मित्रो आज श्रावण मास का चतुर्थ सोमवार है,भूतभावन भोलेनाथ का दिन है। आज हम इन्ही की महिमा का गुणगान करेगें!!!!!!! By Vnita kasnia Punjab जीवन का मूल उद्देश्य है- शिवत्व की प्राप्ति, उपनिषद् का आदेश है "शिवो भूत्वा शिवं यजेत्" शिव बनकर शिव की आराधना करो, प्रश्न है- हम शिव कैसे बनें एवम् शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इसी का उत्तर है यह "नमः शिवाय’ का मंत्र" नमः शिवाय’ एक मंत्र ही नहीं महामंत्र है, यह महामंत्र इसलिये भी है कि यह आत्मा का जागरण करता है। हमारी आध्यात्मिक यात्रा इससे सम्पन्न होती है, यह किसी कामना पूर्ति का मंत्र नहीं है, यह मंत्र है जो कामना को समाप्त कर सकता है, इच्छा को मिटा सकता है, एक मंत्र होता है कामना की पूर्ति करने वाला, और एक मंत्र होता है कामना को मिटाने वाला, दोनों में बहुत बड़ा अन्तर होता है, कामना पूर्ति और इच्छा पूर्ति का स्तर बहुत नीचे रह जाता है। जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि वही है, जिससे कामना और इच्छा का अभाव हो सके, एक कहानी आती है- एक अत्यन्त गरीब के पास एक साधु आया, वह व्यक्ति गरीब तो था पर था संतोषी एवं भगवान का अटूट विश्वास रखने वाला। उसकी गरीबी को देखकर साधु ने करुणार्द्र होकर उसे कुछ भी मांगने के लिए कहा, लेकिन गरीब व्यक्ति ने कुछ भी नहीं मांगा, तो साधु बोला कि मैं किसी को देने की सोच लेता हूं उसे पूरा करना मेरा कर्तव्य समझता हूं, अतः मैं तुझे पारस दे देता हूं जिससे तुम अपनी गरीबी को दूर कर सकोगे, तब उस गरीब व्यक्ति ने निवेदन किया, हे महाराज! मुझे इन सांसारिक सुखों की चाहना नहीं है। मुझे तो वह चाहिये जिसे पाकर आपने पारस को ठुकराया है जो पारस से भी ज्यादा कीमती है वह मुझे दो, जब व्यक्ति के अन्तर की चेतना जाग जाती है तब वह कामना पूर्ति के पीछे नहीं दौड़ता, वह उसके पीछे दौड़ता है तथा उस मंत्र की खोज करता है जो कामना को काट दे, "नमः शिवाय" इसीलिए महामंत्र है, कि इससे इच्छा की पूर्ति नहीं होती अपितु इच्छा का स्रोत ही सूख जाता है। जहां सारी इच्छाएं समाप्त, सारी कामनाएं समाप्त, वहां व्यक्ति निष्काम हो जाता है, पूर्ण निष्काम भाव ही मनुष्य का प्रभु स्वरूप है, इस मंत्र से ऐहिक कामनायें भी पूरी होती हैं किन्तु यह इसका मूल उद्देश्य नहीं है, इसकी संरचना अध्यात्म जागरण के लिए हुई है, कामनाओं की समाप्ति के लिए हुई है। यह एक तथ्य है कि जहां बड़ी उपलिब्ध होती है, वहां आनुषंगिक रूप में अनेक छोटी उपलब्धियां भी अपने आप हो जाती है, छोटी उपलब्धि में बड़ी उपलब्धि नहीं होती, किन्तु बड़ी उपलब्धि में छोटी उपलब्धि सहज हो जाती हैं, कोई व्यक्ति लक्ष्मी के मंत्र की आराधना करता है तो उससे धन बढ़ेगा। सरस्वती के मंत्र की आराधना से ज्ञान बढ़ेगा किन्तु अध्यात्म का जागरण या आत्मा का उन्नयन नहीं होगा, क्योंकि छोटी उपलब्धि के साथ बड़ी उपलब्धि नहीं मिलती, जो व्यक्ति बड़ी उपलब्धि के लिए चलता है, रास्ते में उसे छोटी-छोटी अनेक उपलब्धियां प्राप्त हो जाती हे, यह मंत्र महामंत्र इसलिये भी है कि इसके साथ कोई मांग जुड़ी हुई नहीं है। इसके साथ केवल जुड़ा है- आत्मा का जागरण, चैतन्य का जागरण, आत्मा के स्वरूप का उद्घाटन और आत्मा के आवरणों का विलय, जिस व्यक्ति को परमात्मा उपलब्ध हो गया, जिस व्यक्ति को आत्म जागरण उपलब्ध हो गया, उसे सब कुछ उपलब्ध हो गया, कुछ भी शेष नहीं रहा, इस महामंत्र के साथ जुड़ा हुआ है- केवल चैतन्य का जागरण। सोया हुआ चैतन्य जाग जायें, सोया हुआ प्रभु जो अपने भीतर है वह जाग जायें, अपना परमात्मा जाग जायें, जहां इतनी बड़ी स्थिति होती है वहां सचमुच यह मंत्र महामंत्र बन जाता है, मंत्र क्या है? मंत्र शब्दात्मक होता है, उसमें अचिंत्य शक्ति होती है, हमारा सारा जगत् शब्दमय है, शब्द को ब्रह्म माना गया है। मन के तीन कार्य हैं- स्मृति, कल्पना एवं चिन्तन, मन प्रतीत की स्मृति करता है, भविष्य की कल्पना करता है और वर्तमान का चिन्तन करता है, किन्तु शब्द के बिना न स्मृति होती हैं, न कल्पना होती है और न चिन्तन होता है, सारी स्मृतियां, सारी कल्पनाएं और सारे चिन्तन शब्द के माध्यम से चलते हैं। हम किसी की स्मृति करते हैं तब तत्काल शब्द की एक आकृति बन जाती है, उस आकृति के आधार पर हम स्मृत वस्तु को जान लेते हैं, इसी तरह कल्पना एवं चिन्तन में भी शब्द का बिम्ब ही सहायक होता है, यदि मन को शब्द का सहारा न मिले, यदि मन को शब्द की वैशाखी न मिले तो मन चंचल हो नहीं सकता। मन की चंचलता वास्तव में ध्वनि की, शब्द की या भाषा की चंचलता है, मन को निर्विकल्प बनाने के लिए शब्द की साधना बहुत जरूरी है, स्थूल रूप से शब्द दो प्रकार का होता है- जल्प और अन्तर्जल्प, हम बोलते हैं, यह है जल्प, जल्प का अर्थ है- स्पष्ट वचन, व्यक्त वचन, हम बोलते नहीं किन्तु मन में सोचते हैं, मन में विकल्प करते हैं, यह है अन्तर्जल्प।जय महादेव! ओऊम् नमः शिवाय्Friends, today is the fourth Monday of the month of Shravan, the day of Bhootbhavan Bholenath. Today we will glorify their glory!!!!!!! By Vnita kasnia Punjab The basic purpose of life is the attainment of Shiva, the order of the Upanishads
मित्रो आज श्रावण मास का चतुर्थ सोमवार है,भूतभावन भोलेनाथ का दिन है। आज हम इन्ही की महिमा का गुणगान करेगें!!!!!!!
By Vnita kasnia Punjab
जीवन का मूल उद्देश्य है- शिवत्व की प्राप्ति, उपनिषद् का आदेश है "शिवो भूत्वा शिवं यजेत्" शिव बनकर शिव की आराधना करो, प्रश्न है- हम शिव कैसे बनें एवम् शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इसी का उत्तर है यह "नमः शिवाय’ का मंत्र" नमः शिवाय’ एक मंत्र ही नहीं महामंत्र है, यह महामंत्र इसलिये भी है कि यह आत्मा का जागरण करता है।
हमारी आध्यात्मिक यात्रा इससे सम्पन्न होती है, यह किसी कामना पूर्ति का मंत्र नहीं है, यह मंत्र है जो कामना को समाप्त कर सकता है, इच्छा को मिटा सकता है, एक मंत्र होता है कामना की पूर्ति करने वाला, और एक मंत्र होता है कामना को मिटाने वाला, दोनों में बहुत बड़ा अन्तर होता है, कामना पूर्ति और इच्छा पूर्ति का स्तर बहुत नीचे रह जाता है।
जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि वही है, जिससे कामना और इच्छा का अभाव हो सके, एक कहानी आती है- एक अत्यन्त गरीब के पास एक साधु आया, वह व्यक्ति गरीब तो था पर था संतोषी एवं भगवान का अटूट विश्वास रखने वाला।
उसकी गरीबी को देखकर साधु ने करुणार्द्र होकर उसे कुछ भी मांगने के लिए कहा, लेकिन गरीब व्यक्ति ने कुछ भी नहीं मांगा, तो साधु बोला कि मैं किसी को देने की सोच लेता हूं उसे पूरा करना मेरा कर्तव्य समझता हूं, अतः मैं तुझे पारस दे देता हूं जिससे तुम अपनी गरीबी को दूर कर सकोगे, तब उस गरीब व्यक्ति ने निवेदन किया, हे महाराज! मुझे इन सांसारिक सुखों की चाहना नहीं है।
मुझे तो वह चाहिये जिसे पाकर आपने पारस को ठुकराया है जो पारस से भी ज्यादा कीमती है वह मुझे दो, जब व्यक्ति के अन्तर की चेतना जाग जाती है तब वह कामना पूर्ति के पीछे नहीं दौड़ता, वह उसके पीछे दौड़ता है तथा उस मंत्र की खोज करता है जो कामना को काट दे, "नमः शिवाय" इसीलिए महामंत्र है, कि इससे इच्छा की पूर्ति नहीं होती अपितु इच्छा का स्रोत ही सूख जाता है।
जहां सारी इच्छाएं समाप्त, सारी कामनाएं समाप्त, वहां व्यक्ति निष्काम हो जाता है, पूर्ण निष्काम भाव ही मनुष्य का प्रभु स्वरूप है, इस मंत्र से ऐहिक कामनायें भी पूरी होती हैं किन्तु यह इसका मूल उद्देश्य नहीं है, इसकी संरचना अध्यात्म जागरण के लिए हुई है, कामनाओं की समाप्ति के लिए हुई है।
यह एक तथ्य है कि जहां बड़ी उपलिब्ध होती है, वहां आनुषंगिक रूप में अनेक छोटी उपलब्धियां भी अपने आप हो जाती है, छोटी उपलब्धि में बड़ी उपलब्धि नहीं होती, किन्तु बड़ी उपलब्धि में छोटी उपलब्धि सहज हो जाती हैं, कोई व्यक्ति लक्ष्मी के मंत्र की आराधना करता है तो उससे धन बढ़ेगा।
सरस्वती के मंत्र की आराधना से ज्ञान बढ़ेगा किन्तु अध्यात्म का जागरण या आत्मा का उन्नयन नहीं होगा, क्योंकि छोटी उपलब्धि के साथ बड़ी उपलब्धि नहीं मिलती, जो व्यक्ति बड़ी उपलब्धि के लिए चलता है, रास्ते में उसे छोटी-छोटी अनेक उपलब्धियां प्राप्त हो जाती हे, यह मंत्र महामंत्र इसलिये भी है कि इसके साथ कोई मांग जुड़ी हुई नहीं है।
इसके साथ केवल जुड़ा है- आत्मा का जागरण, चैतन्य का जागरण, आत्मा के स्वरूप का उद्घाटन और आत्मा के आवरणों का विलय, जिस व्यक्ति को परमात्मा उपलब्ध हो गया, जिस व्यक्ति को आत्म जागरण उपलब्ध हो गया, उसे सब कुछ उपलब्ध हो गया, कुछ भी शेष नहीं रहा, इस महामंत्र के साथ जुड़ा हुआ है- केवल चैतन्य का जागरण।
सोया हुआ चैतन्य जाग जायें, सोया हुआ प्रभु जो अपने भीतर है वह जाग जायें, अपना परमात्मा जाग जायें, जहां इतनी बड़ी स्थिति होती है वहां सचमुच यह मंत्र महामंत्र बन जाता है, मंत्र क्या है? मंत्र शब्दात्मक होता है, उसमें अचिंत्य शक्ति होती है, हमारा सारा जगत् शब्दमय है, शब्द को ब्रह्म माना गया है।
मन के तीन कार्य हैं- स्मृति, कल्पना एवं चिन्तन, मन प्रतीत की स्मृति करता है, भविष्य की कल्पना करता है और वर्तमान का चिन्तन करता है, किन्तु शब्द के बिना न स्मृति होती हैं, न कल्पना होती है और न चिन्तन होता है, सारी स्मृतियां, सारी कल्पनाएं और सारे चिन्तन शब्द के माध्यम से चलते हैं।
हम किसी की स्मृति करते हैं तब तत्काल शब्द की एक आकृति बन जाती है, उस आकृति के आधार पर हम स्मृत वस्तु को जान लेते हैं, इसी तरह कल्पना एवं चिन्तन में भी शब्द का बिम्ब ही सहायक होता है, यदि मन को शब्द का सहारा न मिले, यदि मन को शब्द की वैशाखी न मिले तो मन चंचल हो नहीं सकता।
मन की चंचलता वास्तव में ध्वनि की, शब्द की या भाषा की चंचलता है, मन को निर्विकल्प बनाने के लिए शब्द की साधना बहुत जरूरी है, स्थूल रूप से शब्द दो प्रकार का होता है- जल्प और अन्तर्जल्प, हम बोलते हैं, यह है जल्प, जल्प का अर्थ है- स्पष्ट वचन, व्यक्त वचन, हम बोलते नहीं किन्तु मन में सोचते हैं, मन में विकल्प करते हैं, यह है अन्तर्जल्प।
जय महादेव!
ओऊम् नमः शिवाय्
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