In the "Ashoka Vatika", when Ravana was furious and ran to kill Sita Mata with a sword, Hanuman ji felt that by snatching his sword, its head should be cut off!But the very next moment, they saw
“ अशोक वाटिका" में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माता को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सर काट लेना चाहिये!
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा कि
"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !
यह देखकर पवनपुत्र गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता, तो क्या होता ?
परन्तु ये क्या हुआ? सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया!
तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!
आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!" तो ये सुनकर हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और ये त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा!
जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिए दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये ही प्रभु ने यह उपाय कर दिया है!
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा पर उसके पूंछ मे कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये, तो हनुमान जी सोचने लगे कि त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता? पर वह प्रबन्ध भी प्रभु ने स्वयं रावण से ही करा दिया! प्रभु जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !
इसलिये सदैव याद रखें कि संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है!
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं!
इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि...
मै न होता, तो क्या होता ?
बल्कि ऐसा सोचे
ना मैं श्रेष्ठ हूँ,
ना ही मैं ख़ास_हूँ,
मैं तो बस छोटा सा,
भगवान का दास हूँ॥
जय श्री राम
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