*बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।**अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥**संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।**बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥*By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबगोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में संत हृदय को नमन करते हुए उनकी विशेषताओं के बारे में कहते हैं, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं, वैसे ही संत हृदय शत्रु और मित्र दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं, उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानते हुए विनय करता हूँ, मेरी इस बाल-विनय को सुनकर कृपा करके श्री रामजी के चरणों में अर्थात परम् तत्व में प्रीति दें | 🙏🙏जय श्री राम🙏🙏🌹🌺💐🙏🏻
*बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।*
*अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥*
*संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।*
*बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥*
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में संत हृदय को नमन करते हुए उनकी विशेषताओं के बारे में कहते हैं, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं, वैसे ही संत हृदय शत्रु और मित्र दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।
संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं, उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानते हुए विनय करता हूँ, मेरी इस बाल-विनय को सुनकर कृपा करके श्री रामजी के चरणों में अर्थात परम् तत्व में प्रीति दें |
🙏🙏जय श्री राम🙏🙏
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