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अयोध्या धाम के प्रमुख मंदिर1.सरयू नदी2.राम पैड़ी3.नागेश्वर नाथ मंदिर4.कालेराम जी5.तुलसी स्मारक भवन6.श्री जानकी महल7.श्री वाल्मीकि रामायण भवन (लव कुश मंदिर)8.हनुमान बाग9.जानकी वल्लभ10.छोटी देवकाली मंदिर11.हनुमान गढ़ी - (अति महत्वपूर्ण दर्शन)12.दशरथ महल13.श्रीरामजन्मभूमि - (अति महत्वपूर्ण दर्शन)14.कनक भवन - (अति महत्वपूर्ण दर्शन)15.राम कथा संग्रहालय16.बिड़ला मंदिर17.मणि पर्वतअयोध्या के प्रभुख दर्शनीय स्थान(अयोध्या रेलवे स्टेशन से सभी मन्दिर कुछ ही किलोमीटर (लगभग 3-4 किमी0) की दूरी पर स्थित है )1.रामकोट(लगभग 2 किमी0)यह नगर की पश्चिमी दिशा में स्थित है जहाँ अनेक मन्दिर एवं दर्शनीय स्थान अवस्थित है।चैत्रमास की रामनवमी (मार्च-अप्रैल) को भगवान राम के जन्मोत्सव के पावन पर्व पर यहाँ देश-विदेश के श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में आवागमन होता है।दर्शनावधि:-ग्रीष्मकाल-प्रातः7.00 से 11.00 बजे तक अपरान्ह 2.00 से सायं 6.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः7.30 से 10.30 बजे तक अपरान्ह 2.00 से सायं 5.00 बजे तक।2.कनक भवनकनक भवन के में एक रोचक कथा प्रचलित है कि जब जानकी जी विवाह के पश्चात अयोध्या आई,तो महारानी कैकेयी ने कनक-निर्मित अपना महल उनको प्रथम भेंट स्वरुप प्रदान किया था।महाराजा विक्रमादित्य ने इसका पुनर्निमाण करवाया।बाद में टीकमगढ़ रियासत की महारानी वृषभानु कुंवारी ने एक सुन्दर विशाल भवन इसी स्थान पर पुनः निर्मित करवाया,जो आज भी विद्धमान है।इसी भवन में स्थित मन्दिर में श्री राम और किशोरी जी की दिव्य प्रतिमाएं स्थापित है।दर्शनावधि: प्रातः8.00 से बजे तक 12.00 बजे तक सायं 4.50 से 9.00 बजे तक।3.हनुमान गढ़ी(अयोध्या जंक्शन से लगभग 1 किमी0 उत्तर-पूर्व)रामकोट के पश्चिम द्वार पर महाराजा विक्रमादित्य ने हनुमान जी का एक मन्दिर बनवाया था,जो कालान्तर में हनुमान टीले के नाम से प्रसिद्ध हुआ।ऊँचे स्थान पर स्थित इस मन्दिर ७६ सीढियाँ चढ़कर पहुँचा जाता है।दर्शनावधि :-ग्रीष्मकाल-प्रातः 4.00 से रात्रि 11.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः5 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक।4.नागेश्वरनाथ मन्दिर(लगभग 4 किमी0 उत्तर-पूर्व एवं राम की पैड़ी के समीप)नागेश्वरनाथ जी का मन्दिर अयोध्या के प्रमुख मंदिरों में से एक है।श्री रामचंद्र जी के पुत्र महाराज कुश जी द्वारा स्थापित इस मन्दिर की स्थापना के सम्बन्ध में कथा प्रचलित है कि एक दिन जब महाराजा कुश सरयू नदी में स्नान कर रहे थे,तो उनके हाथ का कंगन जल में गिर गया,जिसे नाग-कन्या उठा ले गयी, बहुत खोजने के बाद भी जब महाराजा कंगन प्राप्त नहीं कर सके,तब कुपित होकर उन्होंने जल को सुखा देने की इच्छा से अग्निशर का संधान किया,जिसके परिणामस्वरुप जल-जन्तु व्याकुल होने लगे।तब नागराज से स्वयं वह कंगन लाकर महाराजा कुश को सादर भेंट किया तथा उनसे अपनी पुत्री से विवाह करने का अनुरोध किया।महाराजा कुश ने नाग-कन्या से विवाह करके उस घंटना की स्मृति में उस स्थान पर नागेश्वर मन्दिर की स्थापना की।उसी स्थान पर आज एक विशाल शिव मन्दिर स्थित है।प्रत्येक त्रयोदशी एवं शिवरात्रि महापर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु तीर्थ यात्री सरयू-स्नान करके इस मन्दिर में जल चढ़ाने आते है।दर्शनावधि:-ग्रीष्मकाल-प्रातः 5.00 से रात्रि 08.30 बजे तक तथा सायं 4.00 बजे से रात्रि 8.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः6 बजे से रात्रि 11.00 बजे तक तथा सायं 4.00 बजे से रात्रि 7.00 बजे तक।5.छोटी देवकाली मन्दिर(अयोध्या जंक्शन से 2 किमी0)यह मन्दिर नये घाटी के समीप एक गली में स्थित है।छोटी देवकाली जी अवध की ग्राम देवी मानी जाती है,मान्यतानुसार विवाहोपरान्त जब सीता जी अयोध्या आने लगी,तो अपने साथ अपनी पूज्या देवी गिरिजा जी को भी साथ लायी महाराज दशरथ ने उनकी स्थापना सप्तसागर के समीप एक सुन्दर मन्दिर में की।जानकी जी नित्य नियमपूर्वक प्रातःकाल परम शक्तिस्वरूपा माँ गिरिजा की की विधिवत उपासना करती थी।वर्तमान में यहाँ श्री देवकाली जी की देदीप्यमान भव्य प्रतिमा स्थापित है।दर्शनावधि:-सूर्योदय से सूर्यास्त तक।6.मत्तगयन्द (मातगैंड) जी का स्थान(लगभग 2 किमी0)मत्तगयन्द जी लंकाधिपति विभीषण जी के पुत्र थे,उनका स्थान कनक भवन मन्दिर के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है।ये रामकोट के उत्तरी फाटक के प्रधान रक्षक थे।प्रतिवर्ष होली के बाद पड़ने वाले प्रथम मंगल के दिन उहाँ विशाल मेला लगता है।7.कालेराम जी का मन्दिर(2.5 किमी0)नागेश्वरनाथ मन्दिर के समीप सरयू नदी के पावन तट पर स्वर्गद्वार मोहल्ले में कालेराम जी का मन्दिर है।यहाँ विक्रमादित्य कालीन मूर्तियाँ स्थापित है।अयोध्या के प्राचीन मन्दिरों में कालेराम जी के मन्दिर का प्रमुख स्थान है।दर्शनावधि:-ग्रीष्मकाल-प्रातः 4.30 से 11.00 बजे तक तथा सायं 4.00 से रात्रि 9.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः 5.00 से 11.30 बजे तक तथा सायं 4.00 से रात्रि 8.00 बजे तक।8.मणिपर्वत(लगभग 1 किमी0)विद्याकुण्ड के समीप 65 फिट की ऊँचाई पर स्थित मणिपर्वत के बारे में जनश्रुति है कि हिमालय से संजीवनी बूटी को लेकर लंका जाते हुए पवनसुत हनुमान जी ने संजीवनी बूटी के पर्वत-खण्ड को रखकर यहाँ विश्राम किया था।ऊपर मन्दिर एवं झूला दर्शनीय है। श्रावण मास में अयोध्या में संपन्न होने वाले प्रसिद्ध झूलनोत्सव का प्रारम्भ यहीं से होता है।उस अवसर पर हजारों की संख्या में भक्तजन भगवान की मनोहारी झांकी देखने के लिए उपस्थित होते है।दर्शनावधि:- सूर्योदय से सूर्यास्त तक9.लक्ष्मण किला:सरयू के पावन तट पर स्थित लक्ष्मण किले का निर्माण मुबारक अली खाँ ने करवाया था। इसे किला मुबारक भी कहा जाता है।रसिक संप्रदाय के सन्त स्वामी युगलानन्द पारण जी महाराज,निर्मली कुण्ड पर तप करते थे उनके स्वर्गवासी होने के उपरान्त कालांतर में दीवान रीवाँ दीनबन्धु जी ने इस स्थान पर एक विशाल मन्दिर बनवाया,जो आज भी विद्धमान है।10.क्षीरेश्वरनाथ महादेव मन्दिर(लगभग 1/2 किमी0)हनुमान गढ़ी चौराहे से फैज़ाबाद-लखनऊ जाने वाले मार्ग पर क्षीरसागर स्थित है। इसके समीप ही श्री क्षिरेश्वरनाथ महादेव जी का भव्य शिवालय स्थित है। वर्गाकार चबूतरे पर निर्मित,इस मन्दिर में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है।11.कोशलेश सदन(लगभग 1.5 किमी0)यह मन्दिर कटरा मोहल्ले में स्थित है।अयोध्या स्थित रामानुजी वैष्णवों की तिंगल शाखा के प्रमुख मन्दिरों में यह मन्दिर अद्वितीय है।12.लव-कुश मन्दिर(लगभग 1.5 किमी0)भगवान् राम के पुत्रों-लव व् कुश के नाम पर निर्मित इस मन्दिर में लव व कुश की मूर्ति के साथ महर्षि वाल्मीकि जी की प्रतिमा भी स्थापित है।इसके समीप ही अंबरदास जी राम कचेहरी मन्दिर, जगन्नाथ मन्दिर तथा रंगमहल मन्दिर है,जो अयोध्या के प्रमुख दक्षिण भारतीय मन्दिरों में गिने जाते है।13.विजेराघव मन्दिर(लगभग 1.5 किमी0)यह मन्दिर विभीषण कुण्ड जाने वाले मार्ग पर स्थित है।इसकी स्थापना 1915 ईस्वी में की गई थी।अचारी संप्रदाय के तिंगल शाखा के अयोध्या स्थित मन्दिरों में इसका प्रमुख स्थान है।14.रत्नसिँहासन (राजगद्दी)(लगभग 1.5 किमी0)यह भवन कनक भवन की दक्षिण दिशा में है।मान्यतानुसार यहाँ भगवान राम का राज्याभिषेक संपन्न हुआ था।15.दंतधावन कुण्ड(लगभग 1.5.किमी0)श्री वैष्णव के वड़गल शाखा के अंतर्गत आने वाला यह मन्दिर हनुमान गढ़ी चौराहे से रामघाट तुलसी स्मारक जाने वाले मार्ग पर स्थित है।किवंदन्ती के अनुसार इसी स्थान पर श्री रामचन्द्र जी चारों भाइयों के साथ प्रातःदतुवन करते थे।16.वाल्मीकि रामायण भवन(लगभग 3 किमी0)इस भवन में सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण को संगमरमर पर अंकित किया गया है।दर्शनावधि:-सूर्योदय से सूर्यास्त तक।17.तुलसी स्मारक भवन/अयोध्या शोध संस्थान/राम-कथा-संग्रहालय।(लगभग 1 किमी0)तुलसी चौरा के समीप उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी की स्मृति में स्मारक भवन का निर्माण करवाया गया है। भवन से संचालित अयोध्या शोध संस्थान के तत्त्वाधान में यहाँ प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ला सप्तमी को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती विशेष अयोजनपूर्वक मनायी जाती है।यहाँ विशाल ग्रन्थागार, पुस्तकालय-वाचनालय एवं हस्तशिल्प का राम-कथा-विषयक सामग्रियों का संग्रह तथा अनुसंधाताओ के लिए तुलसी-सहित्य पर उत्तम सामग्री भी उपलब्ध है।विशेष आकर्षण:-अनवरत रामलीला एवं कथा-वचन कार्यक्रम।प्रतिदिन सायं 6.00 बजे से रात्रि 9.00 बजे तक।18.राम-कथा-संग्रहालयतुलसी स्मारक भवन में स्थित राम-कथा-संग्रहालय में राम कथा से संबधित विभिन्न प्रकार की पेंटिंग,हाथी-दांत के मुखौटे,प्राचीन दर्शनीय वस्तुएं और देश के विभिन्न संग्रहालयों में संग्रहीत राम-कथा से संबधित मूल सामग्रियों के चित्र उपलब्ध है।साप्ताहिक अवकाश:-सोमवार एवं सार्वजनिक अवकाश दिवस।19.गुरुद्वारा ब्रह्मकुण्ड(लगभग 3 किमी0)ब्रह्मकुण्ड घाट के निकट ब्रह्मदेव जी का एक छोटा-सा मन्दिर है जिसमें ब्रह्मा जी की चतुर्भुजी मूर्ति स्थापित है।मान्यता है कि गुरुनानकदेव जी को चतुरानन ब्रह्मा जी के साक्षात् दर्शन यहीं प्राप्त हुए थे।गुरु तेगबहादुर जी एवं गुरु गोविन्द सिंह जी का भी पावन प्रवास अयोध्या नगरी में हुआ था।घाट के पास विशाल गुरुद्वारा स्थित है,जहाँ प्रतिवर्ष सिख तीर्थ यात्री दर्शन के लिए आते है।20.अयोध्या के जैन मन्दिरअयोध्या के पाँच जैन तीर्थकरों होने का गौरव प्राप्त है।यहाँ पाँचो तीर्थकरों के मन्दिर है-तीर्थकर आदिनाथ मन्दिर ( मुरारी टोला,स्वर्गद्वार),तीर्थकर अजितनाथ मन्दिर (सप्तसागर,इटौआ) तीर्थकर अभिनन्दननाथ मन्दिर (सराय के निकट),तीर्थकर सुमन्तनाथ मन्दिर (रामकोट),तीर्थकर अनंतनाथ मन्दिर,(गोलाघाट)।रायगंज मोहल्ले में ऋषभदेव जी का विशाल मन्दिर है।इस मन्दिर में ऋषभदेव जी की 21 फुट ऊँची संगमरमर की दिगम्बर मूर्ति स्थापित है,जो अयोध्या स्थित जैन मंदिरों में स्थापित मूर्तियों में विशालतम है।21.राम की पैड़ी(लगभग 2 किमी0)अयोध्या गोरखपुर के राष्ट्रीय राजमार्ग पर सरयू के पल के निकट नदी के किनारे स्थित राम की पैड़ी अयोध्या का महत्वपूर्ण स्थान है।उद्यान एवं जलाशय यहाँ में आकर्षण है।22.मन्दिर श्री हनुमानबाग(लगभग 1.5 किमी0)अयोध्या जी के मोहल्ला में हनुमान बाग नामक एक भव्य स्थान का निर्माण एक भजनानंदी साधू द्वारा कराया गया है।यहाँ हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है।पास में ही हनुमत सत्संग भवन माँ भी निर्माण कराया गया है।23.श्री जानकी महल ट्रस्ट -(लगभग 1.5 किमी0)कलकत्ता के मारवाड़ी समाज द्वारा वासुदेवघाट मोहल्ले में एक बड़ा भूखण्ड क्रय कर श्रीजानकी महल के नाम से एक भव्य मन्दिर,अतिथिशाला,गौशाला का निर्माण कराया गया है।24.श्री बिड़ला मन्दिर(लगभग 1.किमी0)श्री अयोध्या जी के पुराने सब स्टेशन के सामने बिड़ला सेठ द्वारा बनवाया गया भव्य बिड़ला मन्दिर स्थित है,जहाँ पर श्रीराम जानकी की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है।25. श्री सरयू महानदीजय by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, श्री सीताराम जीजय श्री हनुमानजी महाराज,

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Vnita ने कहा…
जय श्री राम राम

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,। 🌹भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है.🌹पत्थर का स्वभाव है डूब जाना, अगर कोई पत्थर का आश्रय लेकर जल में उतरे तो वह भी पत्थर के साथ डूब जाता है। वानर का स्वभाव चीजों को तोड़ने वाला होता है, जोड़नेवाला नहीं। समुद्र स्वभाववश सबकुछ स्वयं में समा लेनेवाला है। नदियों के जल को स्वयं में समा लेनेवाला। वह किसी को कुछ सरलता से कहाँ देनेवाला है! तीनों ने रामकाज के लिए अपने स्वभाव से विपरीत कार्य कियापत्थर पानी में तैरने लग गए, वानरसेना ने सेतु बंधन किया, सागर ने सीना चीरकर मार्ग दिया और स्वयं सेतुबंधन में मदद की।इसी प्रकार जीवन में भी यदि कोई कार्य हमारे स्वभाव से विपरीत हो रहा हो पर वह सबके भले में हो तो जानना चाहिये कि शायद श्रीराम हमारे जीवन में कोई एक और सेतु बंधन कार्य कर रहे है। भगवान का हर विधान मंगलकारी होता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय सीताराम जी 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹,

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है।लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे।1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।3- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया।तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं।इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।4- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।5- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम के द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।6- वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया l7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष की थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।8- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण (यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।9- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं। 10- रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।11- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।12- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक वानरों ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं, जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।24- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।25- रावण जब विशव विजय पर निकला तब वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां रावण और यमराज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने कालदंड के प्रयोग द्वारा रावण के प्राण लेने चाहे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।26- वाल्मीकि रामायण में 24 हज़ार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है।

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। बाल वनिता महिला आश्रम लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस

*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🌹🙏🌹 #जय__श्री__राम_ 🌹🙏🌹🙏🙏#जय__जय__सिया__राम_🙏🙏⛳⛳#जय_पवनपुत्र_हनुमान_ ⛳⛳ *🛕राम राम🚩राम राम🛕* *🛕││राम││🛕* *🛕राम🛕* * 🛕*🌞जय श्री सीताराम सादर सुप्रभात जी🌞┈┉┅━❀꧁आज के अनमोल मोती꧂❀━┅┉┈*समस्याएँ हमारे जीवन मेंबिना किसी वजह के नहीं आती.....**उनका आना एक इशारा है किहमे अपने जीवन में कुछ बदलना है.....*🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏*कपड़े से छाना हुआ पानी**स्वास्थ्य को ठीक रखता हैं।*और...**विवेक से छानी हुई वाणी**सबंध को ठीक रखती हैं॥**शब्दो को कोई भी स्पर्श नही कर सकता..*_🙏🙏🙏_*....पर....*_🙏🙏🙏_*शब्द सभी को स्पर्श कर जाते है*🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏┈┉┅━❀꧁🙏"जय श्री राम"🙏 ꧂❀━┅┉┈*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🙏🙏*सभी भक्त प्रेम से बोलो*✍️ 🙏"जय श्री राम रामाय नमः 🙏⛳🙏#जय_जय_सिया_राम__🙏⛳🙏#सियावर_रामचन्द्र__की__जय#🙏*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*