Jam kubera digpal jahan te. Where can I say Kobid? (15) Meaning: Yamraj, Kubera, etc., protectors of all directions, poets, scholars, pundits, or no one can fully describe your fame. Tulsidas ji writes that
जम कुबेर दिगपाल जहां ते । कबि कोबिद कहि सके कहां ते
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब।। (15) अर्थ : यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान, पंडित, या कोई भी आपके यशको पूरी तरह वर्णन नहीं कर सकते। तुलसीदासजी लिखते है कि स्वयं धर्मात्मा यमराज, कुबेर, सभी दिक्पाल, पंडित कवि ये सभी हनुमानजी के गुणोंका तथा निर्मल यश का गुणगान करते हैं । इन सभी को हनुमत चरित्र सुंदर, आकर्षक, दिव्य एवं भव्य लगा तथा उन्होने हनुमानजी में अनन्त गुण देखे इसीलिए वे कहते हैं कि हम भी हनुमानजी के गुणोंका पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकते । तुलसीदासजी ने जो लिखा है ‘यम कुबेर दिगपाल जहांते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते’ उसके पीछे अभिप्राय यह है कि स्वयं धर्मराज ने हनुमानजी में अनन्त गुणोंको देखा उनकी श्रेष्ठ भक्ति को देखकर ही वे कहते हैं कि हनुमानजी की भक्ति सर्वश्रेष्ठ हैं । तथा हम भी उनके गुणों का वर्णन ठीक तरह से नहीं कर सकते । भागवत का कहना है कि जो भगवान को परिपूर्ण मानता है वही श्रेष्ठ है यह श्रेष्ठता का प्रथम लक्षण है । भगवान के उपर पूर्ण विश्वास होने पर मानव मन में ऐसा गर्व होता है कि जिसके साथ सम्बन्ध होना हो तो होगा, टूटना हो तो टूटेगा, मैं तो अपने मार्ग पर चलता ही रहूँगा । इससे भीति चली जाती है और मानव जीवन-विकास के मार्गपर अग्रसर होता चला जाता है । हमको यदि हनुमानजी की उपासना करनी है तो हमको हमारे जीवन में उनके अनंत गुणों में से एकाध गुण तो जीवन में लाने का प्रामाणिक प्रयत्न करना चाहिए । तथा हनुमानजी की तरह ज्ञान-भक्ति और कर्म का समन्वय जीवन में साधना होगा तो ही हम उनकी तरह प्रभु प्रिय बन सकेंगे तथा सच्चे अर्थ में हम हनुमानजी के उपासक हैं ऐसा कहा जाएगा । संतो के जीवन में ज्ञान, भक्ति और कर्मयोग की त्रिवेणी होती है, इसीलिए उनके श्वासोच्छवास् भी पवित्र? हैं । हम संतो को महान मानते हैं । हनुमानजी के जीवन में यह सब बातें देखने को मिलती है इसीलिए तुलसीदास लिखते है कि हनुमानजी के चरित्र को देखकर यम, कुबेर, दिक्पाल, विद्वान कोई भी उनके गुणों का पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकता । ऐसी योग्यता हनुमानजी ने स्वयं अपने कतृर्त्व से निर्माण की है । हमे भी यदि हनुमानजी की तरह प्रभु के प्रिय तथा श्रेष्ठ बनना हों तो जीवन में ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय लाना होगा। सचमुच सृष्टि में आकर जो लोग सृष्टि की शोभा रुप बन गये हैं वे ही सच्चे भक्त है, मानव है । बाकी हम सब तो ऐन्द्रिय सुख के पीछे दौडने वाले पशु ही हैं। प्रभु! हमको यह तो पता चल गया है कि हम पशु है । पर तू पशुपति है । हम हनुमानजी से प्रार्थना करेंगे कि हे प्रभो हमें सद्बुद्धि प्रदान करो तथा आपकी तरह भक्ति की लालसा हममें निर्माण हो। तथा हमे पशु से मानव तथा मानव से महामानव बना । हमको भी भगवान को प्रिय लगे ऐसा जीवन जीना है उसके लिए शक्ति प्रदान कीिजए ।
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