महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।। (3)अर्थ : हे महावीर बजरंगबली! आप तो विशेष पराक्रमवाले है ।आप दुर्बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छी बुद्धिवालों के सहायक है । तुलसीदासजी लिखते हैं हनुमानजी कैसे हैं? ‘महावीर बिक्रम बजरंगी’ हनुमानजी वीरता की साक्षात् प्रतीमा एवं शक्ति तथा बल पराक्रम की जीवंत मूर्ति है ।हनुमानजीने मन के अंदर रहे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि शत्रुओंपर विजय प्राप्त की थी इसलिए उन्हे महावीर कहते हैं ।भक्ति में बुद्धि होना जरुरी है, तत्वज्ञान में भी बुद्धि की आवश्यकता है । जिसके जीवन में, भाव में, कर्म में, भक्ति में और तत्वज्ञान में बुद्धि प्रथम है, वह बुद्धिमान पुरुष श्रेष्ठ है । हनुमानजी बुद्धिमान पुरुषश्रेष्ठ है ।, ‘बुद्धिमतां वरिष्ठम्’ इसीलिए तुलसीदासजी लिखते है, ‘महावीर विक्रम बजरंगी।’मुख्य बात यह है कि जैसा संग होगा वैसा मनुष्य बनता है । इसीलिए गोस्वामीजी हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारी कुमति को हटाकर हमें सुमति प्रदान कीजिए इसका तात्पर्य यह है कि संग का जीवन में महत्व है, सत्संग से मनुष्य को सुयोग्य मोड मिलता है और जीवन बदलता है । बुद्धि खराब होने से समस्त दुष्कर्म बनते हैं, तुलसीदासजीने रामचरितमानस में भी लिखा है-जो व्यक्ति अपनी वृत्तियों को अंतर्मुखी कर अपनी सच्ची आलोचना करता और अपनी बुराईयों को दूर करने का सतत उद्योग करता है, वह महानता के मार्गपर आरुढ है । अपनी निर्बलताओं के प्रति जागरुक होना आधी विजय प्राप्त करना है । बुरे विचार दूसरोंके प्रति ईष्र्या, द्वेष, प्रतिशोध के भाव अंधकार की वस्तु है । इसलिए तुलसीदासजी लिखते हैं कि भगवान मुझे आपके साथ आत्मीयता साधनी है इसलिए हमारी कुमति को दूर कीजिए तथा हमें सुमति प्रदान कीजिए ।
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।। (3)अर्थ : हे महावीर बजरंगबली! आप तो विशेष पराक्रमवाले है ।आप दुर्बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छी बुद्धिवालों के सहायक है । तुलसीदासजी लिखते हैं हनुमानजी कैसे हैं? ‘महावीर बिक्रम बजरंगी’ हनुमानजी वीरता की साक्षात् प्रतीमा एवं शक्ति तथा बल पराक्रम की जीवंत मूर्ति है ।हनुमानजीने मन के अंदर रहे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि शत्रुओंपर विजय प्राप्त की थी इसलिए उन्हे महावीर कहते हैं ।भक्ति में बुद्धि होना जरुरी है, तत्वज्ञान में भी बुद्धि की आवश्यकता है । जिसके जीवन में, भाव में, कर्म में, भक्ति में और तत्वज्ञान में बुद्धि प्रथम है, वह बुद्धिमान पुरुष श्रेष्ठ है । हनुमानजी बुद्धिमान पुरुषश्रेष्ठ है ।, ‘बुद्धिमतां वरिष्ठम्’ इसीलिए तुलसीदासजी लिखते है, ‘महावीर विक्रम बजरंगी।’मुख्य बात यह है कि जैसा संग होगा वैसा मनुष्य बनता है । इसीलिए गोस्वामीजी हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारी कुमति को हटाकर हमें सुमति प्रदान कीजिए इसका तात्पर्य यह है कि संग का जीवन में महत्व है, सत्संग से मनुष्य को सुयोग्य मोड मिलता है और जीवन बदलता है । बुद्धि खराब होने से समस्त दुष्कर्म बनते हैं, तुलसीदासजीने रामचरितमानस में भी लिखा है-जो व्यक्ति अपनी वृत्तियों को अंतर्मुखी कर अपनी सच्ची आलोचना करता और अपनी बुराईयों को दूर करने का सतत उद्योग करता है, वह महानता के मार्गपर आरुढ है । अपनी निर्बलताओं के प्रति जागरुक होना आधी विजय प्राप्त करना है । बुरे विचार दूसरोंके प्रति ईष्र्या, द्वेष, प्रतिशोध के भाव अंधकार की वस्तु है । इसलिए तुलसीदासजी लिखते हैं कि भगवान मुझे आपके साथ आत्मीयता साधनी है इसलिए हमारी कुमति को दूर कीजिए तथा हमें सुमति प्रदान कीजिए ।
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