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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

🙏#हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी थी जानिए by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी रही होगी उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं की रात्रि को 9:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक #लक्ष्मण जी एवं #मेघनाद का युद्ध हुआ था। मेघनाद द्वारा चलाए गए बाण से#लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी लगभग रात को 12:00 बजे के करीब और वो #मूर्छित हो गए थे।#रामजी को लक्ष्मण जी मूर्छा की जानकारी मिलना फिर दुखी होने के बाद चर्चा जे उपरांत हनुमान जी & विभीषणजी के कहने से #सुषेण वैद्य को #लंका से लेकर आए होंगे 1 घंटे में अर्थात 1:00 बजे के करीबन।सुषेण वैद्य ने जांच करके बताया होगा कि #हिमालय के पास #द्रोणागिरी पर्वत पर यह चार #औषधियां मिलेगी जिन्हें उन्हें #सूर्योदय से पूर्व 5:00 बजे से पहले लेकर आना था ।इसके लिए #रात्रि को 1:30 बजे हनुमान जी हिमालय के लिए रवाना हुए होंगे।हनुमानजी को ढाई हजार किलोमीटर दूर हिमालय के द्रोणगिरि पर्वत से उस औषधि को लेकर आने के लिए 3:30 घंटे का समय मिला था। इसमें भी उनका आधे घंटे का समय औषधि खोजने में लगा होगा ।आधे घंटे का समय #कालनेमि नामक राक्षस ने जो उनको भ्रमित किया उसमें लगा होगा एवं आधे घंटे का समय #भरत जी के द्वारा उनको नीचे गिराने में तथा वापस भेजने देने में लगा होगा।अर्थात आने जाने के लिये मात्र दो घण्टे का समय मिला था।मात्र दो घंटे में हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत हिमालय पर जाकर वापस 5000 किलोमीटर की यात्रा करके आये थे, अर्थात उनकी गति ढाई हजार किलोमीटर प्रति घंटा रही होगी।आज का नवीनतम #मिराज #वायुयान की गति 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है ,तो हनुमान जी महाराज उससे भी तीव्र गति से जाकर मार्ग के तीन-तीन अवरोधों को दूर करके वापस सूर्योदय से पहले आए ।यह उनकी विलक्षण #शक्तियों के कारण संभव हुआ था।बोलिए हनुमान जी महाराज की जय#पवनसुत हनुमान की जय #सियावर रामचंद्र जी की जय🧑🙏🔱🚩,

🙏#हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी थी  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जानिए हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी रही होगी उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं की रात्रि को 9:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक #लक्ष्मण जी एवं #मेघनाद का युद्ध हुआ था। मेघनाद द्वारा चलाए गए बाण से#लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी लगभग रात को 12:00 बजे के करीब और वो #मूर्छित हो गए थे। #रामजी को लक्ष्मण जी मूर्छा की जानकारी मिलना फिर दुखी होने के बाद चर्चा जे उपरांत हनुमान जी & विभीषणजी के कहने से #सुषेण वैद्य को #लंका से लेकर आए होंगे 1 घंटे में अर्थात 1:00 बजे के करीबन। सुषेण वैद्य ने जांच करके बताया होगा कि #हिमालय के पास #द्रोणागिरी पर्वत पर यह चार #औषधियां मिलेगी जिन्हें उन्हें #सूर्योदय से पूर्व 5:00 बजे से पहले लेकर आना था ।इसके लिए #रात्रि को 1:30 बजे हनुमान जी हिमालय के लिए रवाना हुए होंगे। हनुमानजी को ढाई हजार किलोमीटर दूर हिमालय के द्रोणगिरि पर्वत से उस औषधि को लेकर आने के लिए 3:30 घंटे का समय मिला था। इसमें भी उनका आधे घंटे का समय औषधि खोजने में लगा होगा ।आधे घंटे का समय #कालनेमि नामक राक्षस ने जो उनको भ्

(((( नाम जपने वाले कि रक्षा )))). by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक संत हुए श्री अनंतकृष्ण बाबा जी। उनके पास एक लड़का सत्संग के लिए आया करता था। .प्रभावित होकर दीक्षा के लिए प्रार्थना करने पर बाबा ने कहा कि महामंत्र का ११ लाख जप करके आओ उसके बाद विचार करेंगे। .लगभग कुछ महीनों में संख्या पूरी करके वह बाबा के पास पुनः आया। बाबा ने कहा ११ लाख और जप करके आना। .अभी ३ - ४ वर्ष ही बीते थे साधक जीवन मे प्रवेश किए हुए। उसके मन मे श्रद्धा की कमी हो गयी। .वह एक दिन कही जा रहा था तो एक तांत्रिक को कुछ सिद्धियों का प्रदर्शन करते हुए देखा। .तांत्रिक ने उससे अपने बारे मे पूछा, उसने अपनी उपासना के बारे मे बताया।.तांत्रिक ने पूछा कि तुम इतने वर्षों से इतनी संख्या में जप करते हो, साधन करते हो उससे तुम्हे कुछ अनुभूति हुई ? .उस लड़के ने कहा अनुभूति तो हुई नही। .तांत्रिक ने कहा की देखो तुम आदि जवान हो, हमारी तरह प्रेत सिद्ध कर लो, तुम्हारे सब काम प्रेत कर दिया करेगा, .मै भी प्रेतों से सब काम करवाता हूं और मौज करता हूँ। यह शीघ्र ही थोडे मंत्रो के जप से सिद्ध हो जाता है। .उसमें तांत्रिक से साधन की विधि जानी। उसने विधि से तंत्रिक मंत्रो का जाप किया पर कुछ हुआ नही। .उसने तांत्रिक से कहा की मुझे तो कोई प्रेत सिद्ध हुआ नही। .तांत्रिक ने कहा पुनः प्रयास करो। इस बार भी प्रेत प्रकट नही हुआ। .तांत्रिक ने प्रेत को बुलाकर पूछा कि तुम इसके सामने क्यों नही प्रकट होते ?.उस प्रेत ने कहा मै तो जैसे ही इसके थोड़े निकट जाता हूँ, इसके पीछे एक चक्र प्रकट हो जाता है। .मै महान बलवान होने पर भी उस चक्र के तेज के सामने टिक नही सकता। अवश्य ही कोई शक्ति इसकी रक्षा करती है। .इस घटना के कुछ समय बाद उसको बाबा की याद आयी। .जब वह बाबा के पास आया तो बाबा बोले, बच्चा ! तेरा पतन होने से साक्षात नाम भगवान ने सुदर्शन रूप से तुझे बचा लिया। .नाम भगवान यदि तुझे नही बचाते तो हजारो वर्षो तक तू भी प्रेत योनि में कष्ट पाता फिरता। .नाम का प्रभाव प्रकट रूप से न दिखे तब भी नाम का प्रभाव होता ही है। नाम जपने वाले कि रक्षा भगवान सदा करते है।.इस प्रसंग से शिक्षा मिलती है की वैष्णवो को कभी भी तंत्र भूत सिद्धियों के चक्कर मे नही पड़ना चाहिए।~~~~~~~~~~~~~~~~~ ((((((( जय जय श्री राधे )))))))~~~~~~~~~~~~~~~~~

(((( नाम जपने वाले कि रक्षा )))) By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, . एक संत हुए श्री अनंतकृष्ण बाबा जी। उनके पास एक लड़का सत्संग के लिए आया करता था।  . प्रभावित होकर दीक्षा के लिए प्रार्थना करने पर बाबा ने कहा कि महामंत्र का ११ लाख जप करके आओ उसके बाद विचार करेंगे।  . लगभग कुछ महीनों में संख्या पूरी करके वह बाबा के पास पुनः आया। बाबा ने कहा ११ लाख और जप करके आना।  . अभी ३ - ४ वर्ष ही बीते थे साधक जीवन मे प्रवेश किए हुए। उसके मन मे श्रद्धा की कमी हो गयी।  . वह एक दिन कही जा रहा था तो एक तांत्रिक को कुछ सिद्धियों का प्रदर्शन करते हुए देखा।  . तांत्रिक ने उससे अपने बारे मे पूछा, उसने अपनी उपासना के बारे मे बताया। . तांत्रिक ने पूछा कि तुम इतने वर्षों से इतनी संख्या में जप करते हो, साधन करते हो उससे तुम्हे कुछ अनुभूति हुई ?  . उस लड़के ने कहा अनुभूति तो हुई नही।  . तांत्रिक ने कहा की देखो तुम आदि जवान हो, हमारी तरह प्रेत सिद्ध कर लो, तुम्हारे सब काम प्रेत कर दिया करेगा,  . मै भी प्रेतों से सब काम करवाता हूं और मौज करता हूँ। यह शीघ्र ही थोडे मंत्रो के जप से सिद्ध हो जाता है।  . उस

🥀🙏जय श्री राम🙏🥀 by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌸ॐ हनु हनुमते नमःश्रीहनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत आसान है, लेकिन जरूरी है कि जो मंत्र आप उपयोग करें वे सही हों। श्रीहनुमान चालीसा के अलावा श्रीरामचरितमानस में भी कारगर मंत्र हैं जिनसे श्रीबजरंग बली जी को प्रसन्न किया जा सकता है। आइए जानते हैं कौन से मंत्र कब काम लेने चाहिए:-विपत्ति नाश के लिए~राजीव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।कठिन क्लेश नाश के लिए~हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू।।विघ्न शांति के लिए~सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपा बिलोकहिं जेही।।चिंता की समाप्ति के लिए~जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू।अकाल मृत्यु निवारण के लिए~नाम पाहरू दिवस निसि,ध्यान तुम्हार कपाट।लोचन निज पद जंत्रित, जाहिं प्रान केहि बाट।।खोई वस्तु पुन: प्राप्त करने के लिए~गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।जीविका प्राप्ति के लिए~बिस्व भरण पोषण कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।दरिद्रता मिटाने के लिए~अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।लक्ष्मी प्राप्ति के लिए~जिमि सरिता सागर महुं जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएं। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं।।ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिए~साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।।🙏जय सियाराम जय जय सियाराम🙏

🥀🙏जय श्री राम🙏🥀        🌸ॐ हनु हनुमते नमः By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, श्रीहनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत आसान है, लेकिन जरूरी है कि जो मंत्र आप उपयोग करें वे सही हों। श्रीहनुमान चालीसा के अलावा श्रीरामचरितमानस में भी कारगर मंत्र हैं जिनसे श्रीबजरंग बली जी को प्रसन्न किया जा सकता है।  आइए जानते हैं कौन से मंत्र कब काम लेने चाहिए:- विपत्ति नाश के लिए~ राजीव नयन धरें धनु सायक।  भगत बिपति भंजन सुखदायक।। कठिन क्लेश नाश के लिए~ हरन कठिन कलि कलुष कलेसू।  महामोह निसि दलन दिनेसू।। विघ्न शांति के लिए~ सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही।  राम सुकृपा बिलोकहिं जेही।। चिंता की समाप्ति के लिए~ जय रघुवंश बनज बन भानू।  गहन दनुज कुल दहन कृशानू। अकाल मृत्यु निवारण के लिए~ नाम पाहरू दिवस निसि,ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित, जाहिं प्रान केहि बाट।। खोई वस्तु पुन: प्राप्त करने के लिए~ गई बहोर गरीब नेवाजू।  सरल सबल साहिब रघुराजू।। जीविका प्राप्ति के लिए~ बिस्व भरण पोषण कर जोई।  ताकर नाम भरत जस होई।। दरिद्रता मिटाने के लिए~ अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।  कामद धन दारिद दवारि के।। लक्ष्

New Delhi: By social worker Vanita Kasaniis, thousands of farmers for Punjab lathi-poles, national flag and flag of farmer unions, rode on tractors on Republic Day on Tuesday, breaking barrers and confronting the police from various border points for siege of Red Fort Entered the capital. Farmers in the Red Fort also climbed the flag-pillar. At the same time, forced by its habits, Pakistan has also commented on the ongoing peasant movement against agricultural laws. Pakistan's Foreign Minister Shah Mahmood Qureshi said in a statement on Tuesday that the Indian government has failed to suppress the voice of agitated farmers and now the whole of India stands with the farmers. Pakistan's Science and Technology Minister Fawad Chaudhary said on Tuesday The tweet said that the world should raise its voice against the oppressive government of India. Farmer leaders who have led protests on the border of the national capital for the last two months have disassociated themselves from these protesters, demanding repeal of agricultural laws. A young man was seen in the Red Fort hoisting a yellow colored flag of a triangle shape on the flag-pillar. This is why the flag is hoisted during the Independence Day celebrations of the country. However, the protesters were later removed from the Red Fort complex. The farmers were allowed to cross the tractor on the road fixed after the Republic Day parade, but these conditions were violated. In many places, there were clashes between protesters and policemen and lathicharge was done. Among these groups of protesters were many youths who were vocal and aggressive. Police used tear gas shells to disperse the turbulent crowd at some places. On the ITO, hundreds of farmers were seen running with the sticks of policemen and hitting the standing buses with their tractors. A demonstrator was killed when a tractor overturned. The ITO looked like a battlefield where angry protesters were seen to damage a car. Bricks and stones were strewn on the streets. It was a witness that the farmer movement which had been going peaceful for two months is no longer peaceful. Pakistan's Science and Technology Minister Fawad Chaudhary said in a tweet on Tuesday that the world should raise its voice against India's oppressive government . Farmer leaders who have led protests on the border of the national capital for the past two months have disassociated themselves from these protesters, demanding repeal of agricultural laws. A young man was seen in the Red Fort hoisting a yellow colored flag of a triangle shape on the flag-pillar. This is why the flag is hoisted during the Independence Day celebrations of the country. However, the protesters were later removed from the Red Fort complex. The farmers were allowed to cross the tractor on the road fixed after the Republic Day parade, but these conditions were violated. In many places, there were clashes between protesters and policemen and lathicharge was done. Among these groups of protesters were many youths who were vocal and aggressive. Police used tear gas shells to disperse the turbulent crowd at some places. On the ITO, hundreds of farmers were seen running with the sticks of policemen and hitting the standing buses with their tractors. A demonstrator was killed when a tractor overturned. The ITO looked like a battlefield where angry protesters were seen to damage a car. Bricks and stones were strewn on the streets. It was a witness to this that the peasant movement which had been going peaceful for two months was no longer peaceful.

सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर। होहिं बिषय रत मंद मंद तर॥काँच किरिच बदलें ते लेहीं। कर ते डारि परस मनि देहीं॥॥भावार्थ:- ऐसे मनुष्य शरीर को धारण (प्राप्त) करके भी जो लोग श्री हरि का भजन नहीं करते और नीच से भी नीच विषयों में अनुरक्त रहते हैं, वे पारसमणि को हाथ से फेंक देते हैं और बदले में काँच के टुकड़े ले लेते हैं॥Jay Shree Ram🙏,,

सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर।  होहिं बिषय रत मंद मंद तर॥ काँच किरिच बदलें ते लेहीं।  कर ते डारि परस मनि देहीं॥॥ भावार्थ:-         ऐसे मनुष्य शरीर को धारण (प्राप्त) करके भी जो लोग श्री हरि का भजन नहीं करते और नीच से भी नीच विषयों में अनुरक्त रहते हैं, वे पारसमणि को हाथ से फेंक देते हैं और बदले में काँच के टुकड़े ले लेते हैं॥ Jay Shree Ram🙏

🙏#हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी थी जानिए by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी रही होगी उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं की रात्रि को 9:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक #लक्ष्मण जी एवं #मेघनाद का युद्ध हुआ था। मेघनाद द्वारा चलाए गए बाण से#लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी लगभग रात को 12:00 बजे के करीब और वो #मूर्छित हो गए थे।#रामजी को लक्ष्मण जी मूर्छा की जानकारी मिलना फिर दुखी होने के बाद चर्चा जे उपरांत हनुमान जी एवम विभीषणजी के कहने से #सुषेण वैद्य को #लंका से लेकर आए होंगे 1 घंटे में अर्थात 1:00 बजे के करीबन।सुषेण वैद्य ने जांच करके बताया होगा कि #हिमालय के पास #द्रोणागिरी पर्वत पर यह चार #औषधियां मिलेगी जिन्हें उन्हें #सूर्योदय से पूर्व 5:00 बजे से पहले लेकर आना था ।इसके लिए #रात्रि को 1:30 बजे हनुमान जी हिमालय के लिए रवाना हुए होंगे।हनुमानजी को ढाई हजार किलोमीटर दूर हिमालय के द्रोणगिरि पर्वत से उस औषधि को लेकर आने के लिए 3:30 घंटे का समय मिला था। इसमें भी उनका आधे घंटे का समय औषधि खोजने में लगा होगा ।आधे घंटे का समय #कालनेमि नामक राक्षस ने जो उनको भ्रमित किया उसमें लगा होगा एवं आधे घंटे का समय #भरत जी के द्वारा उनको नीचे गिराने में तथा वापस भेजने देने में लगा होगा।अर्थात आने जाने के लिये मात्र दो घण्टे का समय मिला था।मात्र दो घंटे में हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत हिमालय पर जाकर वापस 5000 किलोमीटर की यात्रा करके आये थे, अर्थात उनकी गति ढाई हजार किलोमीटर प्रति घंटा रही होगी।आज का नवीनतम #मिराज #वायुयान की गति 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है ,तो हनुमान जी महाराज उससे भी तीव्र गति से जाकर मार्ग के तीन-तीन अवरोधों को दूर करके वापस सूर्योदय से पहले आए ।यह उनकी विलक्षण #शक्तियों के कारण संभव हुआ था।आप सभी मिलकर जैकारा लगाओ ओर कमेंट शेयर करेंबोलिए हनुमान जी महाराज की जय#पवनसुत हनुमान की जय #सियावर रामचंद्र जी की जय🙏🙏🙏,

🙏#हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी थी जानिए by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी रही होगी उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं की रात्रि को 9:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक #लक्ष्मण जी एवं #मेघनाद का युद्ध हुआ था। मेघनाद द्वारा चलाए गए बाण से#लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी लगभग रात को 12:00 बजे के करीब और वो #मूर्छित हो गए थे। #रामजी को लक्ष्मण जी मूर्छा की जानकारी मिलना फिर दुखी होने के बाद चर्चा जे उपरांत हनुमान जी एवम विभीषणजी के कहने से #सुषेण वैद्य को #लंका से लेकर आए होंगे 1 घंटे में अर्थात 1:00 बजे के करीबन। सुषेण वैद्य ने जांच करके बताया होगा कि #हिमालय के पास #द्रोणागिरी पर्वत पर यह चार #औषधियां मिलेगी जिन्हें उन्हें #सूर्योदय से पूर्व 5:00 बजे से पहले लेकर आना था ।इसके लिए #रात्रि को 1:30 बजे हनुमान जी हिमालय के लिए रवाना हुए होंगे। हनुमानजी को ढाई हजार किलोमीटर दूर हिमालय के द्रोणगिरि पर्वत से उस औषधि को लेकर आने के लिए 3:30 घंटे का समय मिला था। इसमें भी उनका आधे घंटे का समय औषधि खोजने में लगा होगा ।आधे घंटे का समय #कालनेमि नामक राक्षस ने जो उनको भ्रमि

कुम्भलगढ़ दुर्ग (राजसमंद - मेवाड़) #महाराणा_प्रताप की जन्मस्थली 👌,

साध्वी रितंभरा ने राम मंदिर निर्माण के लिए एक करोड़ की सहयोग राशि दी है साध्वी जी को कोटि-कोटि प्रणाम by समाजसेवी वनिता पंजाब जय श्री राम,

Sadhvi Ritambhara has contributed one crore for the construction of Ram temple Sad greetings to Sadhvi Ji ,Vnita, Jai Shree Ram

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एक दिग्गज हीरा कारोबारी की कहानी, जिसने श्रीराम मंदिर के लिए दिया 11 करोड़ का दानबीते साल अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन संपन्न होने के बाद से ही लोगों में मंदिर को लेकर काफी ज्यादा उत्सुकता है. राम भक्त इस मंदिर के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं. "by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब" इस बीच 15 जनवरी से श्री राम मंदिर के लिए निधि समर्पण अभियान की शुरुआत भी हो चुकी है. लोगों ने मंदिर बनाने के लिए दान देना शुरू कर दिया है. मंदिर निर्माण के लिए जानी मानी हस्तियों से लेकर आम जनता तक अपना योगदान दे रही है.इसी अभियान के तहत निधि संग्रह की प्रक्रिया शुरू ही हुई थी कि, अचानक पहले ही दिन गुजरात के हीरा व्यापारी गोविन्द भाई ढोलकिया का नाम एकाएक सुर्ख़ियों में आ गया. गोविंदभाई धोलकिया, सूरत में हीरा के व्यापारी हैं और रामकृष्ण डायमंड के मालिक हैं. सालों से आरएसएस के साथ जुड़े हुए हैं, 1992 में हुई राम मंदिर पहल में भी वो शामिल थे, इसी के चलते उन्होंने अपनी श्रद्धा और आस्था से भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिए 11 करोड़ का दान दिया गया है. केवल सातवीं तक पढ़ाई करने वाले इस व्यापारी ने अपनी लगन और मेहनत के बलबूते अरबों का कारोबार खड़ा किया है. गोविंदभाई गोविंदभाई सूरत में हीरा के व्यापारी हैं और श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स के चेयरमैन हैं. वे वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े हुए हैं. वे एक जाने माने कारोबारी तो हैं ही काफी धार्मिक व्यक्ति भी हैं. उनका हीरों का कोई खानदानी कारोबार नहीं रहा है, इसके बावजूद अपने दम पर वे हीरा कारोबार के दिग्गज बन गए.7 नवंबर 1947 को जन्मे ढोलकिया अब करीब 73 साल के हो चुके हैं. उनका जन्म गुजरात के एक छोटे से गांव दुधाला में एक किसान परिवार में हुआ था. उनका जीवन काफी अभावों में बीता और शायद इसीलिए ढोलकिया के मन में बचपन से ही हालात को बदलने की इच्छाशक्ति पैदा हो गयी. सातवीं में ही पढ़ाई छोड़कर अपने बड़े भाई भीमजी के साथ सूरत आ गए और वहां साल 1964 में उन्होंने डायमंड पॉलिश करने का काम शुरू किया. उन्होंने वहां वर्षों तक एक डायमंड पॉलिशिंग वर्कर के रूप में कड़ी मेहनत की. बाद में अपने दो दोस्तों के साथ 12 मार्च 1970 में हीरों का अपना कारखाना शुरू किया. हीरों का कारोबार अच्छी तरह से जमाने के बाद उन्होंने 1977 में श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट (SRK Export) के नाम से अपना अपना निर्यात कारोबार शुरू किया. आज यह दुनिया के कई देशों में कारोबार करने वाली एक दिग्गज कंपनी बन चुकी है. आज गोविंदभाई ढोलकिया देश के शीर्ष हीरा कारोबारियों में से एक हैं. उनकी पत्नी चम्पाबेन गोविंदभाई ढोलकिया पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन वह सूरत की सबसे अमीर महिलाओं में से हैं. एक बार गोविंदभाई ढोलकिया अपने कर्मचारियों और उनके परिवार को कंपनी के खर्चे पर दस दिन के टूर पर लेकर गए थे. इसके अलावा वो अपने स्टाफ को कार और घर तक गिफ्ट कर चुके हैं. ढोलकिया डायमंड कंपनी श्रीरामकृष्णा एक्सपोर्ट्स के फाउंडर हैं. गोविंदभाई इस कंपनी के चेयरमैन हैं. हीरा कारोबार के क्षेत्र में उनका नाम काफी मशहूर हैं.,,

राम नाम बैंक का उद्देश्यराम नाम बैंक वेबसाइट का मुख्य उद्देश्य श्री राम नाम का प्रचार एवं लेखन करवाना है। by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब आप इस पावन वेवसाइट www.ramnaambank.com में जाकर अपना एकाउंट रजिस्टर कर सकते है,फिर रजिस्टर करने के बाद जब आप लॉगिन करेंगे तो आपका एक अलग अकाउंट बन जायेगा और आप जितनी बार भी राम नाम लिखेंगे वो राम नाम ऑनलाइन संग्रहित हो जायेगा। आप जितने भी राम नाम लिखते है , हम सेवक उनका प्रिंटआउट निकलवा के श्री अयोध्या जी धाम ले जाते है। सर्वप्रथम हम आप सभी के द्वारा लिखे हुए राम नाम धन की सूचि एवं राम नाम धन का प्रिंटआउट श्री हनुमान जी महाराज जी को दिखाते है और फिर श्री कनक भवन जो कि श्री अयोध्या जी धाम में श्री सीताराम जी भगवान् जी का प्रधान मंदिर है वहां जाकर आपके द्वारा लिखे हुए राम नाम धन को उनके श्री चरणों में समर्पित करते है। उसके उपरांत आपका राम नाम धन श्री राम नाम बैंक अयोधया जी में जमा करवाते है। एक बार फिर सभी भक्तो से अनुरोध है कृपया ज्यादा से ज्यादा राम नाम लिखे एवं अपने मित्रों परिजनों और अन्य को प्रेरित करे राम नाम लिखवाने से। प्रभु श्री राम जी की कृपा सभी पे बनी रहे इसी आशा के साथ सेवक टीम की राम राम ।।। जय श्री सीताराम जी ।।जय सियाराम जी भक्तों द्वारा लिखकर भेजी गई,पुस्तिका का हम इस प्रकार सेवा कार्य मे लगाते है। यदि आपके किसी गाँव,शहर किसी भी जगह यदि मंदिर निर्माण हो रहा हो तो वह भी भक्त इसी प्रकार से मंदिर के निर्माण में राम नाम धन लगवा कर अपनी सेवा प्रदान कर सकता है। हम उसे राम नाम धन भी उसके पते पर भिजवाने का कोरियर या डाक के माध्यम से या स्वयं लेना चाहें तो संपर्क कर सकता है। ।श्री राम नाम बैंक सेवक टीम ने प्रभु श्री राम जी के आशीर्वाद एवं श्री हनुमान जी महाराज जी की असीम कृपा से 32 करोड़ लाख 4 हजार राम नाम धन के प्रिंट आउट निकलवा के आप सभी भक्तो द्वारा राम नाम बैंक वेबसाइट में ऑनलाइन लिखे गए राम नाम धन को दिनांक- 29/02/2020 ,शनिवार को श्री राम नाम बैंक अयोध्या जी में जमा करवा दिया गया है। ये कार्य विधिनुसार किया गया था ,सर्वप्रथम राम नाम धन श्री हनुमान जी महाराज जी को दिखाया गया फिर श्री कनक बिहारी ( श्री सीताराम ) के चरणों में समर्पित किया गया उसके उपरांत श्री राम नाम बैंक में जमा करवा दिया गया है जिसकी फोटो ग्राफी प्रस्तुत है।।। जय श्री सीताराम जी ।।श्री राम नाम बैंक सेवक टीम ने प्रभु श्री राम जी के आशीर्वाद एवं श्री हनुमान जी महाराज जी की असीम कृपा से 8 करोड़ 39 लाख 4 हजार राम नाम धन के प्रिंट आउट निकलवा के आप सभी भक्तो द्वारा राम नाम बैंक वेबसाइट में ऑनलाइन लिखे गए राम नाम धन को दिनांक- 29/07/2017 ,शनिवार को श्री राम नाम बैंक अयोध्या जी में जमा करवा दिया गया है। ये कार्य विधिनुसार किया गया था ,सर्वप्रथम राम नाम धन श्री हनुमान जी महाराज जी को दिखाया गया फिर श्री कनक बिहारी ( श्री सीताराम ) के चरणों में समर्पित किया गया उसके उपरांत श्री राम नाम बैंक में जमा करवा दिया गया है जिसकी फोटो ग्राफी प्रस्तुत है।आप सभी को सप्रेम जय सियाराम जी,,

अयोध्या धाम के प्रमुख मंदिर1.सरयू नदी2.राम पैड़ी3.नागेश्वर नाथ मंदिर4.कालेराम जी5.तुलसी स्मारक भवन6.श्री जानकी महल7.श्री वाल्मीकि रामायण भवन (लव कुश मंदिर)8.हनुमान बाग9.जानकी वल्लभ10.छोटी देवकाली मंदिर11.हनुमान गढ़ी - (अति महत्वपूर्ण दर्शन)12.दशरथ महल13.श्रीरामजन्मभूमि - (अति महत्वपूर्ण दर्शन)14.कनक भवन - (अति महत्वपूर्ण दर्शन)15.राम कथा संग्रहालय16.बिड़ला मंदिर17.मणि पर्वतअयोध्या के प्रभुख दर्शनीय स्थान(अयोध्या रेलवे स्टेशन से सभी मन्दिर कुछ ही किलोमीटर (लगभग 3-4 किमी0) की दूरी पर स्थित है )1.रामकोट(लगभग 2 किमी0)यह नगर की पश्चिमी दिशा में स्थित है जहाँ अनेक मन्दिर एवं दर्शनीय स्थान अवस्थित है।चैत्रमास की रामनवमी (मार्च-अप्रैल) को भगवान राम के जन्मोत्सव के पावन पर्व पर यहाँ देश-विदेश के श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में आवागमन होता है।दर्शनावधि:-ग्रीष्मकाल-प्रातः7.00 से 11.00 बजे तक अपरान्ह 2.00 से सायं 6.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः7.30 से 10.30 बजे तक अपरान्ह 2.00 से सायं 5.00 बजे तक।2.कनक भवनकनक भवन के में एक रोचक कथा प्रचलित है कि जब जानकी जी विवाह के पश्चात अयोध्या आई,तो महारानी कैकेयी ने कनक-निर्मित अपना महल उनको प्रथम भेंट स्वरुप प्रदान किया था।महाराजा विक्रमादित्य ने इसका पुनर्निमाण करवाया।बाद में टीकमगढ़ रियासत की महारानी वृषभानु कुंवारी ने एक सुन्दर विशाल भवन इसी स्थान पर पुनः निर्मित करवाया,जो आज भी विद्धमान है।इसी भवन में स्थित मन्दिर में श्री राम और किशोरी जी की दिव्य प्रतिमाएं स्थापित है।दर्शनावधि: प्रातः8.00 से बजे तक 12.00 बजे तक सायं 4.50 से 9.00 बजे तक।3.हनुमान गढ़ी(अयोध्या जंक्शन से लगभग 1 किमी0 उत्तर-पूर्व)रामकोट के पश्चिम द्वार पर महाराजा विक्रमादित्य ने हनुमान जी का एक मन्दिर बनवाया था,जो कालान्तर में हनुमान टीले के नाम से प्रसिद्ध हुआ।ऊँचे स्थान पर स्थित इस मन्दिर ७६ सीढियाँ चढ़कर पहुँचा जाता है।दर्शनावधि :-ग्रीष्मकाल-प्रातः 4.00 से रात्रि 11.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः5 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक।4.नागेश्वरनाथ मन्दिर(लगभग 4 किमी0 उत्तर-पूर्व एवं राम की पैड़ी के समीप)नागेश्वरनाथ जी का मन्दिर अयोध्या के प्रमुख मंदिरों में से एक है।श्री रामचंद्र जी के पुत्र महाराज कुश जी द्वारा स्थापित इस मन्दिर की स्थापना के सम्बन्ध में कथा प्रचलित है कि एक दिन जब महाराजा कुश सरयू नदी में स्नान कर रहे थे,तो उनके हाथ का कंगन जल में गिर गया,जिसे नाग-कन्या उठा ले गयी, बहुत खोजने के बाद भी जब महाराजा कंगन प्राप्त नहीं कर सके,तब कुपित होकर उन्होंने जल को सुखा देने की इच्छा से अग्निशर का संधान किया,जिसके परिणामस्वरुप जल-जन्तु व्याकुल होने लगे।तब नागराज से स्वयं वह कंगन लाकर महाराजा कुश को सादर भेंट किया तथा उनसे अपनी पुत्री से विवाह करने का अनुरोध किया।महाराजा कुश ने नाग-कन्या से विवाह करके उस घंटना की स्मृति में उस स्थान पर नागेश्वर मन्दिर की स्थापना की।उसी स्थान पर आज एक विशाल शिव मन्दिर स्थित है।प्रत्येक त्रयोदशी एवं शिवरात्रि महापर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु तीर्थ यात्री सरयू-स्नान करके इस मन्दिर में जल चढ़ाने आते है।दर्शनावधि:-ग्रीष्मकाल-प्रातः 5.00 से रात्रि 08.30 बजे तक तथा सायं 4.00 बजे से रात्रि 8.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः6 बजे से रात्रि 11.00 बजे तक तथा सायं 4.00 बजे से रात्रि 7.00 बजे तक।5.छोटी देवकाली मन्दिर(अयोध्या जंक्शन से 2 किमी0)यह मन्दिर नये घाटी के समीप एक गली में स्थित है।छोटी देवकाली जी अवध की ग्राम देवी मानी जाती है,मान्यतानुसार विवाहोपरान्त जब सीता जी अयोध्या आने लगी,तो अपने साथ अपनी पूज्या देवी गिरिजा जी को भी साथ लायी महाराज दशरथ ने उनकी स्थापना सप्तसागर के समीप एक सुन्दर मन्दिर में की।जानकी जी नित्य नियमपूर्वक प्रातःकाल परम शक्तिस्वरूपा माँ गिरिजा की की विधिवत उपासना करती थी।वर्तमान में यहाँ श्री देवकाली जी की देदीप्यमान भव्य प्रतिमा स्थापित है।दर्शनावधि:-सूर्योदय से सूर्यास्त तक।6.मत्तगयन्द (मातगैंड) जी का स्थान(लगभग 2 किमी0)मत्तगयन्द जी लंकाधिपति विभीषण जी के पुत्र थे,उनका स्थान कनक भवन मन्दिर के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है।ये रामकोट के उत्तरी फाटक के प्रधान रक्षक थे।प्रतिवर्ष होली के बाद पड़ने वाले प्रथम मंगल के दिन उहाँ विशाल मेला लगता है।7.कालेराम जी का मन्दिर(2.5 किमी0)नागेश्वरनाथ मन्दिर के समीप सरयू नदी के पावन तट पर स्वर्गद्वार मोहल्ले में कालेराम जी का मन्दिर है।यहाँ विक्रमादित्य कालीन मूर्तियाँ स्थापित है।अयोध्या के प्राचीन मन्दिरों में कालेराम जी के मन्दिर का प्रमुख स्थान है।दर्शनावधि:-ग्रीष्मकाल-प्रातः 4.30 से 11.00 बजे तक तथा सायं 4.00 से रात्रि 9.00 बजे तक।शीतकाल-प्रातः 5.00 से 11.30 बजे तक तथा सायं 4.00 से रात्रि 8.00 बजे तक।8.मणिपर्वत(लगभग 1 किमी0)विद्याकुण्ड के समीप 65 फिट की ऊँचाई पर स्थित मणिपर्वत के बारे में जनश्रुति है कि हिमालय से संजीवनी बूटी को लेकर लंका जाते हुए पवनसुत हनुमान जी ने संजीवनी बूटी के पर्वत-खण्ड को रखकर यहाँ विश्राम किया था।ऊपर मन्दिर एवं झूला दर्शनीय है। श्रावण मास में अयोध्या में संपन्न होने वाले प्रसिद्ध झूलनोत्सव का प्रारम्भ यहीं से होता है।उस अवसर पर हजारों की संख्या में भक्तजन भगवान की मनोहारी झांकी देखने के लिए उपस्थित होते है।दर्शनावधि:- सूर्योदय से सूर्यास्त तक9.लक्ष्मण किला:सरयू के पावन तट पर स्थित लक्ष्मण किले का निर्माण मुबारक अली खाँ ने करवाया था। इसे किला मुबारक भी कहा जाता है।रसिक संप्रदाय के सन्त स्वामी युगलानन्द पारण जी महाराज,निर्मली कुण्ड पर तप करते थे उनके स्वर्गवासी होने के उपरान्त कालांतर में दीवान रीवाँ दीनबन्धु जी ने इस स्थान पर एक विशाल मन्दिर बनवाया,जो आज भी विद्धमान है।10.क्षीरेश्वरनाथ महादेव मन्दिर(लगभग 1/2 किमी0)हनुमान गढ़ी चौराहे से फैज़ाबाद-लखनऊ जाने वाले मार्ग पर क्षीरसागर स्थित है। इसके समीप ही श्री क्षिरेश्वरनाथ महादेव जी का भव्य शिवालय स्थित है। वर्गाकार चबूतरे पर निर्मित,इस मन्दिर में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है।11.कोशलेश सदन(लगभग 1.5 किमी0)यह मन्दिर कटरा मोहल्ले में स्थित है।अयोध्या स्थित रामानुजी वैष्णवों की तिंगल शाखा के प्रमुख मन्दिरों में यह मन्दिर अद्वितीय है।12.लव-कुश मन्दिर(लगभग 1.5 किमी0)भगवान् राम के पुत्रों-लव व् कुश के नाम पर निर्मित इस मन्दिर में लव व कुश की मूर्ति के साथ महर्षि वाल्मीकि जी की प्रतिमा भी स्थापित है।इसके समीप ही अंबरदास जी राम कचेहरी मन्दिर, जगन्नाथ मन्दिर तथा रंगमहल मन्दिर है,जो अयोध्या के प्रमुख दक्षिण भारतीय मन्दिरों में गिने जाते है।13.विजेराघव मन्दिर(लगभग 1.5 किमी0)यह मन्दिर विभीषण कुण्ड जाने वाले मार्ग पर स्थित है।इसकी स्थापना 1915 ईस्वी में की गई थी।अचारी संप्रदाय के तिंगल शाखा के अयोध्या स्थित मन्दिरों में इसका प्रमुख स्थान है।14.रत्नसिँहासन (राजगद्दी)(लगभग 1.5 किमी0)यह भवन कनक भवन की दक्षिण दिशा में है।मान्यतानुसार यहाँ भगवान राम का राज्याभिषेक संपन्न हुआ था।15.दंतधावन कुण्ड(लगभग 1.5.किमी0)श्री वैष्णव के वड़गल शाखा के अंतर्गत आने वाला यह मन्दिर हनुमान गढ़ी चौराहे से रामघाट तुलसी स्मारक जाने वाले मार्ग पर स्थित है।किवंदन्ती के अनुसार इसी स्थान पर श्री रामचन्द्र जी चारों भाइयों के साथ प्रातःदतुवन करते थे।16.वाल्मीकि रामायण भवन(लगभग 3 किमी0)इस भवन में सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण को संगमरमर पर अंकित किया गया है।दर्शनावधि:-सूर्योदय से सूर्यास्त तक।17.तुलसी स्मारक भवन/अयोध्या शोध संस्थान/राम-कथा-संग्रहालय।(लगभग 1 किमी0)तुलसी चौरा के समीप उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी की स्मृति में स्मारक भवन का निर्माण करवाया गया है। भवन से संचालित अयोध्या शोध संस्थान के तत्त्वाधान में यहाँ प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ला सप्तमी को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती विशेष अयोजनपूर्वक मनायी जाती है।यहाँ विशाल ग्रन्थागार, पुस्तकालय-वाचनालय एवं हस्तशिल्प का राम-कथा-विषयक सामग्रियों का संग्रह तथा अनुसंधाताओ के लिए तुलसी-सहित्य पर उत्तम सामग्री भी उपलब्ध है।विशेष आकर्षण:-अनवरत रामलीला एवं कथा-वचन कार्यक्रम।प्रतिदिन सायं 6.00 बजे से रात्रि 9.00 बजे तक।18.राम-कथा-संग्रहालयतुलसी स्मारक भवन में स्थित राम-कथा-संग्रहालय में राम कथा से संबधित विभिन्न प्रकार की पेंटिंग,हाथी-दांत के मुखौटे,प्राचीन दर्शनीय वस्तुएं और देश के विभिन्न संग्रहालयों में संग्रहीत राम-कथा से संबधित मूल सामग्रियों के चित्र उपलब्ध है।साप्ताहिक अवकाश:-सोमवार एवं सार्वजनिक अवकाश दिवस।19.गुरुद्वारा ब्रह्मकुण्ड(लगभग 3 किमी0)ब्रह्मकुण्ड घाट के निकट ब्रह्मदेव जी का एक छोटा-सा मन्दिर है जिसमें ब्रह्मा जी की चतुर्भुजी मूर्ति स्थापित है।मान्यता है कि गुरुनानकदेव जी को चतुरानन ब्रह्मा जी के साक्षात् दर्शन यहीं प्राप्त हुए थे।गुरु तेगबहादुर जी एवं गुरु गोविन्द सिंह जी का भी पावन प्रवास अयोध्या नगरी में हुआ था।घाट के पास विशाल गुरुद्वारा स्थित है,जहाँ प्रतिवर्ष सिख तीर्थ यात्री दर्शन के लिए आते है।20.अयोध्या के जैन मन्दिरअयोध्या के पाँच जैन तीर्थकरों होने का गौरव प्राप्त है।यहाँ पाँचो तीर्थकरों के मन्दिर है-तीर्थकर आदिनाथ मन्दिर ( मुरारी टोला,स्वर्गद्वार),तीर्थकर अजितनाथ मन्दिर (सप्तसागर,इटौआ) तीर्थकर अभिनन्दननाथ मन्दिर (सराय के निकट),तीर्थकर सुमन्तनाथ मन्दिर (रामकोट),तीर्थकर अनंतनाथ मन्दिर,(गोलाघाट)।रायगंज मोहल्ले में ऋषभदेव जी का विशाल मन्दिर है।इस मन्दिर में ऋषभदेव जी की 21 फुट ऊँची संगमरमर की दिगम्बर मूर्ति स्थापित है,जो अयोध्या स्थित जैन मंदिरों में स्थापित मूर्तियों में विशालतम है।21.राम की पैड़ी(लगभग 2 किमी0)अयोध्या गोरखपुर के राष्ट्रीय राजमार्ग पर सरयू के पल के निकट नदी के किनारे स्थित राम की पैड़ी अयोध्या का महत्वपूर्ण स्थान है।उद्यान एवं जलाशय यहाँ में आकर्षण है।22.मन्दिर श्री हनुमानबाग(लगभग 1.5 किमी0)अयोध्या जी के मोहल्ला में हनुमान बाग नामक एक भव्य स्थान का निर्माण एक भजनानंदी साधू द्वारा कराया गया है।यहाँ हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है।पास में ही हनुमत सत्संग भवन माँ भी निर्माण कराया गया है।23.श्री जानकी महल ट्रस्ट -(लगभग 1.5 किमी0)कलकत्ता के मारवाड़ी समाज द्वारा वासुदेवघाट मोहल्ले में एक बड़ा भूखण्ड क्रय कर श्रीजानकी महल के नाम से एक भव्य मन्दिर,अतिथिशाला,गौशाला का निर्माण कराया गया है।24.श्री बिड़ला मन्दिर(लगभग 1.किमी0)श्री अयोध्या जी के पुराने सब स्टेशन के सामने बिड़ला सेठ द्वारा बनवाया गया भव्य बिड़ला मन्दिर स्थित है,जहाँ पर श्रीराम जानकी की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है।25. श्री सरयू महानदीजय by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, श्री सीताराम जीजय श्री हनुमानजी महाराज,

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कलयुग में न जप है न तप है और न योग ही है।सिर्फ राम नाम ही इस कलिकाल में प्राणी मात्र का सहारा है। श्री राम चन्द्र जी सहज ही कृपा करने वाले और परम दयालु हैं उस पर उनका नाम तो प्राणी मात्र को अभय प्रदान करने वाला और परम कल्याण कारी है।कलयुग में राम नाम का लिखित जाप सभी पापों को नष्ट कर मुक्ति प्रदान करने वाला है।इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस वेबसाइट का निर्माण किया गया है।आप सबसे हमारा अनुरोध है जितना अधिक संभव हो राम नाम का लिखित जप करें।इसी में हम सब का कल्याण है।There is no chanting in the Kali Yuga, there is no tenacity nor yoga. Shri Ram Chandra ji is a simple, merciful and kind person, and bestows his name on it only to the creature.

 कलयुग में न जप है न तप है और न योग ही है।सिर्फ राम नाम ही इस कलिकाल में प्राणी मात्र का सहारा है। श्री राम चन्द्र जी सहज ही कृपा करने वाले और परम दयालु हैं उस पर उनका नाम तो प्राणी मात्र को अभय प्रदान करने वाला और परम कल्याण कारी है।कलयुग में राम नाम का लिखित जाप सभी पापों को नष्ट कर मुक्ति प्रदान करने वाला है।इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस वेबसाइट का निर्माण किया गया है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, आप सबसे हमारा अनुरोध है जितना अधिक संभव हो राम नाम का लिखित जप करें।इसी में हम सब का कल्याण है।

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक है तथा श्रीरामचंद्रजीकी प्रसन्नताके लिए राम रक्षा स्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ अथ ध्यानम्‌ ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥ वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥ अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारोंसे विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान करें । ॥ इति ध्यानम्‌ ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥ अर्थ : श्री रघुनाथजीका चरित्र सौ कोटि विस्तारवाला हैं ।उसका एक-एक अक्षर महापातकोंको नष्ट करनेवाला है । ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ । जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥ अर्थ : नीले कमलके श्याम वर्णवाले, कमलनेत्रवाले , जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्रीरामका स्मरण कर, सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥ अर्थ : जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथोंमें खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसोंके संहार तथा अपनी लीलाओंसे जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीरामका स्मरण कर, रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥ अर्थ : मैं सर्वकामप्रद और पापोंको नष्ट करनेवाले राम रक्षा स्तोत्रका पाठ करता हूं । राघव मेरे सिरकी और दशरथके पुत्र मेरे ललाटकी रक्षा करें । कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥ अर्थ : कौशल्या नंदन मेरे नेत्रोंकी, विश्वामित्रके प्रिय मेरे कानोंकी, यज्ञरक्षक मेरे घ्राणकी और सुमित्राके वत्सल मेरे मुखकी रक्षा करें । जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥ अर्थ : विद्यानिधि मेरी जिह्वाकी रक्षा करें, कंठकी भरत-वंदित, कंधोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी महादेवजीका धनुष तोडनेवाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें । करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥ अर्थ : मेरे हाथोंकी सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदयकी जमदग्नि ऋषिके पुत्रको (परशुराम) जीतनेवाले, मध्य भागकी खरके (नामक राक्षस) वधकर्ता और नाभिकी जांबवानके आश्रयदाता रक्षा करें । सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥ अर्थ : मेरे कमरकी सुग्रीवके स्वामी, हडियोंकी हनुमानके प्रभु और रानोंकी राक्षस कुलका विनाश करनेवाले रघुकुलश्रेष्ठ रक्षा करें । जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥ अर्थ : मेरे जानुओंकी सेतुकृत, जंघाओकी दशानन वधकर्ता, चरणोंकी विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें । एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥ अर्थ : शुभ कार्य करनेवाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धाके साथ रामबलसे संयुक्त होकर इस स्तोत्रका पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं । पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥ अर्थ : जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाशमें विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेशमें घूमते रहते हैं , वे राम नामोंसे सुरक्षित मनुष्यको देख भी नहीं पाते । रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥ अर्थ : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामोंका स्मरण करनेवाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनोंको प्राप्त करता है । जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥ अर्थ : जो संसारपर विजय करनेवाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं । वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥ अर्थ : जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवचका स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञाका कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगलकी ही प्राप्ति होती हैं । आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥ अर्थ : भगवान् शंकरने स्वप्नमें इस रामरक्षा स्तोत्रका आदेश बुध कौशिक ऋषिको दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागनेपर उसे वैसा ही लिख दिया | आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥ अर्थ : जो कल्प वृक्षोंके बागके समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियोंको दूर करनेवाले हैं और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं । तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥ अर्थ : जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमलके (पुण्डरीक) समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियोंकी समान वस्त्र एवं काले मृगका चर्म धारण करते हैं । फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥ अर्थ : जो फल और कंदका आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथके पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें । शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥ अर्थ : ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियोंके शरणदाता, सभी धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ और राक्षसोंके कुलोंका समूल नाश करनेमें समर्थ हमारा रक्षण करें । आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥ अर्थ : संघान किए धनुष धारण किए, बाणका स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणोसे युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके लिए मेरे आगे चलें । संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥ अर्थ : हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथमें खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें । रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥ अर्थ : भगवानका कथन है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥ अर्थ : वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरुषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामोंका इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥ अर्थ : नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेवालेको निश्चित रूपसे अश्वमेध यज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त होता हैं । रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥ अर्थ : दूर्वादलके समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीरामकी उपरोक्त दिव्य नामोंसे स्तुति करनेवाला संसारचक्रमें नहीं पडता । रामं लक्ष्मणं पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥ अर्थ : लक्ष्मण जीके पूर्वज , सीताजीके पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणाके सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथके पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावणके शत्रु भगवान् रामकी मैं वंदना करता हूं। रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजीके स्वामीकी मैं वंदना करता हूं। श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥ अर्थ : हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरतके अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए । श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥ अर्थ : मैं एकाग्र मनसे श्रीरामचंद्रजीके चरणोंका स्मरण और वाणीसे गुणगान करता हूं, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धाके साथ भगवान् रामचन्द्रके चरणोंको प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणोंकी शरण लेता हूं | माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥ अर्थ : श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं ।इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवामें किसी दुसरेको नहीं जानता । दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥ अर्थ : जिनके दाईं और लक्ष्मणजी, बाईं और जानकीजी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथजीकी वंदना करता हूं । लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ । कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥ अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणाके भण्डार रुपी श्रीरामकी शरणमें हूं। मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥ अर्थ : जिनकी गति मनके समान और वेग वायुके समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूतकी शरण लेता हूं । कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥ अर्थ : मैं कवितामयी डालीपर बैठकर, मधुर अक्षरोंवाले ‘राम-राम’ के मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयलकी वंदना करता हूं । आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥ अर्थ : मैं इस संसारके प्रिय एवं सुन्दर , उन भगवान् रामको बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओंको दूर करनेवाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करनेवाले हैं । भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥ अर्थ : ‘राम-राम’ का जप करनेसे मनुष्यके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं । राम-रामकी गर्जनासे यमदूत सदा भयभीत रहते हैं । रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥ अर्थ : राजाओंमें श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजयको प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामका भजन करता हूं। सम्पूर्ण राक्षस सेनाका नाश करनेवाले श्रीरामको मैं नमस्कार करता हूं । श्रीरामके समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सलका दास हूं। मैं सद्सिव श्रीराममें ही लीन रहूं । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें । राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥ अर्थ : (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं । मैं सदा रामका स्तवन करता हूं और राम-नाममें ही रमण करता हूं । इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🌹, अर्थ : इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है । ॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

  ॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक है तथा श्रीरामचंद्रजीकी प्रसन्नताके लिए राम रक्षा स्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है । ॥ अथ ध्यानम्‌ ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥ वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥ अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजीके मुख कमलसे मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारोंसे विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान करें । ॥ इति ध्यानम्‌ ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोट

💒 #राम_चालीसा*💒 #Vnita.kasnia*श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सना... #समाजसेवी_वनिता_कासनिया*🌹🌹🙏🙏🌹🌹🚩 #राम_राम_जी*,

भस्मासुर के साथ छल〰️〰️〰️〰️by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️〰️भस्मासुर का नाम सुनकर सभी को उसकी कथा याद हो आई होगी। भस्मासुर के कारण भगवान ‍शंकर की जान संकट में आ गई थी। हालांकि भस्मासुर का नाम कुछ और था लेकिन भस्म करने का वरदान प्राप्त करने के कारण उसका नाम भस्मासुर पड़ गया।भस्मासुर एक महापापी असुर था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो तब भस्मासुर ने वरदान मांगा कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने कहा- तथास्तु।भस्मासुर ने इस वरदान के मिलते ही कहा, भगवन् क्यों न इस वरदान की शक्ति को परख लिया जाए। तब वह स्वयं शिवजी के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। शिवजी भी वहां से भागे और विष्णुजी की शरण में छुप गए। तब विष्णुजी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर भस्मासुर को आकर्षित किया। भस्मासुर शिव को भूलकर उस सुंदर स्त्री के मोहपाश में बंध गया। मोहिनी स्त्रीरूपी विष्णु ने भस्मासुर को खुद के साथ नृत्य करने के लिए प्रेरित किया। भस्मासुर तुरंत ही मान गया।नृत्य करते समय भस्मासुर मोहिनी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णुजी ने अपने सिर पर हाथ रखा। शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने जिसकी नकल की और भस्मासुर अपने ही प्राप्त वरदान से भस्म हो गया।भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई। माना जाता है कि वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकुटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की आराधना करते हैं।वृंदा के साथ छल〰️〰️〰️〰️〰️ श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार जलंधर असुर शिव का अंश था, लेकिन उसे इसका पता नहीं था। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। इंद्र को पराजित कर जलंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था। यमराज भी उससे डरते थे।श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया तथा इससे जलंधर उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को इससे अपने शक्तिशाली होने का अभिमान हो गया और वह वृंदा के पतिव्रत धर्म की अवहेलना करके देवताओं के विरुद्ध कार्य कर उनकी स्त्रियों को सताने लगा।जलंधर को मालूम था कि ब्रहांड में सबसे शक्तिशाली कोई है तो वे हैं देवों के देव महादेव। जलंधर ने खुद को सर्वशक्तिमान रूप में स्थापित करने के लिए क्रमश: पहले इंद्र को परास्त किया और त्रिलोकाधिपति बन गया। इसके बाद उसने विष्णु लोक पर आक्रमण किया।जलंधर ने विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेने की योजना बनाई। इसके चलते उसने बैकुण्ठ पर आक्रमण कर दिया, लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों ही जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हम भाई-बहन हैं। देवी लक्ष्मी की बातों से जलंधर प्रभावित हुआ और लक्ष्मी को बहन मानकर बैकुण्ठ से चला गया।इसके बाद उसने कैलाश पर आक्रमण करने की योजना बनाई और अपने सभी असुरों को इकट्ठा किया और कैलाश जाकर देवी पार्वती को पत्नी बनाने के लिए प्रयास करने लगा। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और तब महादेव को जलंधर से युद्घ करना पड़ा, लेकिन वृंदा के सतीत्व के कारण भगवान शिव का हर प्रहार जलंधर निष्फल कर देता था।अंत में देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति जलंधर समझकर उनके साथ पत्नी के समान व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया।विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्मा। तुलसी देवी वृंदा का ही स्वरूप है जिसे भगवान विष्णु लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय मानते हैं।भारत के पंजाब प्रांत में वर्तमान जालंधर नगर जलंधर के नाम पर ही है। जालंधर में आज भी असुरराज जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। मान्यता है कि यहां एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। माना जाता है कि प्राचीनकाल में इस नगर के आसपास 12 तालाब हुआ करते थे। नगर में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता थामोहिनी बनकर किया असुरों के साथ छल 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ जब इन्द्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए, तब हताश और निराश हुए देवता ब्रह्माजी को साथ लेकर श्रीहरि विष्णु के आश्रय में गए और उनसे अपना स्वर्गलोक वापस पाने के लिए प्रार्थना करने लगे।श्रीहरि ने कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मदरांचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अजर-अमर कर दूंगा तत्पश्चात ही देवता, दैत्यों का विनाश करके पुनः स्वर्ग का आधिपत्य पा सकेंगे।देवताओं के राजा इन्द्र दैत्यों के राजा बलि के पास गए और उनके समक्ष समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा और अमृत की बात बताई। अमृत के लालच में आकर दैत्य ने देवताओं का साथ देने का वचन दिया। देवताओं और दैत्यों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मदरांचल पर्वत को उठाकर समुद्र तट पर लेकर जाने की चेष्टा की लेकिन नहीं उठा पाए तब श्रीहरि ने उसे उठाकर समुद्र में रख दिया।मदरांचल को मथानी एवं वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन का शुभ कार्य आरंभ हुआ। श्रीविष्णु की नजर मथानी पर पड़ी, जो कि अंदर की ओर धंसती चली जा रही थी। यह देखकर उन्होंने स्वयं कच्छप बनाकर अपनी पीठ पर मदरांचल पर्वत को रख लिया।तत्पश्चात समुद्र मंथन से लक्ष्मी, कौस्तुभ, पारिजात, सुरा, धन्वंतरि, चंद्रमा, पुष्पक, ऐरावत, पाञ्चजन्य, शंख, रम्भा, कामधेनु, उच्चैःश्रवा और अंत में अमृत कुंभ निकले जिसे लेकर धन्वन्तरिजी आए। उनके हाथों से अमृत कलश छीनकर दैत्य भागने लगे ताकि देवताओं से पूर्व अमृतपान करके वे अमर हो जाएं। दैत्यों के बीच कलश के लिए झगड़ा शुरू हो गया और देवता हताश खड़े थे।श्रीविष्णु अति सुंदर नारी का रूप धारण करके देवता और दैत्यों के बीच पहुंच गए और उन्होंने अमृत को समान रूप से बांटने का प्रस्ताव रखा। दैत्यों ने मोहित होकर अमृत का कलश श्रीविष्णु को सौंप दिया। मोहिनी रूपधारी विष्णु ने कहा कि मैं जैसे भी विभाजन का कार्य करूं, चाहे वह उचित हो या अनुचित, तुम लोग बीच में बाधा उत्पन्न न करने का वचन दो तभी मैं इस काम को करूंगी।सभी ने मोहिनीरूपी भगवान की बात मान ली। देवता और दैत्य अलग-अलग पंक्तियों में बैठ गए। मोहिनी रूप धारण करके विष्णु ने छल से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया, लेकिन इससे दैत्यों में भारी आक्रोश फैल गया।असुरराज बलि के साथ छल〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के दो प्रमुख पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थे। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ।राजा बलि का राज्य संपूर्ण दक्षिण भारत में था। उन्होंने महाबलीपुरम को अपनी राजधानी बनाया था। आज भी केरल में ओणम का पर्व राजा बलि की याद में ही मनाया जाता है। राजा बलि ने विश्वविजय की सोचकर अश्वमेध यज्ञ किया और इस यज्ञ के चलते उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी। अग्निहोत्र सहित उसने 98 यज्ञ संपन्न कराए थे और इस तरह उसके राज्य और शक्ति का विस्तार होता ही जा रहा था, तब उसने इंद्र के राज्य पर चढ़ाई करने की सोची। इस तरह राजा बलि ने 99वें यज्ञ की घोषणा की और सभी राज्यों और नगरवासियों को निमंत्रण भेजा। देवताओं की ओर गंधर्व और यक्ष होते थे, तो दैत्यों की ओर दानव और राक्षस। अंतिम बार हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद और उनके पुत्र राजा बलि के साथ इन्द्र का युद्ध हुआ और देवता हार गए, तब संपूर्ण जम्बूद्वीप पर असुरों का राज हो गया।वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वे आदित्यों में 12वें थे। ऐसी मान्यता है कि वे इन्द्र के छोटे भाई थे और राजा बलि के सौतेले भाई। विष्णु ने इसी रूप में जन्म लिया था। देवता बलि को नष्ट करने में असमर्थ थे। बलि ने देवताओं को यज्ञ करने जितनी भूमि ही दे रखी थी। तब सभी देवता विष्णु की शरण में गए। विष्णु ने कहा कि वह भी (बलि भी) उनका भक्त है, फिर भी वे कोई युक्ति सोचेंगे।तब विष्णु ने अदिति के यहां जन्म लिया और एक दिन जब बलि यज्ञ की योजना बना रहा था तब वे ब्राह्मण-वेश में वहां दान लेने पहुंच गए। उन्हें देखते ही शुक्राचार्य उन्हें पहचान गए। शुक्र ने उन्हें देखते ही बलि से कहा कि वे विष्णु हैं। मुझसे पूछे बिना कोई भी वस्तु उन्हें दान मत करना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी और वामन के दान मांगने पर उनको तीन पग भूमि दान में दे दी।जब जल छोड़कर सब दान कर दिया गया, तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया। भगवान ने एक पग में भूमंडल नाप लिया। दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? पूछने पर बलि ने मुस्कराकर कहा- इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा सिर ही बचा है। इस प्रकार विष्णु ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उसे पाताल में रसातल का कलियुग के अंत तक राजा बने रहने का वरदान दे दिया। तब बलि ने विष्णु से एक और वरदान मांगा। राजा बलि ने कहा कि भगवान यदि आप मुझे पाताल लोक का राजा बना ही रहे हैं तो मुझे वरदान ‍दीजिए कि मेरा साम्राज्य शत्रुओं के प्रपंचों से बचा रहे और आप मेरे साथ रहें। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया।पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों प्रहर भगवान विष्णु सशरीर उपस्थित रह उनकी रक्षा करने लगे और इस तरह बलि निश्चिंत होकर सोता था और संपूर्ण पातालपुरी में शुक्राचार्य के साथ रहकर एक नए धर्म राज्य की व्यवस्था संचालित करता है।माता पार्वती के साथ छल〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम कभी भगवान शिव और पार्वती का विश्राम स्थान हुआ करता था। यहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे लेकिन श्रीहरि विष्णु को यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे प्राप्त करने के लिए योजना बनाई।पुराण कथा के अनुसार सतयुग में जब भगवान नारायण बद्रीनाथ आए तब यहां बदरीयों यानी बेर का वन था और यहां भगवान शंकर अपनी अर्द्धांगिनी पार्वतीजी के साथ आनंद से रहते थे। एक दिन श्रीहरि विष्णु बालक का रूप धारण कर जोर-जोर से रोने लगे। उनके रुदन को सुनकर माता पार्वती को बड़ी पीड़ा हुई। वे सोचने लगीं कि इस बीहड़ वन में यह कौन बालक रो रहा है? यह आया कहां से? और इसकी माता कहां है? यही सब सोचकर माता को बालक पर दया आ गई। तब वे उस बालक को लेकर अपने घर पहुंचीं। शिवजी तुरंत ही ‍समझ गए कि यह कोई विष्णु की लीला है। उन्होंने पार्वती से इस बालक को घर के बाहर छोड़ देने का आग्रह किया और कहा कि वह अपने आप ही कुछ देर रोकर चला जाएगा। लेकिन पार्वती मां ने उनकी बात नहीं मानी और बालक को घर में ले जाकर चुप कराकर सुलाने लगी। कुछ ही देर में बालक सो गया तब माता पार्वती बाहर आ गईं और शिवजी के साथ कुछ दूर भ्रमण पर चली गईं। भगवान विष्णु को इसी पल का इंतजार था। इन्होंने उठकर घर का दरवाजा बंद कर दिया।भगवान शिव और पार्वती जब घर लौटे तो द्वार अंदर से बंद था। इन्होंने जब बालक से द्वार खोलने के लिए कहा तब अंदर से भगवान विष्णु ने कहा कि अब आप भूल जाइए भगवन्। यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। मुझे यहीं विश्राम करने दी‍जिए। अब आप यहां से केदारनाथ जाएं। तब से लेकर आज तक बद्रीनाथ यहां पर अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं और भगवान शिव केदानाथ में।〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️*,,

तुम्हारी जय हो वीर हनुमान, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ओ राम दूत मत वाले हो बड़े दिल वाले जगत में ऊंची तुम्हारी शान , तुम्हारी जय हो वीर हनुमान, भूख लगी तो समज के फल सूरज को मुख में डाला, अन्धकार फैला श्रिस्ति में हाहाकार विकराला, आन करि विनती देवो ने विपदा को किया निवार, तुम्हारी जय हो वीर हनुमान, सोने की लंका को जला कर रख का ढेर बनाया, तहस मेहस बगियन कर दी अक्षय को मार गिराया, लाये संजीवन भुटटी बचाई भाई लखन की जान, तुम्हारी जय हो वीर हनुमान, रोम रोम में राम रमे बस राम भजन ही भाये, सरल तुम्हारा भजन करे जो संकट उस के मिटाये, तेल सिंधुर चढ़ाये जो लखा दिया अबे का दान, तुम्हारी जय हो वीर हनुमान,,

शिव शंकर तेरी भक्ति का नशा है मुझे भक्ति का नशा है, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भोले नाथ तेरी भक्ति का नशा है तेरी भक्ति का नशा है, दुनिया को भूल आई तेरे चरणों में भोले तेरे चरणों में, ॐ नमः शिवाये भोले ॐ नमः शिवाये, बाबा तेरे चरणों में बेठे रहेगे, भोले तेरा प्यार हम पाके रहेगे, जब तक तू नही माने गा शम्भू मनाते रहेगे, ॐ नमः शिवाये भोले ॐ नमः शिवाये, जिसने भी बाबा तेरा ध्यान धरा है भोले ध्यान धरा, संसार में उसका मान बड़ा है मान बड़ा है, के मैंने भी बाबा तेरा दर पकड़ा है दर पकड़ा है, ॐ नमः शिवाये भोले ॐ नमः शिवाये, ,

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सिया राम के काज सवार दानव दल चुन चुन के मारे, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कोई न इनसा है बलवान शक्तिमान हनुमान, जय बाला जी हनुमान जय जय बालाजी हनुमान, रघुवर से सुग्रीव मिलाये सीता माँ की सुध ये लाये, सारे दानव मार गिराए लंका को धु धु ये जलाये, खतरों से कभी न हारे ऐसे है ये राम के प्यारे, लखा है राम जी मान हनुमान हनुमान, जय बाला जी हनुमान जय जय बालाजी हनुमान, लक्ष्मण मुर्षित हुए यो रन में लाये संजीवनी ये तो पल में, अहिरावण को मार गिराया कैद से राम लखन को छुड़ाया, राम ने अपने गले लगाया भाई भरत सा इनको बताया, मुख से है जपते माला राम राम राम, जय बाला जी हनुमान जय जय बालाजी हनुमान, हनुमंत राम का बंधन पावन भगति और मुक्ति का संगम, राम से है हनुमान जी चलते हनुमत बिन श्री राम न मिलते, दोनों ही है तारण हारे भव से नैया पार उतारे करते है मुश्किल हर आसान हनुमान, जय बाला जी हनुमान जय जय बालाजी हनुमान, ,

*सारी दुनिया 2020 को बुरा साल कह रही है* *मगर मेरी जिन्दगी का सबसे बेहतरीन_साल 2020 ही है* *पता है क्यूँ.....* *क्योंकि इस साल ने मेरे_राम को तिरपाल से निकाल कर मन्दिर दिया है* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, 🙏🙏🙏 🚩 *जय_श्री_राम* 🚩

 

*एक बार किसी ने कबीर जी से पूछा**"किसको भज रहे हो जी? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब "**कबीर जी ने कहा" राम जी को"**फिर उसने पूछा "कौन से राम जी को?"**उसने कहा "मैंने सुना है राम तो कई हैं।**एक राम अवधेश कुमारा,**एक राम दसरथ कर बेटा,**एक राम घट घट में लेटा,**एक राम है जगत पसारा**और एक राम है सभी से न्यारा।"**तो कबीर साहिब को हंसी आ गई और कबीर साहिब थोड़ा टेढ़ा बोल देते थे, दिल पर चुभ जाये ऐसी बात।**तो उन्होंने कहा:--**"तुम्हारी दृष्टि में राम चार है तो मेरी दृष्टि में तुम्हारे बाप भी चार है।"**व्यक्ति को गुस्सा आया और बोला की महाराज ऐसे कैसे बोल रहे हो।**तो कबीर जी बोले की भाई क्रोद्ध मत करो । मैं तुम्हे चारों गिना देता हूँ :--**एक बाप तेरे चाचा को भाई,**एक बाप तेरे दादा को जायो**एक बाप तेरे नाना को जवाई**एक बाप तेरे फूफा को सालो।**तो उस आदमी ने कहा:--* *"महाराज ये तो चारो एक ही है"।**तब कबीर साहिब बोले जैसे ये चारों एक है, वैसे ही मेरो राम भी एक ही है:--**सोई राम अवधेश का राजा**सोई राम दसरथ कर बेटा**सोई राम घट घट में लेटा**सोई राम है जगत पसारा**सोई राम है सभी से न्यारा।**अतः राम तो एक ही है।**बोलो... राम राम राम राम**श्री राम जय राम जय जय राम**श्री राम जय राम जय जय राम*,