श्रीमद्भागवत महापुराणम् BY समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️षष्ठः स्कन्धः अथ प्रथमोऽध्यायःअजामिलोपाख्यान का प्रारम्भ...(भाग 4)〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️तस्य प्रवयसः पुत्रा दश तेषां तु योऽवमः । बालो नारायणो नाम्ना पित्रोश्च दयितो भृशम् ॥ २४स बद्धहृदयस्तस्मिन्नर्भके कलभाषिणि । निरीक्षमाणस्तल्लीलां मुमुदे जरठो भृशम् ॥ २५भुञ्जानः प्रपिबन् खादन् बालकस्नेहयन्त्रितः । भोजयन् पाययन्मूढो न वेदागतमन्तकम् ॥ २६स एवं वर्तमानोऽज्ञो मृत्युकाल उपस्थिते । मतिं चकार तनये बाले नारायणाह्वये ।। २७स पाशहस्तांस्त्रीन्दृष्टा पुरुषान् भृशदारुणान् । वक्रतुण्डानूर्ध्वरोम्ण आत्मानं नेतुमागतान् । २८दूरे क्रीडनकासक्तं पुत्रं नारायणाह्वयम् । प्लावितेन स्वरेणोच्चैराजुहावाकुलेन्द्रियः ॥ २९निशम्य म्रियमाणस्य ब्रुवतो' हरिकीर्तनम् । भर्तुर्नाम महाराज पार्षदाः सहसाऽपतन् ॥ ३०विकर्षतोऽन्तर्हृदयाद्दासीपतिमजामिलम् । यमप्रेष्यान् विष्णुदूता वारयामासुरोजसा ॥ ३१श्लोकार्थ〰️〰️〰️बूढ़े अजामिल के दस पुत्र थे। उनमें सबसे छोटे का नाम था 'नारायण' । माँ-बाप उससे बहुत प्यार करते थे ॥ २४ ॥ वृद्ध अजामिल ने अत्यन्त मोह के कारण अपना सम्पूर्ण हृदय अपने बच्चे नारायण को सौंप दिया था। वह अपने बच्चे की तोतली बोली सुन-सुनकर तथा बालसुलभ । खेल देख-देखकर फूला नहीं समाता था ॥ २५ ॥अजामिल बालक के स्नेह-बन्धन में बँध गया था। जब वह खाता तब उसे भी खिलाता, जब पानी पीता तो उसे भी पिलाता। इस प्रकार वह अतिशय मूढ़ हो गया था, उसे इस बात का पता ही न चला कि मृत्यु मेरे सिर पर आ पहुँची है ॥ २६ ॥वह मूर्ख इसी प्रकार अपना जीवन बिता रहा था कि मृत्यु का समय आ पहुँचा। अब वह अपने पुत्र बालक नारायण के सम्बन्ध में ही सोचने-विचारने लगा ।। २७ ।।इतने में ही अजामिल ने देखा कि उसे ले जाने के लिये अत्यन्त भयावने तीन यमदूत आये हैं। उनके हाथों में फाँसी है, मुँह टेढ़े-टेढ़े हैं और शरीर के रोएँ खड़े हुए हैं ॥ २८ ॥ उस समय बालक नारायण वहाँ से कुछ दूरी पर खेल रहा था। यमदूतों को देखकर अजामिल अत्यन्त व्याकुल हो गया और उसने बहुत ऊँचे स्वर से पुकारा - 'नारायण !' ॥ २९ ॥ भगवान् के पार्षदों ने देखा कि यह मरते समय हमारे स्वामी भगवान् नारायण का नाम ले रहा है, उनके नाम का कीर्तन कर रहा है; अतः वे बड़े वेग से झटपट वहाँ आ पहुँचे ॥ ३० ॥ उस समय यमराज के दूत दासीपति अजामिल के शरीर में से उसके सूक्ष्मशरीर को खींच रहे थे। विष्णुदूतों ने उन्हें बलपूर्वक रोक दिया ॥ ३१ ॥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय क्रमशः...शेष अलगे लेख में...〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️
श्रीमद्भागवत महापुराणम्
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षष्ठः स्कन्धः अथ प्रथमोऽध्यायः
अजामिलोपाख्यान का प्रारम्भ...(भाग 4)
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तस्य प्रवयसः पुत्रा दश तेषां तु योऽवमः । बालो नारायणो नाम्ना पित्रोश्च दयितो भृशम् ॥ २४
स बद्धहृदयस्तस्मिन्नर्भके कलभाषिणि । निरीक्षमाणस्तल्लीलां मुमुदे जरठो भृशम् ॥ २५
भुञ्जानः प्रपिबन् खादन् बालकस्नेहयन्त्रितः ।
भोजयन् पाययन्मूढो न वेदागतमन्तकम् ॥ २६
स एवं वर्तमानोऽज्ञो मृत्युकाल उपस्थिते । मतिं चकार तनये बाले नारायणाह्वये ।। २७
स पाशहस्तांस्त्रीन्दृष्टा पुरुषान् भृशदारुणान् ।
वक्रतुण्डानूर्ध्वरोम्ण आत्मानं नेतुमागतान् । २८
दूरे क्रीडनकासक्तं पुत्रं नारायणाह्वयम् । प्लावितेन स्वरेणोच्चैराजुहावाकुलेन्द्रियः ॥ २९
निशम्य म्रियमाणस्य ब्रुवतो' हरिकीर्तनम् । भर्तुर्नाम महाराज पार्षदाः सहसाऽपतन् ॥ ३०
विकर्षतोऽन्तर्हृदयाद्दासीपतिमजामिलम् । यमप्रेष्यान् विष्णुदूता वारयामासुरोजसा ॥ ३१
श्लोकार्थ
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बूढ़े अजामिल के दस पुत्र थे। उनमें सबसे छोटे का नाम था 'नारायण' । माँ-बाप उससे बहुत प्यार करते थे ॥ २४ ॥
वृद्ध अजामिल ने अत्यन्त मोह के कारण अपना सम्पूर्ण हृदय अपने बच्चे नारायण को सौंप दिया था। वह अपने बच्चे की तोतली बोली सुन-सुनकर तथा बालसुलभ । खेल देख-देखकर फूला नहीं समाता था ॥ २५ ॥
अजामिल बालक के स्नेह-बन्धन में बँध गया था। जब वह खाता तब उसे भी खिलाता, जब पानी पीता तो उसे भी पिलाता। इस प्रकार वह अतिशय मूढ़ हो गया था, उसे इस बात का पता ही न चला कि मृत्यु मेरे सिर पर आ पहुँची है ॥ २६ ॥
वह मूर्ख इसी प्रकार अपना जीवन बिता रहा था कि मृत्यु का समय आ पहुँचा। अब वह अपने पुत्र बालक नारायण के सम्बन्ध में ही सोचने-विचारने लगा ।। २७ ।।
इतने में ही अजामिल ने देखा कि उसे ले जाने के लिये अत्यन्त भयावने तीन यमदूत आये हैं। उनके हाथों में फाँसी है, मुँह टेढ़े-टेढ़े हैं और शरीर के रोएँ खड़े हुए हैं ॥ २८ ॥
उस समय बालक नारायण वहाँ से कुछ दूरी पर खेल रहा था। यमदूतों को देखकर अजामिल अत्यन्त व्याकुल हो गया और उसने बहुत ऊँचे स्वर से पुकारा - 'नारायण !' ॥ २९ ॥
भगवान् के पार्षदों ने देखा कि यह मरते समय हमारे स्वामी भगवान् नारायण का नाम ले रहा है, उनके नाम का कीर्तन कर रहा है; अतः वे बड़े वेग से झटपट वहाँ आ पहुँचे ॥ ३० ॥
उस समय यमराज के दूत दासीपति अजामिल के शरीर में से उसके सूक्ष्मशरीर को खींच रहे थे। विष्णुदूतों ने उन्हें बलपूर्वक रोक दिया ॥ ३१ ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
क्रमशः...
शेष अलगे लेख में...
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