पुलस्त्य जी ने अपने शिष्य के हाथ यह बात कहला भेजी है . अवसर पाकर मैंने आपको कह दी .  माल्यवान नाम के बुद्धिमान मंत्री ने कहा कि आपके छोटे भाई विभीषण जो कह रहे हैं उन्हें हृदय से धारण करें . रावण ने कहा कि ," यह दोनों मूर्ख शत्रु की महिमा का बखान कर रहे हैं , इन्हें कोई दूर कर दे. तब माल्यवान घर चले गए . विभिषण ने हाथ जोड़कर फिर से प्रार्थना करी कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके हृदय में होती है . आपके हृदय में उल्टी बुद्धि आ गई है . इसलिए आप हित को अहित और शत्रु को मित्र मान रहे हैं. मैं चरण पकड़ कर आपसे विनती करता हूं. आप श्री राम को सीता जी लौटा दे और उसमें ही आप का हित है . विभिषण के वचन सुनकर रावण क्रोधित होकर उठा और कहने लगा के दुष्ट तेरी मृत्यु अब समीप है . तू मेरे पास रहकर शत्रु का पक्ष ले रहा है . तू उसी के साथ जा मिल .  रावण ने यह कहकर विभीषण को लात मारी . विभीषण ने फिर से चरण पकड़े और कहने लगा कि आप मेरे पिता समान हैं . मुझे मारा तो अच्छा ही किया परंतु आप का भला श्रीराम को भजने में हैं . विभिषण का श्री राम की शरण में जाना लेकिन रावण ने जिस क्षण विभीषण का त्याग किया . उसी क्षण वह वैभव से हीन हो गया . विभीषण जी हर्षित होकर श्री रघुनाथ के पास चले गए और शीघ्र ही समुंदर के पार आ गए . सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम को समाचार दिया कि प्रभु रावण का भाई आपसे मिलने आया है . मुझे लगता है कि यह हमारा भेद लेने आया है , उसे बांधकर रख लेना चाहिए. श्री राम ने कहा कि तुमने नीति तो अच्छी विचारी है . लेकिन मेरा प्रण तो शरणागत के भय को दूर करना है .  प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी हर्षित हुए कि भगवान शरणागतवत्सल है . श्री राम ने कहा की शरण में आए हुए को जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, मैं उसे भी नहीं त्यागता. यदि रावण ने उसे भेद लेने भेजा है तो भी हमें उस से भय या हानि नहीं है . क्योंकि लक्ष्मण क्षण भर में सब राक्षसों को मार सकता है . यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण में आया है तो, मैं उसे प्राणों की तरह रखूंगा . श्री राम ने कहा कि उसे ले आओ . भगवान के स्वरूप को देखकर विभिषण की आंखों में जल भर आया और शरीर पुलकित हो गया . फिर मधुर वाणी से बोले कि हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ. मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है . मैं आपका यश सुन कर आया हूं कि, "आप दुखियों के दुख दूर करने वाले है . प्रभु मेरी रक्षा करें " . प्रभु श्री राम ने जब विभिषण को दंडवत करते देखा तो उसे अपने हृदय से लगा लिया .विभीषण जी कहने लगे कि,"आपके दर्शन करके मेरे सारे भय मिटे गए .श्रीराम ने का समंदर का जल मंगा कर विभिषण का राजतिलक कर दिया . भगवान शिव ने जो संपत्ति रावण को दस सिर अर्पण करने पर दी थी . श्रीराम ने वही संपत्ति विभीषण को सकुचाते हुए दे दी. श्रीराम ने वनराज सुग्रीव और लंकापति विभिषण से कहा कि इस गहरे समुद्र को पार कैसे किया जाए ? समुद्र को पार करना कठिन है . क्योंकि यह मगर, सांप ,मछलियों से भरा है .  श्री राम का समुद्र से रास्ता बताने के लिए कहना विभिषण ने कहा कि प्रभु आप एक ही बाण से समुंदर को सुखा सकते हैं . लेकिन नीति के अनुसार आपको समुंदर से प्रार्थना करके रास्ता पूछना चाहिए . श्रीराम ने कहा कि, "तुमने अच्छा उपाय बताया है ". यह बात लक्ष्मण जी को अच्छी नहीं लगी . वह कहने लगे कि हे नाथ! देव का कौन भरोसा. श्रीराम ने हंसकर कहा कि धीरज रखो ऐसा ही करेंगे. श्री राम ने समुद्र को निवाया और कुश के आसन कर बैठ गए .  वानर सेना का रावण के भेजे दूतों को पकड़ना उधर जब विभिषण श्री राम के पास आया तो उसी समय रावण ने उसके पीछे दूत भेजे थे . जब वानरों ने जाना कि रावण के दूत हैं तो , वे उसे बांधकर सुग्रीव के पास ले गए . सुग्रीव ने कहा कि इन राक्षसों के अंग भंग करके भेज दो .  वानरों ने बहुत प्रकार दूतों को मारा. दूतों ने कहा कि जो हमारे नाक कान काटेगा उसे कौशलाधीश श्रीराम की सौगंध है . उसी समय लक्ष्मण जी आए और उन्होंने वानरों से छुड़ाया. लक्ष्मण जी ने राक्षसों से कहा कि रावण को मेरा संदेश कहना . सीता जी दे कर श्रीराम से मिले . नहीं तो तुम्हारा काल आया समझो. रावण के दूतों को रावण को समझना दूत जब रावण के पास पहुंचे . वह कहने लगा विभिषण का समाचार सुनाओ . दूत ने कहा कि जब आपका भाई श्री राम से मिला तब ही श्री राम ने उसे राज्य तिलक कर दिया है . आपने श्री राम की सेना पूछी है . उसका करोड़ों मुख्य से भी वर्णन नहीं हो सकता . जिसने नगर को जलाया और आपके पुत्र को मारा उसका बल तो सब वानरों में हैं . श्री राम की कृपा से उनमें अतुलित बल है.  वे तीनों लोकों को तृण समान समझते हैं . आप क्रोध त्याग कर जानकी श्रीराम को दे दीजिए . जब दूत ने जानकी श्रीराम को देने को कहा रावण ने दूत को लात मार दी . वह वही चला गया जहां श्री राम थे और राम की कृपा से उसने परम गति प्राप्त की .  श्रीराम का समुद्र को सबक सिखाना उधर तीन दिन बीत जाने पर भी जब समुंदर ने विनय नहीं मानी. श्रीराम क्रोध से बोले बिना भय के प्रीति नहीं होती . श्रीराम ने अग्निबाण का संधान किया जिससे समुंदर के हृदय के अंदर अग्नि जलने लगी .  समुंदर ने जीवो को जलते जाना तो अभिमान छोड़ कर ब्राह्मण का रूप धर कर सोने के थाल में अनेक मणियों को भरकर लाएं.  समुंदर ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़ लिए और कहा कि प्रभु अच्छा किया जो आप ने मुझे शिक्षा दी. प्रभु आपके प्रताप से मैं सुख जाऊंगा और सेना पर उतर जाएगी . आपकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता ऐसा वेदों में लिखा है . समुद्र के वचन सुनकर श्री राम ने कहा कि ऐसा उपाय बताओ जिससे वानर सेना पार उतर जाए. समुद्र पर सेतू बनाने का विचार देना  समुंदर ने कहा कि नल और नील नाम के दो भाई हैं . उन्हें लड़कपन में आशीर्वाद मिला था कि उनका स्पर्श होते ही पहाड़ भी तर जाएंगे . मैं आपकी प्रभुताई को हृदय में धर कर अपने बल के अनुसार सहायता करूंगा.  आप इस प्रकार समंदर को बांधे की तीनों लोकों में आपका सुंदर यश हो . आप इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले दुष्ट मनुष्य का वध करें . श्री राम ने समुद्र की पीड़ा को सुनकर उसे हर लिया और दुष्टों का वध कर दिया .  प्रभु श्री राम के बल और पुरुष को देखकर समुंदर उनके चरणों में वंदना कर के चला गया . श्री राम को यह मत अच्छा लगा .  By वनिता कासनियां पंजाब तुलसी दास जी कहते हैं कि यह चरित्र कलयुग के पापों को हरने वाला है .

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,। 🌹भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है.🌹पत्थर का स्वभाव है डूब जाना, अगर कोई पत्थर का आश्रय लेकर जल में उतरे तो वह भी पत्थर के साथ डूब जाता है। वानर का स्वभाव चीजों को तोड़ने वाला होता है, जोड़नेवाला नहीं। समुद्र स्वभाववश सबकुछ स्वयं में समा लेनेवाला है। नदियों के जल को स्वयं में समा लेनेवाला। वह किसी को कुछ सरलता से कहाँ देनेवाला है! तीनों ने रामकाज के लिए अपने स्वभाव से विपरीत कार्य कियापत्थर पानी में तैरने लग गए, वानरसेना ने सेतु बंधन किया, सागर ने सीना चीरकर मार्ग दिया और स्वयं सेतुबंधन में मदद की।इसी प्रकार जीवन में भी यदि कोई कार्य हमारे स्वभाव से विपरीत हो रहा हो पर वह सबके भले में हो तो जानना चाहिये कि शायद श्रीराम हमारे जीवन में कोई एक और सेतु बंधन कार्य कर रहे है। भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय सीताराम जी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹,

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है।लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे।1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।3- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया।तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं।इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।4- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।5- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम के द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।6- वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया l7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष की थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।8- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण (यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।9- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं। 10- रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।11- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।12- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक वानरों ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं, जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।24- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।25- रावण जब विशव विजय पर निकला तब वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां रावण और यमराज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने कालदंड के प्रयोग द्वारा रावण के प्राण लेने चाहे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।26- वाल्मीकि रामायण में 24 हज़ार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है।

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। बाल वनिता महिला आश्रम लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस

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