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*प्रेमाधीन कृष्ण* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबकृष्ण का नाम लेते हुए एक गोपी की आँखें बन्द हो गयीं, अश्रुधाराऐं बहने लगीं। कृष्ण ! कृष्ण ! कहते-कहते बेसुध होकर वो कब जमीन पर गिर गयी, उसे मालूम भी न हुआ। इस बेसुधी में कृष्ण कब उसके पास आकर बैठ गये, उसे यह भी पता न चला। थोड़ी देर बाद जब उसकी आँख खुली तो सामने प्रियतम को देखकर हैरान हो गयी। पूछा - "रे कान्हा ! कब आया ?" कृष्ण ने कहा - "यह तो पता नहीं कब आया, पर जब से आया, तुझ ही को एक टक देख रहा हूँ।" गोपी कहती - "हद हो गयी ! हम तेरा दर्शन करें तो समझ लगती है, तू हमें क्यों देखेगा ?"बाल वनिता महिला आश्रम कृष्ण ने कहा - "मैं तुझे नहीं, तेरे इस प्रेम को रोमांच को देख रहा हूँ। तेरी आँखों से बहती हुई प्रेम की अश्रुधाराओं को देख रहा हूँ। मैं तुझे नहीं, तेरे हृदय में प्रकट हुए इस प्रेम रूपी परमात्मा के दर्शन कर रहा हूँ। अरे गोपी ! ऐसा दर्शन तो मुझे भी दुर्लभ होता है।"*💐राधे राधे जी💐* 🌹🌹🌹🌹🌹🌹

*प्रेमाधीन कृष्ण* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कृष्ण का नाम लेते हुए एक गोपी की आँखें बन्द हो गयीं, अश्रुधाराऐं बहने लगीं। कृष्ण ! कृष्ण ! कहते-कहते बेसुध होकर वो कब जमीन पर गिर गयी, उसे मालूम भी न हुआ। इस बेसुधी में कृष्ण कब उसके पास आकर बैठ गये, उसे यह भी पता न चला।       थोड़ी देर बाद जब उसकी आँख खुली तो सामने प्रियतम को देखकर हैरान हो गयी। पूछा - "रे कान्हा ! कब आया ?" कृष्ण ने कहा - "यह तो पता नहीं कब आया, पर जब से आया, तुझ ही को एक टक देख रहा हूँ।" गोपी कहती - "हद हो गयी ! हम तेरा दर्शन करें तो समझ लगती है, तू हमें क्यों देखेगा ?" बाल वनिता महिला आश्रम        कृष्ण ने कहा - "मैं तुझे नहीं, तेरे इस प्रेम को रोमांच को देख रहा हूँ। तेरी आँखों से बहती हुई प्रेम की अश्रुधाराओं को देख रहा हूँ। मैं तुझे नहीं, तेरे हृदय में प्रकट हुए इस प्रेम रूपी परमात्मा के दर्शन कर रहा हूँ। अरे गोपी ! ऐसा दर्शन तो मुझे भी दुर्लभ होता है।" *💐राधे राधे जी💐*                        🌹🌹🌹🌹🌹🌹

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है।लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे।1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है।रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।3- विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया।तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं।इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।4- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।5- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे, जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे, तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम के द्वारा बाण चढ़ा देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।6- वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया l7- जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष की थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।8- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण (यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।9- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं। 10- रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।11- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।12- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे, जबकि वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक वानरों ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं, जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था, उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।24- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।25- रावण जब विशव विजय पर निकला तब वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां रावण और यमराज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने कालदंड के प्रयोग द्वारा रावण के प्राण लेने चाहे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।26- वाल्मीकि रामायण में 24 हज़ार श्लोक, 500 उपखण्ड, तथा सात कांड है।

आज हम आपको वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें बतायेगें !!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। बाल वनिता महिला आश्रम लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है। आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस

राम जी की सेना में कितने सैनिक थे?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबश्री राम के सेना में असंख्य वानर थे। यही श्री राम की विशेषता है। कहां सीता हरण के पश्चात् केवल वे दो भाई ही रह गए थे। किन्तु अपने बल, पराक्रम, पुरुषार्थ और धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने सुग्रीव से मित्रता की और अपने अधीन करोड़ों वानरों को कर लिया जो कि उनके लिए अपने प्राण तक दे सकते थे।खैर अब उत्तर पर आते हैं। जब श्री राम की सेना ने समुद्र पार करके लंका पर डेरा डाला, तब रावण ने अपने दूत शुक को श्री राम की सेना में भेजा था। शुक ने श्री राम की सेना की संख्या का उल्लेख करते हुए रावण से कहा -#बाल_वनिता_महिला_आश्रमउद्धरण -इनकी संख्या इक्कीस कोटि सहस्र, सहस्र शङ्कु और सौ वृन्द है। ये सब-के-सब वानर सदा किष्किन्धामें रहनेवाले सुग्रीवके मन्त्री हैं। इनकी उत्पत्ति देवताओं और गन्धर्वोंसे हुर्इ है। ये सभी इच्छानुसार रूप धारण करनेमें समर्थ हैं॥ ४-५ ॥स्रोत : युद्ध कांड, अध्याय २८, वाल्मीकी रामायण, गीताप्रेस संस्करणइन संख्याओं का इसी अध्याय में आगे स्पष्टीकरण करते हुए वाल्मीकी लिखते हैं -उद्धरण -मनीषी पुरुष सौ लाखकी संख्याको एक कोटि कहते हैं और सौ सहस्र कोटि (एक नील)-को एक शङ्कु कहा जाता है॥ ३३ ॥एक लाख शङ्कुको महाशङ्कु नाम दिया गया है। एक लाख महाशङ्कुको वृन्द कहते हैं॥ ३४ ॥एक लाख वृन्दका नाम महावृन्द है। एक लाख महावृन्दको पद्म कहते हैं॥ ३५ ॥एक लाख पद्मको महापद्म माना गया है। एक लाख महापद्मको खर्व कहते हैं॥ ३६ ॥एक लाख खर्वका महाखर्व होता है। एक सहस्र महाखर्वको समुद्र कहते हैं। एक लाख समुद्रको ओघ कहते हैं और एक लाख ओघकी महौघ संज्ञा है॥ ३७ १/२ ॥इस प्रकार सहस्र कोटि, सौ शङ्कु, सहस्र महाशङ्कु, सौ वृन्द, सहस्र महावृन्द, सौ पद्म, सहस्र महापद्म, सौ खर्व, सौ समुद्र, सौ महौघ तथा समुद्र-सदृश (सौ) कोटि महौघ सैनिकोंसे, वीर विभीषणसे तथा अपने सचिवोंसे घिरे हुए वानरराज सुग्रीव आपको युद्धके लिये ललकारते हुए सामने आ रहे हैं। विशाल सेनासे घिरे हुए सुग्रीव महान् बल और पराक्रमसे सम्पन्न हैं॥ ३८—४१ ॥स्रोत : युद्ध कांड, अध्याय २८, वाल्मीकी रामायण, गीताप्रेस संस्करण

राम जी की सेना में कितने सैनिक थे? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्री राम के सेना में असंख्य वानर थे। यही श्री राम की विशेषता है। कहां सीता हरण के पश्चात् केवल वे दो भाई ही रह गए थे। किन्तु अपने बल, पराक्रम, पुरुषार्थ और धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने सुग्रीव से मित्रता की और अपने अधीन करोड़ों वानरों को कर लिया जो कि उनके लिए अपने प्राण तक दे सकते थे। खैर अब उत्तर पर आते हैं। जब श्री राम की सेना ने समुद्र पार करके लंका पर डेरा डाला, तब रावण ने अपने दूत शुक को श्री राम की सेना में भेजा था। शुक ने श्री राम की सेना की संख्या का उल्लेख करते हुए रावण से कहा - #बाल_वनिता_महिला_आश्रम उद्धरण - इनकी संख्या इक्कीस कोटि सहस्र, सहस्र शङ्कु और सौ वृन्द है । ये सब-के-सब वानर सदा किष्किन्धामें रहनेवाले सुग्रीवके मन्त्री हैं। इनकी उत्पत्ति देवताओं और गन्धर्वोंसे हुर्इ है। ये सभी इच्छानुसार रूप धारण करनेमें समर्थ हैं॥ ४-५ ॥ स्रोत : युद्ध कांड, अध्याय २८, वाल्मीकी रामायण, गीताप्रेस संस्करण इन संख्याओं का इसी अध्याय में आगे स्पष्टीकरण करते हुए वाल्मीकी लिखते हैं - उद्धरण - मनीषी पुरुष सौ लाखकी संख्याको ए

🌹रावण के मूर्छित होने पर क्यों रोने लगे हनुमान जी🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🙏🌹🌹🙏हनुमान जी अजर और अमर हैं। हनुमान ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त हनुमान जी की शरण में आएगा उसका कलियुग में कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा। जिन भक्तों ने पूर्ण भाव एवं निष्ठा से हनुमान जी की भक्ति की है, उनके कष्टों को हनुमान जी ने शीघ्र ही दूर किया है। हनुमान भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता उनके संकटों को हनुमान जी स्वयं हर लेते हैं। इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठको को हनुमानजी से संबंधित एक रोचक प्रसंग बताने जा रहे हैं। क्या आपको पता है कि आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं करते थे, अपितु मुक्के का प्रयोग करते थे।रामचरितमानस में हनुमान जी को "महावीर" कहा गया है। शास्त्रों में "वीर" शब्द का उपयोग बहुतो हेतु किया गया है।जैसे भीम, भीष्म, मेघनाथ, रावण, इत्यादि परंतु "महावीर" शब्द मात्र हनुमान जी के लिए ही उपयोग होता है। रामचरितमानस के अनुसार "वीर" वो है जो पांच लक्षण से परिपूर्ण हों1.विद्या-वीर, 2.धर्म-वीर, 3.दान-वीर, 4.कर्म-वीर, 5.बलवीर।परंतु "महावीर" वो है जिसने पांच लक्षण से युक्त वीर को भी अपने वश में कर रखा हो। भगवान् श्री राम में पांच लक्षण थे और हनुमान जी ने उन्हें भी अपने वश में कर रखा था। रामचरितमानस मानस की यह चौपाई इसे सिद्ध करती है"सुमिर पवनसुत पावननामु। अपने वस करि राखे रामू"तथा रामचरितमानस मानस में "महाबीर विक्रम बजरंगी" भी प्रयोग हुआ है।शास्त्रानुसार इंद्र के "एरावत" में 10,000 हाथियों के बराबर बल होता है। "दिग्पाल" में 10,000 एरावत जितना बल होता है। इंद्र में 10,000 दिग्पाल का बल होता है। परंतु शास्त्रों में हनुमान जी की सबसे छोटी उगली में 10,000 इंद्र का बल होता है।शास्त्रों में वर्णित इस प्रसंग के अनुसार रावण पुत्र मेघनाथ हनुमानजी के मुक्के से बहुत डरता था। हनुमान जी को देखते ही मेघनाथ भाग खड़ा होता था। जब रावण ने हनुमान के मुक्के कि प्रशंसा सुनि तो उसने हनुमान जी का सामना कर हनुमानजी से बोला,"आपका मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा मेरे ऊपर भी आजमाओ, मैं आपको एक मुक्का मारूंगा और आप मुझे मारना।"फिर हनुमानजी ने कहा "ठीक है! पहले आप मारो।"रावण ने कहा "मै क्यों मारूँ ? पहले आप मारो"।हनुमान बोले "आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे"।अब रावण ने पहले हनुमान जी को मुक्का मारा। इस प्रकरण की पुष्टि यह चौपाई कर्ट है "देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर। आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर"।रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे। रावण मोह का प्रतीक है और मोह का मुक्का इतना तगड़ा होता है कि अच्छे-अच्छे संत भी अपने घुटने टेक देते हैं। फिर हनुमानजी ने रावण को एक घुसा मारा। रावण ऐसा गिर पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो। रावण मूर्च्छा भंग होने पर फिर वह जागा और हनुमानजी के बड़े भारी बल को सराहने लगा, गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि "अहंकारी रावण किसी की प्रशंसा नहीं करता पर मजबूरन हनुमान जी की प्रशसा कर रहा है।प्रशंसा सुनकर हनुमान जो को प्रसन्न होना चाहिए पर वे तो रो रहे हैं स्वयं को धिक्कार रहे हैं" गोस्वामी जी के अनुसार हनुमानजी ने रोते हुए कहा कि "मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है, 'जो हे देवद्रोही! तू अब भी जीता रह गया'हनुमान जी के लिये रावण को मारना बड़ी बात नहीं थी लेकिन उसे तो प्रभु श्री रामचन्द्रजी के हाथों से मुक्ति मिलनी थी अर्थात हनुमान जी का मुक्का खाने के बाद भी रामद्रोही रावण जीवित है। मोह की ताकत देखो, मोह को यदि कोई मार सकता है तो केवल भगवान श्रीराम उनके अलावा कोई नहीं मार सकता। इसकी पुष्टि यह चौपाई करती है.."मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसिसुरद्रोही"।🌹जय सियाराम जय जय सियाराम🌹 🙏🙏

🌹रावण के मूर्छित होने पर क्यों रोने लगे हनुमान जी🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏🌹🌹🙏 हनुमान जी अजर और अमर हैं। हनुमान ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त हनुमान जी की शरण में आएगा उसका कलियुग में कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा।  जिन भक्तों ने पूर्ण भाव एवं निष्ठा से हनुमान जी की भक्ति की है, उनके कष्टों को हनुमान जी ने शीघ्र ही दूर किया है। हनुमान भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता उनके संकटों को हनुमान जी स्वयं हर लेते हैं।  इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठको को हनुमानजी से संबंधित एक रोचक प्रसंग बताने जा रहे हैं। क्या आपको पता है कि आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं करते थे, अपितु मुक्के का प्रयोग करते थे। रामचरितमानस में हनुमान जी को "महावीर" कहा गया है। शास्त्रों में "वीर" शब्द का उपयोग बहुतो हेतु किया गया है। जैसे भीम, भीष्म, मेघनाथ, रावण, इत्यादि परंतु "महावीर" शब्द मात्र हनुमान जी के लिए ही उपयोग होता है। रामचरितमानस के अनुसार "वीर" वो है जो पांच लक्षण से परिपूर्ण हों 1.विद्या-वी

🌹🙏🏻🌹जय तुलसी माँ🌹🙏🏻🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🙏🏻🙏🏻तुलसी जी को तोडने के नियम!!🙏🏻🙏🏻🌺 तुलसी जी को नाखूनों से कभी नहीं तोडना चाहिए,नाखूनों के तोडने से पाप लगता है।🌺.सांयकाल के बाद तुलसी जी को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए।🌺सांयकाल के बाद तुलसी जी लीला करने जाती है। 🌺 जो स्त्री तुलसी जी की पूजा करती है। उनका सौभाग्य अखण्ड रहता है । उनके घरसत्पुत्र का जन्म होता है ।🌺 द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोडना चाहिए ।🌺रविवार को तुलसी पत्र नहींतोड़ने चाहिए ।🌺तुलसी जी वृक्ष नहीं है! साक्षात् राधा जी का अवतार है ।बाल वनिता महिला आश्रम***************************************************🌹🌿🌹"तुलसी वृक्ष ना जानिये।गाय ना जानिये ढोर।।गुरू मनुज ना जानिये।ये तीनों नन्दकिशोर।।🌹🌿🌹🌿🏵️🌿अर्थात-🌿🏵️🌿🍀🌼🍀तुलसी को कभी पेड़ ना समझेंगाय को पशु समझने की गलती ना करें और गुरू को कोई साधारण मनुष्य समझने की भूल ना करें, क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप हैं।🍀🌼🍀

🌹🙏🏻🌹जय तुलसी माँ🌹🙏🏻🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏🏻🙏🏻तुलसी जी को तोडने के नियम!!🙏🏻🙏🏻 🌺 तुलसी जी को नाखूनों से कभी नहीं तोडना चाहिए,नाखूनों के तोडने से पाप लगता है। 🌺.सांयकाल के बाद तुलसी जी को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। 🌺सांयकाल के बाद तुलसी जी लीला करने जाती है।  🌺 जो स्त्री तुलसी जी की पूजा करती है। उनका सौभाग्य अखण्ड रहता है । उनके घरसत्पुत्र का जन्म होता है । 🌺 द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोडना चाहिए । 🌺रविवार को तुलसी पत्र नहींतोड़ने चाहिए । 🌺तुलसी जी वृक्ष नहीं है! साक्षात् राधा जी का अवतार है । बाल वनिता महिला आश्रम *************************************************** 🌹🌿🌹"तुलसी वृक्ष ना जानिये। गाय ना जानिये ढोर।। गुरू मनुज ना जानिये। ये तीनों नन्दकिशोर।।🌹🌿🌹 🌿🏵️🌿अर्थात-🌿🏵️🌿 🍀🌼🍀तुलसी को कभी पेड़ ना समझें गाय को पशु समझने की गलती ना करें और गुरू को कोई साधारण मनुष्य समझने की भूल ना करें, क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप हैं।🍀🌼🍀

🌹भक्ति कब प्राप्त होती है!!🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबश्री अयोध्या जी में एक उच्च कोटि के संत रहते थे, इन्हें रामायण का श्रवण करने का व्यसन था। जहां भी कथा चलती वहाँ बड़े प्रेम से कथा सुनते, कभी किसी प्रेमी अथवा संत से कथा कहने की विनती करते। एक दिन राम कथा सुनाने वाला कोई मिला नहीं। वही पास से एक पंडित जी रामायण की पोथी लेकर जा रहे थे। पंडित जी ने संत को प्रणाम् किया और पूछा की महाराज ! क्या सेवा करे ? संत ने कहा, पंडित जी, रामायण की कथा सुना दो परंतु हमारे पास दक्षिणा देने के लिए रुपया नहीं है, हम तो फक्कड़ साधु है। माला, लंगोटी और कमंडल के अलावा कुछ है नहीं और कथा भी एकांत में सुनने का मन है हमारा। पंडित जी ने कहा, ठीक है महाराज, संत और कथा सुनाने वाले पंडित जी दोनों सरयू जी के किनारे कुंजो में जा बैठे।पंडित जी और संत रोज सही समय पर आकर वहाँ विराजते और कथा चलती रहती। संत बड़े प्रेम से कथा श्रवण करते थे और भाव विभोर होकर कभी नृत्य करने लगते तो कभी रोने लगते। जब कथा समाप्त हुई तब संत ने पंडित जी से कहा, पंडित जी.. आपने बहुत अच्छी कथा सुनायी। हम बहुत प्रसन्न है, हमारे पास दक्षिणा देने के लिए रूपया तो नहीं है परंतु आज आपको जो चाहिए वह आप मांगो। संत सिद्ध कोटि के प्रेमी थे, श्री सीताराम जी उनसे संवाद भी किया करते थे। पंडित जी बोले, महाराज हम बहुत गरीब है, हमें बहुत सारा धन मिल जाये। संत ने प्रार्थना की कि प्रभु इसे कृपा कर के धन दे दीजिये। भगवान् ने मुस्कुरा दिया.. संत बोले.. तथास्तु.. फिर संत ने पूछा, मांगो और क्या चाहते हो ? पंडित जी बोले, हमारे घर पुत्र का जन्म हो जाए। संत ने पुनः प्रार्थना की और श्रीराम जी मुस्कुरा दिए। संत बोले, तथास्तु, तुम्हे बहुत अच्छा ज्ञानी पुत्र होगा। फिर संत बोले और कुछ माँगना है तो मांग लो। पंडित जी बोले, श्री सीताराम जी की अखंड भक्ति, प्रेम हमें प्राप्त हो। संत बोले, नहीं ! यह नहीं मिलेगा। पंडित जी आश्चर्य में पड़ गए की महात्मा क्या बोल गए। पंडित जी ने पूछा, संत भगवान् ! यह बात समझ नहीं आयी। संत बोले, तुम्हारे मन में प्रथम प्राथमिकता धन, सम्मान, घर की है। दूसरी प्राथमिकता पुत्र की है और अंतिम प्राथमिकता भगवान् की भक्ति की है। जब तक हम संसार को, परिवार, धन, पुत्र आदि को प्राथमिकता देते है तब तक भक्ति नहीं मिलती। भगवान् ने जब केवट से पूछा की तुम्हे क्या चाहिए ? केवट ने कुछ नहीं माँगा।प्रभु ने पूछा, तुम्हे बहुत सा धन देते है, केवट बोला नहीं.. प्रभु ने कहा, ध्रुव पद ले लो, केवट बोला, नहीं.. इंद्र पद, पृथ्वी का राजा, और मोक्ष तक देने की बात की परंतु केवट ने कुछ नहीं लिया तब जाकर प्रभु ने उसे भक्ति प्रदान की। हनुमान जी को जानकी माता ने अनेकों वरदान दिए, बल, बुद्धि, सिद्धि, अमरत्व आदि परंतु उन्हे प्रसन्नता नहीं हुई। अंत में जानकी जी ने श्री राम जी का प्रेम, अखंड भक्ति का वर दिया। प्रह्लाद जी ने भी कहा की हमारे मन में मांगने की कभी कोई इच्छा ही न उत्पन्न हो तब भगवान् ने अखंड भक्ति प्रदान की।🌹जय श्री सीताराम 🌹

🌹भक्ति कब प्राप्त होती है!!🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्री अयोध्या जी में एक उच्च कोटि के संत रहते थे, इन्हें रामायण का श्रवण करने का व्यसन था।  जहां भी कथा चलती वहाँ बड़े प्रेम से कथा सुनते, कभी किसी प्रेमी अथवा संत से कथा कहने की विनती करते।  एक दिन राम कथा सुनाने वाला कोई मिला नहीं। वही पास से एक पंडित जी रामायण की पोथी लेकर जा रहे थे।  पंडित जी ने संत को प्रणाम् किया और पूछा की महाराज ! क्या सेवा करे ?  संत ने कहा, पंडित जी, रामायण की कथा सुना दो परंतु हमारे पास दक्षिणा देने के लिए रुपया नहीं है, हम तो फक्कड़ साधु है।  माला, लंगोटी और कमंडल के अलावा कुछ है नहीं और कथा भी एकांत में सुनने का मन है हमारा।  पंडित जी ने कहा, ठीक है महाराज, संत और कथा सुनाने वाले पंडित जी दोनों सरयू जी के किनारे कुंजो में जा बैठे। पंडित जी और संत रोज सही समय पर आकर वहाँ विराजते और कथा चलती रहती।  संत बड़े प्रेम से कथा श्रवण करते थे और भाव विभोर होकर कभी नृत्य करने लगते तो कभी रोने लगते।  जब कथा समाप्त हुई तब संत ने पंडित जी से कहा, पंडित जी.. आपने बहुत अच्छी कथा सुनायी।  हम बहुत प्रसन्न है, हमारे

🕉हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है🕉🙏By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबप्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था.आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था. "सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू"हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है,प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा भक्त,राम नाम का जप करने वाला हूँ.भगवान बोले कैसे ? हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है. आपको पता है जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया."जौ मोरे मन बच अरू काया,प्रीति राम पद कमल अमाया"तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला,जौ मो पर रघुपति अनुकूला सुनत बचन उठि बैठ कपीसा,कहि जय जयति कोसलाधीसा"यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित हो जाए. यह वचन सुनते हुई मै श्री राम, जय राम, जय-जय राम कहता हुआ उठ बैठा. मै नाम तो लेता हूँ पर भरोसा भरत जी जैसा नहीं किया, वरना मै संजीवनी लेने क्यों जाता,बस ऐसा ही हम करते है हम नाम तो भगवान का लेते है पर भरोसा नही करते, बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, बेटे ने नहीं की तो क्या होगा?उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है वे है न, पर हम भरोसा नहीं करते. बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है.2.🕉 - दूसरी बात प्रभु! बाण लगते ही मै गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मै अभिमान कर रहा था कि मै उठाये हुए हूँ. मेरा दूसरा अभिमान टूट गया, इसी तरह हम भी यही सोच लेते है कि गृहस्थी के बोझ को मै उठाये हुए हूँ,3.🕉 - फिर हनुमान जी कहते है -और एक बात प्रभु ! आपके तरकस में भी ऐसा बाण नहीं है जैसे बाण भरत जी के पास है. आपने सुबाहु मारीच को बाण से बहुत दूर गिरा दिया, आपका बाण तो आपसे दूर गिरा देता है, पर भरत जी का बाण तो आपके चरणों में ला देता है. मुझे बाण पर बैठाकर आपके पास भेज दिया.भगवान बोले - हनुमान जब मैंने ताडका को मारा और भी राक्षसों को मारा तो वे सब मरकर मुक्त होकर मेरे ही पास तो आये, इस पर हनुमान जी बोले प्रभु आपका बाण तो मारने के बाद सबको आपके पास लाता है पर भरत जी का बाण तो जिन्दा ही भगवान के पास ले आता है. भरत जी संत है और संत का बाण क्या है? संत का बाण है उसकी वाणी लेकिन हम करते क्या है, हम संत वाणी को समझते तो है पर सटकते नहीं है, और औषधि सटकने पर ही फायदा करती है.4.🕉 - हनुमान जी को भरत जी ने पर्वत सहित अपने बाण पर बैठाया तो उस समय हनुमान जी को थोडा अभिमान हो गया कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा ? परन्तु जब उन्होंने रामचंद्र जी के प्रभाव पर विचार किया तो वे भरत जी के चरणों की वंदना करके चले है.इसी तरह हम भी कभी-कभी संतो पर संदेह करते है, कि ये हमें कैसे भगवान तक पहुँचा देगे, संत ही तो है जो हमें सोते से जगाते है जैसे हनुमान जी को जगाया, क्योकि उनका मन,वचन,कर्म सब भगवान में लगा है. आप उन पर भरोसा तो करो, तुम्हे तुम्हारे बोझ सहित भगवान के चरणों तक पहुँचा देगे !#बाल_वनिता_महिला_आश्रम🕉जय जय श्री सीता राम🕉🙏

🕉हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है🕉🙏 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था. आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था.   "सुमिरि पवनसुत पावन नामू।    अपने बस करि राखे रामू" हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है, प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा भक्त,राम नाम का जप करने वाला हूँ. भगवान बोले कैसे ?  हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है.    आपको पता है जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया. "जौ मोरे मन बच अरू काया, प्रीति राम पद कमल अमाया" तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला, जौ मो पर रघुपति अनुकूला  सुनत बचन उठि बैठ कपीसा, कहि जय जयति कोसलाधीसा" यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न

🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻 💚🤏 #भागवत_दर्शन 👌💚By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺★ भागवत कहती है , कि भगवत कृपा साधनों से नहीं , बल्कि साधक की सच्ची शरणागति से होती है । साधन तो बहुतों ने बैंक बैलेंस व कोठी - बंगलों के रूप में सभी धामों में इकट्ठे किए हुए हैं , लेकिन उनमें से ईश्वर प्राप्ति की जो सच्ची ललक पैदा नहीं कर पाए , उनके वे सभी साधन धरे के धरे रह गए यानी भगवत कृपा नहीं हुई । भगवान तो भक्त की सच्ची ललक व उत्कंठा देखते हैं । जैसे छोटा बच्चा कोई साधन नहीं करता , लेकिन उसका चिंतन हमेशा अपनी माँ का ही रहता है , यानी उसे अपनी माँ से मिलने की हमेशा ललक रहती है , तो माँ भी उसके जरा सा रोते ही उसे तुरंत गोदी में उठा लेती है । वैसे ही भगवत कृपा के लिए साधन नहीं , साधक की ललक चाहिए । भगवान तो कृपा करने के लिए हमेशा तैयार ही रहते हैं । ★ भक्त यदि सीधा बोले , सीधा चले , सीधा देखे , और सीधा ही व्यवहार करे , तो उसका कल्याण होना निश्चित है , क्योंकि यह काम उसी भक्त के लिए संभव है , जिसमें सात्विकता की पराकाष्ठा हो , वरना तो राग - द्वेष से बच पाना बहुत कठिन है। ऐसे राग - द्वेष से बचे हुए भक्त की दृष्टि स्वयं पर होती है , जबकि दूसरे लोग औरों को देखते हैं , स्वयं को नहीं । वह तो उन्हें उनके हाल पर छोडकर अपने कल्याण को अपना लक्ष्य बनाकर शास्त्रानुसार जीवन जीता है । फिर उसके कल्याण में संशय कैसा । ★ भागवत कहती है , कि दान - धर्म - सेवा और परोपकार से भी ऊंची चीज है , ईश्वर के चरणों में प्रेम , क्योंकि इन सब साधनों की पहुँच अधिक से अधिक स्वर्ग तक ही है , ये बैकुण्ठ तक नहीं पहुंचा पाते । बैकुण्ठ पहुंचने के लिए तो प्रभु प्रेम , और शुद्ध अतःकरण चाहिए । जो कि साधनों से नहीं , बल्कि भजन भक्ति से ही संभव है । जिन प्रभु की प्रसन्नता के लिए योगीजन स्तुतियों को माध्यम बनाते हैं , उन्हीं प्रभु को प्रेम के बल पर गोपियों ने नाच नचवा दिया । प्रेम के वश होकर प्रभु ने गोपियों के सारे नखरे उठाए , और हमेशा - हमेशा के लिए उनके कर्जदार हो गए । 🌹🌿जयश्री राधेकृष्ण🌿🌹 🙏शुभ रात्रि वंदन अभिनंदन जी

🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻🔻        💚🤏 #भागवत_दर्शन 👌💚 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺 ★ भागवत कहती है , कि भगवत कृपा साधनों से नहीं , बल्कि साधक की सच्ची शरणागति से होती है । साधन तो बहुतों ने बैंक बैलेंस व कोठी - बंगलों के रूप में सभी धामों में इकट्ठे किए हुए हैं , लेकिन उनमें से ईश्वर प्राप्ति की जो सच्ची ललक पैदा नहीं कर पाए , उनके वे सभी साधन धरे के धरे रह गए यानी भगवत कृपा नहीं हुई ।  भगवान तो भक्त की सच्ची ललक व उत्कंठा देखते हैं । जैसे छोटा बच्चा कोई साधन नहीं करता , लेकिन उसका चिंतन हमेशा अपनी माँ का ही रहता है , यानी उसे अपनी माँ से मिलने की हमेशा ललक रहती है , तो माँ भी उसके जरा सा रोते ही उसे तुरंत गोदी में उठा लेती है ।   वैसे ही भगवत कृपा के लिए साधन नहीं , साधक की ललक चाहिए । भगवान तो कृपा करने के लिए हमेशा तैयार ही रहते हैं ।  ★ भक्त यदि सीधा बोले , सीधा चले , सीधा देखे , और सीधा

🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿 👏अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब करने वाले शनि देव ने हनुमान को भी दिया था एक वरदान।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷शनिवार का दिन कई प्रकार से खास होता है. शनि ‘शन (shun)’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘उपेक्षित’ या ‘ध्यान से हटना’. ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को मारक माना जाता है. शनिदेव इसके स्वामी हैं जो इंसान के बुरे कर्मों के अनुसार उन्हें दंडित करते हैं. इसलिए शनिवार के दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा की जाती है ताकि शनि के कोप से बचा जा सके. पर शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमानजी की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है. क्यों? हम बता रहे हैं.।#हनुमान और #शनि एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन बहुत रूपों में समान हैं : शास्त्रों के अनुसार शनि की क्रूर दृष्टि हनुमान पर होने के कारण शनिदेव और हनुमान का रंग समान है.-शास्त्रों में शनि द्वारा तपस्या कर शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का उल्लेख मिलता है.-हनुमान संकटमोचन, शनिदेव बुरे कर्मों का दंड देने वाले.~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~-शनिदेव सूर्य-पुत्र हैं और हनुमान सूर्य उपासक (सूर्य के परम भक्त). शनि की अपने अपने पिता सूर्य से नहीं बनती थी. कहते हैं शनि ने सूर्य से युद्ध भी किया जबकि हनुमान पर सूर्य की असीम कृपा मानी जाती है. माना जाता है कि सूर्य ने हनुमान को शक्तियां देकर महावीर हनुमान बनाया.शनि का जन्म अग्नि (आग) से हुआ है जबकि हनुमान का जन्म पवन (हवा) से.-शनिवार के तेल बेचना अशुभ जबकि हनुमान जी को तेल चढ़ाना शुभ माना जाता है.#शिव की उपासना करने वाले शनि के कोप से हमेशा बचे रहते हैं, हनुमान के भक्तों पर भी शनि की कुदृष्टि कभी नहीं पड़ती. इसके पीछे एक धार्मिक पौराणिक कथा है. रावण एक बहुत बड़ा ज्योतिषी भी था. एक बार सभी देवों को हराकर उसने सभी नौ ग्रहों को अपने अधिकार में लिया लिया. सभी ग्रहों को जमीन पर मुंह के बल लिटाकर ग्रहों को वह अपने पैरों के नीचे रखता था. उसका पुत्र पैदा होने के समय सभी ग्रहों को उसने शुभ स्थिति में रख दिया. देवताओं को डर भी था कि इस प्रकार रावण का पुत्र इंद्रजीत अजेय हो जाएगा लेकिन ग्रह भी रावण के पैरों के नीचे दबे होने के कारण कुछ नहीं कर सकते थे.शनि अपनी दृष्टि से रावण की शुभ स्थति को खराब कर सकने में सक्षम थे पर जमीन के बल होने के कारण वह कुछ नहीं कर सकते थे. तब नारद मुनि लंका आए और ग्रहों को जीतने के लिए रावण की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा अपनी इस जीत को इन ग्रहों को उन्हें दिखाना चाहिए जो कि जमीन के बल लेटे होने के कारण वे नहीं देख सकते थे. रावण ने नारद की बात मान ली और ग्रहों का मुंह आसमान की ओर कर दिया. तब शनि ने अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब कर दी. रावण को बात समझ आई और उसने शनि को कारागृह में डाल दिया और वह भाग न सकें इसलिए जेल के द्वार पर इस प्रकार शिवलिंग लगा दी कि उस पर पांव रखे बिना शनिदेव भाग न सकें. तब हनुमान ने लंका आकर शनिदेव को अपने सिर पर बिठाकर मुक्त कराया.शनि के सिर पर बैठने से हनुमान कई बुरे चक्रों में पड़ सकते थे यह जानकर उन्होंने ऐसा किया. तब शनि ने प्रसन्न होकर हनुमान को अपने मारक कोप से हमेशा मुक्त रहने का आशीर्वाद दिया और एक वर मांगने को कहा. हनुमान ने अपने भक्तों को हमेशा शनि के कोप से मुक्त रहने का आशीर्वाद मांगा. इसलिए कहते हैं कि जो भी हनुमान की उपासना करता है उस पर शनि की दृष्टि कभी नहीं पड़ती. 👏 जय श्री हनुमान जी 🙏 जय श्री शनि देव जी 👏🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷

🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿  👏अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब करने वाले शनि देव ने हनुमान को भी दिया था एक वरदान। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷 शनिवार का दिन कई प्रकार से खास होता है. शनि ‘शन (shun)’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘उपेक्षित’ या ‘ध्यान से हटना’. ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को मारक माना जाता है. शनिदेव इसके स्वामी हैं जो इंसान के बुरे कर्मों के अनुसार उन्हें दंडित करते हैं. इसलिए शनिवार के दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा की जाती है ताकि शनि के कोप से बचा जा सके. पर शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमानजी की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है. क्यों? हम बता रहे हैं.। #हनुमान और #शनि एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन बहुत रूपों में समान हैं :  शास्त्रों के अनुसार शनि की क्रूर दृष्टि हनुमान पर होने के कारण शनिदेव और हनुमान का रंग समान है. -शास्त्रों में शनि द्वारा तपस्या कर शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का उल्लेख मिलता है. -हनुमान संकटमोचन, शनिदेव बुरे कर्मों का दंड देने वाले. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ -शनिदेव सूर्य-पुत्र हैं और हनुमान स

🌹 #दुःख में स्वयं की एक अंगुली आंसू पोंछती है#और सुख में दसो अंगुलियाँ ताली बजाती है🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹 #जब स्वयं का शरीर ही ऐसा करता है तो#दुनिया से गिला-शिकवा क्या करना...!!🌹 🌹 #दुनियाँ की सबसे अच्छी किताब हम स्वयं हैं #खुद को समझ लीजिए #सब समस्याओं का समाधान हो जाएगा...🌹 बाल वनिता महिला आश्रम ❤️ #जय श्री कृष्णा जय श्री राधे ❤️🌹 #शुभ_प्रभात🌹

🌹 #दुःख में स्वयं की एक अंगुली       आंसू पोंछती है #और सुख में दसो अंगुलियाँ           ताली बजाती है🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹 #जब स्वयं का शरीर ही ऐसा            करता है तो #दुनिया से गिला-शिकवा          क्या करना...!!🌹          🌹 #दुनियाँ की सबसे       अच्छी किताब हम स्वयं हैं       #खुद को समझ लीजिए               #सब समस्याओं का          समाधान हो जाएगा...🌹                                                                                             बाल वनिता महिला आश्रम                                                   ❤️ #जय श्री कृष्णा जय श्री राधे ❤️ 🌹 #शुभ_प्रभात🌹

#भारत में इस #मंदिर को देखकर #वैज्ञानिक भी अचंभित है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबयह मंदिर #भारत_का_गौरव और दुनिया के लिये #अजूबा है। यह मंदिर #कर्नाटक राज्य में #अरब सागर के किनारे बहुत ही सुन्दर एवं शांत स्थान पर बना हुआ है। यह मंदिर #दुनिया की दूसरी सबसे #ऊंची भगवान शिव की मूर्ति के लिए #प्रसिद्ध है। इस मंदिर का #गोपुरम विश्व में सब से ऊँचा गोपुरम माना जाता है। यह #249 फीट ऊँचा है।वामपंथी, बिकाऊ #इतिहासकारों के कारण ऐसे मंदिरों का #वर्णन किताबों में नहीं है, इसलिये इनका खूब प्रचार कीजिये! #मुरुदेश्वर_मंदिर_कर्नाटक!बाल वनिता महिला आश्रम❤️#भारत माता की जय,#वंदे मातरम,#जय श्री राम!🙏

भारत में इस #मंदिर को देखकर #वैज्ञानिक भी अचंभित है।  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब यह मंदिर #भारत_का_गौरव और दुनिया के लिये #अजूबा है। यह मंदिर #कर्नाटक राज्य में #अरब सागर के किनारे बहुत ही सुन्दर एवं शांत स्थान पर बना हुआ है। यह मंदिर #दुनिया की दूसरी सबसे #ऊंची भगवान शिव की मूर्ति के लिए #प्रसिद्ध है। इस मंदिर का #गोपुरम विश्व में सब से ऊँचा गोपुरम माना जाता है। यह #249 फीट ऊँचा है। वामपंथी, बिकाऊ #इतिहासकारों के कारण ऐसे मंदिरों का #वर्णन किताबों में नहीं है, इसलिये इनका खूब प्रचार कीजिये! #मुरुदेश्वर_मंदिर_कर्नाटक! बाल वनिता महिला आश्रम ❤️ #भारत माता की जय,#वंदे मातरम,#जय श्री राम!🙏

#श्रीरामचरितमानस_के_चमत्कार By #समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जिस घर में 1 माह में मात्र पूर्णिमा को प्रति माह रामायण का पाठ होता है उस घर में अकाल मृत्यु नहीं होती है।*जिस घर में श्री रामचरितमानस रखी होती है वहां कभी भूत, पिशाच, प्रेतों का वास नहीं होता है।*जिस घर में रामायण के पास शाम के समय देशी गाय के घी का दीपक जलाया जाता है उस घर में अन्न की कमी कभी नहीं होती है। जिस घर में श्री रामचरितमानस के पास सुबह शाम गौ माता के घी का दीपक प्रतिदिन जलाया जाता है उस घर में आरोग्य बढ़ता है। बीमारियां कम होती हैं। जिस घर में यदि श्री रामचरितमानस की शाम के समय देशी गाय के घी का दीपक जलाकर श्री रामचरितमानस की आरती प्रतिदिन होती है उस घर पर श्रीराम जी की कृपा सदैव रहती है और घर में शांति का वातावरण रहता है।प्रभु की रहती कृपा रहती है। जिस घर में प्रति सप्ताह रामयण का पाठ होता है उस घर पर श्रीराम जी व माता सीता जी की कृपा सदैव रहती है। उस घर में बच्चों की वृद्धि होती है। जिस घर में प्रतिदिन रामायण का पाठ होता है। उस घर पर भगवान शिव, श्रीराम जी, सीता जी, श्री हनुमानजी, शनिदेव, नव ग्रह, 33 कोटि देवी देवताओं की सदैव कृपा रहती है। उस घर से दरिद्रता भाग जाती है, उस परिवार का यश बढ़ने लगता है, उस घर पर साक्षात माँ लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है। बच्चों को कभी भय नहीे लगता है। भूत , प्रेत , पिशाच वहां प्रवेश नहीं कर सकते हैं । वह घर सुख, शान्ति, समृद्धि, धन, अन्न, संतान, मित्र, पड़ोसी, रिश्तेदारों आदि से परिपूर्ण होता है।बाल वनिता महिला आश्रम *रामायण की एक एक चौपाई लाखों मंत्रो के बराबर है और हर चौपाई कुछ न कुछ देने वाली है। हर भारतीय के घर में रामायण होनी चाहिए। पारिवारिक मैनेजमेंट रामायण हमें सिखाती है।* *रामायण हमें संसार में जीना सिखाती है।*🙏🏼🙏🏼💐💐 राम राम जी

#श्रीरामचरितमानस_के_चमत्कार  By #समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब  जिस घर में 1 माह में मात्र पूर्णिमा को प्रति माह रामायण का पाठ होता है उस घर में अकाल मृत्यु नहीं होती है। *जिस घर में श्री रामचरितमानस रखी होती है वहां कभी भूत, पिशाच, प्रेतों का वास नहीं होता है।* जिस घर में रामायण के पास शाम के समय देशी गाय के घी का दीपक जलाया जाता है उस घर में अन्न की कमी कभी नहीं होती है।  जिस घर में श्री रामचरितमानस के पास सुबह शाम गौ माता के घी का दीपक प्रतिदिन जलाया जाता है उस घर में आरोग्य बढ़ता है। बीमारियां कम होती हैं।  जिस घर में यदि श्री रामचरितमानस की शाम के समय देशी गाय के घी का दीपक जलाकर श्री रामचरितमानस की आरती प्रतिदिन होती है उस घर पर श्रीराम जी की कृपा सदैव रहती है और घर में शांति का वातावरण रहता है। प्रभु की रहती कृपा रहती है।  जिस घर में प्रति सप्ताह रामयण का पाठ होता है उस घर पर श्रीराम जी व माता सीता जी की कृपा सदैव रहती है। उस घर में बच्चों की वृद्धि होती है।  जिस घर में प्रतिदिन रामायण का पाठ होता है। उस घर पर भगवान शिव, श्रीराम जी, सीता जी, श्री हनुमानजी, शनिदेव, नव ग्रह, 33 कोट

. "जगन्नाथजी से जुड़े दस चमत्कार। "By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबपहला चमत्कार :- हवा के विपरीत लहराता ध्वज : श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्चित ही आश्चर्यजनक बात है। यह भी आश्चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।दूसरा चमत्कार :- गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है। पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया। तीसरा चमत्कार :- चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। चौथा चमत्कार :- हवा की दिशा : सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है। अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहाँ हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।पांचवां चमत्कार :- गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी : मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।छठा चमत्कार :- दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर : 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहाँ भोजन। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार!सातवां चमत्कार :- समुद्र की ध्वनि : मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहाँ पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।आठवां चमत्कार :- रूप बदलती मूर्ति : यहाँ श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहाँ प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।नौवां चमत्कार :- विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा : आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलोमीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। (रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है।) अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।दसवां चमत्कार :- हनुमानजी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा : माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथजी के मंदिर को तोड़ दिया था। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने वीर मारुति (हनुमानजी) को यहाँ समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था, परंतु जब-तब हनुमान भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे। वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमानजी को यहाँ स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। यहाँ जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेदी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जकड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं। "जय जय #श्रीजगन्नाथजी"******************************************* "श्रीजी की चरण सेवा" की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें👇#बाल_वनिता_महिला_आश्रम

.            "जगन्नाथजी से जुड़े दस चमत्कार" By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब पहला चमत्कार :- हवा के विपरीत लहराता ध्वज : श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्चित ही आश्चर्यजनक बात है। यह भी आश्चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है। दूसरा चमत्कार :- गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है। पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया।  तीसरा चमत्कार :- चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान

***ego***By philanthropist Vanitha Kasniya Punjab-------------Once a man went to someone's house. He came empty handed so he thought that some gift should be given. Thinking so, a painting was put in the guest room itself.

***अहंकार*** By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब      ------------- एक बार एक व्यक्ति किसी के घर गया। वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना चाहिए। ऐसा सोचकर मेहमान कक्ष में ही लगी एक पेंटिंग उतार ली और जब घर का मालिक आया तो उसे यह कह कर पेंटिंग दी कि "यह उपहार मैं आपके लिए लाया हूँ" घर का मालिक तो यह जानता था कि यह पेंटिंग उसी की है जिसे वह व्यक्ति भेंट दे रहा है। अब आप ही बताइये कि क्या वह ऐसी भेंट पाकर खुश होगा जो पहले से ही उसी की है। परन्तु मित्रों यही तो हम भगवान के साथ करते हैं। हम उन्हें रुपया-पैसा विभिन्न प्रकार की वस्तुएं चढ़ाते हैं और हर वह वस्तु जो उन्होंने ही बनाई है उन्हें ही भेंट करते हैं और मन में भाव रखते हैं कि जो चीजें हम भगवान् को चढ़ा रहे हैं उनसे खुश होकर ईश्वर हम पर कृपा करेंगे। क्या यह हमारी मूर्खता नही? उन्हें सच में अगर कुछ देना ही चाहते हैं तो कोई वस्तु नहीं , अपनी श्रद्धा और अपना अहंकार दें जो कि हमारा स्वयं का है जिसे भगवान ने नहीं दिया है। अगर हम अपने अहंकार को ईश चरणों में समर्पित करेंगे तो प्रभु अवश्य प्रसन्न होंगे।**** बाल वन

death_k_typeBy philanthropist Vanitha Kasniya PunjabRam-Ravana war was going on, then Angad said to Ravana - you are dead, what is the use of killing the dead?Ravana said – I am alive, how am I dead?Angad

मृत्यु_के_प्रकार By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राम-रावण युद्ध चल रहा था, तब अंगद ने रावण से कहा- तू तो मरा हुआ है, मरे हुए को मारने से क्या फायदा? रावण बोला– मैं जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे? अंगद बोले, सिर्फ साँस लेने वालों को जीवित नहीं कहते - साँस तो लुहार का धौंकनी भी लेती है! तब अंगद ने मृत्यु के 14 प्रकार बताए- कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा। अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।। सदारोगबस संतत क्रोधी। विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी।। तनुपोषक निंदक अघखानी। जीवत शव सम चौदह प्रानी।। *1. कामवश:* जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है। वह अध्यात्म का सेवन नहीं करता है, सदैव वासना में लीन रहता है। *2. वाम मार्गी:* जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो; नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं। *3. कंजूस:* अत

Ram Ram ji, a woman saw three saints in front of her housesaw. She did not know them.Bal Vanitha Mahila AshramThe woman said -"Please come in and have a meal."The saint said - "Is your husband at home?"

Ram Ram ji,एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने  देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। बाल वनिता महिला आश्रम औरत ने कहा –  “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर  हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और  औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के  लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है”  फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं।  हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है।  आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर  लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब  बताया।  उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और  बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए।  हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को  आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह

How valuable is a word??Ram Ram1- By saying Ram Ram, energy is transmitted in the body.2- By saying Ram Ram, the mind becomes light.3- By saying Ram Ram negative thoughts do not come.4- Mind and body by saying Ram Ram

कितना बहुमूल्य शब्द है ?? राम राम By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏 1- राम राम कहने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है 2- राम राम कहने से मन हल्का हो जाता है । 3- राम राम कहने से नकारात्मक विचार नही आते। 4- राम राम कहने से मन और तन की पीड़ा शांत हो जाती है। 5- राम राम कहने से अंतर्मन से खुशी मिलती है। 6- राम राम कहने से सारे दुख दर्द दूर हो जाते हैं। 7- राम राम कहने से ताजगी का एहसास होता है। 8- राम राम कहने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। 9- राम राम कहने से समृद्धि आती है। 10- राम राम कहने से मोक्ष और मुक्ति मिलती है। 11- राम राम कहने से सब सपने साकार हो जाते हैं।                 इसीलिए कहते हैं राम राम कहिये सदा सुखी रहिये    जिससे भी मिलें या फोन पर वार्तालाप करें, राम राम के संबोधन से ही शुरू करें और राम राम से ही खत्म करें राम राम करते रहिये। धर्मरक्षक भगवाधारी श्रीराम  जय जय श्री राम❤️🙏