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BAL VNITA MAHILA AshramJai Shree Ram Status in Hindi (जय श्री राम स्टेटस शायरी)Shri ram status🔹गरज उठे गगन सारा समंदर छोड़े अपना किनारा हिल जाए जहान सारा जब गूंजे जय श्री राम का नारा#जय श्री राम🔹जिस दिन रामभक्तों की सरकार बन गई ना तो…अयोध्या में राम मंदिर क्या…पाकिस्तान में भी श्रीराम का झंडा गाड़ देगें…!!#जय श्री राम

BAL VNITA MAHILA AshramJai Shree Ram Status in Hindi (जय श्री राम स्टेटस शायरी)
Shri ram status

🔹गरज उठे गगन सारा 
समंदर छोड़े अपना किनारा 
हिल जाए जहान सारा 
जब गूंजे जय श्री राम का नारा
#जय श्री राम

🔹जिस दिन रामभक्तों की सरकार बन गई ना तो…
अयोध्या में राम मंदिर क्या…
पाकिस्तान में भी श्रीराम का झंडा गाड़ देगें…!!
#जय श्री राम


🔹हे भगवन करता हु आपसे गुजारिश की….
तेरी भक्ति के सिवा कोई बंदगी न मिले …
हर जन्म हिन्दु जैसे पावन धर्म मे…
या फिर जिंदगी ना मिले..!!
#जय श्री राम


🔹 हकूमत दूसरों के दम पर तो कोई भी कर ले ,
जो अपने दम पर छा जाए, वो हम है..!!
#जय श्रीराम


🔹श्रीराम का वंशज हूँ मैं, गीता ही मेरी गाथा हैं,
छाती ठोक के कहता हूँ, भारत ही मेरी माता हैं..!!
#जय श्री राम


 

🔹हे श्री राम! तुम्हारे होंगे चाहने वाले बहुत इस कायनात में,
लेकिन इस पागल की तो कायनात ही तुम हो..!!
#जय श्री राम


🔹माला से मोती तुम तोड़ा ना करो, धर्म से मुँह तुम मोड़ा ना करो,
बहुत कीमती हैं जय श्री राम का नाम, जय सियाराम बोलना कभी छोड़ा ना करो..!!
#जय श्री राम


🔹हमने तो मौत को भी कह रखा है,
जब तक हमारे प्रभु श्रीराम का मंदिर नही बन जाता,
हमारे आसपास भी ना भटके वरना दौड़ा दौड़ा कर मारेंगे..!!
#जय श्री राम


🔹हम हिन्दू हैं, हिन्दुत्व की बात करेंगे,
एक बार क्या, सौ बार जय श्री राम कहेंगे..!!
#जय श्री राम


🔹करूं क्यों फिक्र मौत के बाद जगह कहां मिलेगी...
जहां होगी मेरे श्रीराम की महफिल मेरे रूह वहां मिलेगी..!!
#जय श्री राम

Shri Ram Status Shayari in Hindi (श्री राम स्टेटस शायरी हिंदी)
Shri ram shayari

🔹चिंगारियों को हवा देकर,
हम दामन नहीं जलाते
हमारे मजबूत इरादे ही,
जिहादियों में आग लगा देते हैं..!!
#जय श्री राम


🔹एक ही चौखट पर सर झुके तो सुकून मिलता है...
भटक जाते हैं वो जिनके हजारों भगवान होते हैं..!!
#जय श्री राम


🔹हे श्री राम! एक कतरा ही सही मगर मुझे ऐसी नीयत दे,
अगर किसी को प्यासा देखूं तो दरिया बन जाऊं...!!
#जय श्री राम


🔹जब लत लग जाए राम नाम की,
फिर दुनिया मेरे किस काम की..!!
#जय श्री राम


🔹ना कुछ पाने की खुशी ना कुछ खोने का गम,
जब तक है गले में दम तब तक श्रीराम कहेंगे हम..!!
#जय श्री राम


🔹मैंने खोजा उसे बड़ी बड़ी कुश्ती में
वो मिला मुझे श्री राम की बस्ती में..!!
#जय श्री राम


🔹मुझे ऐसी नींद में सुला दो श्री राम जहां सपने भी तेरे आएं और आंखें खोलूं तो तेरा दीदार हो जाए..!!
#जय श्री राम


🔹कोई लड़की मेरा प्यार नहीं कोई लड़का मेरा यार नहीं
बस तेरे संग है हर नाता मेरा गहरा
क्योंकि तेरे जैसा किरदार किसी और का नहीं...!!
#जय श्री राम


🔹सनातन धर्म में #कट्टर शब्द का प्रयोग ही निषेध है,
हमारा धर्म हमें पेड़ के पत्ते तोड़ने तक की आज्ञा नहीं देता,
ऐसे धर्म से हमारा संबंध है..!!
#जय श्री राम


🔹अपनी जिंदगी ऐसे जियो कि श्री राम को पसंद आ जाओ
लोगों की पसंद तो रोज बदल जाती है...!!
#जय श्री राम

Shri Ram Attitude Status Shayari (श्रीराम एटीट्यूड स्टेटस)
Shri ram quotes

🔹फतवा नहीं बस भगवा का नाम होगा,
मेरे देश में अब सलाम नहीं सिर्फ जय श्रीराम होगा..!!
#जय श्री राम 


🔹कर्जदार रहूंगा उस हकीम का,
जो दवा के नाम पर तेरा नाम लिख दे..!!
#जय श्री राम


🔹कोई अपने आप को बादशाह समझता है, तो कोई एक्का…
अरे ! जाकर बोल दो उस बादशाह और एक्के से कि,
रामभक्त की एंट्री हो गई है…!!
#जय श्री राम


🔹एक बार अयोध्या जा कर देखो आप को विशवास हो जाएगा अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर ही बनेगा..!!
#जयश्रीराम


🔹जो पहले से ही श्री राम के रंग में रंग चुका है,
उसे रंग लगाओ या फिर गुलाल लगाओ,
खुशबू सिर्फ श्री राम के रंग की ही आएगी...!!
#जय श्री राम


🔹दशहत बनाओ तो शेर जैसी
वरना
खाली डराना तो कुत्ते भी जानते है
#कट्टर हिन्दु हो तो खूंखार होना चाहिये..!!
#जय श्री राम


🔹राम भक्त को जंजीरो में कैद करने का सपना मत देख,
क्युंकि हम वो आदमखोर शेर हैं,
जिसका भी शिकार करतें हैं,
उसका जिस्म तो क्या रूह भी दम तोड़ देती हैं..!!
#जय श्री राम


🔹कई रिश्तो को परखा पर नतीजा एक ही निकला,
श्री राम की भक्ति ही सब कुछ है और मोहब्बत कुछ भी नहीं...!!
#जय श्री राम


🔹अनपढ़ लोगो की वजह से ही हमारी मातृभाषा बची हुई हैं साहब,
वरना पढ़े हुए कुछ लोग तो राम राम बोलने में भी शरमाते हैं..!!
#जय श्री राम


🔹सारा ब्रह्मांड झुकता है जिसकी शरण में,
मेरा प्रणाम है उस श्री राम की चरणों में...!!
#जय श्री राम

Shri Ram Bhagwa Status SMS (श्री राम भगवा स्टेटस शायरी)
Jai shri ram status

🔹जो श्री राम को नहीं मानते 
हम उन्हें नहीं जानते...!!
#जय श्री राम


🔹आईने भी आजकल बहुत खूब सताने लगे हैं,
देखता खुद को हूं श्री राम नजर आने लगे हैं...!!
#जय श्री राम


🔹शोक ऊँचे है रुतबा ऊँचा है,
राम भक्तों के आगे ये ज़माना झुकता है..!!
#जय श्री राम


🔹वीरों की दहाड़ होगी
हिन्दुओं की ललकार होगी,
आ रहा है वक्त जब फिर 
हिन्दुओं की भरमार होगी..!!!
#जय श्री राम


🔹जब तेरा नाम लिया है तो आसान मेरा हर काम हुआ है,
तेरे नारे से ही श्रीराम मेरी हर सुबह मेरी हर शाम हुई है..!!
#जय श्री राम


🔹सादगी और सरलता के नशे में चूर रहता हूं, 
इसीलिए खुद को श्री राम का बेटा कहता हूं..!!
#जय श्री राम


🔹वैसे तो हम जानी मानी हस्ती नही हैं ना ही बङे इंसान हैं,
लेकिन जब भी रास्ते से गुजरते है,
तो दुश्मन के मुँह से भी निकल जाता है,
वो जा रहे श्रीराम के दीवाने..!!
# जय सियाराम


🔹यहां कौन किसका अपना है,
मेरी आंखों में श्री राम तेरा सपना है..!!
#जय श्री राम


🔹अरे कब खुलेंगी तुम्हारी आंख हिंदुओ जयश्रीराम बोलने में डर कैसा,
दहेज मांग सकते हो लेकिन अपने भगवान का घर नही..!! #जय श्री राम


🔹ना कोई चिंता ना कोई भय,
हे भगवान राम सदा हो तेरी जय..!!
#जय श्री राम

Shri Ram 2 Line Status Shayari (श्रीराम टू लाइन स्टेटस शायरी)
Jai shree ram status shayari

🔹चप्पा चप्पा भर जाएगा श्रीराम के दीवानों से,
सारा देश गूंज उठेगा, जय सियाराम के जयकारों से..!!
#जय श्री राम


🔹मैं अपने पुरखों का कर्जदार हूँ
जिन्होंने 800 साल मुग़लों से
200साल अँग्रेजो से लोहा लेते हुए मुझे
#कट्टर हिंदु बनाया..!!
#जय श्री राम


🔹हे श्री राम तेरी बात ही निराली है,
मुझसे ज्यादा मेरी रूह तेरी दीवानी है..!!
#जय श्री राम


🔹फना इतना हो जाऊं तुझे पाने में हे श्री राम कि
मुझे देखने वालों को भी तुझसे मोहब्बत हो जाए..!!
#जय श्री राम


🔹रख ले मुझे श्रीराम एक कोने में,
उसी में खुश रहूंगा ताउम्र के लिए..!!
#जय श्री राम


🔹सब ने पूछा कैसी खुशबू पसंद है आपको,
हमने भी श्री राम के फूलों के किस्से सुना दिए..!!
#जय श्री राम


🔹मर्यादा पाँव में कब तक जंजीर डालेगी,
माथे पर तिलक लगाकर चला करो,
यहीं पहचान दुश्मन का कलेजा चीर डालेगी..!!
#जय श्री राम


🔹राम भक्त को जंजीरों में कैद करने का सपना मत देख,
क्युंकि हम वो आदमखोर शेर हैं,
जिसका भी शिकार करतें हैं,
उसका जिस्म तो क्या रूह भी दम तोड़ देती हैं…!!
#जय श्री राम


🔹तेरे वादे तू ही जाने 
मेरा तो आज भी यही कहना है
जिस दिन सांस टूटेगी उसी दिन आस छूटेगी..!!
#जय श्रीराम


🔹जब बात हिन्दुओ की आती है तो पूरी की पूरी विपक्षी सियासत को साँप सूंघ जाता है ..
सुना है विदेशी मुल्लो के लिए देश में शोर मचा है ?
#जय श्री राम


🔹किस किस को समझाऊं श्री राम
कि मैं तेरी भक्ति में किस कदर खो गया
लोगों को भ्रम है छोरा पागल हो गया..!!
#जय श्री राम

Shri Ram Hindu Status Shayari (श्री राम कट्टर हिंदू स्टेटस शायरी)
जय श्री राम स्टेटस

🔹कलम क्या-क्या बयां करेगी जज़्बात हमारे,
हमारा तो रोम-रोम श्री राम पुकारे...!!
#जय श्री राम


🔹मैं हर बार आजमाता हूं कि ईश्वर है कि नहीं,
उसने एक बार भी सबूत नहीं मांगा कि मैं इंसान हूं कि नहीं..!!
#जय श्री राम


🔹मुश्किल जरूर है रास्ता लेकिन में अभी मैं ठहरा नहीं,
श्री राम को भी पता है कि मुकाम तक पहुंचा नहीं हूं में...!!
#जय श्री राम


🔹बेशक पहन लो हमारे जैसे कपड़ें और ज़ेवर,
पर कहा से लाओगे राम भक्तो वाले तेवर..!!
#जय श्री राम


🔹“घमंड की बीमारी”
शराब जैसी है साहब,
खुद को छोड़कर सबको पता
चलता है कि इसको चढ़ गयी है.
#जयश्रीराम


🔹हमारी तकदीर से जलना छोड़ दे,
हम घर से दवा नही श्रीराम की दुआ लेकर निकलते है..!!
#जय श्रीराम


🔹पप्पू हिंदुत्व को समझने के लिए गीता पढ़ रहा है, इससे अच्छे दिन और क्या होगे, कि कुरान/बाइबिल वाले आज हमारी संस्कृति का गुणगान कर रहे हैं..!!
#जय श्री राम


🔹आज मिले ना कल मिले 
श्रीराम तो मेरी रूह में हर पल मिले..!!
#जय श्री राम


🔹पानी का कतरा कतरा मेरे हलक को तर करती है,
मेरी रग-रग में श्री राम की मोहब्बत सफर करती है..!!
#जय श्री राम


🔹आप के नाम से जाने जाते हैं हम,
अब इससे बड़ी इज्जत और क्या होगी मेरे लिए..!!
#जय श्री राम

Shri Ram Status For Facebook Whatsapp (श्री राम स्टेटस फेसबुक एंड व्हाट्सएप के लिए)
जय श्री राम स्टेटस शायरी

🔹किस्सा आशिकी का नया चला दो 
जहां मिलें राम भक्त अपना सर झुका दो..!!
#जय श्री राम


🔹मुझे साथ उसी का भाता है, 
जो मेरे श्री राम को चाहता है..!!
#जय श्री राम


🔹तब से मेरी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव हो गया, 
जब से मुझे श्रीराम से प्यार हो गया..!!
#जय श्री राम


🔹कोई पूछे मुझे कि "तेरे साथ कौन है?"
तो मेरी जुबां पर श्रीराम का नाम अपने आप आ जाता है..!!
#जय श्री राम


🔹जिनके विश्वास कभी नहीं हिलते हैं, 
श्रीराम उन्हीं को मिलते हैं..!!
#जय श्री राम


🔹किसी ने मुझसे कहा इतने खूबसूरत नहीं हो तुम,
मैंने कहा श्री राम के भक्त खूंखार अच्छे लगते हैं..!!
#जय श्री राम


🔹माला से मोती तुम तोड़ा ना करो,
धर्म से मुँह तुम मोड़ा ना करो !
बहुत कीमती हैं जय श्रीराम का नाम,
जय श्रीराम बोलना कभी छोड़ा ना करो..!!
#जय श्री राम


🔹इतिहास गवाह है…. . आज तक किसी को ये पता नही चला है कि ” हिंदी ” को अंग्रेजी में क्या कहते है..!!
#जय श्री राम


🔹श्री राम के लिए प्यार और बढ़ जाता है, 
जब कोई श्रीराम का भक्त कहकर बुलाता है..!!
#जय श्री राम


🔹श्री राम की भक्ति का चस्का लगा है जोर का,
अब फर्क नहीं पड़ता दुनिया के शोर का..!!
#जय श्री राम

Shri Ram Good Morning SMS Status (श्री राम गुड मॉर्निंग संदेश)
जय श्री राम कोट्स

🔹क्या ग़ज़ल क्या नज़्म क्या शायरी,
मेरे तो हर अल्फाज़ का मतलब सिर्फ तुम हो..!!
#जय श्री राम


🔹उसकी ही हर घड़ी बंदगी है,
उसने ही तो दी हमें जिंदगी है..!!
#जय श्री राम


🔹दौलत का जोर लगाते रहे,
हम जय श्री राम चिल्लाते रहे..!!
#जय श्री राम


🔹हरे भरे पेड़ पर कभी सुखी डाली नहीं होती,
जो श्री राम का भजन करें उसकी झोली कभी खाली नहीं होती..!!
#जय श्री राम


🔹संगेमरमर की तू बात न कर मुझसे,
मैं अगर चाहूँ तो एहसास-ऐ-मोहब्बत लिख दूँ…
ताजमहल भी झूख जाएगा चूमने के लिए,
में जो एक पथ्थर पे राम नाम लिख दूँ..!!
#जय श्री राम


🔹दौलत दे दी शोहरत दे दी और सुख दे दिए तमाम,
यह सुख भी मुझे दुख देते हैं बिन तेरे श्री राम..!!
#जय श्री राम


🔹जो श्री राम के गुण गाएगा 
श्री राम उसके सारे काम बनाएंगे..!!
#जय श्री राम


 

🔹ना पैसा लगता हैं,
ना ख़र्चा लगता हैं,
राम-राम बोलिये बड़ा अच्छा लगता हैं..!!
#जय श्री राम


🔹कामयाबी के दरवाजे उन्हीं के लिए खुलते हैं, जो उन्हें खटखटाने की ताकत रखते हैं। जय श्री राम..!!
#जय श्री राम


🔹 वनिता कासनियां पंजाब की एक बात बड़ी शिक्षा देतीं हैं .. ”
हिम्मत से हारना, पर हिम्मत मत हारना “..!!
जय श्री राम

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तथा सभी षट् विकारों: जन्म, शरीर-वृद्धि, बाल्यावस्था, प्रौढ़ता, वार्द्धक्य, व मृत्यु; तथा काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अरू (ज़ख़्म, रोग), व मत्सर (ईर्ष्या-द्वेष) से रहित, निराकार, सदा मुक्तस्वरूप निर्मल है ॥34॥श्री आदि शंकराचार्य जी के अनुसार:अन्तःकरण भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रजी के चरणकमलों की भक्ति के बिना कभी शुद्ध नहीं हो सकता। जैसे वस्त्र को खारयुक्त जल से शुद्ध किया जाता है, उसी प्रकार चित्त को भक्ति से निर्मल किया जा सकता है ।बाइबल में सेंट थियोडोरोस कहते हैं: "इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता जिसकी पिता स्वरूप प्रभु ने इतनी अच्छी तरह से पुष्टि की है, कि मनुष्य को मन में लगातार केवल इस विचार को बनाये रखने के अलावा कहीं और आराम नहीं मिलता है कि उसके हृदय के भीतर बसे (आराध्य) परमात्मा और वह (उपासक आत्मा) अकेले मौजूद हैं; और इसलिए वह अपनी बुद्धि को संसार की किसी भी अन्य चीज के लिए बिल्कुल भी भटकने नहीं देता है; बल्कि वह पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तरसता है, सिर्फ़ उसके लिए। केवल ऐसे व्यक्ति को ही सच्चा सुख व आराम मिलेगा और अनगिनत कामनाओं के निर्मम जुनून से मुक्ति मिलेगी।” (द फिलोकलिया v.II. p. 34, 91)हमारे मन व बुद्धि जब दिव्य संतों के वचनों से प्रभावित होते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि जब कोई मनुष्य पूर्ण परमात्मा (सर्वज्ञाता, सर्वोपरि व सर्वव्यापक) को जानता है तो ऐसा कुछ भी शेष नहीं रह जाता है जो उसे वास्तव में जानने की आवश्यकता हो। क्योंकि पूर्ण परमात्मा को जानने का अर्थ है सब कुछ जान लेना।इसलिए, सच्चा ज्ञान खुद को (हृदय की नितांत गहराइयों में स्वयं को खो देने के पश्चात) प्रेम व भक्तिसागर की रहस्यमय असीम शांति में डूबाने पर ही प्राप्त होता है।इस प्रकार, जब मनुष्य को अपने भीतर ईश्वर का पूर्ण ज्ञान होता है, तो उसकी बुद्धि को ज्ञान की तलाश में नहीं भागना पढ़ता।और जब किसी व्यक्ति के पास ऐसा विवेक (अंतर्ज्ञान) हो अर्थात् विश्लेणात्मक तर्क के बिना सीधे अनन्त दिव्य ज्ञान के स्तोत्र से जानने की क्षमता हो; जब कोई इस तरह के अतुलनीय दिव्य ज्ञान का अधिकारी हो जाता तो कुछ भी ओर जानना बेमानी हो जाता है।जब तक किसी व्यक्ति का मन चंचल है; उसके मन में विचार दौड़ते रहते है, तो वह इस बात का प्रतीक है कि उसने अभी तक अपरिहार्य रूप से अपने उत्कृष्ट आत्मिक पहलुओं या स्वयं के उच्च (दिव्य) स्वभाव में बसना यानि अपनी आत्मा में आराम करना नहीं सीखा है।सेंट मैक्सिमोस इस तर्क को स्पष्ट करते हुए कहते हैं: “एक व्यक्ति का मन व बुद्धि जब अपने शरीर से सम्बन्ध-विच्छेद करके स्वयं को मुक्त कर लेती है तो उसे खुशी और दर्द का अनुभव नहीं होता है, पर मनुष्य ऐसा तब कर पाता है जब वह अपने मन व बुद्धि को परमात्मा से बांधता है या एकजुट कर लेता है; उस पूर्ण परमात्मा को चाहता है जो प्यार, लगाव व इच्छा का वास्तविक लक्ष्य व सर्वश्रेष्ठ सुपात्र है।“ (द फिलोकलिया (The Philokalia) v.II, p.175, 54)निस्वार्थ प्रेम में ईश्वर की याद में मन व बुद्धि का भक्ति मे डूबे रह कर खो जाने में ईश्वरीय शांति मिली है; प्रभु श्रीकृष्ण ने भगवत गीता के अध्याय 2:58 के चिंतनशील मणि रूपी श्लोक में इस स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है:जिस प्रकार कछुवा अपने बचाव हेतु बार-बार अपने अंगो को संकुचित करके अपने खोल के भीतर कर लेता है, उसी तरह योगी, भक्त या आत्मसिद्ध व्यक्ति अपने मन व इन्द्रियों (ध्यान) को भक्तिभाव द्वारा इन्द्रियविषयों से खीँच कर पूर्ण ब्रह्मा की पूर्ण चेतना में दृढ़तापूर्वक स्थिर कर लेता है |तात्पर्यः अधिकांश व्यक्ति अपनी इन्द्रियों व मन के दास बने रहते हैं और इन्द्रियों के ही कहने पर चलते हैं। इन्द्रियों की तुलना विषैले सर्पों से की गई है; मानव का मन व इन्द्रियाँ सदैव अत्यन्त स्वतंत्रतापूर्वक तथा बिना किसी नियन्त्रण के कर्म करना चाहती हैं। योगी या भक्त का इन सर्पों को वश में करने के लिए, ईश्वर भक्ति की धुन में अत्यन्त प्रबल होना अति आवश्यक है। वह उन्हें कभी भी कार्य करने की छूट नहीं देता।जैसे कछुआ किसी भी समय अपने अंग समेट लेता है उसी तरह भक्त (ज्ञानी) परमात्मा के स्मरण में अपने मन व सभी इंद्रियों को इंद्रियों के आनंद के आकर्षण से तुरंत वापस खींच लेता है। और पुनः वह विशिष्ट उद्देश्यों से आवश्यकतानुसार उन्हें प्रकट कर लेता है तभी वह सदा कृष्णभावनामृत में स्थिर रह पाता है। (BG-Ch-2, V-58)http://vnita40.blogspot.com/2022/08/19-yoga-for-knee-pain-how-yogasana.htmlगलातियनस (Galatians) 5:24 के अनुसार: "वे सभी जो ईसा मसीह (ईश्वर/God) के हैं, उनसे सच्चा प्रेम करते हैं उन्होंने अपने निम्न स्वयं के साथ, अपने सभी जुनूनों और इच्छाओं को क्रूस पर चढ़ाया है।"गलातियनस 3:28 कहता है: "कोई यहूदी या ग्रीक नहीं है; कोई गुलाम या स्वतंत्र नहीं है; न ही कोई पुरुष या महिला है - क्योंकि सभी यीशु मसीह में एक है; वे सभी एक परमात्मा का (समानुरूप से) अभिन्न अंश हैं।”बाइबल के 11:24 में सेंट ल्यूक ने बड़ी ख़ूबसूरती से कहा है: "जब कोई (संस्कारों के आवरणों से ढकी) अशुद्ध प्यासी आत्मा मन के ज़रिए शान्ति व सुकून की तलाश में बाहर झांकती है तो उसे भौतिक जगत में कहीं भी दिव्यता का पवित्र जल नहीं मिलता, उसे जलरहित देशों से गुजरना पढ़ता है; वह चिरस्थायी आराम करने के लिए जगह तलाशती रहती है, और जब उसे कहीं भी शान्ति, सूकून व आराम नहीं मिलता है तो आखिरकार वह निर्णय लेती है कि मैं अपने घर वापस जाउगी जहां से मैं आयी हूँ।”इफिसियों (Ephesians) 4: 22-24 में कहा गया है कि: “हमें अपने पुराने स्व को (अर्थात अपनी पुरानी सोच व पूर्वाग्रहों को, पुरानी आदतों, पसन्द-नापसंदों आदि को) सदा अलग रखना चाहिये, क्योंकि वह हमारे पुराने (पिछले जन्मों के) तरीकों से संबंधित है और वह पुरानी भ्रामक इच्छाओं व धारणाओं का पालन करके भ्रष्ट हो चुकी है। तथा वह केवल हमारे मन का आत्मा पर ध्यान व लगाव करने से नवीनीकृत होती हैं; केवल तभी मनुष्य अपने (निम्न) स्वयं को परिवर्तित कर पुनः (उच्च) दिव्य मानव में ढाल सकता है। — मानव की वह उच्चतम दिव्य अवस्था जो परमेश्वर के दिव्य सनातनी सिद्धांतों पर, सत्य की पवित्रता व सार्वभौमिक न्याय पर अवधारित होती है।”श्री आदि शंकराचार्य जी ने आत्मबोध में बताया है कि ऐसी प्रतिदिन की अभ्यासवाली यह वासना कि मैं ब्रह्म ही हूँ अज्ञान के विक्षेपों को दूर करती है जैसे रसायन रोगों को ॥37॥ एकान्त स्थान में आसन पर बैठ वैराग्यवान् व जितेन्द्रिय हो एकाग्रचित्त कर उस अनन्त अद्वितीय परमात्मा का ध्यान करे ॥38॥वे आगे लिखते हैं कि: सुन्दर बुद्धिवाला ज्ञानी पुरुष अंतर्दृष्टि वाली बुद्धि से सब देखते हुए संसार को आत्मा में ही लीन करके सदा निर्मल आकाश की तरह एक परमात्मा का ही ध्यान करता है ॥39॥ आत्मज्ञानी पुरुष सब नामवर्ण (self-identity) आदि छोड़के पूरे चैतन्यानन्द रूप से रहता है ॥40॥श्री आदि शंकराचार्य जी कहते हैं कि: ज्ञानी व्यक्ति बाहर के झूठे सुखों का लगाव छोड़ आत्मसुख से युक्त अपने अंतस में ही घड़े में रक्खे दीपक की तरह साफ प्रकाशता है ॥51॥ सब कुछ जानता हुआ भी योगी पुरूष अज्ञानी की तरह रहता है और बिना लगाव के वायु की तरह आचरण करता है ॥52॥ईश्वरीय मनन में रहने वाला ज्ञानी व योगी उपाधियों से अलगाव बनाये रख कर भगवान् में पूरी रीति से लीन होता है जैसे जल में जल प्रकाश में प्रकाश और अग्नि में अग्नि ॥53॥ जिस आत्म लाभ से अधिक दूसरा लाभ नहीं जिस सुख से अधिक दूसरा सुख नहीं जिस ज्ञान से अधिक दूसरा ज्ञान नहीं वही ब्रह्मा है ऐसा विचार अपने मन व हृदय में बनाये रखता है ॥54॥अंत में श्री आदि शंकराचार्य जी कहते हैं कि: आत्मा ज्ञानरूपी सूर्य है। आकाशरूपी हृदय में उदय हो अन्धकाररूपी अज्ञान को दूर कर सबमें व्याप्त होकर सबको धारण करते व सबको प्रकाशित करते सुशोभित होता है ॥67॥जो विचार त्यागी पुरूष स्थान समय आदि को बिना देखे शीत उष्ण आदि के दूर करनेवाले सबमें रहने वाले माया रहित नित्य आनन्दरूप अपने आत्मतीर्थ को सेवन करता है वह सबकुछ जाननेवाला, सबमें रहता हुआ मुक्त होता है ॥68॥निष्कर्ष रूप में ज्ञान को शाब्दिक रूप में व्यक्त करना कठिन है चूँकि ज्ञान अनुभव से प्राप्त होता है अतः उसका व्यवहारिक रूप से ही प्रकटीकरण हो सकता है।अतः ज्ञान का अर्थ हुआ: मन, इन्द्रियों और शरीर द्वारा होनेवाले सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन के अभिमान से रहित होना।तथा सर्वव्यापी सच्चिदानन्दन परमात्मा के स्वरूप में एकीभाव से नित्य स्थित रहते हुए एक सच्चिदानन्दन वासुदेव (पूर्ण परमात्मा) के सिवाय हृदय व मन में अन्य किसी के भी होनेपन का भाव न रहना।तथा श्रद्धा व भक्तिपूर्वक मन, वाणी और शरीर सब प्रकार से ईश्वर के शरण होकर; गृहस्थाश्रम में ही रहते हुए, निम्नलिखित तरीक़े से प्रेमपूर्वक निरन्तर पूर्ण परमात्मा का “सतत स्मरण” करना तथा उनके दिव्य गुणों और दिव्य स्वरूप को प्रभावसहित अपने आचरण में उतारना। ⤵️http://vnitak.blogspot.com/2022/08/check-this-post-from.htmlईश्वर करे आपका जीवन दिव्य प्रेम, ज्ञान, शान्ति व परमानन्द से भर जाये! आमीन! आमीन! आमीन!

ज्ञान क्या है? By वनिता कासनियां पंजाब वेद, उपनिषद, गीता, श्री आदि शंकराचार्य जी, प्रभु श्री रामकृष्ण परमहंस जी, गुरू नानक देव जी, संत कबीरदास जी, प्रभु जीसस क्राइस्, प्रभु   गौतमबुद्ध जी व सम्पूर्ण विश्व के  धर्मों का सार  यही कहता हैं कि  ज्ञानी  व्यक्ति या  स्थितप्रज्ञा  की अवस्था वाले व्यक्ति में यह सभी  सूक्ष्म लक्षण  होते हैं: ⤵️ कर्तव्य निभाने   से सम्बंधित लक्षण: प्रतिदिन जितना सम्भव हो सके परमात्मा के प्रति ध्यान-उपासना का निरन्तर एकान्त में भक्ति व प्रेमपूर्वक अभ्यास गृहस्थ जीवन व जीविका अर्जित के सभी कार्यों को सदैव पूर्ण ब्रह्मा की प्रेमभरी सतत याद में डूबे रह कर (जितना सम्भव हो सके) एकान्त में, सेवा भाव में तत्पर रहते हुए निभाना सदा सत्य बोलने का साहस होना समस्त प्राणियों में पूर्ण परमात्मा श्रीकृष्ण को वर्तमान जानना और सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति अद्रोह का भाव रखना। [ईशवर की भक्ति व प्रेम से हृदय (आत्मा) पर लगातार ध्यान साधना से समस्त प्राणियों के प्रति स्वतः ही मन में संवेदना, दया व करूणा उत्पन्न हो जाती है।] स...

🕉हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है🕉🙏By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबप्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था.आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था. "सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू"हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है,प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा भक्त,राम नाम का जप करने वाला हूँ.भगवान बोले कैसे ? हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है. आपको पता है जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया."जौ मोरे मन बच अरू काया,प्रीति राम पद कमल अमाया"तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला,जौ मो पर रघुपति अनुकूला सुनत बचन उठि बैठ कपीसा,कहि जय जयति कोसलाधीसा"यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित हो जाए. यह वचन सुनते हुई मै श्री राम, जय राम, जय-जय राम कहता हुआ उठ बैठा. मै नाम तो लेता हूँ पर भरोसा भरत जी जैसा नहीं किया, वरना मै संजीवनी लेने क्यों जाता,बस ऐसा ही हम करते है हम नाम तो भगवान का लेते है पर भरोसा नही करते, बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, बेटे ने नहीं की तो क्या होगा?उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है वे है न, पर हम भरोसा नहीं करते. बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है.2.🕉 - दूसरी बात प्रभु! बाण लगते ही मै गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मै अभिमान कर रहा था कि मै उठाये हुए हूँ. मेरा दूसरा अभिमान टूट गया, इसी तरह हम भी यही सोच लेते है कि गृहस्थी के बोझ को मै उठाये हुए हूँ,3.🕉 - फिर हनुमान जी कहते है -और एक बात प्रभु ! आपके तरकस में भी ऐसा बाण नहीं है जैसे बाण भरत जी के पास है. आपने सुबाहु मारीच को बाण से बहुत दूर गिरा दिया, आपका बाण तो आपसे दूर गिरा देता है, पर भरत जी का बाण तो आपके चरणों में ला देता है. मुझे बाण पर बैठाकर आपके पास भेज दिया.भगवान बोले - हनुमान जब मैंने ताडका को मारा और भी राक्षसों को मारा तो वे सब मरकर मुक्त होकर मेरे ही पास तो आये, इस पर हनुमान जी बोले प्रभु आपका बाण तो मारने के बाद सबको आपके पास लाता है पर भरत जी का बाण तो जिन्दा ही भगवान के पास ले आता है. भरत जी संत है और संत का बाण क्या है? संत का बाण है उसकी वाणी लेकिन हम करते क्या है, हम संत वाणी को समझते तो है पर सटकते नहीं है, और औषधि सटकने पर ही फायदा करती है.4.🕉 - हनुमान जी को भरत जी ने पर्वत सहित अपने बाण पर बैठाया तो उस समय हनुमान जी को थोडा अभिमान हो गया कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा ? परन्तु जब उन्होंने रामचंद्र जी के प्रभाव पर विचार किया तो वे भरत जी के चरणों की वंदना करके चले है.इसी तरह हम भी कभी-कभी संतो पर संदेह करते है, कि ये हमें कैसे भगवान तक पहुँचा देगे, संत ही तो है जो हमें सोते से जगाते है जैसे हनुमान जी को जगाया, क्योकि उनका मन,वचन,कर्म सब भगवान में लगा है. आप उन पर भरोसा तो करो, तुम्हे तुम्हारे बोझ सहित भगवान के चरणों तक पहुँचा देगे !#बाल_वनिता_महिला_आश्रम🕉जय जय श्री सीता राम🕉🙏

🕉हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है🕉🙏 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था. आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था.   "सुमिरि पवनसुत पावन नामू।    अपने बस करि राखे रामू" हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है, प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा भक्त,राम नाम का जप करने वाला हूँ. भगवान बोले कैसे ?  हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है.    आपको पता है जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया. "जौ मोरे मन बच अरू काया, प्रीति राम पद कमल अमाया" तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला, जौ मो पर रघुपति अनुकूला  सुनत बचन उठि बैठ कपीसा, कहि जय जयति कोसलाधीसा" यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यदि रघुनाथ जी मुझ प...

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक है तथा श्रीरामचंद्रजीकी प्रसन्नताके लिए राम रक्षा स्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ अथ ध्यानम्‌ ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥ वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥ अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारोंसे विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान करें । ॥ इति ध्यानम्‌ ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥ अर्थ : श्री रघुनाथजीका चरित्र सौ कोटि विस्तारवाला हैं ।उसका एक-एक अक्षर महापातकोंको नष्ट करनेवाला है । ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ । जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥ अर्थ : नीले कमलके श्याम वर्णवाले, कमलनेत्रवाले , जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्रीरामका स्मरण कर, सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥ अर्थ : जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथोंमें खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसोंके संहार तथा अपनी लीलाओंसे जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीरामका स्मरण कर, रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥ अर्थ : मैं सर्वकामप्रद और पापोंको नष्ट करनेवाले राम रक्षा स्तोत्रका पाठ करता हूं । राघव मेरे सिरकी और दशरथके पुत्र मेरे ललाटकी रक्षा करें । कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥ अर्थ : कौशल्या नंदन मेरे नेत्रोंकी, विश्वामित्रके प्रिय मेरे कानोंकी, यज्ञरक्षक मेरे घ्राणकी और सुमित्राके वत्सल मेरे मुखकी रक्षा करें । जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥ अर्थ : विद्यानिधि मेरी जिह्वाकी रक्षा करें, कंठकी भरत-वंदित, कंधोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी महादेवजीका धनुष तोडनेवाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें । करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥ अर्थ : मेरे हाथोंकी सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदयकी जमदग्नि ऋषिके पुत्रको (परशुराम) जीतनेवाले, मध्य भागकी खरके (नामक राक्षस) वधकर्ता और नाभिकी जांबवानके आश्रयदाता रक्षा करें । सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥ अर्थ : मेरे कमरकी सुग्रीवके स्वामी, हडियोंकी हनुमानके प्रभु और रानोंकी राक्षस कुलका विनाश करनेवाले रघुकुलश्रेष्ठ रक्षा करें । जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥ अर्थ : मेरे जानुओंकी सेतुकृत, जंघाओकी दशानन वधकर्ता, चरणोंकी विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें । एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥ अर्थ : शुभ कार्य करनेवाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धाके साथ रामबलसे संयुक्त होकर इस स्तोत्रका पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं । पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥ अर्थ : जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाशमें विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेशमें घूमते रहते हैं , वे राम नामोंसे सुरक्षित मनुष्यको देख भी नहीं पाते । रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥ अर्थ : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामोंका स्मरण करनेवाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनोंको प्राप्त करता है । जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥ अर्थ : जो संसारपर विजय करनेवाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं । वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥ अर्थ : जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवचका स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञाका कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगलकी ही प्राप्ति होती हैं । आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥ अर्थ : भगवान् शंकरने स्वप्नमें इस रामरक्षा स्तोत्रका आदेश बुध कौशिक ऋषिको दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागनेपर उसे वैसा ही लिख दिया | आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥ अर्थ : जो कल्प वृक्षोंके बागके समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियोंको दूर करनेवाले हैं और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं । तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥ अर्थ : जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमलके (पुण्डरीक) समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियोंकी समान वस्त्र एवं काले मृगका चर्म धारण करते हैं । फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥ अर्थ : जो फल और कंदका आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथके पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें । शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥ अर्थ : ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियोंके शरणदाता, सभी धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ और राक्षसोंके कुलोंका समूल नाश करनेमें समर्थ हमारा रक्षण करें । आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥ अर्थ : संघान किए धनुष धारण किए, बाणका स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणोसे युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके लिए मेरे आगे चलें । संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥ अर्थ : हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथमें खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें । रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥ अर्थ : भगवानका कथन है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥ अर्थ : वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरुषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामोंका इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥ अर्थ : नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेवालेको निश्चित रूपसे अश्वमेध यज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त होता हैं । रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥ अर्थ : दूर्वादलके समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीरामकी उपरोक्त दिव्य नामोंसे स्तुति करनेवाला संसारचक्रमें नहीं पडता । रामं लक्ष्मणं पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥ अर्थ : लक्ष्मण जीके पूर्वज , सीताजीके पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणाके सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथके पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावणके शत्रु भगवान् रामकी मैं वंदना करता हूं। रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजीके स्वामीकी मैं वंदना करता हूं। श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥ अर्थ : हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरतके अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए । श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥ अर्थ : मैं एकाग्र मनसे श्रीरामचंद्रजीके चरणोंका स्मरण और वाणीसे गुणगान करता हूं, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धाके साथ भगवान् रामचन्द्रके चरणोंको प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणोंकी शरण लेता हूं | माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥ अर्थ : श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं ।इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवामें किसी दुसरेको नहीं जानता । दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥ अर्थ : जिनके दाईं और लक्ष्मणजी, बाईं और जानकीजी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथजीकी वंदना करता हूं । लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ । कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥ अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणाके भण्डार रुपी श्रीरामकी शरणमें हूं। मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥ अर्थ : जिनकी गति मनके समान और वेग वायुके समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूतकी शरण लेता हूं । कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥ अर्थ : मैं कवितामयी डालीपर बैठकर, मधुर अक्षरोंवाले ‘राम-राम’ के मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयलकी वंदना करता हूं । आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥ अर्थ : मैं इस संसारके प्रिय एवं सुन्दर , उन भगवान् रामको बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओंको दूर करनेवाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करनेवाले हैं । भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥ अर्थ : ‘राम-राम’ का जप करनेसे मनुष्यके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं । राम-रामकी गर्जनासे यमदूत सदा भयभीत रहते हैं । रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥ अर्थ : राजाओंमें श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजयको प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामका भजन करता हूं। सम्पूर्ण राक्षस सेनाका नाश करनेवाले श्रीरामको मैं नमस्कार करता हूं । श्रीरामके समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सलका दास हूं। मैं सद्सिव श्रीराममें ही लीन रहूं । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें । राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥ अर्थ : (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं । मैं सदा रामका स्तवन करता हूं और राम-नाममें ही रमण करता हूं । इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🌹, अर्थ : इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है । ॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

  ॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक है तथा श्रीरामचंद्रजीकी प्रसन्नताके लिए राम रक्षा स्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ अथ ध्यानम्‌ ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥ वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥ अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारोंसे विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान करें । ॥ इति ध्यानम्‌ ॥ चरितं रघुनाथस्य श...