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राष्ट्र हिंदू धर्म में क्या अहिल्या वास्तव में निर्दोष थी? By वनिता कासनियां पंजाब आपमें से कई लोग सोच रहे होंगे कि आज मैं ये कौन सा विषय लेकर आ गया। हम सभी ने हमेशा यही पढ़ा है कि पंचकन्याओं में से एक अहिल्या सर्वथा निर्दोष थी और महर्षि गौतम ने उन्हें बिना सत्य जाने श्राप दे दिया था। बाद में श्रीराम ने उनका उद्धार किया था। बरसों से हम यही सुनते और देखते आ रहे हैं। किन्तु आज हम इस घटना के सत्य को जानने का प्रयत्न करेंगे।ऐसी शंकाएं लोगों के मन में केवल इसलिए आती हैं क्यूंकि उन्होंने कभी मूल ग्रन्थ पढ़ा ही नहीं होता। और जब मैं बोल रहा हूँ मूल ग्रन्थ, तो मैं वाल्मीकि रामायण की बात कर रहा हूँ, ना कि रामचरितमानस की। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के समाज में रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण से बहुत अधिक प्रचलित है किन्तु मूल ग्रन्थ तो वाल्मीकि रामायण ही है।अब चूँकि रामचरितमानस इतनी अधिक प्रचलित है, लोग उसी को पढ़ते हैं। यहाँ तक कि १९८७ में बनी रामानंद सागर का प्रसिद्ध सीरियल रामायण भी मुख्यतः रामचरितमानस पर ही आधारित था। अब जब लोग वही पढ़ते और देखते हैं जो हमारे सामने है, वे उस सत्य को नहीं जान पाते जो कि मूल ग्रन्थ में लिखा गया है। तो यदि आपको इस प्रश्न का वास्तविक उत्तर चाहिए तो आपको वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड का ४८ वां सर्ग पढ़ना चाहिए।अब जो मैं बताने जा रहा हूँ उसे बड़े ध्यान से सुनिए और एक बात का विशेष ध्यान रखिये कि मैं ये बातें मूल वाल्मीकि रामायण से बता रहा हूँ। इसीलिए यदि आपने रामचरितमानस या रामायण का कोई और संस्करण पढ़ा है या कोई टीवी सीरियल देखा हो तो उसे एक पल के लिए भूल जाइये। वैसे तो वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के ४८ वें सर्ग में कुल ३३ श्लोक हैं किन्तु मैं केवल दो श्लोकों का वर्णन करूँगा जिससे आपको बात समझ में आ जाएगी।लोगों की ये आम धारणा है कि इंद्र गौतम ऋषि का वेश बना कर आये इसी कारण अहिल्या उन्हें पहचान नहीं पायी, जो कि बिलकुल गलत है। अहिल्या का जन्म स्वयं ब्रह्मदेव से हुआ था और उन्हें छला नहीं जा सकता था। वाल्मीकि रामायण में ये साफ लिखा है कि जब इंद्र गौतम ऋषि के वेश में आये और अहिल्या से प्रणय याचना की तब अहिल्या ने ये जान लिया था कि ये उनके पति नहीं हैं। किन्तु ये जान कर कि स्वयं देवराज इंद्र उनसे प्रणय याचना कर रहे हैं, अहिल्या ने सब कुछ जानते बुझते कौतुहल में उनकी बात मान ली। यह बात महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को बताते हैं।मुनिवेषं सहस्राक्षं विज्ञाय रघुनन्दन।मतिं चकार दुर्मेधा देवराजकुतूहलात्॥ बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक १९अर्थात: ‘रघुनन्दन ! महर्षि गौतम का वेष धारण करके आये हुए इन्द्र को पहचानकर भी उस दुर्बुद्धि नारी ने ‘अहो! देवराज इन्द्र मुझे चाहते हैं’ इस कौतूहल वश उनके साथ समागम का निश्चय करके वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।यहाँ तक कि इंद्र से समागम के पश्चात अहिल्या इंद्र को धन्यवाद देते हुए कहती हैं कि अब आप शीघ्रता से यहाँ से चले जाइये और महर्षि गौतम के क्रोध से मेरी और स्वयं अपनी रक्षा कीजिये।अथाब्रवीत् सुरश्रेष्ठं कृतार्थेनान्तरात्मना।कृतार्थास्मि सुरश्रेष्ठ गच्छ शीघ्रमितः प्रभो॥आत्मानं मां च देवेश सर्वथा रक्ष गौतमात्। बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २०अर्थात: ‘रति के पश्चात् उसने देवराज इन्द्र से संतुष्टचित्त होकर कहा–’सुरश्रेष्ठ! मैं आपके समागम से कृतार्थ हो गयी। प्रभो! अब आप शीघ्र यहाँ से चले जाइये। देवेश्वर! महर्षि गौतम के कोप से आप अपनी और मेरी भी सब प्रकार से रक्षा कीजिये’।इसके बाद की कथा हम जानते हैं कि जब इंद्र वापस जाने के लिए बाहर निकले तो महर्षि गौतम ने उन्हें देख लिया। ये देख कर महर्षि गौतम ने प्रथम दंड इंद्र को ही दिया। महर्षि गौतम ने इंद्र को नपुंसक हो जाने का श्राप दे दिया।मम रूपं समास्थाय कृतवानसि दुर्मते।अकर्तव्यमिदं यस्माद विफलस्त्वं भविष्यसि॥ बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २७अर्थात: “दुर्मते! तूने मेरा रूप धारण करके यह न करने योग्य पापकर्म किया है, इसलिये तू विफल (अण्डकोषों से रहित) हो जायगा’।गौतमेनैवमुक्तस्य सुरोषेण महात्मना।पेततुर्वृषणी भूमौ सहस्राक्षस्य तत्क्षणात्॥ बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २८अर्थात: ‘रोष में भरे हुए महात्मा गौतम के ऐसा कहते ही सहस्राक्ष इन्द्र के दोनों अण्डकोष उसी क्षण पृथ्वीपर गिर पड़े।अब आते हैं अहिल्या के दंड पर। लोगों को ऐसा लगता है कि महर्षि गौतम ने उन्हें पत्थर बन जाने का श्राप दिया, पर ये भी गलत है। वास्तव में गौतम ऋषि ने अहिल्या को कई हजार वर्षों तक अदृश्य रूप में उसी आश्रम में प्रायश्चित करने का श्राप दिया।तथा शप्त्वा च वै शक्रं भार्यामपि च शप्तवान्।इह वर्षसहस्राणि बहूनि निवसिष्यसि ॥ बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २९वातभक्षा निराहारा तप्यन्ती भस्मशायिनी।अदृश्या सर्वभूतानामाश्रमेऽस्मिन् वसिष्यसि॥ बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक ३०अर्थात: इन्द्र को इस प्रकार शाप देकर गौतम ने अपनी पत्नी को भी शाप दिया - 'दुराचारिणी! तू भी यहाँ कई हजार वर्षों तक केवल हवा पीकर या उपवास करके कष्ट उठाती हुई राख में पड़ी रहेगी। समस्त प्राणियों से अदृश्य रहकर इस आश्रम में निवास करेगी।'यदा त्वेतद् वनं घोरं रामो दशरथात्मजः।आगमिष्यति दुर्धर्षस्तदा पूता भविष्यसि॥ बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक ३१तस्यातिथ्येन दुर्वृत्ते लोभमोहविवर्जिता।।मत्सकाशं मुदा युक्ता स्वं वपुर्धारयिष्यसि॥ बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक ३२अर्थात: जब दुर्धर्ष दशरथ-कुमार राम इस घोर वन में पदार्पण करेंगे, उस समय तू पवित्र होगी। उनका आतिथ्य-सत्कार करने से तेरे लोभ-मोह आदि दोष दूर हो जायँगे और तू प्रसन्नतापूर्वक मेरे पास पहुँचकर अपना पूर्व शरीर धारण कर लेगी।’लोग ऐसा भी सोचते हैं कि श्रीराम ने शिलरूपी अहिल्या के मस्तक पर अपने चरण रख कर उसका उद्धार किया था, जो बिलकुल गलत है। वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के ४९ वें सर्ग में महर्षि विश्वामित्र श्रीराम से कहते हैं कि 'हे राम! ये तपस्विनी सहस्त्रों वर्षों से तप करते हुए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है इसलिए तुम दोनों भाई जाकर इसके चरण छुओ।' तब श्रीराम और लक्ष्मण अहिल्या के चरण छूते हैं जिससे अहिल्या श्रापमुक्त होती है और तब महर्षि गौतम पुनः उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं।राघवौ तु तदा तस्याः पादौ जगृहतुर्मुदा।स्मरन्ती गौतमवचः प्रतिजग्राह सा हि तौ॥बालकाण्ड, सर्ग ४९, श्लोक १७अर्थात: उस समय श्रीराम और लक्ष्मण ने बड़ी प्रसन्नता के साथ अहल्या के दोनों चरणोंका स्पर्श किया। महर्षिगौतम के वचनों का स्मरण करके अहल्या ने बड़ी सावधानी के साथ उन दोनों भाइयों को आदरणीय अतिथि के रूपमें अपनाया।अंत में मैं ये कहना चाहूंगा कि किसी को रामचरितमानस के प्रति कोई शंका नहीं होनी चाहिए। वह निःसंदेह हिन्दू धर्म के सबसे महानतम ग्रंथों में से एक है। वास्तव में तुलसीदास जी ने जिस काल में रामायण की रचना की उस समय पूरा देश और समाज मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचारों से दुखी था। इसी कारण उन्होंने रामचरितमानस को पूर्ण भक्ति रस में उस प्रकार लिखा ताकि समाज में श्रीराम के प्रति आस्था कम ना हो पाए। तो रामचरितमानस अपने युग में पूर्ण प्रासंगिक थी किन्तु हाँ, यदि सत्य जानना हो तो हमें वाल्मीकि रामायण पढ़ना ही चाहिए। आज की पीढ़ी के लिए ये बहुत आवश्यक है कि वो हमारे मूल धर्मग्रंथों का अध्ययन करे अन्यथा इसी प्रकार भ्रमित होते रहेंगे। जय श्रीराम।

राष्ट्र हिंदू धर्म में क्या अहिल्या वास्तव में निर्दोष थी?

आपमें से कई लोग सोच रहे होंगे कि आज मैं ये कौन सा विषय लेकर आ गया। हम सभी ने हमेशा यही पढ़ा है कि पंचकन्याओं में से एक अहिल्या सर्वथा निर्दोष थी और महर्षि गौतम ने उन्हें बिना सत्य जाने श्राप दे दिया था। बाद में श्रीराम ने उनका उद्धार किया था। बरसों से हम यही सुनते और देखते आ रहे हैं। किन्तु आज हम इस घटना के सत्य को जानने का प्रयत्न करेंगे।

ऐसी शंकाएं लोगों के मन में केवल इसलिए आती हैं क्यूंकि उन्होंने कभी मूल ग्रन्थ पढ़ा ही नहीं होता। और जब मैं बोल रहा हूँ मूल ग्रन्थ, तो मैं वाल्मीकि रामायण की बात कर रहा हूँ, ना कि रामचरितमानस की। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के समाज में रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण से बहुत अधिक प्रचलित है किन्तु मूल ग्रन्थ तो वाल्मीकि रामायण ही है।

अब चूँकि रामचरितमानस इतनी अधिक प्रचलित है, लोग उसी को पढ़ते हैं। यहाँ तक कि १९८७ में बनी रामानंद सागर का प्रसिद्ध सीरियल रामायण भी मुख्यतः रामचरितमानस पर ही आधारित था। अब जब लोग वही पढ़ते और देखते हैं जो हमारे सामने है, वे उस सत्य को नहीं जान पाते जो कि मूल ग्रन्थ में लिखा गया है। तो यदि आपको इस प्रश्न का वास्तविक उत्तर चाहिए तो आपको वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड का ४८ वां सर्ग पढ़ना चाहिए।

अब जो मैं बताने जा रहा हूँ उसे बड़े ध्यान से सुनिए और एक बात का विशेष ध्यान रखिये कि मैं ये बातें मूल वाल्मीकि रामायण से बता रहा हूँ। इसीलिए यदि आपने रामचरितमानस या रामायण का कोई और संस्करण पढ़ा है या कोई टीवी सीरियल देखा हो तो उसे एक पल के लिए भूल जाइये। वैसे तो वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के ४८ वें सर्ग में कुल ३३ श्लोक हैं किन्तु मैं केवल दो श्लोकों का वर्णन करूँगा जिससे आपको बात समझ में आ जाएगी।

लोगों की ये आम धारणा है कि इंद्र गौतम ऋषि का वेश बना कर आये इसी कारण अहिल्या उन्हें पहचान नहीं पायी, जो कि बिलकुल गलत है। अहिल्या का जन्म स्वयं ब्रह्मदेव से हुआ था और उन्हें छला नहीं जा सकता था। वाल्मीकि रामायण में ये साफ लिखा है कि जब इंद्र गौतम ऋषि के वेश में आये और अहिल्या से प्रणय याचना की तब अहिल्या ने ये जान लिया था कि ये उनके पति नहीं हैं। किन्तु ये जान कर कि स्वयं देवराज इंद्र उनसे प्रणय याचना कर रहे हैं, अहिल्या ने सब कुछ जानते बुझते कौतुहल में उनकी बात मान ली। यह बात महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को बताते हैं।

मुनिवेषं सहस्राक्षं विज्ञाय रघुनन्दन।
मतिं चकार दुर्मेधा देवराजकुतूहलात्॥ 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक १९

अर्थात: ‘रघुनन्दन ! महर्षि गौतम का वेष धारण करके आये हुए इन्द्र को पहचानकर भी उस दुर्बुद्धि नारी ने ‘अहो! देवराज इन्द्र मुझे चाहते हैं’ इस कौतूहल वश उनके साथ समागम का निश्चय करके वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

यहाँ तक कि इंद्र से समागम के पश्चात अहिल्या इंद्र को धन्यवाद देते हुए कहती हैं कि अब आप शीघ्रता से यहाँ से चले जाइये और महर्षि गौतम के क्रोध से मेरी और स्वयं अपनी रक्षा कीजिये।
अथाब्रवीत् सुरश्रेष्ठं कृतार्थेनान्तरात्मना।
कृतार्थास्मि सुरश्रेष्ठ गच्छ शीघ्रमितः प्रभो॥
आत्मानं मां च देवेश सर्वथा रक्ष गौतमात्। 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २०

अर्थात: ‘रति के पश्चात् उसने देवराज इन्द्र से संतुष्टचित्त होकर कहा–’सुरश्रेष्ठ! मैं आपके समागम से कृतार्थ हो गयी। प्रभो! अब आप शीघ्र यहाँ से चले जाइये। देवेश्वर! महर्षि गौतम के कोप से आप अपनी और मेरी भी सब प्रकार से रक्षा कीजिये’।

इसके बाद की कथा हम जानते हैं कि जब इंद्र वापस जाने के लिए बाहर निकले तो महर्षि गौतम ने उन्हें देख लिया। ये देख कर महर्षि गौतम ने प्रथम दंड इंद्र को ही दिया। महर्षि गौतम ने इंद्र को नपुंसक हो जाने का श्राप दे दिया।

मम रूपं समास्थाय कृतवानसि दुर्मते।
अकर्तव्यमिदं यस्माद विफलस्त्वं भविष्यसि॥ 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २७

अर्थात: “दुर्मते! तूने मेरा रूप धारण करके यह न करने योग्य पापकर्म किया है, इसलिये तू विफल (अण्डकोषों से रहित) हो जायगा’।

गौतमेनैवमुक्तस्य सुरोषेण महात्मना।
पेततुर्वृषणी भूमौ सहस्राक्षस्य तत्क्षणात्॥ 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २८

अर्थात: ‘रोष में भरे हुए महात्मा गौतम के ऐसा कहते ही सहस्राक्ष इन्द्र के दोनों अण्डकोष उसी क्षण पृथ्वीपर गिर पड़े।

अब आते हैं अहिल्या के दंड पर। लोगों को ऐसा लगता है कि महर्षि गौतम ने उन्हें पत्थर बन जाने का श्राप दिया, पर ये भी गलत है। वास्तव में गौतम ऋषि ने अहिल्या को कई हजार वर्षों तक अदृश्य रूप में उसी आश्रम में प्रायश्चित करने का श्राप दिया।

तथा शप्त्वा च वै शक्रं भार्यामपि च शप्तवान्।
इह वर्षसहस्राणि बहूनि निवसिष्यसि ॥ 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक २९

वातभक्षा निराहारा तप्यन्ती भस्मशायिनी।
अदृश्या सर्वभूतानामाश्रमेऽस्मिन् वसिष्यसि॥ 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक ३०

अर्थात: इन्द्र को इस प्रकार शाप देकर गौतम ने अपनी पत्नी को भी शाप दिया - 'दुराचारिणी! तू भी यहाँ कई हजार वर्षों तक केवल हवा पीकर या उपवास करके कष्ट उठाती हुई राख में पड़ी रहेगी। समस्त प्राणियों से अदृश्य रहकर इस आश्रम में निवास करेगी।'

यदा त्वेतद् वनं घोरं रामो दशरथात्मजः।
आगमिष्यति दुर्धर्षस्तदा पूता भविष्यसि॥ 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक ३१

तस्यातिथ्येन दुर्वृत्ते लोभमोहविवर्जिता।।
मत्सकाशं मुदा युक्ता स्वं वपुर्धारयिष्यसि॥ 
बालकाण्ड, सर्ग ४८, श्लोक ३२

अर्थात: जब दुर्धर्ष दशरथ-कुमार राम इस घोर वन में पदार्पण करेंगे, उस समय तू पवित्र होगी। उनका आतिथ्य-सत्कार करने से तेरे लोभ-मोह आदि दोष दूर हो जायँगे और तू प्रसन्नतापूर्वक मेरे पास पहुँचकर अपना पूर्व शरीर धारण कर लेगी।’

लोग ऐसा भी सोचते हैं कि श्रीराम ने शिलरूपी अहिल्या के मस्तक पर अपने चरण रख कर उसका उद्धार किया था, जो बिलकुल गलत है। वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के ४९ वें सर्ग में महर्षि विश्वामित्र श्रीराम से कहते हैं कि 'हे राम! ये तपस्विनी सहस्त्रों वर्षों से तप करते हुए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है इसलिए तुम दोनों भाई जाकर इसके चरण छुओ।' तब श्रीराम और लक्ष्मण अहिल्या के चरण छूते हैं जिससे अहिल्या श्रापमुक्त होती है और तब महर्षि गौतम पुनः उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं।

राघवौ तु तदा तस्याः पादौ जगृहतुर्मुदा।
स्मरन्ती गौतमवचः प्रतिजग्राह सा हि तौ॥
बालकाण्ड, सर्ग ४९, श्लोक १७

अर्थात: उस समय श्रीराम और लक्ष्मण ने बड़ी प्रसन्नता के साथ अहल्या के दोनों चरणोंका स्पर्श किया। महर्षिगौतम के वचनों का स्मरण करके अहल्या ने बड़ी सावधानी के साथ उन दोनों भाइयों को आदरणीय अतिथि के रूपमें अपनाया।

अंत में मैं ये कहना चाहूंगा कि किसी को रामचरितमानस के प्रति कोई शंका नहीं होनी चाहिए। वह निःसंदेह हिन्दू धर्म के सबसे महानतम ग्रंथों में से एक है। वास्तव में तुलसीदास जी ने जिस काल में रामायण की रचना की उस समय पूरा देश और समाज मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचारों से दुखी था। इसी कारण उन्होंने रामचरितमानस को पूर्ण भक्ति रस में उस प्रकार लिखा ताकि समाज में श्रीराम के प्रति आस्था कम ना हो पाए। 

तो रामचरितमानस अपने युग में पूर्ण प्रासंगिक थी किन्तु हाँ, यदि सत्य जानना हो तो हमें वाल्मीकि रामायण पढ़ना ही चाहिए। आज की पीढ़ी के लिए ये बहुत आवश्यक है कि वो हमारे मूल धर्मग्रंथों का अध्ययन करे अन्यथा इसी प्रकार भ्रमित होते रहेंगे। जय श्रीराम।

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,। 🌹भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है.🌹पत्थर का स्वभाव है डूब जाना, अगर कोई पत्थर का आश्रय लेकर जल में उतरे तो वह भी पत्थर के साथ डूब जाता है। वानर का स्वभाव चीजों को तोड़ने वाला होता है, जोड़नेवाला नहीं। समुद्र स्वभाववश सबकुछ स्वयं में समा लेनेवाला है। नदियों के जल को स्वयं में समा लेनेवाला। वह किसी को कुछ सरलता से कहाँ देनेवाला है! तीनों ने रामकाज के लिए अपने स्वभाव से विपरीत कार्य कियापत्थर पानी में तैरने लग गए, वानरसेना ने सेतु बंधन किया, सागर ने सीना चीरकर मार्ग दिया और स्वयं सेतुबंधन में मदद की।इसी प्रकार जीवन में भी यदि कोई कार्य हमारे स्वभाव से विपरीत हो रहा हो पर वह सबके भले में हो तो जानना चाहिये कि शायद श्रीराम हमारे जीवन में कोई एक और सेतु बंधन कार्य कर रहे है। भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय सीताराम जी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹,

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है।लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे।1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।3- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया।तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं।इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।4- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।5- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम के द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।6- वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया l7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष की थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।8- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण (यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।9- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं। 10- रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।11- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।12- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक वानरों ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं, जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।24- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।25- रावण जब विशव विजय पर निकला तब वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां रावण और यमराज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने कालदंड के प्रयोग द्वारा रावण के प्राण लेने चाहे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।26- वाल्मीकि रामायण में 24 हज़ार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है।

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। बाल वनिता महिला आश्रम लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस

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