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पुराणों के क्रम में भागवत पुराण पाँचवा स्थान है पर लोकप्रियता की दृष्टि से यह सबसे अधिक प्रसिद्ध है। वैष्णव 12 स्कंध, 335 अध्याय और 18 हज़ार श्लोकों के इस पुराण को महापुराण मानते हैं। साथ ही उच्च दार्शनिक विचारों की भी इसमें प्रचुरता है। परवर्ती कृष्ण-काव्य की आराध्या ‘राधा’ का उल्लेख भागवत में नहीं मिलता। इस पुराण का पूरा नाम श्रीमद् भागवत पुराण है।By वनिता कासनियां पंजाबमान्यता कुछ लोग इसे महापुराण न मानकर देवी-भागवत को महापुराण मानते हैं। वे इसे उपपुराण बताते हैं। पर बहुसंख्यक मत इस पक्ष में नहीं हैं। भागवत के रचनाकाल के संबंध में भी विवाद है। दयानंद सरस्वती ने इसे तेरहवीं शताब्दी की रचना बताया है, पर अधिकांश विद्वान इसे छठी शताब्दी का ग्रंथ मानते हैं। इसे किसी दक्षिणात्य विद्वान की रचना माना जाता है। भागवत पुराण का दसवां स्कंध भक्तों में विशेष प्रिय है।श्री भागवत पुराण आरतीआरती अतिपावन पुरान की ।धर्म-भक्ति-विज्ञान-खान की ॥महापुराण भागवत निर्मल ।शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल ॥परमानन्द सुधा-रसमय कल ।लीला-रति-रस रसनिधान की ॥॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥कलिमथ-मथनि त्रिताप-निवारिणि ।जन्म-मृत्यु भव-भयहारिणी ॥सेवत सतत सकल सुखकारिणि ।सुमहौषधि हरि-चरित गान की ॥॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥सृष्टि-उत्पत्ति के सन्दर्भ में इस पुराण में कहा गया है- एकोऽहम्बहुस्यामि। अर्थात् एक से बहुत होने की इच्छा के फलस्वरूप भगवान स्वयं अपनी माया से अपने स्वरूप में काल, कर्म और स्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं। तब काल से तीनों गुणों- सत्व, रज और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है तथा स्वभाव उस क्षोभ को रूपान्तरित कर देता है।तब कर्म गुणों के महत्त्व को जन्म देता है जो क्रमश: अहंकार, आकाश, वायु तेज, जल, पृथ्वी, मन, इन्द्रियाँ और सत्व में परिवर्तित हो जाते हैं। इन सभी के परस्पर मिलने से व्यष्टि-समष्टि रूप पिंड और ब्रह्माण्ड की रचना होती है। यह ब्रह्माण्ड रूपी अण्डां एक हज़ार वर्ष तक ऐसे ही पड़ा रहा। फिर भगवान ने उसमें से सहस्त्र मुख और अंगों वाले विराट पुरुष को प्रकट किया। उस विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए।विषय-विलास-विमोह विनाशिनि ।विमल-विराग-विवेक विकासिनि ॥भगवत्-तत्त्व-रहस्य-प्रकाशिनि ।परम ज्योति परमात्मज्ञान की ॥॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥परमहंस-मुनि-मन उल्लासिनि ।रसिक-हृदय-रस-रासविलासिनि ॥भुक्ति-मुक्ति-रति-प्रेम सुदासिनि ।कथा अकिंचन प्रिय सुजान की ॥॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥जब मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर का पुण्य उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्र की प्राप्ति होती है ।श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - श्रीमद भागवतमहापुराण के प्रति आकर्षण मन में हुआ तो यह मानना चाहिए कि यह पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों का प्रभाव है । इसका मतलब यह है कि एक जन्मों के पुण्यों के बल पर श्रीमद भागवत जी प्राप्त नहीं कर सकते । इस तथ्य से यह पता चलता है कि यह कितना विलक्षण, कितना दुर्लभ, भगवत सिद्धान्तों का अंतिम निष्कर्ष, प्रभु की प्रसन्नता का प्रधान कारण, भक्ति के प्रवाह को बढ़ाने वाला यह श्रीग्रंथ है ।

पुराणों के क्रम में भागवत पुराण पाँचवा स्थान है पर लोकप्रियता की दृष्टि से यह सबसे अधिक प्रसिद्ध है। वैष्णव 12 स्कंध, 335 अध्याय और 18 हज़ार श्लोकों के इस पुराण को महापुराण मानते हैं। साथ ही उच्च दार्शनिक विचारों की भी इसमें प्रचुरता है। परवर्ती कृष्ण-काव्य की आराध्या ‘राधा’ का उल्लेख भागवत में नहीं मिलता। इस पुराण का पूरा नाम श्रीमद् भागवत पुराण है।

मान्यता 

कुछ लोग इसे महापुराण न मानकर देवी-भागवत को महापुराण मानते हैं। वे इसे उपपुराण बताते हैं। पर बहुसंख्यक मत इस पक्ष में नहीं हैं। भागवत के रचनाकाल के संबंध में भी विवाद है। दयानंद सरस्वती ने इसे तेरहवीं शताब्दी की रचना बताया है, पर अधिकांश विद्वान इसे छठी शताब्दी का ग्रंथ मानते हैं। इसे किसी दक्षिणात्य विद्वान की रचना माना जाता है। भागवत पुराण का दसवां स्कंध भक्तों में विशेष प्रिय है।श्री भागवत पुराण आरती

आरती अतिपावन पुरान की ।
धर्म-भक्ति-विज्ञान-खान की ॥

महापुराण भागवत निर्मल ।
शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल ॥

परमानन्द सुधा-रसमय कल ।
लीला-रति-रस रसनिधान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥

कलिमथ-मथनि त्रिताप-निवारिणि ।
जन्म-मृत्यु भव-भयहारिणी ॥

सेवत सतत सकल सुखकारिणि ।
सुमहौषधि हरि-चरित गान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥सृष्टि-उत्पत्ति के सन्दर्भ में इस पुराण में कहा गया है- एकोऽहम्बहुस्यामि। अर्थात् एक से बहुत होने की इच्छा के फलस्वरूप भगवान स्वयं अपनी माया से अपने स्वरूप में काल, कर्म और स्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं। तब काल से तीनों गुणों- सत्व, रज और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है तथा स्वभाव उस क्षोभ को रूपान्तरित कर देता है।

तब कर्म गुणों के महत्त्व को जन्म देता है जो क्रमश: अहंकार, आकाश, वायु तेज, जल, पृथ्वी, मन, इन्द्रियाँ और सत्व में परिवर्तित हो जाते हैं। इन सभी के परस्पर मिलने से व्यष्टि-समष्टि रूप पिंड और ब्रह्माण्ड की रचना होती है। यह ब्रह्माण्ड रूपी अण्डां एक हज़ार वर्ष तक ऐसे ही पड़ा रहा। फिर भगवान ने उसमें से सहस्त्र मुख और अंगों वाले विराट पुरुष को प्रकट किया। उस विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए।विषय-विलास-विमोह विनाशिनि ।
विमल-विराग-विवेक विकासिनि ॥

भगवत्-तत्त्व-रहस्य-प्रकाशिनि ।
परम ज्योति परमात्मज्ञान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥

परमहंस-मुनि-मन उल्लासिनि ।
रसिक-हृदय-रस-रासविलासिनि ॥

भुक्ति-मुक्ति-रति-प्रेम सुदासिनि ।
कथा अकिंचन प्रिय सुजान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥जब मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर का पुण्य उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्र की प्राप्ति होती है ।

श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - श्रीमद भागवतमहापुराण के प्रति आकर्षण मन में हुआ तो यह मानना चाहिए कि यह पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों का प्रभाव है । इसका मतलब यह है कि एक जन्मों के पुण्यों के बल पर श्रीमद भागवत जी प्राप्त नहीं कर सकते । इस तथ्य से यह पता चलता है कि यह कितना विलक्षण, कितना दुर्लभ, भगवत सिद्धान्तों का अंतिम निष्कर्ष, प्रभु की प्रसन्नता का प्रधान कारण, भक्ति के प्रवाह को बढ़ाने वाला यह श्रीग्रंथ है । 


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,। 🌹भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है.🌹पत्थर का स्वभाव है डूब जाना, अगर कोई पत्थर का आश्रय लेकर जल में उतरे तो वह भी पत्थर के साथ डूब जाता है। वानर का स्वभाव चीजों को तोड़ने वाला होता है, जोड़नेवाला नहीं। समुद्र स्वभाववश सबकुछ स्वयं में समा लेनेवाला है। नदियों के जल को स्वयं में समा लेनेवाला। वह किसी को कुछ सरलता से कहाँ देनेवाला है! तीनों ने रामकाज के लिए अपने स्वभाव से विपरीत कार्य कियापत्थर पानी में तैरने लग गए, वानरसेना ने सेतु बंधन किया, सागर ने सीना चीरकर मार्ग दिया और स्वयं सेतुबंधन में मदद की।इसी प्रकार जीवन में भी यदि कोई कार्य हमारे स्वभाव से विपरीत हो रहा हो पर वह सबके भले में हो तो जानना चाहिये कि शायद श्रीराम हमारे जीवन में कोई एक और सेतु बंधन कार्य कर रहे है। भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय सीताराम जी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹,

*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🌹🙏🌹 #जय__श्री__राम_ 🌹🙏🌹🙏🙏#जय__जय__सिया__राम_🙏🙏⛳⛳#जय_पवनपुत्र_हनुमान_ ⛳⛳ *🛕राम राम🚩राम राम🛕* *🛕││राम││🛕* *🛕राम🛕* * 🛕*🌞जय श्री सीताराम सादर सुप्रभात जी🌞┈┉┅━❀꧁आज के अनमोल मोती꧂❀━┅┉┈*समस्याएँ हमारे जीवन मेंबिना किसी वजह के नहीं आती.....**उनका आना एक इशारा है किहमे अपने जीवन में कुछ बदलना है.....*🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏*कपड़े से छाना हुआ पानी**स्वास्थ्य को ठीक रखता हैं।*और...**विवेक से छानी हुई वाणी**सबंध को ठीक रखती हैं॥**शब्दो को कोई भी स्पर्श नही कर सकता..*_🙏🙏🙏_*....पर....*_🙏🙏🙏_*शब्द सभी को स्पर्श कर जाते है*🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏┈┉┅━❀꧁🙏"जय श्री राम"🙏 ꧂❀━┅┉┈*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🙏🙏*सभी भक्त प्रेम से बोलो*✍️ 🙏"जय श्री राम रामाय नमः 🙏⛳🙏#जय_जय_सिया_राम__🙏⛳🙏#सियावर_रामचन्द्र__की__जय#🙏*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*

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🌹 #दुःख में स्वयं की एक अंगुली       आंसू पोंछती है #और सुख में दसो अंगुलियाँ           ताली बजाती है🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹 #जब स्वयं का शरीर ही ऐसा            करता है तो #दुनिया से गिला-शिकवा          क्या करना...!!🌹          🌹 #दुनियाँ की सबसे       अच्छी किताब हम स्वयं हैं       #खुद को समझ लीजिए               #सब समस्याओं का          समाधान हो जाएगा...🌹                                                                                             बाल वनिता महिला आश्रम               ...