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Sunder Kand - sunder kandBy social worker Vanita Kasani PunjabSrijankivallabho VijayateShri Ramcharit Manas—-Pancham SopanSundarkandShlokaPeace eternalBrahmashambhuf

सुन्दर काण्ड – sunder kand 

By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

 श्रीजानकीवल्लभो विजयते

श्रीरामचरितमानस

—-

पञ्चम सोपान

सुन्दरकाण्ड

श्लोक

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं

ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् ।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं

वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।।

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।।

जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।।

तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।।

जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।।

यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।।

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।

बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।।

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।।

जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।।

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी।।

दो0- हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।।1।।

-Sunder Kand path in Hindi-

Images of Lord Hanuman important at the time of chanting

जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।।

सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।।

आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।।

राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।।

तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।।

कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।।

जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।

सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।।

सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।

बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।।

मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।

दो0-राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।

आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।2।।

-Sunder Kand path in Hindi-

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।।

जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।।

गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।।

सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा।।

ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।।

तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा।।

नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।।

सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें।।

उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।।

गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।।

अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।।

छं=कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।

चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।।

गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै।।

बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै।।1।।

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।

नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं।।

कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।

नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं।।2।।

करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।

कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं।।

एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।

रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही।।3।।

दो0-पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।

अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार।।3।।

मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।।

नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।।

जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।।

मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।।

पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।।

जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।।

बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे।।

तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।।

दो0-तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।

तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।4।।

-Sunder Kand path in Hindi-

 

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।।

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।

गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।।

अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।।

गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।।

सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही।।

भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।।

दो0-रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।

नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ।।5।।

Sunder Kand path in Hindi

लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।।

मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।।

राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा।।

एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी।।

बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए।।

करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई।।

की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई।।

की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी।।

दो0-तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।

सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।।6।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी।।

तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा।।

तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं।।

अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।

जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।।

सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।।

कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।।

प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।

दो0-अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।

कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।7।।

-Sunder Kand path in Hindi-

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी।।

एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा।।

पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही।।

तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता।।

जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवनसुत बिदा कराई।।

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ।।

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा।।

कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी।।

दो0-निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।

परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।8।।

-Sunder Kand path in Hindi-

तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई।।

तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा।।

बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा।।

कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।।

तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा।।

तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।।

सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा।।

अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।।

सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही।।

दो0- आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।

परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन।।9।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना।।

नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी।।

स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर।।

सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा।।

चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं।।

सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा।।

सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा।।

कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई।।

मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना।।

दो0-भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।

सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद।।10।।

त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका।।

सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना।।

सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।।

खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।

एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई।।

नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।।

यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी।।

तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं।।

दो0-जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।

मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच।।11।।

त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी।।

तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई।।

आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।।

सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।।

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।।

निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।।

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला।।

देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा।।

पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी।।

सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका।।

नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना।।

देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता।।

सो0-कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब।

जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ।।12।।

तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।।

चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।।

जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।।

सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।

रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई।।

श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई।।

तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ।।

राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।।

यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।।

नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें।।

दो0-कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।।

जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास।।13।।

-Sunder Kand path in Hindi-

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।

बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना।।

अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी।।

कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई।।

सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक।।

कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता।।

बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी।।

देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता।।

मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।।

जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना।।

दो0-रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।

अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर।।14।।

*–*–

कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता।।

नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू।।

कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा।।

जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।।

कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई।।

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा।।

सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं।।

प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही।।

कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता।।

उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई।।

दो0-निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।

जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु।।15।।

-Sunder Kand path in Hindi-

जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई।।

रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की।।

अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई।।

कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।।

हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना।।

मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा।।

कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा।।

सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ।।

दो0-सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।

प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।।16।।

-Sunder Kand path in Hindi-

मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी।।

आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना।।

अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।।

करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।।

बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा।।

अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता।।

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा।।

सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी।।

तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।।

दो0-देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।

रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु।।17।।

-Sunder Kand path in Hindi-

चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा।।

रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे।।

नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी।।

खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे।।

सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।।

सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे।।

पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा।।

आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा।।

दो0-कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।

कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।18।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।।

मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।।

चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।।

कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा।।

अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।।

रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा।।

तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा।

मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई।।

उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया।।

दो0-ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।

जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।।19।।

-Sunder Kand path in Hindi-

ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा।।

तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ।।

जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।।

तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा।।

कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए।।

दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई।।

कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता।।

देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका।।

दो0-कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।

सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद।।20।।

 कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा।।

की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही।।

मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा।।

सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया।।

जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा।

जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन।।

धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता।

हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा।।

खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली।।

दो0-जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।

तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।।21।।

-Sunder Kand path in Hindi-

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।।

समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा।।

खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।।

सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी।।

जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे।।

मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा।।

बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।

देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।।

जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई।।

तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै।।

दो0-प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।

गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।।22।।

*–*–

राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू।।

रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका।।

राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।

बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी।।

राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई।।

सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं।।

सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।।

संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही।।

दो0-मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।

भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।।23।।

 

जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी।।

बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी।।

मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही।।

उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना।।

सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना।।

सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए।

नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता।।

आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई।।

सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।।

दो–कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।

तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ।।24।।

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।।

जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँûमैं तिन्ह कै प्रभुताई।।

बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना।।

जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।।

रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला।।

कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी।।

बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी।।

पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता।।

निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं।।

दो0-हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।

अट्टहास करि गर्जéा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।

-Sunder Kand path in Hindi-

देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई।।

जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।।

तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा।।

हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई।।

साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा।।

जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं।।

ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा।।

उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी।।

दो0-पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।

जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि।।26।।

*–*–

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा।।

चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ।।

कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।

तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु।।

मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा।।

कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना।।

तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती।।

दो0-जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।

चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह।।27।।

 

 चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी।।

नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा।।

हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना।।

मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा।।

मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी।।

चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा।।

तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए।।

रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे।।

दो0-जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।

सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज।।28।।

-Sunder Kand path in Hindi-

जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई।।

एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा।।

आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा।।

पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी।।

नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना।।

सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ।

राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा।।

फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई।।

दो0-प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज।

पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज।।29।।

-Sunder Kand path in Hindi-

जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया।।

ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर।।

सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रेलोक उजागर।।

प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू।।

नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी।।

पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।।

सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए।।

कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की।।

दो0-नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।30।।

*–*–

चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही।।

नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी।।

अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना।।

मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।।

अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना।।

नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा।।

बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा।।

नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी।

सीता के अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला।।

दो0-निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।

बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति।।31।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना।।

बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।

कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई।।

केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।।

सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।।

प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।।

सुनु सुत उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।।

पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता।।

दो0-सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।

चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत।।32।।

*–*–

बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा।।

प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।।

सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर।।

कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा।।

कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।।

प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना।।

साखामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई।।

नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा।

सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।।

दो0- ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल।

तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल।।33।।

-Sunder Kand path in Hindi-

नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी।।

सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी।।

उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना।।

यह संवाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा।।

सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा।।

तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा।।

अब बिलंबु केहि कारन कीजे। तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे।।

कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी।।

दो0-कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।

नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ।।34।।

-Sunder Kand path in Hindi-

प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गरजहिं भालु महाबल कीसा।।

देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना।।

राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा।।

हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना।।

जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती।।

प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं।।

जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई।।

चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहि बानर भालु अपारा।।

नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी।।

केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं।।

छं0-चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे।

मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किन्नर दुख टरे।।

कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं।

जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं।।1।।

सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई।

गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ट कठोर सो किमि सोहई।।

रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी।

जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी।।2।।

दो0-एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।

जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर।।35।।

-Sunder Kand path in Hindi-

उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब ते जारि गयउ कपि लंका।।

निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।।

जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई।।

दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।।

रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी।।

कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहु।।

समुझत जासु दूत कइ करनी। स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी।।

तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।।

तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।।

सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।

दो0–राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।

जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।।36।।

*–*–

श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।।

सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।।

जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।।

कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।।

अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।।

मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।।

बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।।

बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।।

जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माही।।

दो0-सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।।37।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सोइ रावन कहुँ बनि सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई।।

अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा।।

पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन।।

जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरुप कहउँ हित ताता।।

जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना।।

सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाई।।

चौदह भुवन एक पति होई। भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई।।

गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ।।

दो0- काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत।।38।।

*Sundar Kand–*–

तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला।।

ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता।।

गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी।।

जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता।।

ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा।।

देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही।।

सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा।।

जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन।।

दो0-बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।

परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस।।39(क)।।

मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।

तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात।।39(ख)।।

 

-Sunder Kand path in Hindi-

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माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना।।

तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन।।

रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ।।

माल्यवंत गृह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी।।

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।।

जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना।।

तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।।

कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।

दो0-तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।

सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार।।40।।

-Sunder Kand path in Hindi-

बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी।।

सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहि निकट मुत्यु अब आई।।

जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा।।

कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाही।।

मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती।।

अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा।।

उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई।।

तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा।।

सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ।।

दो0=रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।

मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि।।41।।

 

-Sunder Kand path in Hindi-

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अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयूहीन भए सब तबहीं।।

साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी।।

रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा।।

चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं।।

देखिहउँ जाइ चरन जलजाता। अरुन मृदुल सेवक सुखदाता।।

जे पद परसि तरी रिषिनारी। दंडक कानन पावनकारी।।

जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए।।

हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मै देखिहउँ तेई।।

दो0= जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।

ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ।।42।।

-Sunder Kand path in Hindi-

एहि बिधि करत सप्रेम बिचारा। आयउ सपदि सिंधु एहिं पारा।।

कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा।।

ताहि राखि कपीस पहिं आए। समाचार सब ताहि सुनाए।।

कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई।।

कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा।।

जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया।।

भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा।।

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी।।

सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना।।

दो0=सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।

ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि।।43।।

 -Sunder Kand path in Hindi-

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कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।

पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ।।

जौं पै दुष्टहदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई।।

निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा।।

जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते।।

जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई।।

दो0=उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।

जय कृपाल कहि चले अंगद हनू समेत।।44।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर।।

दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता।।

बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी।।

भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन।।

सिंघ कंध आयत उर सोहा। आनन अमित मदन मन मोहा।।

नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता।।

नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता।।

सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा।।

दो0-श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।

त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर।।45।।

-Sunder Kand path in Hindi-

अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा।।

दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा।।

अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भयहारी।।

कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा।।

खल मंडलीं बसहु दिनु राती। सखा धरम निबहइ केहि भाँती।।

मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती।।

बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता।।

अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्ह जानि जन दाया।।

दो0-तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।

जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम।।46।।

-Sunder Kand path in Hindi-

तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना।।

जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा।।

ममता तरुन तमी अँधिआरी। राग द्वेष उलूक सुखकारी।।

तब लगि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं।।

अब मैं कुसल मिटे भय भारे। देखि राम पद कमल तुम्हारे।।

तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला।।

मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ।।

जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा।।

दो0–अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज।

देखेउँ नयन बिरंचि सिब सेब्य जुगल पद कंज।।47।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ।।

जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवे सभय सरन तकि मोही।।

तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना।।

जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।।

सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।।

समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं।।

अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें।।

तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें।।

दो0- सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।

ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।।48।।

 

-Sunder Kand path in Hindi-

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सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें।।

राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा।।

सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी।।

पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा।।

सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी।।

उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही।।

अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी।।

एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा।।

जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं।।

अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।

दो0-रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।

जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड।।49(क)।।

जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।

सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ।।49(ख)।।

-Sunder Kand path in Hindi-

अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना।।

निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा।।

पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी।।

बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक।।

सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा।।

संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँती।।

कह लंकेस सुनहु रघुनायक। कोटि सिंधु सोषक तव सायक।।

जद्यपि तदपि नीति असि गाई। बिनय करिअ सागर सन जाई।।

दो0-प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि।

बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि।।50।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सखा कही तुम्ह नीकि उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई।।

मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा।।

नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा।।

कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा।।

सुनत बिहसि बोले रघुबीरा। ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा।।

अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई।।

प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई। बैठे पुनि तट दर्भ डसाई।।

जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए। पाछें रावन दूत पठाए।।

दो0-सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।

प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह।।51।।

-Sunder Kand path in Hindi-

प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ। अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ।।

रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने। सकल बाँधि कपीस पहिं आने।।

कह सुग्रीव सुनहु सब बानर। अंग भंग करि पठवहु निसिचर।।

सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए।।

बहु प्रकार मारन कपि लागे। दीन पुकारत तदपि न त्यागे।।

जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना।।

सुनि लछिमन सब निकट बोलाए। दया लागि हँसि तुरत छोडाए।।

रावन कर दीजहु यह पाती। लछिमन बचन बाचु कुलघाती।।

दो0-कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।

सीता देइ मिलेहु न त आवा काल तुम्हार।।52।।

-Sunder Kand path in Hindi-

तुरत नाइ लछिमन पद माथा। चले दूत बरनत गुन गाथा।।

कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस तिन्ह नाए।।

बिहसि दसानन पूँछी बाता। कहसि न सुक आपनि कुसलाता।।

पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी। जाहि मृत्यु आई अति नेरी।।

करत राज लंका सठ त्यागी। होइहि जब कर कीट अभागी।।

पुनि कहु भालु कीस कटकाई। कठिन काल प्रेरित चलि आई।।

जिन्ह के जीवन कर रखवारा। भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा।।

कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी। जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी।।

दो0–की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।

कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर।।53।।

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-Sunder Kand path in Hindi-

 

नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें। मानहु कहा क्रोध तजि तैसें।।

मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा। जातहिं राम तिलक तेहि सारा।।

रावन दूत हमहि सुनि काना। कपिन्ह बाँधि दीन्हे दुख नाना।।

श्रवन नासिका काटै लागे। राम सपथ दीन्हे हम त्यागे।।

पूँछिहु नाथ राम कटकाई। बदन कोटि सत बरनि न जाई।।

नाना बरन भालु कपि धारी। बिकटानन बिसाल भयकारी।।

जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा। सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा।।

अमित नाम भट कठिन कराला। अमित नाग बल बिपुल बिसाला।।

दो0-द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।

दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि।।54।।

-Sunder Kand path in Hindi-

ए कपि सब सुग्रीव समाना। इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना।।

राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं। तृन समान त्रेलोकहि गनहीं।।

अस मैं सुना श्रवन दसकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर।।

नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं। जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं।।

परम क्रोध मीजहिं सब हाथा। आयसु पै न देहिं रघुनाथा।।

सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला। पूरहीं न त भरि कुधर बिसाला।।

मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा। ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा।।

गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका। मानहु ग्रसन चहत हहिं लंका।।

दो0–सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम।

रावन काल कोटि कहु जीति सकहिं संग्राम।।55।।

-Sunder Kand path in Hindi-

राम तेज बल बुधि बिपुलाई।
तब भ्रातहि पूँछेउ नय नागर।।

तासु बचन सुनि सागर पाहीं।
मागत पंथ कृपा मन माहीं।।

सुनत बचन बिहसा दससीसा।
जौं असि मति सहाय कृत कीसा।।

सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई।
सागर सन ठानी मचलाई।।

मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई।
रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई।।

सचिव सभीत बिभीषन जाकें।
बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें।।

सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी।
समय बिचारि पत्रिका काढ़ी।।

रामानुज दीन्ही यह पाती।
नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती।।

बिहसि बाम कर लीन्ही रावन।
सचिव बोलि सठ लाग बचावन।।

दो0–बातन्ह मनहि रिझाइ सठ
जनि घालसि कुल खीस।

राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु
अज ईस।।56(क)।।

की तजि मान अनुज इव प्रभु
पद पंकज भृंग।

होहि कि राम सरानल खल कुल
सहित पतंग।।56(ख)।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सुनत सभय मन मुख मुसुकाई।
कहत दसानन सबहि सुनाई।।

भूमि परा कर गहत अकासा।
लघु तापस कर बाग बिलासा।।

कह सुक नाथ सत्य सब बानी।
समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी।।

सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा।
नाथ राम सन तजहु बिरोधा।।

अति कोमल रघुबीर सुभाऊ।
जद्यपि अखिल लोक कर राऊ।।

मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु
करिही। उर अपराध न एकउ धरिही।।

जनकसुता रघुनाथहि दीजे।
एतना कहा मोर प्रभु कीजे।

जब तेहिं कहा देन बैदेही।
चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही।।

नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ।
कृपासिंधु रघुनायक जहाँ।।

करि प्रनामु निज कथा सुनाई।
राम कृपाँ आपनि गति पाई।।

रिषि अगस्ति कीं साप भवानी।
राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी।।

बंदि राम पद बारहिं बारा।
मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा।।

दो0-बिनय न मानत जलधि जड़
गए तीन दिन बीति।

बोले राम सकोप तब भय बिनु
होइ न प्रीति।।57।।

-Sunder Kand path in Hindi-

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं
बारिधि बिसिख कृसानू।।

सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती।
सहज कृपन सन सुंदर नीती।।

ममता रत सन ग्यान कहानी।
अति लोभी सन बिरति बखानी।।

क्रोधिहि सम कामिहि हरि
कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा।।

अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा।
यह मत लछिमन के मन भावा।।

संघानेउ प्रभु बिसिख कराला।
उठी उदधि उर अंतर ज्वाला।।

मकर उरग झष गन अकुलाने।
जरत जंतु जलनिधि जब जाने।।

कनक थार भरि मनि गन नाना।
बिप्र रूप आयउ तजि माना।।

दो0-काटेहिं पइ कदरी फरइ
कोटि जतन कोउ सींच।

बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं
पइ नव नीच।।58।।

-Sunder Kand path in Hindi-

सभय सिंधु गहि पद प्रभु
केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे।।

गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह
कइ नाथ सहज जड़ करनी।।

तव प्रेरित मायाँ उपजाए।
सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए।।

प्रभु आयसु जेहि कहँ जस
अहई। सो तेहि भाँति रहे सुख लहई।।

प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख
दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।।

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।

प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई।
उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई।।

प्रभु अग्या अपेल श्रुति
गाई। करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई।।

दो0-सुनत बिनीत बचन अति
कह कृपाल मुसुकाइ।

जेहि बिधि उतरै कपि कटकु
तात सो कहहु उपाइ।।59।।

-Sunder Kand path in Hindi-

नाथ नील नल कपि द्वौ भाई।
लरिकाई रिषि आसिष पाई।।

तिन्ह के परस किएँ गिरि
भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे।।

मैं पुनि उर धरि प्रभुताई।
करिहउँ बल अनुमान सहाई।।

एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ।
जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ।।

एहि सर मम उत्तर तट बासी।
हतहु नाथ खल नर अघ रासी।।

सुनि कृपाल सागर मन पीरा।
तुरतहिं हरी राम रनधीरा।।

देखि राम बल पौरुष भारी।
हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी।।

सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा।
चरन बंदि पाथोधि सिधावा।।

छं0-निज भवन गवनेउ सिंधु
श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ।

यह चरित कलि मलहर जथामति
दास तुलसी गायऊ।।

सुख भवन संसय समन दवन बिषाद
रघुपति गुन गना।।

तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि
संतत सठ मना।।

दो0-सकल सुमंगल दायक रघुनायक
गुन गान।

image

सादर सुनहिं ते तरहिं भव
सिंधु बिना जलजान।।60।।

मासपारायण, चौबीसवाँ विश्राम

 -Sunder Kand path in Hindi-

-..-

इति श्रीमद्रामचरितमानसे
सकलकलिकलुषविध्वंसने

पञ्चमः सोपानः समाप्तः । 

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(सुन्दरकाण्ड समाप्त)

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सनातन हिन्दू धर्म की आचरण संहिता ।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबहिन्दू धर्म में आचरण के सख्त नियम हैं जिनका उसके अनुयायी को प्रतिदिन जीवन में पालन करना चाहिए। इस आचरण संहिता में मुख्यत: दस प्रतिबंध हैं और दस नियम हैं। यह सनातन हिन्दू धर्म का नैतिक अनुशासन है। इसका पालन करने वाला जीवन में हमेशा सुखी और शक्तिशाली बना रहता है।1. अहिंसा – स्वयं सहित किसी भी जीवित प्राणी को मन, वचन या कर्म से दुख या हानि नहीं पहुंचाना। जैसे हम स्वयं से प्रेम करते हैं, वैसे ही हमें दूसरों को भी प्रेम और आदर देना चाहिए।अहिंसा का लाभ. किसी के भी प्रति अहिंसा का भाव रखने से जहां सकारात्मक भाव के लिए आधार तैयार होता है वहीं प्रत्येक व्यक्ति ऐसे अहिंसकर व्यक्ति के प्रति भी अच्छा भाव रखने लगता है। सभी लोग आपके प्रति अच्छा भाव रखेंगे तो आपके जीवन में कअच्छा ही होगा।2. सत्य – मन, वचन और कर्म से सत्यनिष्ठ रहना, दिए हुए वचनों को निभाना, प्रियजनों से कोई गुप्त बात नहीं रखना।सत्य का लाभ. सदा सत्य बोलने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता कायम रहती है। सत्य बोलने से व्यक्ति को आत्मिक बल प्राप्त होता है जिससे आत्मविष्वास भी बढ़ता है।3. अस्तेय – चोरी नहीं करना। किसी भी विचार और वस्तु की चोरी नहीं करना ही अस्तेय है। चोरी उस अज्ञान का परिणाम है जिसके कारण हम यह मानने लगते हैं कि हमारे पास किसी वस्तु की कमी है या हम उसके योग्य नहीं हैं। किसी भी किमत पर दांव-पेच एवं अवैध तरीकों से स्वयं का लाभ न करें।अस्तेय का लाभ. आपका स्वभाव सिर्फ आपका स्वभाव है। व्यक्ति जितना मेहनती और मौलीक बनेगा उतना ही उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। इसी ईमानदारी से सभी को दिलों को ‍जीतकर आत्म संतुष्ट रहा जा सकता है। जरूरी है कि हम अपने अंदर के सौंदर्य और वैभव को जानें।4-ब्रह्मचर्य. ब्रह्मचर्य के दो अर्थ है- ईश्वर का ध्यान और यौन ऊर्जा का संरक्षण। ब्रह्मचर्य में रहकर व्यक्ति को विवाह से पहले अपनी पूरी शक्ति अध्ययन एवं प्रशिक्षण में लगाना चाहिए। पश्चात इसके दांपत्य के ढांचे के अंदर ही यौन क्रिया करना चाहिए। वह भी विशेष रातों में इससे दूर रहना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करने में काफी बातों का ध्यान रखा जाता है- जैसे योनिक वार्ता एवं मजाक, अश्लील चित्र एवं चलचित्र के देखने पर प्रतिबंध। स्त्री और पुरुष को आपस में बातचीत करते समय मर्यादित ढंग से पेश आना चाहिए। इसी से ब्रह्मचर्य कायम रहता है।ब्रह्मचर्य का लाभ. यौन ऊर्जा ही शरीर की शक्ति होती है। इस शक्ति का जितना संचय होता है व्यक्ति उतना शारीरिक और मानसिक रूप से शक्तिशाली और ऊर्जावान बना रहता है। जो व्यक्ति इस शक्ति को खो देता है वह मुरझाए हुए फूल के समान हो जाता है।5 क्षमा – यह जरूरी है कि हम दूसरों के प्रति धैर्य एवं करुणा से पेश आएं एवं उन्हें समझने की कोशिश करें। परिवार एवं बच्चों, पड़ोसी एवं सहकर्मियों के प्रति सहनशील रहें क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति परिस्थितिवश व्यवहार करता है।क्षमा का लाभ. परिवार, समाज और सहकर्मियों में आपके प्रति सम्मान बढ़ेगा। लोगों को आप समझने का समय देंगे तो लोग भी आपको समझने लगेंगे।6 धृति – स्थिरता, चरित्र की दृढ़ता एवं ताकत। जीवन में जो भी क्षेत्र हम चुनते हैं, उसमें उन्नति एवं विकास के लिए यह जरूरी है कि निरंतर कोशिश करते रहें एवं स्थिर रहें। जीवन में लक्ष्य होना जरूरी है तभी स्थिरता आती है। लक्ष्यहिन व्यक्ति जीवन खो देता है।धृति का लाभ. चरित्र की दृढ़ता से शरीर और मन में स्थिरता आती है। सभी तरह से दृढ़ व्यक्ति लक्ष्य को भेदने में सक्षम रहता है। इस स्थिरता से जीवन के सभी संकटों को दूर किया जा सकता है। यही सफलता का रहस्य है।7 दया – यह क्षमा का विस्त्रत रूप है। इसे करुणा भी कहा जाता है। जो लोग यह कहते हैं कि दया ही दुख का कारण है वे दया के अर्थ और महत्व को नहीं समझते। यह हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए एक बहुत आवश्यक गुण है।दया का लाभ. जिस व्यक्ति में सभी प्राणियों के प्रति दया भाव है वह स्वयं के प्रति भी दया से भरा हुआ है। इसी गुण से भगवान प्रसन्न होते हैं। यही गुण चरित्र से हमारे आस पास का माहौल अच्छा बनता है।8 आर्जव- दूसरों को नहीं छलना ही सरलता है। अपने प्रति एवं दूसरों के प्रति ईमानदारी से पेश आना।आजर्व का लाभ. छल और धोके से प्राप्त धन, पद या प्रतिष्ठा कुछ समय तक ही रहती है, लेकिन जब उस व्यक्ति का पतन होता है तब उसे बचाने वाला भी कोई नहीं रहता। स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति आदि से जीवन में संतोष और सुख की प्राप्ति होती है।9 मिताहार- भोजन का संयम ही मिताहार है। यह जरूरी है कि हम जीने के लिए खाएं न कि खाने के लिए जिएं। सभी तरह का व्यसन त्यागकर एक स्वच्छ भोजन का चयन कर नियत समय पर खाएं। स्वस्थ रहकर लंबी उम्र जीना चाहते हैं तो मिताहार को अपनाएं। होटलों एवं ऐसे स्थानों में जहां हम नहीं जानते कि खाना किसके द्वारा या कैसे बनाया गया है, वहां न खाएं।मिताहार का लाभ. आज के दौर में मिताहार की बहुत जरूरत है। अच्छा आहार हमारे शरीर को स्वस्थ बनाएं रखकर ऊर्जा और स्फूति भी बरकरार रखता है। अन्न ही अमृत है और यही जहर बन सकता है।10 शौच – आंतरिक एवं बाहरी पवित्रता और स्वच्छता। इसका अर्थ है कि हम अपने शरीर एवं उसके वातावरण को पूर्ण रूप से स्वच्छ रखें। हम मौखिक और मानसिक रूप से भी स्वच्छ रहें।शौच का लाभ. वातावरण, शरीर और मन की स्वच्छता एवं व्यवस्था का हमारे अंतर्मन पर सात्विक प्रभाव पड़ता है। स्वच्छता सकारात्मक और दिव्यता बढ़ती है। यह जीवन को सुंदर बनाने के लिए बहुत जरूरी है। सनातन हिन्दू धर्म के दस नियम।1 ह्री – पश्चात्ताप को ही ह्री कहते हैं। अपने बुरे कर्मों के प्रति पश्चाताप होना जरूरी है। यदि आपमें पश्चाताप की भावना नहीं है तो आप अपनी बुराइयों को बढ़ा रहे हैं। विनम्र रहना एवं अपने द्वारा की गई भूल एवं अनुपयुक्त व्यवहार के प्रति असहमति एवं शर्म जाहिर करना जरूरी है, इसका यह मतलब कतई नहीं की हम पश्चाताप के बोझ तले दबकर फ्रेस्ट्रेशन में चले जाएं।ह्री का लाभ पश्चाताप हमें अवसाद और तनाव से बचाता है तथा हममें फिर से नैतिक होने का बल पैदा करता है। मंदिर, माता-पिता या स्वयं के समक्ष खड़े होकर भूल को स्वीकारने से मन और शरीर हल्का हो जाता है।2 संतोष – प्रभु ने हमारे निमित्त जितना भी दिया है, उसमें संतोष रखना और कृतज्ञता से जीवन जीना ही संतोष है। जो आपके पास है उसका सदुपयोग करना और जो अपके पास नहीं है, उसका शोक नहीं करना ही संतोष है। अर्थात जो है उसी से संतुष्ट और सुखी रहकर उसका आनंद लेना।संतोष का लाभ. यदि आप दूसरों के पास जो है उसे देखर और उसके पाने की लालसा में रहेंगे तो सदा दुखी ही रहेगें बल्कि होना यह चाहिए कि हमारे पास जो है उसके होने का सुख कैसे मनाएं या उसका सदुपयोग कैसे करें यह सोचे इससे जीवन में सुख बढ़ेगा।3 दान – आपके पास जो भी है वह ईश्वर और इस कुदरत की देन है। यदि आप यह समझते हैं कि यह तो मेरे प्रयासों से हुआ है तो आपमें घमंड का संचार होगा। आपके पास जो भी है उसमें से कुछ हिस्सा सोच समझकर दान करें। ईश्वर की देन और परिश्रम के फल के हिस्से को व्यर्थ न जाने दें। इसे आप मंदिर, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं में दान कर सकते हैं या किसी गरीब के लिए दान करें।दान का लाभ. दान किसे करें और दान का महत्व क्या है यह जरूर जानें। दान पुण्य करने से मन की ग्रंथियां खुलती है और मन में संतोष, सुख और संतुलन का संचार होता है। मृत्युकाल में शरीर आसानी से छुट जाता है।4 आस्तिकता – वेदों में आस्था रखने वाले को आस्तिक कहते हैं। माता-पिता, गुरु और ईश्वर में निष्ठा एवं विश्वास रखना भी आस्तिकता है।आस्तिकता का लाभ. आस्तिकता से मन और मस्तिष्क में जहां समारात्मकता बढ़ती हैं वहीं हमारी हर तरह की मांग की पूर्ति भी होती है। अस्तित्व या ईश्वर से जो भी मांगा जाता है वह तुरंत ही मिलता है। अस्तित्व के प्रति आस्था रखना जरूरी है।5 ईश्वर प्रार्थना – बहुत से लोग पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन सनातन हिन्दू धर्म में ईश्वर या देवी-देवता के लिए संध्यावंदन करने का निर्देश है। संध्यावंदन में प्रार्थना, स्तुति या ध्यान किया जाता है वह भी प्रात: या शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद।ईश्वर की प्रार्थना का लाभ. पांच या सात मिनट आंख बंद कर ईश्वर या देवी देवता का ध्यान करने से व्यक्ति ईथर माध्यम से जुड़कर उक्त शक्ति से जुड़ जाता है। पांच या सात मिनट के बाद ही प्रार्थना का वक्त शुरू होता है। फिर यह आप पर निर्भर है कि कब तक आप उक्त शक्ति का ध्यान करते हैं। इस ध्यान या प्रार्थना से सांसार की सभी समस्याओं का हल मिल जाता है।6 सिद्धांत श्रवण- निरंतर वेद, उपनिषद या गीता का श्रवण करना। वेद का सार उपनिषद और उपनिषद का सार गीता है। मन एवं बुद्धि को पवित्र तथा समारात्मक बनाने के लिए साधु-संतों एवं ज्ञानीजनों की संगत में वेदों का अध्ययन एक शक्तिशाली माध्यम है।सिद्धांत श्रवणका लाभ. जिस तरह शरीर के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत होती है उसी तरह दिमाग के लिए समारात्मक बात, किताब और दृष्य की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक वातावरण से हमें यह सब हासिल होता है। यदि आप इसका महत्व नहीं जानते हैं तो आपके जीवन में हमेशा नकारात्मक ही होता रहता है।7 मति – हमारे धर्मग्रंथ और धर्म गुरुओं द्वारा सिखाई गई नित्य साधना का पालन करना। एक प्रामाणिक गुरु के मार्गदर्शन से पुरुषार्थ करके अपनी इच्छा शक्ति एवं बुद्धि को आध्यात्मिक बनाना।मति का लाभ संसार में रहें या संन्यास में निरंतर अच्छी बातों का अनुसरण करना जरूरी है तभी जीवन को सुंदर बनाकर शांति, सुख और समृद्धि से रहा जा सकता है। इसके सबसे पहले अपनी बुद्धि को पुरुषार्थ द्वारा आध्यात्मिक बनाना जरूरी है।8व्रत – अतिभोजन, मांस एवं नशीली पदार्थों का सेवन नहीं करना, अवैध यौन संबंध, जुए आदि से बचकर रहना- ये सामान्यत: व्रत के लिए जरूरी है।इसका गंभीरता से पालन चाहिए अन्यथा एक दिन सारी आध्यात्मिक या सांसारिक कमाई पानी में बह जाती है। यह बहुत जरूरी है कि हम विवाह, एक धार्मिक परंपरा के प्रति निष्ठा, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य जैसे व्रतों का सख्त पालन करें।बृत का लाभ व्रत से नैतिक बल मिलता है तो आत्मविश्वास तथा दृढ़ता बढ़ती है। जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए व्रतवान बनना जरूरी है। व्रत से जहां शरीर स्वस्थ बना रहता है वही मन और बुद्धि भी शक्तिशाली बनते हैं।9जप – जब दिमाग या मन में असंख्य विचारों की भरमार होने लगती है तब जप से इस भरमार को भगाया जा सकता है। अपने किसी इष्ट का नाम या प्रभु स्मरण करना ही जप है। यही प्रार्थना भी है और यही ध्यान भी है।जप का लाभ हजारों विचार को भगाने के लिए मात्र एक मंत्र ही निरंतर जपने से सभी हजारों विचार धीरे-धीरे लुप्त हो जाते हैं। हम रोज स्नान करके अपने आपको स्वच्छ रखते हैं, उसी जप से मन की सफाई हो जाती है। इसे मन में झाडू लगना भी कहा जाता।10 तप – मन का संतुलन बनाए रखना ही तप है। व्रत जब कठीन बन जाता है तो तप का रूप धारण कर लेता है। निरंतर किसी कार्य के पीछे पड़े रहना भी तप है। निरंतर अभ्यास करना भी तप है। त्याग करना भी तप है। सभी इंद्रियों को कंट्रोल में रखकर अपने अनुसार चलापा भी तप है। उत्साह एवं प्रसन्नता से व्रत रखना, पूजा करना, पवित्र स्थलों की यात्रा करना। विलासप्रियता एवं फिजूलखर्ची न चाहकर सादगी से जीवन जीना। इंद्रियों के संतोष के लिए अपने आप को अंधाधुंध समर्पित न करना भी तप है।तप का लाभ जीवन में कैसी भी दुष्कर परिस्थिति आपके सामने प्रस्तुत हो, तब भी आप दिमागी संतुलन नहीं खो सकते, यदि आप तप के महत्व को समझते हैं तो। अनुशासन एवं परिपक्वता से सभी तरह की परिस्थिति पर विजय प्राप्त की जा सकती है।अंत: जो व्यक्ति यम और नियम का पालन करता है वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने की ताकत रखता है। यह प्रतिबंध और नियम सभी धर्मों का सार है।Code of Conduct of Sanatan Hinduism. By social worker Vanita Kasani Punjab There are strict rules of conduct in Hinduism which its followers should follow in daily life. This code of conduct mainly consists of ten restrictions and ten rules. This is a moral discipline of Sanatan Hinduism. The one who follows it always remains happy and powerful in life. 1. Ahimsa - Do not hurt or harm any living creature including yourself by mind, word or deed. Just as we love ourselves, we should also love and respect others. Benefits of Ahimsa By having a sense of non-violence towards anyone, where the basis for a positive feeling is prepared, each person also starts to have a good attitude towards such a non-violent person. If all people have good feelings towards you, it will be good in your life. 2. Truth - Remain honest with mind, speech and deeds, keep the words given, do not keep any secret from loved ones. Benefit of truth. By always speaking the truth, a person's reputation and credibility are maintained. By speaking the truth, one gets spiritual strength, which also increases confidence. 3. Asthe - Do not steal. It is unhealthy not to steal any idea and object. Stealing is the result of ignorance that causes us to believe that we lack something or that we are not worthy of it. Do not take advantage of yourself at any cost through betting and illegal methods. Benefits of Asthe. Your nature is just your nature. The more hardworking and mulik a person becomes, the more his personality improves. With this honesty, everyone can be satisfied by winning hearts. It is important that we know the beauty and splendor inside us. 4-Brahmacharya. Brahmacharya has two meanings - meditation of God and conservation of sexual energy. Being in Brahmacharya, one should put all his strength in studies and training before marriage. After this, sexual activity should be done within the framework of its nubile. He should also stay away from it on special nights. In observance of Brahmacharya many things are taken care of - like vaginal talk and jokes, ban on viewing pornographic images and movies. Women and men should behave decently while talking among themselves. This is how celibacy prevails. Benefits of Brahmacharya. Sexual energy is the power of the body. The amount of this power is stored, the person remains physically and mentally powerful and energetic. The person who loses this power becomes like a withered flower. 5 Forgiveness - It is important that we treat others with patience and compassion and try to understand them. Be tolerant of family and children, neighbors and colleagues as each person behaves in a circumstance. Benefit of forgiveness. Respect for you will increase in family, society and colleagues. If people give you time to understand, then people will also start understanding you. 6 Dhriti - Stability, firmness and strength of character. For the progress and development in whatever field we choose in life, it is necessary to keep trying and remain stable. It is important to have goals in life only when stability comes. A goalless person loses life. Benefits of Dhriti. Consistency of character brings stability to body and mind. In all ways, a strong person is able to hit the target. All the crises of life can be overcome by this stability. This is the secret of success. 7 Daya - This is an elaborate form of forgiveness. It is also called compassion. Those who say that mercy is the cause of sorrow do not understand the meaning and importance of mercy. It is a very essential quality for our spiritual development. Benefit of kindness. A person who has compassion for all beings is also full of kindness towards himself. God is pleased with this quality. This quality character makes the environment around us good. 8 Arjava - It is easy to not deceive others. Be honest towards yourself and others. Benefits of Aajarva. Money, position or prestige obtained by deceit and deception remains for some time, but when that person falls, there is no one to save him. One gets satisfaction and happiness in life by owning property etc. Dieting 9 - Dietary restraint is dietary. It is important that we eat to live and not to eat. Quit all kinds of addiction and choose a clean food and eat at the appointed time. If you want to live long by staying healthy then adopt dieting. Do not eat in hotels and places where we do not know by whom or how the food is made. Benefits of dieting. Dieting is very much needed today. Good diet keeps our body healthy and also maintains energy and cleanliness. Food is nectar and it can become poison. 10 Poop - Internal and external purity and cleanliness. This means that we should keep our body and its environment completely clean. We should be clean both verbally and mentally. Benefits of defecation. Cleanliness and order of environment, body and mind have a sattvic effect on our inner being. Cleanliness is positive and divinity increases. It is very important to make life beautiful. Ten rules of Sanatan Hinduism. 1 Hari - Repentance is called Hri. It is necessary to be repentant of your evil deeds. If you do not have a feeling of remorse, then you are increasing your evils. It is necessary to be humble and to express disagreement and shame about the mistake and inappropriate behavior we have done, it does not mean that we should go under the burden of repentance and go to freedom. Benefit of Hri Repentance saves us from depression and stress and instills in us the power to be moral again. Standing in front of the temple, parents or yourself, the mind and body lighten up by accepting the mistake. 2 Satisfaction - Whatever the Lord has given for our sake, satisfaction is the satisfaction and living life with gratitude. It is a satisfaction to use what you have and not to grieve what you do not have. That is to enjoy what you have, being satisfied and happy. Benefits of satisfaction. If you look after what others have and crave to get it, you will always remain unhappy rather it should be that how to celebrate the happiness of what we have or how to use it properly, it will increase happiness in life. 3 Donation - Whatever you have is the gift of God and this nature. If you understand that this has happened due to my efforts, then there will be pride in you. Thinkfully donate some part of what you have. Do not let the portion of the fruit of God's giving and labor go in vain. You can donate it to temples, religious and spiritual institutions or donate it to a poor person. Benefit of charity. Who should donate and know what is the importance of donation. Performing charity opens the glands of the mind and brings satisfaction, happiness and balance in the mind. The body is easily lost in death. 4 Theism - A believer in the Vedas is called a believer. It is also theism to have loyalty and faith in parents, gurus and God. Benefit of theism While theism increases the correctness in the mind and brain, our every kind of demand is also fulfilled. Whatever is sought from existence or God is immediately met. It is important to have faith in existence. 5 God Prayer - Many people offer prayers, but in Sanatan Hinduism, there is a directive to worship for God or Goddess. Prayers, praises or meditation are done in the evening, that too in the morning or in the evening immediately after sunset. Benefits of God Prayer. Five or seven minutes after closing the eyes and meditating on God or Goddess, the person connects with the said power by connecting through ether medium. The prayer time begins only after five or seven minutes. Then it is up to you how long you meditate on the said power. This meditation or prayer solves all the problems of the world. 6 Siddhanta Sravana- Continually listening to the Vedas, Upanishads or Gita. The essence of the Veda is the Upanishads and the essence of the Upanishads is the Gita. The study of the Vedas is a powerful medium in the company of sages and saints to make the mind and intellect pure and correct. Benefit of principle listening. Just as nutritious food is required for the body, similarly for the mind, a corrective thing, book and view is required. We get all this through spiritual environment. If you do not know its importance, then there is always a negative in your life. 7 Mati - To follow the regular practice taught by our scriptures and religious teachers. Spiritualize your will power and intellect by making effort under the guidance of an authentic guru. It is important to stay in the world or to follow the good things continuously in retirement, only then life can be made beautiful, peace, happiness and prosperity. First of all it is necessary to spiritualize your intellect through effort. 8 Fast - Over-eating, not consuming meat and drugs, avoiding illegal sex, gambling etc. - This is generally necessary for fasting. It should be followed seriously, otherwise one day all the spiritual or worldly earnings flow into the water. It is very important that we observe strict observances like marriage, allegiance to a religious tradition, vegetarianism and celibacy. If you get moral strength from fasting, then confidence and perseverance increases. To achieve success in life, it is important to become fast. By fasting, where the body remains healthy, the mind and intellect also become powerful. 9 Chanting - When the mind or mind starts to get filled with innumerable thoughts, then this chant can be overcome by chanting. Chanting is the name or remembrance of one of your favorite people. This is also prayer and this is also meditation. Benefits of chanting To chase away thousands of thoughts, by chanting only one mantra continuously, all the thousands of thoughts are gradually lost. We keep ourselves clean by bathing daily, with that chanting the mind gets cleansed. It is also called sweeping in the mind. 10 Tapa - Maintaining the balance of mind is tenacity. When the fast becomes difficult then it takes the form of penance. Continuously lagging behind a task is also austerity. Continuous practice is also austerity. Renunciation is also austerity. Keeping all the senses under control, chalpa according to yourself is also austerity. Fasting with enthusiasm and happiness, worshiping, traveling to holy places. Live a life of simplicity by not wanting luxury and extravagance. Not dedicating yourself indiscriminately to the satisfaction of the senses is also austerity. Benefits of austerity No matter what difficult situation in life is presented to you, even then you cannot lose your mind balance, if you understand the importance of austerity. All kinds of situations can be overcome with discipline and maturity. The person who follows Yama and Niyam has the strength to succeed in any area of ​​life. This restriction and rule is the essence of all religions.

सनातन हिन्दू धर्म की आचरण संहिता । By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हिन्दू धर्म में आचरण के सख्त नियम हैं जिनका उसके अनुयायी को प्रतिदिन जीवन में पालन करना चाहिए। इस आचरण संहिता में मुख्यत: दस प्रतिबंध हैं और दस नियम हैं। यह सनातन हिन्दू धर्म का नैतिक अनुशासन है। इसका पालन करने वाला जीवन में हमेशा सुखी और शक्तिशाली बना रहता है। 1. अहिंसा – स्वयं सहित किसी भी जीवित प्राणी को मन, वचन या कर्म से दुख या हानि नहीं पहुंचाना। जैसे हम स्वयं से प्रेम करते हैं, वैसे ही हमें दूसरों को भी प्रेम और आदर देना चाहिए। अहिंसा का लाभ. किसी के भी प्रति अहिंसा का भाव रखने से जहां सकारात्मक भाव के लिए आधार तैयार होता है वहीं प्रत्येक व्यक्ति ऐसे अहिंसकर व्यक्ति के प्रति भी अच्छा भाव रखने लगता है। सभी लोग आपके प्रति अच्छा भाव रखेंगे तो आपके जीवन में कअच्छा ही होगा। 2. सत्य – मन, वचन और कर्म से सत्यनिष्ठ रहना, दिए हुए वचनों को निभाना, प्रियजनों से कोई गुप्त बात नहीं रखना। सत्य का लाभ. सदा सत्य बोलने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता कायम रहती है। सत्य बोलने से व्यक्ति को आत्मिक बल प्राप्त होता है जिसस...

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक है तथा श्रीरामचंद्रजीकी प्रसन्नताके लिए राम रक्षा स्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ अथ ध्यानम्‌ ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥ वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥ अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारोंसे विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान करें । ॥ इति ध्यानम्‌ ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥ अर्थ : श्री रघुनाथजीका चरित्र सौ कोटि विस्तारवाला हैं ।उसका एक-एक अक्षर महापातकोंको नष्ट करनेवाला है । ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ । जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥ अर्थ : नीले कमलके श्याम वर्णवाले, कमलनेत्रवाले , जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्रीरामका स्मरण कर, सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥ अर्थ : जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथोंमें खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसोंके संहार तथा अपनी लीलाओंसे जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीरामका स्मरण कर, रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥ अर्थ : मैं सर्वकामप्रद और पापोंको नष्ट करनेवाले राम रक्षा स्तोत्रका पाठ करता हूं । राघव मेरे सिरकी और दशरथके पुत्र मेरे ललाटकी रक्षा करें । कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥ अर्थ : कौशल्या नंदन मेरे नेत्रोंकी, विश्वामित्रके प्रिय मेरे कानोंकी, यज्ञरक्षक मेरे घ्राणकी और सुमित्राके वत्सल मेरे मुखकी रक्षा करें । जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥ अर्थ : विद्यानिधि मेरी जिह्वाकी रक्षा करें, कंठकी भरत-वंदित, कंधोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी महादेवजीका धनुष तोडनेवाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें । करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥ अर्थ : मेरे हाथोंकी सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदयकी जमदग्नि ऋषिके पुत्रको (परशुराम) जीतनेवाले, मध्य भागकी खरके (नामक राक्षस) वधकर्ता और नाभिकी जांबवानके आश्रयदाता रक्षा करें । सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥ अर्थ : मेरे कमरकी सुग्रीवके स्वामी, हडियोंकी हनुमानके प्रभु और रानोंकी राक्षस कुलका विनाश करनेवाले रघुकुलश्रेष्ठ रक्षा करें । जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥ अर्थ : मेरे जानुओंकी सेतुकृत, जंघाओकी दशानन वधकर्ता, चरणोंकी विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें । एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥ अर्थ : शुभ कार्य करनेवाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धाके साथ रामबलसे संयुक्त होकर इस स्तोत्रका पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं । पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥ अर्थ : जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाशमें विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेशमें घूमते रहते हैं , वे राम नामोंसे सुरक्षित मनुष्यको देख भी नहीं पाते । रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥ अर्थ : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामोंका स्मरण करनेवाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनोंको प्राप्त करता है । जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥ अर्थ : जो संसारपर विजय करनेवाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं । वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥ अर्थ : जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवचका स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञाका कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगलकी ही प्राप्ति होती हैं । आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥ अर्थ : भगवान् शंकरने स्वप्नमें इस रामरक्षा स्तोत्रका आदेश बुध कौशिक ऋषिको दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागनेपर उसे वैसा ही लिख दिया | आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥ अर्थ : जो कल्प वृक्षोंके बागके समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियोंको दूर करनेवाले हैं और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं । तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥ अर्थ : जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमलके (पुण्डरीक) समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियोंकी समान वस्त्र एवं काले मृगका चर्म धारण करते हैं । फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥ अर्थ : जो फल और कंदका आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथके पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें । शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥ अर्थ : ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियोंके शरणदाता, सभी धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ और राक्षसोंके कुलोंका समूल नाश करनेमें समर्थ हमारा रक्षण करें । आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥ अर्थ : संघान किए धनुष धारण किए, बाणका स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणोसे युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके लिए मेरे आगे चलें । संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥ अर्थ : हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथमें खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें । रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥ अर्थ : भगवानका कथन है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥ अर्थ : वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरुषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामोंका इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥ अर्थ : नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेवालेको निश्चित रूपसे अश्वमेध यज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त होता हैं । रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥ अर्थ : दूर्वादलके समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीरामकी उपरोक्त दिव्य नामोंसे स्तुति करनेवाला संसारचक्रमें नहीं पडता । रामं लक्ष्मणं पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥ अर्थ : लक्ष्मण जीके पूर्वज , सीताजीके पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणाके सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथके पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावणके शत्रु भगवान् रामकी मैं वंदना करता हूं। रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजीके स्वामीकी मैं वंदना करता हूं। श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥ अर्थ : हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरतके अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए । श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥ अर्थ : मैं एकाग्र मनसे श्रीरामचंद्रजीके चरणोंका स्मरण और वाणीसे गुणगान करता हूं, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धाके साथ भगवान् रामचन्द्रके चरणोंको प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणोंकी शरण लेता हूं | माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥ अर्थ : श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं ।इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवामें किसी दुसरेको नहीं जानता । दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥ अर्थ : जिनके दाईं और लक्ष्मणजी, बाईं और जानकीजी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथजीकी वंदना करता हूं । लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ । कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥ अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणाके भण्डार रुपी श्रीरामकी शरणमें हूं। मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥ अर्थ : जिनकी गति मनके समान और वेग वायुके समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूतकी शरण लेता हूं । कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥ अर्थ : मैं कवितामयी डालीपर बैठकर, मधुर अक्षरोंवाले ‘राम-राम’ के मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयलकी वंदना करता हूं । आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥ अर्थ : मैं इस संसारके प्रिय एवं सुन्दर , उन भगवान् रामको बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओंको दूर करनेवाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करनेवाले हैं । भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥ अर्थ : ‘राम-राम’ का जप करनेसे मनुष्यके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं । राम-रामकी गर्जनासे यमदूत सदा भयभीत रहते हैं । रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥ अर्थ : राजाओंमें श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजयको प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामका भजन करता हूं। सम्पूर्ण राक्षस सेनाका नाश करनेवाले श्रीरामको मैं नमस्कार करता हूं । श्रीरामके समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सलका दास हूं। मैं सद्सिव श्रीराममें ही लीन रहूं । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें । राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥ अर्थ : (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं । मैं सदा रामका स्तवन करता हूं और राम-नाममें ही रमण करता हूं । इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🌹, अर्थ : इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है । ॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

  ॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक है तथा श्रीरामचंद्रजीकी प्रसन्नताके लिए राम रक्षा स्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ अथ ध्यानम्‌ ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥ वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥ अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारोंसे विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान करें । ॥ इति ध्यानम्‌ ॥ चरितं रघुनाथस्य श...

••••⊰᯽⊱••卐!!#श्री!!卐••⊰᯽⊱•••• •••••⊰᯽⊱!!#Զเधे_Զเधे!!⊰᯽⊱•••••🍃🍂शुभ_प्रभात_वंदनजी🍂🍃✍*❣#मेरे_साँवरे..........✍❣❣💕"तुझे" लिखते वक़्त, महसूस होता है अक्सर....💕💕"मुझे" खुद से बिछड़े, एक जमाना हो गया....💕 🙏🍁🍁 जय श्री राधे कृष्णा जी🍁🍁🙏 🌹┅•••••◈⊰❉!!श्री!!❉⊱◈•••••┅🌹🌹💠🌹•••••❀Զเधे Զเधे❀•••••🌹💠🌹