सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अयोध्या राम मंदिर का सच क्या है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबपांच अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ। इस भूमि पूजन के बाद सोशल मीडिया में अनेक तरह की बाते कि गई जिसमें सबसे ज्यादा लोगों ने पूछा की क्या वाकई में अयोध्या में राम मंदिर था।इस विषय में, एक अच्छा रोचक किस्सा मिला, जो सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का बताया जा रहा है।जो शायद मुश्किल से कोई जनता होगा, पर जानना शायद सबको चाहिए !जरूर पढ़े, और जाने जो कोई मीडिया नहीं बताता, कि SC कि सुनवाई में क्या बात होती थी, और क्या तथ्य पेश होते थे ?राम मंदिर केस पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दो रोचक प्रसंग।पहली घटना-:जज- मस्जिद के नीचे दीवारों के अवशेष मिले हैं। मुस्लिम पक्ष की वकील- वो दीवारें दरगाह की हो सकती हैं।जज- लेकिन आपका मत तो यह है कि मस्जिद खाली जगह पर बनाई गई थी, किसी ढ़ांचे को तोड़कर नहीं।वकील- सन्नाटाजज- एसआईटी की खुदाई में कुछ मूर्तियां मिली हैं।वकील- वो बच्चों के खिलौने भी हो सकते हैं। जज- उनमें "वराह" की मूर्ति भी मिली है जो हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार थे.. क्या मुसलमानो में मूर्ति के साथ खेलने का प्रचलन था.?वकील- घना सन्नाटा..!!दूसरी घटना-:वेदों में श्रीराम तो हैं ही साथ में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का भी सटीक उल्लेख है !!श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वादी के रूप में उपस्थित थे धर्मचक्रवर्ती, तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी … जो विवादित स्थल पर श्रीराम जन्मभूमि होने के पक्ष में शास्त्रों से प्रमाण पर प्रमाण दिये जा रहे थे।न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठा 1 न्यायाधीश व्यक्ति मुसलमान था।उसने छूटते ही चुभता सा सवाल किया, “आपलोग हर बात में वेदों से प्रमाण मांगते हैं, तो क्या वेदों से ही प्रमाण दे सकते हैं कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में उस स्थल पर ही हुआ था?जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी (जो प्रज्ञाचक्षु हैं) ने बिना एक पल भी गँवाए कहा , ” दे सकता हूँ महोदय”,और उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उद्धरण देना शुरू किया जिसमें सरयू नदी के स्थानविशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है । कोर्ट के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई और उसमें जगद्गुरु जी द्वारा निर्दिष्ट संख्या को खोलकर देखा गया और समस्त विवरण सही पाए गए।जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है। विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर है और जगद्गुरु जी के वक्तव्य ने फैसले का रुख हिन्दुओं की तरफ मोड़ दिया।मुसलमान जज ने स्वीकार किया , ” आज मैंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा … एक व्यक्ति जो भौतिक आँखों से रहित है, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल वाङ्मय से उद्धरण दिये जा रहा था ? यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है ?”जय श्री राम।

What is the truth of Ayodhya Ram temple?  By social worker Vanita Kasani Punjab  On 5 August, Bhoomi worship of Ram temple was done in Ayodhya. After this Bhoomi Poojan, many kinds of things were done on social media, in which most people asked whether there was really a Ram temple in Ayodhya.  In this subject, a good interesting anecdote was found, which is being told of the Supreme Court hearing.  Which will hardly be any public, but everyone should know!  Definitely read, and know that no media tells what was happening in the SC hearing, and what facts were presented?  Two interesting episodes of the Supreme Court hearing on the Ram Temple case.  First Event-:  Judge- The remains of the walls have been found under the mosque. Advocates of the Muslim side - those walls can be of the dargah.  Judge - But your opinion is that the mosque was built in an empty place, not by breaking any structure.  Lawyer - Silence  Some sculptures have been found in the excavation of the judge-SIT.  L

Ram Mandir Chanda: अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनाने के लिए चला 44 दिन का चंदा अभियान 27 फरवरी, शनिवार को पूरा हो गया। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरी के अनुसार, चंदा इकट्ठा करने के अभियान के तहत शुक्रवार तक 2100 करोड़ रुपए का चंदा मिला है। खास बात यह है कि 15 जनवरी से शुरू हुए इस अभियान का लक्ष्य 1100 करोड़ रुपए था। 2100 करोड़ रुपए की राशि अभी और बढ़ेगी, क्योंकि राशि गिनने का काम जारी है। स्वामी गोविंद देव गिरी ने यह भी बताया कि अब विदेशों में रह रहे राम भक्त अपने यहां भी चंदा जुटाने का अभियान शुरू करने की मांग उठा रहे हैं। श्रीराम मंदिर ट्रस्ट की आगामी बैठक में इस पर फैसला किया जाएगा। बता दें, राम मंदिर निधि समर्पण अभियान 15 जनवरी 2021 को मकर संक्रांति के उपलक्ष्य पर आरंभ किया गया था। इसके लिए 27 फरवरी 2021 यानी संत रविदास जयंती तक का समय तय किया गया था। इन 44 दिनों में 5 लाख गावों तक जाने का लक्ष्य था। इसके लिए राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से 10 रुपए, 100 रुपए और 1000 रुपए का कूपन जारी किए गए थे। सबसे ज्यादा 100 रुपए के 8 करोड़ कूपन छपवाए गए थे। हालांकि जल्द ही ये कूपन कम पड़ गए।राष्ट्रपति से हुई थी चंदा अभियान की शुरुआतराम मंदिर के लिए चंदा अभियान की शुरुआत 15 जनवरी से हुई थी और पहला चंदा देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लिया गया था। राष्ट्रपति ने 5 लाख रुपए का चंदा दिया था। इसके बाद बड़ा से बड़ा चंदा देने की होड़ नजर आई। कई भक्तों ने 1 करोड़ से अधिक का चंदा दिया। इनमें मध्य प्रदेश से भाजपा के दो विधायकों भी शामिल थे। ये थे कटनी के विजयराघवगढ़ सीट से विधायक संजय पाठक और रतलाम विधायक चेतन कश्यप।

,  Ram Mandir Chanda: The 44-day Chanda campaign to build a grand temple of Lord Shri Ram in Ayodhya was completed on Saturday, 27 February. According to Swami Govind Dev Giri, the treasurer of the Punjab Sri Ram Janmabhoomi Tirthakshetra Trust, as of Friday, a donation of Rs 2100 crore has been received as part of the fund-raising campaign. The special thing is that the target of this campaign started from 15 January was 1100 crores. The amount of 2100 crores will still increase further, because the work of counting the amount is going on. Swami Govind Dev Giri also informed that now Ram devotees living abroad are raising demands to start a fund raising campaign in their own country. It will be decided in the upcoming meeting of Shri Ram Mandir Trust. Let me tell you, the Ram temple fund dedication campaign was started on 15 January 2021 to commemorate Makar Sankranti. For this, the time was fixed till 27 February 2021 i.e. Sant Ravidas Jayanti. The target was to reach 5 lakh

श्री गुरु रविदास जी महाराज जी की पावन जयंती पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

, श्री_राम_मन्दिर_निर्माण_समर्पण_निधिखुद किसी से 10रुपये से ज्यादा का चढ़ावा स्वीकार नही करते, पर जब #अयोध्या_राम_मंदिर_निर्माण की बारी आई तो दस दस रुपये के #ढाई_लाख रुपये दिए। निमाड़ नर्मदा मइया के किनारे रहने वाले पूज्य सियाराम बाबा ने अपने 10 _10 रुपये की आई भेट को राम मंदिर निर्माण में समर्पित करदिया। वाकई सन्त ही सनातन की रीढ़ है इन सन्तो ने ही हजारो वर्षो से सारे थपेड़े खाकर भी हमे सनातन सुरक्षित लाकर सौपा है। मित्रो अपने सन्तो महंतों का आदर करो ये वो भगीरथ है जो इतिहास के सारे घाव सहकर भी सनातन धर्म को सुरक्षित यहां तक लेकर आए और हमे सोपा है ,#वामपंथी भेड़ियो ओर #फ़िल्मी जिहाद के बहकावे में आकर अपने सनातन सन्तो का कभी अपमान नही करना। ये सन्त ही भारत और सनातन की आत्मा है। पूज्य #सियाराम बाबा जैसे सन्त हर जगह है जो जहाँ है वहां उनका सम्मान करो ।ये धरोहर है हमारे सनातन की।। जय सियाराम।।

# Shri_Ram_Mandir_Construction_Survey_Nidhi They themselves do not accept an offer of more than 10 rupees from anyone, but when the turn of the # Ayodhya_Ram_Mandir_Nirman came, they gave # 2 and a half rupees of ten rupees. Nimar Narmada Maiya Ke

, दिव्यकृष्णसँदेश-'उन्मत्त चँचल नयनकमल विशाल! नीलकँठ नालिन वैजयँती माल! ! कटि कँचन पीत वसन नीलम चरण कमल मधुर रस चँदन! चँचल चितवन चँचल अधर अमृत वचन अलक्ष निरँजन!! देखो न वही रस का सागर वसँतराग आकर! आज बना है उर्वशी माधव कृष्ण कुसुमाकर! ! उस का वसँत राग में वँशी बजाना मलयज सुवासिनी! फिर उसका रुनझुन वसँत हास बिखराना अमृत सुहासिनी!! उस का अमीरस की अँजुरियाँ पिलाना चँद्रमालिनी ! उसका रस नयनों से अमीरस लुटाना चँद्ररागिनी! ! उस का रस वसँतराग में मुस्कराना सखी री! उसका शरत की रस चाँदनी बन जाना उर्वशी! ! सुधा वसँत राग में कहता है यही तो बात ! कृष्ण कुसुमाकर बनके आया है वसँत राग! ! उसके जादू से समझ लो वो कौन है साँवरी! उसकी मधुर वँशी में है वो जादू बाँवरी!! तुम्हें बना लिया है जिसने अपनी चाँदनी सारँगा ! बतलाओ री शवरीगँधा कौन है वो शवरी का चँदा!! वो नीलम चँदन रूप नहीं चँद्रकमल है शोभना ! उस के मोहना रूप पर शोभना तुम कभी मत डोलना!! आयी हो रुपहली चूनर डाले तुम रसबाले! उस पर ये चँदा की झूमर ये नयन मतवाले! ! इस कँचन महल को भुलाना समझ के फूल राख के! आँचल में उर्वशी भर के लाना फूल रास के! ! जब भी उस की शँख जैसी सुँदर सी शँखिनी अँजुरी को छुओगी तुम ! तो कृष्णवैजयँती री मुझ नीलम चँद्रसरोवर को छुओगी तुम!!' By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 💕📿ષ્રીરાઘે📿ષ્રીકૃષ્ણા📿💕,

, #भक्त_और_भगवान की सुंदर लीला। by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब संत की खीर श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी राधाकुंड गोवर्धन मे रहकर नित्य भजन करते थे। नित्य प्रभु को १००० दंडवत प्रणाम, २००० वैष्णवों को दंडवत प्रणाम और १ लाख हरिनाम करने का नियम था। भिक्षा मे केवल एक बार एक दोना छांछ (मठा) ब्रजवासियों के यहां से मांगकर पाते। एक दिन बाबा श्री राधा कृष्ण की मानसी सेवा कर रहे थे और उन्होंने ठाकुर जी से पूछा कि प्यारे आज क्या भोग लगाने की इच्छा है ? ठाकुर जी ने कहां बाबा ! आज खीर पाने की इच्छा है, बढ़िया खीर बना। बाबा ने बढ़िया दूध औटाकर मेवा डालकर रबड़ी जैसी खीर बनाई। ठाकुर जी खीर पाकर बड़े प्रसन्न हुए और कहा.. .बाबा ! हमे तो लगता था कि तू केवल छांछ पीने वाला बाबा है, तू कहां खीर बनाना जानता होगा ? परंतु तुझे तो बहुत सुंदर खीर बनानी आती है। .इतनी अच्छी खीर तो हमने आज तक नही पायी, बाबा ! तू थोड़ी खीर पीकर तो देख। .बाबा बोले, हमको तो छांछ पीकर भजन करने की आदत है और आँत ऐसी हो गयी कि इतना गरिष्ट भोजन अब पचेगा नही, आप ही पीओ।.ठाकुर जी बोले, बाबा ! अब हमारी इतनी भी बात नही मानेगा क्या? .बातों बातों में ठाकुर जी ने खीर का कटोरा बाबा के मुख से लगा दिया। .भगवान के प्रेमाग्रह के कारण और उनके अधरों से लगने के कारण वह खीर अत्यंत स्वादिष्ट लगी और बाबा थोड़ी अधिक खीर खा गए। .मानसी सेवा समाप्त होने पर ठाकुर जी तो चले गए गौ चराने और बाबा पड़ गए ज्वर (बुखार) से बीमार। .ब्रजवासियों मे हल्ला मच गया कि हमारा बाबा तो बीमार हो गया है। .बात जब जातिपुरा (श्रीनाथ मंदिर) मे श्री विट्ठलनाथ गुसाई जी के पास पहुंची तो उन्होंने अपने वैद्य से कहाँ की जाकर श्री रघुनाथ दास जी का उपचार करो, वे हमारे ब्रज के महान रसिक संत है। .वैद्य जी ने बाबा की नाड़ी देख कर बताया कि बाबा ने तो खीर खायी है।.ब्रजवासी वैद्य से कहने लगे, २० वर्षो से तो नित्य हम बाबा को देखते आ रहे है, ये बाबा तो ब्रजवासियों के घरों से एक दोना छांछ पीकर भजन करता है। .बाबा कही आता जाता तो है नही, खीर खाने काहाँ चला गया? .ब्रजवासी वैद्य से लड़ने लगे और कहने लगे कि तुम कैसे वैद्य हो, तुम्हें तो कुछ नही आता है।.वैद्य जी बोले, मै अभी एक औषधि देता हूं जिससे वमन हो जाएगा (उल्टी होगी) और पेट मे जो भी है वह बाहर आएगा। .यदि खीर नही निकली तो मैं अपने आयुर्वेद के सारे ग्रंथ यमुना जी मे प्रवाहित करके उपचार करना छोड़ दूंगा। .ब्रजवासी बोले, ठीक है औषधि का प्रयोग करो। बाबा ने जैसे ही औषधि खायी वैसे वमन हो गया और खीर बाहर निकली। .ब्रजवासी पूछने लगे, बाबा ! तूने खीर कब खायी? बाबा तू तो छांछ के अतिरिक्त कुछ पाता नही है, खीर कहां से पायी?.रघुनाथ दास जी कुछ बोले नही क्योंकि वे अपनी उपासना को प्रकट नही करना चाहते थे अतः उन्होंने इस रहस्य को गुप्त रहने दिया और मौन रहे। .आस पास के जो ब्रजवासी वहां आए थे वो घर चले गए परंतु उनमे बाबा के प्रति विश्वास कम हो गया....सब तरफ बात फैलने लगी कि बाबा तो छुपकर खीर खाता होगा। .श्रीनाथ जी ने श्री विट्ठलनाथ गुसाई जी को सारी बात बतायी और कहां की आप जाकर ब्रजवासियों के मन की शंका को दूर करो – कहीं ब्रजवासियों द्वारा संत अपराध ना हो जाए। .श्री विट्ठलनाथ गुसाई जी ने ब्रजवासियों से कहां की श्री रघुनाथ दास जी परमसिद्ध संत है। .वे तो दीनता की मूर्ति है, बाबा अपने भजन को गुप्त रखना चाहते है अतः वे कुछ बोलेंगे नही। .उन्होंने जो खीर खायी वो इस बाह्य जगत में नही, वह तो मानसी सेवा के भावराज्य में ठाकुर जी ने स्वयं उन्हें खिलायी है।.धन्य है ऐसे महान संत श्री रघुनाथ दास गोस्वामी🙌👏🌺🌺जय जय श्री राधे श्याम 🌺🌺 श्री राधा रानी 🌹🌷राधे राधे 🌷मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा बरसाए रखनामुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से लिपटाए रखनामेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा बरसाए रखना🌹श्री राधा स्तुतितपत-कांचन गौरांगी राधे वृन्दावनेश्वरी वृषभानु सुते देवी प्रणमामि हरी प्रिये🌹🌹हरेकृष्ण 🌷🙏🌷

, श्री राम चरित मानस में लंका काण्ड 13. लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मणजी को शक्ति लगना14. हनुमानजी का सुषेण वैद्य को लाना एवं संजीवनी के लिए जाना, कालनेमि-रावण संवाद, मकरी उद्धार, कालनेमि उद्धार15. भरत जी के बाण से हनुमान्‌ का मूर्च्छित होना, भरत-हनुमान्‌ संवाद16. श्री रामजी की प्रलापलीला, हनुमान्‌जी का लौटना, लक्ष्मणजी का उठ बैठना17. रावण का कुम्भकर्ण को जगाना, कुम्भकर्ण का रावण को उपदेश और विभीषण-कुम्भकर्ण संवाद18. कुम्भकर्ण युद्ध और उसकी परमगतिकालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध।सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध॥48 ख॥जो कालस्वरूप हैं, दुष्टों के समूह रूपी वन के भस्म करने वाले (अग्नि) हैं, गुणों के धाम और ज्ञानघन हैं एवं शिवजी और ब्रह्माजी भी जिनकी सेवा करते हैं, उनसे वैर कैसा?॥48 (ख)॥चौपाई :परिहरि बयरु देहु बैदेही।भजहु कृपानिधि परम सनेही॥ताके बचन बान सम लागे।करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥(अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजी को दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्री रामजी का भजन करो। रावण को उसके वचन बाण के समान लगे। (वह बोला-) अरे अभागे! मुँह काला करके (यहाँ से) निकल जा॥1॥बूढ़ भएसि न त मरतेउँ तोही।अब जनि नयन देखावसि मोही॥तेहिं अपने मन अस अनुमाना।बध्यो चहत एहि कृपानिधाना॥2॥तू बूढ़ा हो गया, नहीं तो तुझे मार ही डालता। अब मेरी आँखों को अपना मुँह न दिखला। रावण के ये वचन सुनकर उसने (माल्यवान्‌ ने) अपने मन में ऐसा अनुमान किया कि इसे कृपानिधान श्री रामजी अब मारना ही चाहते हैं॥2॥सो उठि गयउ कहत दुर्बादा।तब सकोप बोलेउ घननादा॥कौतुक प्रात देखिअहु मोरा।करिहउँ बहुत कहौं का थोरा॥3॥वह रावण को दुर्वचन कहता हुआ उठकर चला गया। तब मेघनाद क्रोधपूर्वक बोला- सबेरे मेरी करामात देखना। मैं बहुत कुछ करूँगा, थोड़ा क्या कहूँ? (जो कुछ वर्णन करूँगा थोड़ा ही होगा)॥3॥सुनि सुत बचन भरोसा आवा।प्रीति समेत अंक बैठावा॥करत बिचार भयउ भिनुसारा।लागे कपि पुनि चहूँ दुआरा॥4॥पुत्र के वचन सुनकर रावण को भरोसा आ गया। उसने प्रेम के साथ उसे गोद में बैठा लिया। विचार करते-करते ही सबेरा हो गया। वानर फिर चारों दरवाजों पर जा लगे॥4॥कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा।नगर कोलाहलु भयउ घनेरा॥बिबिधायुध धर निसिचर धाए।गढ़ ते पर्बत सिखर ढहाए॥5॥वानरों ने क्रोध करके दुर्गम कलिे को घेर लिया। नगर में बहुत ही कोलाहल (शोर) मच गया। राक्षस बहुत तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण करके दौड़े और उन्होंने कलिे पर पहाड़ों के शिखर ढहाए॥5॥छंद :ढाहे महीधर सिखर कोटिन्ह बिबिध बिधि गोला चले।घहरात जिमि पबिपात गर्जत जनु प्रलय के बादले॥मर्कट बिकट भट जुटत कटत न लटत तन जर्जर भए।गहि सैल तेहि गढ़ पर चलावहि जहँ सो तहँ निसिचर हए॥उन्होंने पर्वतों के करोड़ों शिखर ढहाए, अनेक प्रकार से गोले चलने लगे। वे गोले ऐसा घहराते हैं जैसे वज्रपात हुआ हो (बिजली गिरी हो) और योद्धा ऐसे गरजते हैं, मानो प्रलयकाल के बादल हों। विकट वानर योद्धा भिड़ते हैं, कट जाते हैं (घायल हो जाते हैं), उनके शरीर जर्जर (चलनी) हो जाते हैं, तब भी वे लटते नहीं (हिम्मत नहीं हारते)। वे पहाड़ उठाकर उसे कलिे पर फेंकते हैं। राक्षस जहाँ के तहाँ (जो जहाँ होते हैं, वहीं) मारे जाते हैं।दोहा :मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ़ पुनि छेंका आइ।उतर्‌यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ॥49॥मेघनाद ने कानों से ऐसा सुना कि वानरों ने आकर फिर कलिे को घेर लिया है। तब वह वीर कलिे से उतरा और डंका बजाकर उनके सामने चला॥49॥चौपाई :कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता।धन्वी सकल लोत बिख्याता॥कहँ नल नील दुबदि सुग्रीवा।अंगद हनूमंत बल सींवा॥1॥(मेघनाद ने पुकारकर कहा-) समस्त लोकों में प्रसदि्ध धनुर्धर कोसलाधीश दोनों भाई कहाँ हैं? नल, नील, द्विवदि, सुग्रीव और बल की सीमा अंगद और हनुमान्‌ कहाँ हैं?॥1॥कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही।आजु सबहि हठि मारउँ ओही॥अस कहि कठिन बान संधाने।अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने॥2॥भाई से द्रोह करने वाला विभीषण कहाँ है? आज मैं सबको और उस दुष्ट को तो हठपूर्वक (अवश्य ही) मारूँगा। ऐसा कहकर उसने धनुष पर कठिन बाणों का सन्धान किया और अत्यंत क्रोध करके उसे कान तक खींचा॥2॥सर समूह सो छाड़ै लागा।जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा॥जहँ तहँ परत देखिअहिं बानर।सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर॥3॥वह बाणों के समूह छोड़ने लगा। मानो बहुत से पंखवाले साँप दौड़े जा रहे हों। जहाँ-तहाँ वानर गिरते दिखाई पड़ने लगे। उस समय कोई भी उसके सामने न हो सके॥3॥जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा।बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा॥सो कपि भालु न रन महँ देखा।कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा॥4॥रीछ-वानर जहाँ-तहाँ भाग चले। सबको युद्ध की इच्छा भूल गई। रणभूमि में ऐसा एक भी वानर या भालू नहीं दिखाई पड़ा, जिसको उसने प्राणमात्र अवशेष न कर दिया हो (अर्थात्‌ जिसके केवल प्राणमात्र ही न बचे हों, बल, पुरुषार्थ सारा जाता न रहा हो)॥4॥दोहा :दस दस सर सब मारेसि परे भूमि कपि बीर।सिंहनाद करि गर्जा मेघनाद बल धीर॥50॥फिर उसने सबको दस-दस बाण मारे, वानर वीर पृथ्वी पर गिर पड़े। बलवान्‌ और धीर मेघनाद सिंह के समान नाद करके गरजने लगा॥50॥चौपाई :देखि पवनसुत कटक बिहाला।क्रोधवंत जनु धायउ काला॥महासैल एक तुरत उपारा।अति रिस मेघनाद पर डारा॥1॥सारी सेना को बेहाल (व्याकुल) देखकर पवनसुत हनुमान्‌ क्रोध करके ऐसे दौड़े मानो स्वयं काल दौड़ आता हो। उन्होंने तुरंत एक बड़ा भारी पहाड़ उखाड़ लिया और बड़े ही क्रोध के साथ उसे मेघनाद पर छोड़ा॥1॥आवत देखि गयउ नभ सोई।रथ सारथी तुरग सब खोई॥बार बार पचार हनुमाना।निकट न आव मरमु सो जाना॥2॥पहाड़ों को आते देखकर वह आकाश में उड़ गया। (उसके) रथ, सारथी और घोड़े सब नष्ट हो गए (चूर-चूर हो गए) हनुमान्‌जी उसे बार-बार ललकारते हैं। पर वह निकट नहीं आता, क्योंकि वह उनके बल का मर्म जानता था॥2॥रघुपति निकट गयउ घननादा।नाना भाँति करेसि दुर्बादा॥अस्त्र सस्त्र आयुध सब डारे।कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे॥3॥(तब) मेघनाद श्री रघुनाथजी के पास गया और उसने (उनके प्रति) अनेकों प्रकार के दुर्वचनों का प्रयोग किया। (फिर) उसने उन पर अस्त्र-शस्त्र तथा और सब हथियार चलाए। प्रभु ने खेल में ही सबको काटकर अलग कर दिया॥3॥देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना।करै लाग माया बिधि नाना॥जिमि कोउ करै गरुड़ सैं खेला।डरपावै गहि स्वल्प सपेला॥4॥श्री रामजी का प्रताप (सामर्थ्य) देखकर वह मूर्ख लज्जित हो गया और अनेकों प्रकार की माया करने लगा। जैसे कोई व्यक्ति छोटा सा साँप का बच्चा हाथ में लेकर गरुड़ को डरावे और उससे खेल करे॥4॥दोहा :जासु प्रबल माया बस सिव बिरंचि बड़ छोट।ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट॥51॥शिवजी और ब्रह्माजी तक बड़े-छोटे (सभी) जिनकी अत्यंत बलवान्‌ माया के वश में हैं, नीच बुद्धि निशाचर उनको अपनी माया दिखलाता है॥51॥चौपाई : :नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा।महि ते प्रगट होहिं जलधारा॥नाना भाँति पिसाच पिसाची।मारु काटु धुनि बोलहिं नाची॥1॥आकाश में (ऊँचे) चढ़कर वह बहुत से अंगारे बरसाने लगा। पृथ्वी से जल की धाराएँ प्रकट होने लगीं। अनेक प्रकार के पिशाच तथा पिशाचिनियाँ नाच-नाचकर 'मारो, काटो' की आवाज करने लगीं॥1॥बिष्टा पूय रुधिर कच हाड़ा।बरषइ कबहुँ उपल बहु छाड़ा॥बरषि धूरि कीन्हेसि अँधिआरा।सूझ न आपन हाथ पसारा॥2॥वह कभी तो विष्टा, पीब, खून, बाल और हड्डियाँ बरसाता था और कभी बहुत से पत्थर फेंक देता था। फिर उसने धूल बरसाकर ऐसा अँधेरा कर दिया कि अपना ही पसारा हुआ हाथ नहीं सूझता था॥2॥कपि अकुलाने माया देखें।सब कर मरन बना ऐहि लेखें॥कौतुक देखि राम मुसुकाने।भए सभीत सकल कपि जाने॥3॥माया देखकर वानर अकुला उठे। वे सोचने लगे कि इस हिसाब से (इसी तरह रहा) तो सबका मरण आ बना। यह कौतुक देखकर श्री रामजी मुस्कुराए। उन्होंने जान लिया कि सब वानर भयभीत हो गए हैं॥3॥एक बान काटी सब माया।जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया॥कृपादृष्टि कपि भालु बलिोके।भए प्रबल रन रहहिं न रोके॥4॥तब श्री रामजी ने एक ही बाण से सारी माया काट डाली, जैसे सूर्य अंधकार के समूह को हर लेता है। तदनन्तर उन्होंने कृपाभरी दृष्टि से वानर-भालुओं की ओर देखा, (जिससे) वे ऐसे प्रबल हो गए कि रण में रोकने पर भी नहीं रुकते थे॥4॥दोहा :आयसु मागि राम पहिं अंगदादि कपि साथ।लछिमन चले क्रुद्ध होइ बान सरासन हाथ॥52॥श्री रामजी से आज्ञा माँगकर, अंगद आदि वानरों के साथ हाथों में धनुष-बाण लिए हुए श्री लक्ष्मणजी क्रुद्ध होकर चले॥।52॥चौपाई :छतज नयन उर बाहु बिसाला।हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला॥इहाँ दसानन सुभट पठाए।नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए॥1॥उनके लाल नेत्र हैं, चौड़ी छाती और विशाल भुजाएँ हैं। हिमाचल पर्वत के समान उज्ज्वल (गौरवर्ण) शरीर कुछ ललाई लिए हुए है। इधर रावण ने भी बड़े-बड़े योद्धा भेजे, जो अनेकों अस्त्र-शस्त्र लेकर दौड़े॥1॥भूधर नख बिटपायुध धारी।धाए कपि जय राम पुकारी॥भिरे सकल जोरिहि सन जोरी।इत उत जय इच्छा नहिं थोरी॥2॥पर्वत, नख और वृक्ष रूपी हथियार धारण किए हुए वानर 'श्री रामचंद्रजी की जय' पुकारकर दौड़े। वानर और राक्षस सब जोड़ी से जोड़ी भिड़ गए। इधर और उधर दोनों ओर जय की इच्छा कम न थी (अर्थात्‌ प्रबल थी)॥2॥मुठिकन्ह लातन्ह दातन्ह काटहिं।कपि जयसील मारि पुनि डाटहिं॥मारु मारु धरु धरु धरु मारू।सीस तोरि गहि भुजा उपारू॥3॥वानर उनको घूँसों और लातों से मारते हैं, दाँतों से काटते हैं। विजयशील वानर उन्हें मारकर फिर डाँटते भी हैं। 'मारो, मारो, पकड़ो, पकड़ो, पकड़कर मार दो, सिर तोड़ दो और भुजाऐँ पकड़कर उखाड़ लो'॥3॥असि रव पूरि रही नव खंडा।धावहिं जहँ तहँ रुंड प्रचंडा॥देखहिं कौतुक नभ सुर बृंदा।कबहुँक बिसमय कबहुँ अनंदा॥4॥नवों खंडों में ऐसी आवाज भर रही है। प्रचण्ड रुण्ड (धड़) जहाँ-तहाँ दौड़ रहे हैं। आकाश में देवतागण यह कौतुक देख रहे हैं। उन्हें कभी खेद होता है और कभी आनंद॥4॥दोहा :रुधिर गाड़ भरि भरि जम्यो ऊपर धूरि उड़ाइ।जनु अँगार रासिन्ह पर मृतक धूम रह्यो छाइ॥53॥खून गड्ढों में भर-भरकर जम गया है और उस पर धूल उड़कर पड़ रही है (वह दृश्य ऐसा है) मानो अंगारों के ढेरों पर राख छा रही हो॥53॥चौपाई :घायल बीर बिराजहिं कैसे।कुसुमति किंसुक के तरु जैसे॥लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा।भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा॥1॥घायल वीर कैसे शोभित हैं, जैसे फूले हुए पलास के पेड़। लक्ष्मण और मेघनाद दोनों योद्धा अत्यंत क्रोध करके एक-दूसरे से भिड़ते हैं॥1॥एकहि एक सकइ नहिं जीती।निसिचर छल बल करइ अनीती॥क्रोधवंत तब भयउ अनंता।भंजेउ रथ सारथी तुरंता॥2॥एक-दूसरे को (कोई किसी को) जीत नहीं सकता। राक्षस छल-बल (माया) और अनीति (अधर्म) करता है, तब भगवान्‌ अनन्तजी (लक्ष्मणजी) क्रोधित हुए और उन्होंने तुरंत उसके रथ को तोड़ डाला और सारथी को टुकड़े-टुकड़े कर दिया!॥2॥नाना बिधि प्रहार कर सेषा।राच्छस भयउ प्रान अवसेषा॥रावन सुत निज मन अनुमाना।संकठ भयउ हरिहि मम प्राना॥3॥शेषजी (लक्ष्मणजी) उस पर अनेक प्रकार से प्रहार करने लगे। राक्षस के प्राणमात्र शेष रह गए। रावणपुत्र मेघनाद ने मन में अनुमान किया कि अब तो प्राण संकट आ बना, ये मेरे प्राण हर लेंगे॥3॥बीरघातिनी छाड़िसि साँगी।तेजपुंज लछिमन उर लागी॥मुरुछा भई सक्ति के लागें।तब चलि गयउ निकट भय त्यागें॥4॥तब उसने वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह तेजपूर्ण शक्ति लक्ष्मणजी की छाती में लगी। शक्ति लगने से उन्हें मूर्छा आ गई। तब मेघनाद भय छोड़कर उनके पास चला गया॥4॥दोहा :मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ।जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ॥54॥मेघनाद के समान सौ करोड़ (अगणित) योद्धा उन्हें उठा रहे हैं, परन्तु जगत्‌ के आधार श्री शेषजी (लक्ष्मणजी) उनसे कैसे उठते? तब वे लजाकर चले गए॥54॥चौपाई :सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू।जारइ भुवन चारदिस आसू॥सक संग्राम जीति को ताही।सेवहिं सुर नर अग जग जाही॥1॥(शिवजी कहते हैं-) हे गिरिजे! सुनो, (प्रलयकाल में) जिन (शेषनाग) के क्रोध की अग्नि चौदहों भुवनों को तुरंत ही जला डालती है और देवता, मनुष्य तथा समस्त चराचर (जीव) जिनकी सेवा करते हैं, उनको संग्राम में कौन जीत सकता है?॥1॥यह कौतूहल जानइ सोई।जा पर कृपा राम कै होई॥संध्या भय फिरि द्वौ बाहनी।लगे सँभारन निज निज अनी॥2॥इस लीला को वही जान सकता है, जिस पर श्री रामजी की कृपा हो। संध्या होने पर दोनों ओर की सेनाएँ लौट पड़ीं, सेनापति अपनी-अपनी सेनाएँ संभालने लगे॥2॥व्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर।लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर॥तब लगि लै आयउ हनुमाना।अनुज देखि प्रभु अति दुख माना॥3॥व्यापक, ब्रह्म, अजेय, संपूर्ण ब्रह्मांड के ईश्वर और करुणा की खान श्री रामचंद्रजी ने पूछा- लक्ष्मण कहाँ है? तब तक हनुमान्‌ उन्हें ले आए। छोटे भाई को (इस दशा में) देखकर प्रभु ने बहुत ही दुःख माना॥3॥जामवंत कह बैद सुषेना।लंकाँ रहइ को पठई लेना॥धरि लघु रूप गयउ हनुमंता।आनेउ भवन समेत तुरंता॥4॥जाम्बवान्‌ ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है, उसे लाने के लिए किसको भेजा जाए? हनुमान्‌जी छोटा रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर समेत तुरंत ही उठा लाए॥4॥दोहा :राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन।कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥55॥सुषेण ने आकर श्री रामजी के चरणारविन्दों में सिर नवाया। उसने पर्वत और औषध का नाम बताया, (और कहा कि) हे पवनपुत्र! औषधि लेने जाओ॥55॥चौपाई :राम चरन सरसिज उर राखी।चला प्रभंजनसुत बल भाषी॥उहाँ दूत एक मरमु जनावा।रावनु कालनेमि गृह आवा॥1॥श्री रामजी के चरणकमलों को हृदय में रखकर पवनपुत्र हनुमान्‌जी अपना बल बखानकर (अर्थात्‌ मैं अभी लिए आता हूँ, ऐसा कहकर) चले। उधर एक गुप्तचर ने रावण को इस रहस्य की खबर दी। तब रावण कालनेमि के घर आया॥1॥दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना।पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना॥देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा।तासु पंथ को रोकन पारा॥2॥रावण ने उसको सारा मर्म (हाल) बतलाया। कालनेमि ने सुना और बार-बार सिर पीटा (खेद प्रकट किया)। (उसने कहा-) तुम्हारे देखते-देखते जिसने नगर जला डाला, उसका मार्ग कौन रोक सकता है?॥2॥भजि रघुपति करु हित आपना।छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना॥नील कंज तनु सुंदर स्यामा।हृदयँ राखु लोचनाभिरामा॥3॥श्री रघुनाथजी का भजन करके तुम अपना कल्याण करो! हे नाथ! झूठी बकवाद छोड़ दो। नेत्रों को आनंद देने वाले नीलकमल के समान सुंदर श्याम शरीर को अपने हृदय में रखो॥3॥मैं तैं मोर मूढ़ता त्यागू।महा मोह निसि सूतत जागू॥काल ब्याल कर भच्छक जोई।सपनेहुँ समर कि जीतिअ सोई॥4॥मैं-तू (भेद-भाव) और ममता रूपी मूढ़ता को त्याग दो। महामोह (अज्ञान) रूपी रात्रि में सो रहे हो, सो जाग उठो, जो काल रूपी सर्प का भी भक्षक है, कहीं स्वप्न में भी वह रण में जीता जा सकता है?॥4॥दोहा :सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार।राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार॥56॥उसकी ये बातें सुनकर रावण बहुत ही क्रोधित हुआ। तब कालनेमि ने मन में विचार किया कि (इसके हाथ से मरने की अपेक्षा) श्री रामजी के दूत के हाथ से ही मरूँ तो अच्छा है। यह दुष्ट तो पाप समूह में रत है॥56॥चौपाई :अस कहि चला रचिसि मग माया।सर मंदिर बर बाग बनाया॥मारुतसुत देखा सुभ आश्रम।मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम॥1॥वह मन ही मन ऐसा कहकर चला और उसने मार्ग में माया रची। तालाब, मंदिर और सुंदर बाग बनाया। हनुमान्‌जी ने सुंदर आश्रम देखकर सोचा कि मुनि से पूछकर जल पी लूँ, जिससे थकावट दूर हो जाए॥1॥राच्छस कपट बेष तहँ सोहा।मायापति दूतहि चह मोहा॥जाइ पवनसुत नायउ माथा।लाग सो कहै राम गुन गाथा॥2॥राक्षस वहाँ कपट (से मुनि) का वेष बनाए विराजमान था। वह मूर्ख अपनी माया से मायापति के दूत को मोहित करना चाहता था। मारुति ने उसके पास जाकर मस्तक नवाया। वह श्री रामजी के गुणों की कथा कहने लगा॥2॥होत महा रन रावन रामहिं।जितिहहिं राम न संसय या महिं॥इहाँ भएँ मैं देखउँ भाई।ग्यान दृष्टि बल मोहि अधिकाई॥3॥(वह बोला-) रावण और राम में महान्‌ युद्ध हो रहा है। रामजी जीतेंगे, इसमें संदेह नहीं है। हे भाई! मैं यहाँ रहता हुआ ही सब देख रहा हूँ। मुझे ज्ञानदृष्टि का बहुत बड़ा बल है॥3॥मागा जल तेहिं दीन्ह कमंडल।कह कपि नहिं अघाउँ थोरें जल॥सर मज्जन करि आतुर आवहु।दिच्छा देउँ ग्यान जेहिं पावहु॥4॥हनुमान्‌जी ने उससे जल माँगा, तो उसने कमण्डलु दे दिया। हनुमान्‌जी ने कहा- थोड़े जल से मैं तृप्त नहीं होने का। तब वह बोला- तालाब में स्नान करके तुरंत लौट आओ तो मैं तुम्हे दीक्षा दूँ, जिससे तुम ज्ञान प्राप्त करो॥4॥दोहा :सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।मारी सो धरि दिब्य तनु चली गगन चढ़ि जान॥57॥तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने अकुलाकर उसी समय हनुमान्‌जी का पैर पकड़ लिया। हनुमान्‌जी ने उसे मार डाला। तब वह दिव्य देह धारण करके विमान पर चढ़कर आकाश को चली॥57॥चौपाई :कपि तव दरस भइउँ निष्पापा।मिटा तात मुनिबर कर सापा॥मुनि न होइ यह निसिचर घोरा।मानहु सत्य बचन कपि मोरा॥1॥(उसने कहा-) हे वानर! मैं तुम्हारे दर्शन से पापरहित हो गई। हे तात! श्रेष्ठ मुनि का शाप मिट गया। हे कपि! यह मुनि नहीं है, घोर निशाचर है। मेरा वचन सत्य मानो॥1॥अस कहि गई अपछरा जबहीं।निसिचर निकट गयउ कपि तबहीं॥कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू।पाछें हमहिं मंत्र तुम्ह देहू॥2॥ऐसा कहकर ज्यों ही वह अप्सरा गई, त्यों ही हनुमान्‌जी निशाचर के पास गए। हनुमान्‌जी ने कहा- हे मुनि! पहले गुरुदक्षिणा ले लीजिए। पीछे आप मुझे मंत्र दीजिएगा॥2॥सिर लंगूर लपेटि पछारा।निज तनु प्रगटेसि मरती बारा॥राम राम कहि छाड़ेसि प्राना।सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना॥3॥हनुमान्‌जी ने उसके सिर को पूँछ में लपेटकर उसे पछाड़ दिया। मरते समय उसने अपना (राक्षसी) शरीर प्रकट किया। उसने राम-राम कहकर प्राण छोड़े। यह (उसके मुँह से राम-राम का उच्चारण) सुनकर हनुमान्‌जी मन में हर्षित होकर चले॥3॥देखा सैल न औषध चीन्हा।सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा॥गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ।अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ॥4॥उन्होंने पर्वत को देखा, पर औषध न पहचान सके। तब हनुमान्‌जी ने एकदम से पर्वत को ही उखाड़ लिया। पर्वत लेकर हनुमान्‌जी रात ही में आकाश मार्ग से दौड़ चले और अयोध्यापुरी के ऊपर पहुँच गए॥4॥दोहा :देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि॥58॥भरतजी ने आकाश में अत्यंत विशाल स्वरूप देखा, तब मन में अनुमान किया कि यह कोई राक्षस है। उन्होंने कान तक धनुष को खींचकर बिना फल का एक बाण मारा॥58॥चौपाई :परेउ मुरुछि महि लागत सायक।सुमिरत राम राम रघुनायक॥सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए।कपि समीप अति आतुर आए॥1॥बाण लगते ही हनुमान्‌जी 'राम, राम, रघुपति' का उच्चारण करते हुए मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। प्रिय वचन (रामनाम) सुनकर भरतजी उठकर दौड़े और बड़ी उतावली से हनुमान्‌जी के पास आए॥1॥बिकल बलिोकि कीस उर लावा।जागत नहिं बहु भाँति जगावा॥मुख मलीन मन भए दुखारी।कहत बचन भरि लोचन बारी॥2॥हनुमान्‌जी को व्याकुल देखकर उन्होंने हृदय से लगा लिया। बहुत तरह से जगाया, पर वे जागते न थे! तब भरतजी का मुख उदास हो गया। वे मन में बड़े दुःखी हुए और नेत्रों में (विषाद के आँसुओं का) जल भरकर ये वचन बोले-॥2॥जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा।तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा॥जौं मोरें मन बच अरु काया॥ प्रीति राम पद कमल अमाया॥3॥जिस विधाता ने मुझे श्री राम से विमुख किया, उसी ने फिर यह भयानक दुःख भी दिया। यदि मन, वचन और शरीर से श्री रामजी के चरणकमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो,॥3॥तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला।जौं मो पर रघुपति अनुकूला॥सुनत बचन उठि बैठ कपीसा।कहि जय जयति कोसलाधीसा॥4॥और यदि श्री रघुनाथजी मुझ पर प्रसन्न हों तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित हो जाए। यह वचन सुनते ही कपिराज हनुमान्‌जी 'कोसलपति श्री रामचंद्रजी की जय हो, जय हो' कहते हुए उठ बैठे॥4॥सोरठा :लीन्ह कपिहि उर लाइ पुलकित तनु लोचन सजल।प्रीति न हृदय समाइ सुमिरि राम रघुकुल तलिक॥59॥भरतजी ने वानर (हनुमान्‌जी) को हृदय से लगा लिया, उनका शरीर पुलकित हो गया और नेत्रों में (आनंद तथा प्रेम के आँसुओं का) जल भर आया। रघुकुलतलिक श्री रामचंद्रजी का स्मरण करके भरतजी के हृदय में प्रीति समाती न थी॥59॥चौपाई :तात कुसल कहु सुखनिधान की।सहित अनुज अरु मातु जानकी॥लकपि सब चरित समास बखाने।भए दुखी मन महुँ पछिताने॥1॥(भरतजी बोले-) हे तात! छोटे भाई लक्ष्मण तथा माता जानकी सहित सुखनिधान श्री रामजी की कुशल कहो। वानर (हनुमान्‌जी) ने संक्षेप में सब कथा कही। सुनकर भरतजी दुःखी हुए और मन में पछताने लगे॥1॥अहह दैव मैं कत जग जायउँ।प्रभु के एकहु काज न आयउँ॥जानि कुअवसरु मन धरि धीरा।पुनि कपि सन बोले बलबीरा॥2॥हा दैव! मैं जगत्‌ में क्यों जन्मा? प्रभु के एक भी काम न आया। फिर कुअवसर (विपरीत समय) जानकर मन में धीरज धरकर बलवीर भरतजी हनुमान्‌जी से बोले-॥2॥तात गहरु होइहि तोहि जाता।काजु नसाइहि होत प्रभाता॥चढ़ु मम सायक सैल समेता।पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता॥3॥हे तात! तुमको जाने में देर होगी और सबेरा होते ही काम बिगड़ जाएगा। (अतः) तुम पर्वत सहित मेरे बाण पर चढ़ जाओ, मैं तुमको वहाँ भेज दूँ जहाँ कृपा के धाम श्री रामजी हैं॥3॥सुनि कपि मन उपजा अभिमाना।मोरें भार चलिहि किमि बाना॥राम प्रभाव बिचारि बहोरी।बंदि चरन कह कपि कर जोरी॥4॥भरतजी की यह बात सुनकर (एक बार तो) हनुमान्‌जी के मन में अभिमान उत्पन्न हुआ कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा? (किन्तु) फिर श्री रामचंद्रजी के प्रभाव का विचार करके वे भरतजी के चरणों की वंदना करके हाथ जोड़कर बोले-॥4॥दोहा :तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥60 क॥हे नाथ! हे प्रभो! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत चला जाऊँगा। ऐसा कहकर आज्ञा पाकर और भरतजी के चरणों की वंदना करके हनुमान्‌जी चले॥60 (क)॥भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार॥60 ख॥भरतजी के बाहुबल, शील (सुंदर स्वभाव), गुण और प्रभु के चरणों में अपार प्रेम की मन ही मन बारंबार सराहना करते हुए मारुति श्री हनुमान्‌जी चले जा रहे हैं॥60 (ख)॥चौपाई :उहाँ राम लछिमनहि निहारी।बोले बचन मनुज अनुसारी॥अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ।राम उठाइ अनुज उर लायउ॥1॥वहाँ लक्ष्मणजी को देखकर श्री रामजी साधारण मनुष्यों के अनुसार (समान) वचन बोले- आधी रात बीत चुकी है, हनुमान्‌ नहीं आए। यह कहकर श्री रामजी ने छोटे भाई लक्ष्मणजी को उठाकर हृदय से लगा लिया॥1॥सकहु न दुखित देखि मोहि काउ।बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥मम हित लागि तजेहु पितु माता।सहेहु बिपिन हिम आतप बाता॥2॥(और बोले-) हे भाई! तुम मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल था। मेरे हित के लिए तुमने माता-पिता को भी छोड़ दिया और वन में जाड़ा, गरमी और हवा सब सहन किया॥2॥सो अनुराग कहाँ अब भाई।उठहु न सुनि मम बच बिकलाई॥जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू।पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥3॥हे भाई! वह प्रेम अब कहाँ है? मेरे व्याकुलतापूर्वक वचन सुनकर उठते क्यों नहीं? यदि मैं जानता कि वन में भाई का विछोह होगा तो मैं पिता का वचन (जिसका मानना मेरे लिए परम कर्तव्य था) उसे भी न मानता॥3॥सुत बित नारि भवन परिवारा।होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥अस बिचारि जियँ जागहु ताता।मलिइ न जगत सहोदर भ्राता॥4॥पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार- ये जगत्‌ में बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत्‌ में सहोदर भाई बार-बार नहीं मलिता। हृदय में ऐसा विचार कर हे तात! जागो॥4॥जथा पंख बिनु खग अति दीना।मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥अस मम जिवन बंधु बिनु तोही।जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥5॥जैसे पंख बिना पक्षी, मणि बिना सर्प और सूँड बिना श्रेष्ठ हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं, हे भाई! यदि कहीं जड़ दैव मुझे जीवित रखे तो तुम्हारे बिना मेरा जीवन भी ऐसा ही होगा॥5॥जैहउँ अवध कौन मुहु लाई।नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई॥बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं।नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥6॥स्त्री के लिए प्यारे भाई को खोकर, मैं कौन सा मुँह लेकर अवध जाऊँगा? मैं जगत्‌ में बदनामी भले ही सह लेता (कि राम में कुछ भी वीरता नहीं है जो स्त्री को खो बैठे)। स्त्री की हानि से (इस हानि को देखते) कोई विशेष क्षति नहीं थी॥6॥अब अपलोकु सोकु सुत तोरा।सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥निज जननी के एक कुमारा।तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥7॥अब तो हे पुत्र! मेरे निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र और उसके प्राणाधार हो॥7॥सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी।सब बिधि सुखद परम हित जानी॥उतरु काह दैहउँ तेहि जाई।उठि किन मोहि सिखावहु भाई॥8॥सब प्रकार से सुख देने वाला और परम हितकारी जानकर उन्होंने तुम्हें हाथ पकड़कर मुझे सौंपा था। मैं अब जाकर उन्हें क्या उत्तर दूँगा? हे भाई! तुम उठकर मुझे सिखाते (समझाते) क्यों नहीं?॥8॥बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन।स्रवत सललि राजिव दल लोचन॥उमा एक अखंड रघुराई।नर गति भगत कृपाल देखाई॥9॥सोच से छुड़ाने वाले श्री रामजी बहुत प्रकार से सोच कर रहे हैं। उनके कमल की पंखुड़ी के समान नेत्रों से (विषाद के आँसुओं का) जल बह रहा है। (शिवजी कहते हैं-) हे उमा! श्री रघुनाथजी एक (अद्वितीय) और अखंड (वियोगरहित) हैं। भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान्‌ ने (लीला करके) मनुष्य की दशा दिखलाई है॥9॥सोरठा :प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस॥61॥प्रभु के (लीला के लिए किए गए) प्रलाप को कानों से सुनकर वानरों के समूह व्याकुल हो गए। (इतने में ही) हनुमान्‌जी आ गए, जैसे करुणरस (के प्रसंग) में वीर रस (का प्रसंग) आ गया हो॥61॥चौपाई :हरषि राम भेंटेउ हनुमाना।अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥तुरत बैद तब कीन्ह उपाई।उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥श्री रामजी हर्षित होकर हनुमान्‌जी से गले मलिे। प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यंत ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण) ने तुरंत उपाय किया, (जिससे) लक्ष्मणजी हर्षित होकर उठ बैठे॥1॥हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता।हरषे सकल भालु कपि ब्राता॥कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा।जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥2॥प्रभु भाई को हृदय से लगाकर मलिे। भालू और वानरों के समूह सब हर्षित हो गए। फिर हनुमान्‌जी ने वैद्य को उसी प्रकार वहाँ पहुँचा दिया, जिस प्रकार वे उस बार (पहले) उसे ले आए थे॥2॥चौपाई :यह बृत्तांत दसानन सुनेऊ।अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा।बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥3॥यह समाचार जब रावण ने सुना, तब उसने अत्यंत विषाद से बार-बार सिर पीटा। वह व्याकुल होकर कुंभकर्ण के पास गया और बहुत से उपाय करके उसने उसको जगाया॥3॥जागा निसिचर देखिअ कैसा।मानहुँ कालु देह धरि बैसा॥कुंभकरन बूझा कहु भाई।काहे तव मुख रहे सुखाई॥4॥कुंभकर्ण जगा (उठ बैठा) वह कैसा दिखाई देता है मानो स्वयं काल ही शरीर धारण करके बैठा हो। कुंभकर्ण ने पूछा- हे भाई! कहो तो, तुम्हारे मुख सूख क्यों रहे हैं?॥4॥कथा कही सब तेहिं अभिमानी।जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥तात कपिन्ह सब निसिचर मारे।महा महा जोधा संघारे॥5॥उस अभिमानी (रावण) ने उससे जिस प्रकार से वह सीता को हर लाया था (तब से अब तक की) सारी कथा कही। (फिर कहा-) हे तात! वानरों ने सब राक्षस मार डाले। बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर डाला॥5॥दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी।भट अतिकाय अकंपन भारी॥अपर महोदर आदिक बीरा।परे समर महि सब रनधीरा॥6॥दुर्मुख, देवशत्रु (देवान्तक), मनुष्य भक्षक (नरान्तक), भारी योद्धा अतिकाय और अकम्पन तथा महोदर आदि दूसरे सभी रणधीर वीर रणभूमि में मारे गए॥6॥दोहा :सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बलिखान।जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान॥62॥तब रावण के वचन सुनकर कुंभकर्ण बलिखकर (दुःखी होकर) बोला- अरे मूर्ख! जगज्जननी जानकी को हर लाकर अब कल्याण चाहता है?॥62॥चौपाई :भल न कीन्ह तैं निसिचर नाहा।अब मोहि आइ जगाएहि काहा॥अजहूँ तात त्यागि अभिमाना।भजहु राम होइहि कल्याना॥1॥हे राक्षसराज! तूने अच्छा नहीं किया। अब आकर मुझे क्यों जगाया? हे तात! अब भी अभिमान छोड़कर श्री रामजी को भजो तो कल्याण होगा॥1॥हैं दससीस मनुज रघुनायक।जाके हनूमान से पायक॥अहह बंधु तैं कीन्हि खोटाई।प्रथमहिं मोहि न सुनाएहि आई॥2॥हे रावण! जिनके हनुमान्‌ सरीखे सेवक हैं, वे श्री रघुनाथजी क्या मनुष्य हैं? हाय भाई! तूने बुरा किया, जो पहले ही आकर मुझे यह हाल नहीं सुनाया॥2॥कीन्हेहु प्रभु बिरोध तेहि देवक।सिव बिरंचि सुर जाके सेवक॥नारद मुनि मोहि ग्यान जो कहा।कहतेउँ तोहि समय निरबाहा॥3॥हे स्वामी! तुमने उस परम देवता का विरोध किया, जिसके शिव, ब्रह्मा आदि देवता सेवक हैं। नारद मुनि ने मुझे जो ज्ञान कहा था, वह मैं तुझसे कहता, पर अब तो समय जाता रहा॥3॥अब भरि अंक भेंटु मोहि भाई।लोचन सुफल करौं मैं जाई॥स्याम गात सरसीरुह लोचन।देखौं जाइ ताप त्रय मोचन॥4॥हे भाई! अब तो (अन्तिम बार) अँकवार भरकर मुझसे मलि ले। मैं जाकर अपने नेत्र सफल करूँ। तीनों तापों को छुड़ाने वाले श्याम शरीर, कमल नेत्र श्री रामजी के जाकर दर्शन करूँ॥4॥दोहा :राम रूप गुन सुमिरत मगन भयउ छन एक।रावन मागेउ कोटि घट मद अरु महिष अनेक॥63॥श्री रामचंद्रजी के रूप और गुणों को स्मरण करके वह एक क्षण के लिए प्रेम में मग्न हो गया। फिर रावण से करोड़ों घड़े मदिरा और अनेकों भैंसे मँगवाए॥63॥चौपाई :महिषखाइ करि मदिरा पाना।गर्जा बज्राघात समाना॥कुंभकरन दुर्मद रन रंगा।चला दुर्ग तजि सेन न संगा॥1॥भैंसे खाकर और मदिरा पीकर वह वज्रघात (बिजली गिरने) के समान गरजा। मद से चूर रण के उत्साह से पूर्ण कुंभकर्ण कलिा छोड़कर चला। सेना भी साथ नहीं ली॥1॥देखि बिभीषनु आगें आयउ।परेउ चरन निज नाम सुनायउ॥अनुज उठाइ हृदयँ तेहि लायो।रघुपति भक्त जानि मन भायो॥2॥उसे देखकर विभीषण आगे आए और उसके चरणों

, मेरे प्यारे बिहारी जी को मेरा प्रणाम 🙏मेरे प्यारे मैं अगर लिखना भी चाहूँ, ❤🌹तो भी शायद लिख ना पाऊं उन लफ़्ज़ों को, जिन्हे देखकर आप समझ सको कि,❤🌹 मुझे आपके दीदार की कितनी तड़प हैहमें तुमसे प्यार कितना हम ये नही जानतेमगर जी नहीं सकते हम तुमहारे बिनाजै हो मेरे प्यारे की ❤❤श्री राधे राधे ❤🌹 🌹☕✍️🙇🏻‍♂️

,। 🌞जय श्री सीताराम सादर सुप्रभात जी🌞🍂प्यारे हरि भक्तों एक नवीन सुंदर भजन🍂🌞जिसकी रचना कल ही श्री हरि कृपा से🌞🍂हुई है स्मरण करें एवं मनुष्य जीवन का🍂🌞सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करें🙏┈┉┅━❀꧁ω🙏ω꧂❀━┅┉┈*पाया राम भजन मानुषतन**ओटन लगा कपास मूढ़ मन* ! जगत पदारथ गया लुभाया, तन सुख कारज दुख बढ़ाया, अरूझाया भव बंधन!!*पाया राम भजन मानुषतन**ओटन लगा कपास मूढ़ मन* ! तज अमृत विष पान सुहाया, मन मति खलदल वेग बडाया, अधोगति किये जीवन!! *पाया राम भजन मानुषतन**ओटन लगा कपास मूढ़ मन" !"जड़ कामि"जग पागलखाना, राम विमुख भोगत दुख नाना, क्षण सुख पाए ना जीवन!! *पाया राम भजन मानुषतन**ओटन लगा कपास मूढ़ मन*┈┉┅━❀꧁ω🙏ω꧂❀━┅┉┈

श्री राम मंदिर निर्माण कार्य में एक ईंट आपकी तरफ से जरूर लगवाएं, इसके लिए आपके घर कभी भी कोई हिन्दू संगठन पहुँच सकता है।, जय श्री राममानसिक परतन्त्रता को तोड़कर, भारत की तरुणाई का अभ्युदय है। इस अभ्युदय में हम सबका सहयोग हो, इस भाव से सम्पूर्ण समाज जुटना चाहिए।जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राममंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राम_मन्दिर_से_राष्ट्र_निर्माण🙏🏼🚩

In the construction work of Shri Ram temple, a brick must be installed on your behalf, for this, any Hindu organization can reach your house at any time., Jai Shri Ram Breaking the mental freedom, India's youth is born. This morning

"परम सुख" दुःख में सुख खोज लेना, हानि में लाभ खोज लेना, प्रतिकूलताओं में भी अवसर खोज लेना इस सबको सकारात्मक दृष्टिकोण कहा जाता है। जीवन का ऐसा कोई बड़े से बड़ा दुःख नहीं जिससे सुख की परछाईयों को ना देखा जा सके। जिन्दगी की ऐसी कोई बाधा नहीं जिससे कुछ प्रेरणा ना ली जा सके। रास्ते में पड़े हुए पत्थर को आप मार्ग की बाधा भी मान सकते हैं और चाहें तो उस पत्थर को सीढ़ी बनाकर ऊपर भी चढ़ सकते हैं। जीवन का आनन्द वही लोग उठा पाते हैं जिनका सोचने का ढंग सकारात्मक होता है। इस दुनिया में बहुत लोग इसलिए दु:खी नहीं कि उन्हें किसी चीज की कमी है किन्तु इसलिए दु:खी हैं कि उनके सोचने का ढंग नकारात्मक है। सकारात्मक सोचो, सकारात्मक देखो। इससे आपको अभाव में भी जीने का आनन्द आ जायेगा। अगर आपकी खुशी की एकमात्र वजह ये है कि जो चीज आपके पास हैं, वो दूसरों के पास नहीं, तो इसे विकार कहेंगे। इस तरह के विकार से जितनी जल्दी छुटकारा पा लिया जाये उतना बढ़िया। इससे मिलने वाली प्रसन्नता छणिक होती है। नुकसान ज्यादा होता है और उसके बारे में पता बाद में चलता है। बातें चाहे कितनी बड़ी बड़ी की जाए, कितनी ही अच्छी ही क्यों न हों किन्तु याद रखिये संसार आपको आपके कर्मो के द्वारा जानता है। अतः बातें भी अच्छी करिए और कार्य भी हमेशा उत्कृष्ट और श्रेष्ठ करें। अनुपमा की राधे राधे जी.... #😊कृष्ण कथाएं #🙏 भक्ति #🌸 जय श्री कृष्ण #🌸 बोलो राधे राधे #🙏 राधा रानी

"Ultimate happiness"    Seeking happiness in grief, seeking profit in loss, finding opportunities in adversities is called a positive attitude. There is no greater sorrow in life that does not give shadows of happiness

,। *जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते,**तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।* 🙏💐*सुप्रभात*💐🙏

, राम मंदिर के लिए जो भी भाई दान देना चाहता हैवो कल तक अपने गावों या शहरों की श्री राम जन्मभूमि निधि समर्पण अभियान कमेटी को दे सकता है ! क्यूंकि कल इस अभियान का आखिरी दिन है ! इसके बाद 27 फरवरी तक आप ऑनलाइन दान कर सकते है ! जय श्री राम 🙏

Whatever brother wants to donate to Ram temple They will be in their villages or cities till tomorrow That the Shri Ram Janmabhoomi Nidhi can surrender to the Campaign Committee! Because tomorrow is the last day of this campaign! After this, till 27 February you 

“रामायण” क्या है?? अगर कभी पढ़ो और समझो तो आंसुओ पे काबू रखना.......रामायण का एक छोटा सा वृतांत है, उसी से शायद कुछ समझा सकूँ... 😊एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ?मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं ।माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया |श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईंमाता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ? क्या नींद नहीं आ रही ?शत्रुघ्न कहाँ है ?श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।तुरंत आवाज लगाई, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले !! माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी नेआँखें खोलीं, माँ !उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।देखो क्या है ये रामकथा...यह भोग की नहीं....त्याग की कथा हैं..!!यहाँ त्याग की ही प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा... चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।"रामायण" जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी सीता माईया ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया..!!परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी “उर्मिला” के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा.??क्या बोलूँगा उनसे.?यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु श्रीराम की सेवा में वन को जाओ...मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था.!!परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया..!!वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है..पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे.!!लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया.!!वन में “प्रभु श्री राम माता सीता” की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं , परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया.!!मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को “शक्ति” लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पर्वत लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में जब हनुमान जी अयोध्या के ऊपर से गुजर रहे थे तो भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं.!!तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि, सीता जी को रावण हर ले गया, लक्ष्मण जी युद्ध में मूर्छित हो गए हैं।यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि “लक्ष्मण” के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे.!!माता “सुमित्रा” कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं..अभी शत्रुघ्न है.!!मैं उसे भेज दूंगी..मेरे दोनों पुत्र “राम सेवा” के लिये ही तो जन्मे हैं.!!माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि, यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं?क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं...सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा.!!उर्मिला बोलीं- "मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता.!!रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता.!!आपने कहा कि, प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं..!जो “योगेश्वर प्रभु श्री राम” की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता..!!यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं..मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं..उन्होंने न सोने का प्रण लिया था..इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं..और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया...वे उठ जायेंगे..!!और “शक्ति” मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो प्रभु श्री राम जी को लगी है.!!मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में ही सिर्फ राम हैं, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा.!!इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ..सूर्य उदित नहीं होगा।"राम राज्य की नींव जनक जी की बेटियां ही थीं... कभी “सीता” तो कभी “उर्मिला”..!! भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया ..परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण और बलिदान से ही आया .!!जिस मनुष्य में प्रेम, त्याग, समर्पण की भावना हो उस मनुष्य में राम हि बसता है... कभी समय मिले तो अपने वेद, पुराण, गीता, रामायण को पढ़ने और समझने का प्रयास कीजिएगा .,जीवन को एक अलग नज़रिए से देखने और जीने का सऊर मिलेगा .!!"लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो,स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराइ हो.. नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो, चरण हो राघव के, जहाँ मेरा ठिकाना हो..हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो, लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो.. श्रद्धा हो श्रवण जैसी, सबरी सी भक्ति हो, हनुमत के जैसी, निष्ठा और शक्ति हो... "ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की।कृपया आगे सभी को भेजें।!! जय जय श्री राम !!,

💦🍁💦🍁💦🍁💦🍁💦🍁💦 🔱ૐ नमःशिवाय💓शिवोऽहम् ૐ🔱 🔱ૐ🔱हर🔱हर🔱महादेव🔱ૐ🔱 💦🍁💦🍁💦🍁💦🍁💦🍁💦 🌹💕प्रेम को प्रार्थना बनाओ💕🌹✒ 💓🌹सभी भक्तों को जय भोले 🌹💓 🙌💖🙌💖🙌💖🙌 एक संत भिक्षा लेने एक घर गए तो घर पे जवान लड़की के बिना कोई ना था, लड़की ने कहा महात्मा जी, आप कृपया रुकिए मैं चावल कूट कर साफ़ करके आपको देती हूँ। लड़की ने चावल कूटना शुरू किया तो उसकी चूड़ियाँ एक दूसरे में बजने लगी तो लड़की ने शोर के कारण एक को छोड़ सब चूड़ियाँ उतार दी, 🙌💖🙌💖🙌💖🙌 जब महात्मा ने पूछा के पहले बड़ी आवाज आ रही थी पर बाद में बंद कैसे हो गयी तो लड़की ने सब बात बतायी के आप द्वार पर खड़े हैं तो आपकी शांति भंग ना हो इसलिए यह किया। संत मुस्कुराए और बोले, बेटा परमार्थ में भी ऐसा ही है, जब एक चूड़ी रह गयी तो शोर खत्म हो गया, 🙌💖🙌💖🙌💖🙌 वैसे ही दिलो दिमाग़ में सिर्फ़ सतगुरु रह जाता है और दुनिया के शक्ल पदार्थ निकल जाते हैं तो अंतरात्मा में भी शोर बंद हो जाता है, उसके बाद ही विश्वास और पूरन भक्ति शुरू होती है। परमात्मा को पाना इतना आसान नहीं है, मन और विचार से दुनिया की ऐशो इशरत, धन संपदा निकाल कर सतगुरु की शरण लेकर भजन सिमरन करना ज़रूरी है..!🙏🙌🙌🙌🙏 🙌💖🙌💖🙌💖🙌 💞💞हर हर महादेव हर 💞💞 🙏🍃आपका दिन शुभ मंगलमय और खुशीयो भरा हो🍃🙏 💦🍁💦🍁💦🍁💦🍁💦 💕 (VNITA PUNJAB)प्रेम से बोलो हर हर महादेव💕 💦🍁💦🍁💦🍁💦🍁💦

*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🌹🙏🌹 #जय__श्री__राम_ 🌹🙏🌹🙏🙏#जय__जय__सिया__राम_🙏🙏⛳⛳#जय_पवनपुत्र_हनुमान_ ⛳⛳ *🛕राम राम🚩राम राम🛕* *🛕││राम││🛕* *🛕राम🛕* * 🛕*🌞जय श्री सीताराम सादर सुप्रभात जी🌞┈┉┅━❀꧁🙏"जय श्री राम"🙏 ꧂❀━┅┉┈*रे मन कर श्री हरि अनुकुल* ! हरि होय अनुकुल न व्यापे, जीवन भव भय शूल!! *रे मन कर श्री हरि अनुकुल* ! हरिनाम भज राम रिझा ले, हरि ही सब सुख मूल!!🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏*रे मन कर श्री हरि अनुकुल* ! जन्म अनन्त हरि बिसरायो, वृथा वाद दियो तूल!!*रे मन कर श्री हरि अनुकुल* ! तज कुसंग किजे सतसंगत, विगत सुधार ले भूल!!🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏*रे मन कर श्री हरि अनुकुल* !"जड़कामि"कर बेगि नर तन, कब मिल जाये धूल!!*रे मन कर श्री हरि अनुकुल*🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏┈┉┅━❀꧁🙏"जय श्री राम"🙏 ꧂❀━┅┉┈*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*🙏🙏*सभी भक्त प्रेम से बोलो*✍️ 🙏"जय श्री राम रामाय नमः 🙏⛳🙏#जय_जय_सिया_राम__🙏⛳🙏#सियावर_रामचन्द्र__की__जय#🙏*ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ*,।

, 🌷 *ईश्वर का न्याय*🌷 एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे। वहां अंधेरा छा रहा था।थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा।कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी।पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं। उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे?पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकडे करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकडे बराबर बराबर बंट जाएंगे।तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकडे करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए।सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकडो़ के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया।उसके जाने के बाद पहले आदमी ने दुसरे आदमी से कहा हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते हैं। दुसरा बोला नहीं मेरी 5 रोटी थी और तुम्हारी सिर्फ 3 रोटी थी अतः मै 5 गिन्नी लूँगा, तुम्हें 3 गिन्नी मिलेंगी।इस पर दोनों में बहस और झगड़ा होने लगा।इसके बाद वे दोनों सलाह और न्याय के लिए मंदिर के पुजारी के पास गए और उसे समस्या बताई तथा न्यायपूर्ण समाधान के लिए प्रार्थना की।पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, उसने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सबेरे जवाब दे पाऊंगा। पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3 - 5 की बात ठीक लगी रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते सोचते गहरी नींद में सो गया।कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5 बंटवारा ही उचित लगता है।भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं। पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दुसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए।भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा- प्रभू ऐसा कैसे ?भगवन फिर एकबार मुस्कुराए और बोले :इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाये अर्थात उसका त्याग सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है।दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकडे उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए। इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है!ईश्वर की न्याय का सटीक विश्लेषण सुनकर पुजारी उनके चरणों में नतमस्तक हो गया।इस कहानी का सार ये ही है कि हमारा वस्तुस्थिति को देखने का, समझने का दृष्टिकोण और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है। हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं। हम अपने त्याग का गुणगान करते है परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं भोग तौल कर यथोचित निर्णय करते हैं। किसी के पास 3000 रुपये हैं और उसमें से भी वो 300 रुपये सेवा दान कर देता है !और किसी के पास 10 करोड़ रुपये- हैं,और उसमें से वो 1लाख रुपये सेवाभाव से दान कर देता है तो भी ईश्वर की नजर में 1लाख वाले दानदाता की जगह 300 रुपये दान करने वाला ज्यादा कीमती और श्रेष्ठ है क्योंकि उसने अपने कमतर भोग साधन में भी त्याग और परोपकार की भावना का सम्मान किया।1 लाख रूपये वाला दानदाता भी जरूर अच्छा ही कहा जाएगा क्योंकि उसमें भी सेवाभाव त्याग की भावना विद्यमान है, परंतु श्रेष्ठत्व की तुलना में कमजोर का त्याग ईश्वर की नजर में और भी सर्वश्रेष्ठ कहलाता है।यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने धन संपन्न है, महत्वपूर्ण यहीं है कि हमारे सेवाभाव कार्य में त्याग कितना है। 🙏🙏🙏

╔══•✥✥🌹ॐ🌹✥✥•══╗ 🌹🌟•❀•#Զเधॆ_Զเधॆ•❀•🌟🌹╚══•✥✥🌹ॐ🌹✥✥•══╝ 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 💎‼#श्रीराधेकृष्णा‼💎✍*"#मेरे_श्याम.......❤*"जीवन बहुत छोटा है उसे खुश हो कर जियो...* *"प्रेम प्रभू प्रसाद है उसे सबको बाटो ...* *"क्रोध हमारा दुशमन है उसे नष्ट कर दो...* *"भय बहुत भयानक है उस का सामना करो...* *"जो स्मृतियां बहुत सुखद हैं उन्हें संजो कर रखो...**"अगर आप के पास मन की...* *"शांति है तो...* *"समझ लेना आप से अधिक...* *"भाग्यशाली कोई नहीं है...**"अगर आपके पास* *"आत्मा का सत्य ज्ञान है* *"तो आपसे धनवान कोई नहीं...**"अगर आपके सर्व सम्बंध* श्री कृष्ण श्री राधे से हैं तो**"आप पद्मपदम भाग्यशाली हो।* *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब* 🍃🌸🙏🚩🙏🌸🍃 🌹🙏‼🌟◉✿Զเधॆ_Զเधॆ✿◉🌟‼🙏🌹 ┈┉┅━❀꧁ω❍ω꧂❀━┅┉┈

--------------------------------------------------------------------------- ‼️🌹🌹भगवान नाम की महिमा🌹🌹‼️---------------------------------------------------------------------------🌸एक अनपढ़(गँवार) आदमी एक महात्मा जी के पास जाकर बोला ‘‘महाराज ! हमको कोई सीधा-साधा नाम बता दो, हमें भगवान का नाम लेना है। महात्माजी ने कहा- तुम ‘अघमोचन-अघमोचन’ ("अघ" माने पाप, "मोचन" माने छुड़ाने वाला) नाम लिया करो ।’’ 🌸अब वह बेचारा गाँव का गँवार आदमी "अघमोचन-अघमोचन" करता हुआ चला तो पर गाँव जाते-जाते "अ" भूल गया। वह 'घमोचन-घमोचन" बोलने लगा।🌸एक दिन वह हल जोत रहा था और "घमोचन-घमोचन" कर रहा था, उधर वैकुंठ लोक में भगवान भोजन करने बैठे ही थे कि घमोचन नाम का उच्चारण सुन उनको हँसी आ गयी। लक्ष्मीजी ने पूछा-‘प्रभू! आप क्यों हँस रहे हो ?🌸भगवान बोले- आज हमारा भक्त एक ऐसा नाम ले रहा है कि वैसा नाम तो किसी शास्त्र में है ही नहीं। उसी को सुनकर मुझे हँसी आ गयी है।🌸‘‘लक्ष्मी जी बोली- प्रभू! तब तो हम उसको देखेंगे और सुनेंगेे कि वह कैसा भक्त है और कौन-सा नाम ले रहा है।’’🌸लक्ष्मी-नारायण दोनों उसी खेत के पास पहुँच गए जहाँ वह हल जोतते हुए "घमोचन-घमोचन" का जप कर रहा था । 🌸पास में एक गड्ढा था भगवान स्वयं तो वहाँ छिप गये और लक्ष्मीजी भक्त के पास जाकर पूछने लगीं- ‘‘अरे, तू यह क्या घमोचन-घमोचन बोले जा रहा है ?’’🌸उन्होंने एक बार, दो बार, तीन बार पूछा परंतु उसने कुछ उत्तर ही नही दिया। 🌸उसने सोचा कि इसको बताने में हमारा नाम-जप छूट जायेगा। अतः वह "घमोचन-घमोचन" करते रहा, बोला ही नहीं। 🌸जब बार-बार लक्ष्मी जी पूछती रहीं तो अंत में उसको आया गुस्सा, गाँव का आदमी तो था ही, बोला : ‘‘जा ! तेरे भरतार (पति) का नाम ले रहा हूँ क्या कराेगी ।’’🌸अब तो लक्ष्मी जी डर गयी ,कि यह तो हमको पहचान गया। फिर बोलीं- ‘‘अरे, तू मेरे भरतार (पति) को जानता है क्या? कहाँ है मेरा भरतार?’’🌸एक बार, दो बार, तीन बार पूछने पर वह फिर झुँझलाकर बोला ‘‘वहाँ गड्ढे में है, जाना है तुझे भी उस गड्ढे मे..???🌸लक्ष्मी जी समझ गयीं कि इसने हमको पक्का पहचान लिया बोली प्रभू! बाहर आ जाओ अब छिपने से कोई फायदा नही है...🌸...और तब भगवान उसी गड्ढे से बाहर निकल कर वहाँ आ गये और बोले ‘‘लक्ष्मी ! देख लिया, 'मेरे नाम की महिमा' ! यह अघमोचन और घमोचन का भेद भले ही न समझता हो लेकिन यह जप तो हमारा ही कर रहा था। हम तो समझते हैं...🌸यह घमोचन नाम से हमको ही पुकार रहा था। जिसके कारण मुझे इसको दर्शन देना पड़ा।🌸 भगवान ने भक्त को दर्शन देकर कृतार्थ किया कोई भी भक्त शुद्ध-अशुद्ध, टूटे- फूटे शब्दों से अथवा गुस्से में भी कैसे भी भगवान का नाम लेता है तब भी भगवान का ह्रदय उससे मिलने को लालायित हो उठता है और खुद को भक्त से मिलने को रोक नहीं पाता हूं । *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🔲🔸🔸🔸🔲 🔲🔸🔸🔸🔲 🔲🔸🔸🔸🔲 ‼️🌹🌹जय जय श्री राधे 🌹🌹‼️🔲🔸🔸🔸🔲 🔲🔸🔸🔸🔲 🔲🔸🔸🔸🔲

╔══•✥✥🌹ॐ🌹✥✥•══╗ 🌹🌟•❀•#Զเधॆ_Զเधॆ•❀•🌟🌹╚══•✥✥🌹ॐ🌹✥✥•══╝ 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 💎‼#श्रीराधेकृष्णा‼💎✍*"#मेरे_श्याम............❤*कोई चाहत नही बस एक तुझे चाहने के बाद**By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🌷🙏🙏🌷*हर ख्वाहिश ख़तम.......😑😑.तेरी चाहत के बाद..!! 🌹🙏‼🌟◉✿Զเधॆ_Զเधॆ✿◉🌟‼🙏🌹 ┈┉┅━❀꧁ω❍ω꧂❀━┅┉┈

"राम नाम के दोनों अक्षर अत्यन्त मधुर और मनोहर हैं, , जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्रों के समान हैं। "राम" नाम सभी भक्तों को स्मरण करने में आसान और सुख को प्रदान करने वाला है, जो इस लोक में सुख देने के साथ-साथ भगवान के दिव्य धाम की प्राप्ति भी कराता है By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,

"Both the letters of the name Rama are very sweet and pleasant, similar to the eyes of the alphabetical body. The name" Rama "is easy to remember and provides happiness to all the devotees, which in this world, with pleasure

#🙏 श्री राम #🙏🌺जय बजरंगबली🌺🙏 #🌞सुबह की पूजा #🙏 भक्ति भाव #🙏 ईश्वर एक - रूप अनेक,

, 🙏🙏🙏🙏🙏सत्यम शिवम सुंदरम ॐ समय ॐसत्य प्रेम करुणा,💥💥💥💥💥💥by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जय श्री राम जय हनुमान राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,तसहस्रनाम तत्तुल्य रामनाम वरानने,जय श्री राम जय सीतारामऐ मेर हनुमानजी महाराजसारी दुनिया आपके सामने झुके ऐसी दुआ मागु लेकिन दुनिया की कोई ताकत आपको झुका ना सके ये दुआ जरूर मागुऐ मेरे हनुमानजी महाराजतुम्हारी जय हो,जय श्री राम जय सीतारामजय हनुमान बोलो जय सीतारामराम लक्ष्मण जानकी जय बोलो हनुमान की🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏आदी शिव आदी महाशक्ति आदी शिव शक्ति नमो नमः💥💥💥💥💥💥

गलतियां जीवन का एक हिस्सा हैं.इन्हें स्वीकार करने का साहस बहुत कम लोगों में होता है. 🌹सुप्रभात🌹 🙏 जय श्री राम🙏 ,

Mistakes are a part of life. Very few people have the courage to accept them.         Good morning      Om Jai Shri Ram

, *💐भगवान नाम की महिमा💐*एक अनपढ़(गँवार) आदमी एक महात्मा जी के पास जाकर बोला ‘‘बाबाजी ! हमको कोई सीधा-साधा नाम बता दो, हमें भगवान का नाम लेना है। महात्माजी ने कहा- तुम ‘अघमोचन-अघमोचन’ ("अघ" माने पाप, "मोचन" माने छुड़ाने वाला) नाम लिया करो ।’’ अब वह बेचारा गाँव का गँवार आदमी "अघमोचन-अघमोचन" करता हुआ चला तो पर गाँव जाते-जाते "अ" भूल गया। वह 'घमोचन-घमोचन" बोलने लगा।एक दिन वह हल जोत रहा था और "घमोचन-घमोचन" कर रहा था, उधर द्वारीका में भगवान भोजन करने बैठे ही थे कि घमोचन नाम का उच्चारण सुन उनको हँसी आ गयी। रुखमिनीजी ने पूछा-‘प्रभू! आप क्यों हँस रहे हो ?भगवान बोले- आज हमारा भक्त एक ऐसा नाम ले रहा है कि वैसा नाम तो किसी शास्त्र में है ही नहीं। उसी को सुनकर मुझे हँसी आ गयी है।‘‘रुखमिनी जी बोली- प्रभू! तब तो हम उसको देखेंगे और सुनेंगेे कि वह कैसा भक्त है और कौन-सा नाम ले रहा है।’’भगवान श्रीकृष्ण और रुखमिनी दोनों उसी खेत के पास पहुँच गए जहाँ वह हल जोतते हुए "घमोचन-घमोचन" का जप कर रहा था । पास में एक गड्ढा था भगवान स्वयं तो वहाँ छिप गये और रुखमिनीजी भक्त के पास जाकर पूछने लगीं- ‘‘अरे, तू यह क्या घमोचन-घमोचन बोले जा रहा है ?’’उन्होंने एक बार, दो बार, तीन बार पूछा परंतु उसने कुछ उत्तर ही नही दिया। उसने सोचा कि इसको बताने में हमारा नाम-जप छूट जायेगा। अतः वह "घमोचन-घमोचन" करते रहा, बोला ही नहीं। जब बार-बार रुखमिनी जी पूछती रहीं तो अंत में उसको आया गुस्सा, गाँव का आदमी तो था ही, बोला : ‘‘जा ! तेरे भरतार (पति) का नाम ले रहा हूँ क्या कराेगी ।’’अब तो रुखमिनी जी डर गयी ,कि यह तो हमको पहचान गया। फिर बोलीं- ‘‘अरे, तू मेरे भरतार (पति) को जानता है क्या? कहाँ है मेरा भरतार?’’एक बार, दो बार, तीन बार पूछने पर वह फिर झुँझलाकर बोला ‘‘वहाँ गड्ढे में है, जाना है तुझे भी उस गड्ढे मे..???रुखमिनी जी समझ गयीं कि इसने हमको पक्का पहचान लिया बोली प्रभू! बाहर आ जाओ अब छिपने से कोई फायदा नही है......और तब भगवान उसी गड्ढे से बाहर निकल कर वहाँ आ गये और बोले ‘‘रुखमिनी ! देख लिया, 'मेरे नाम की महिमा' ! यह अघमोचन और घमोचन का भेद भले ही न समझता हो लेकिन यह जप तो हमारा ही कर रहा था। हम तो समझते हैं...यह घमोचन नाम से हमको ही पुकार रहा था। जिसके कारण मुझे इसको दर्शन देना पड़ा। भगवान ने भक्त को दर्शन देकर कृतार्थ किया कोई भी भक्त शुद्ध-अशुद्ध, टूटे- फूटे शब्दों से अथवा गुस्से में भी कैसे भी भगवान का नाम लेता है तब भी भगवान का ह्रदय उससे मिलने को लालायित हो उठता है और खुद को भक्त से मिलने को रोक नहीं पाता हूं । *इस कहाणी का एक ही अर्थ है, अगर जो कोई व्यक्ती,भक्त अपनी पूरी श्रध्दा,प्रेम,भक्ती भाव से भगवान भजन करे,नाप जाप करे तो उसका स्विकार भगवान को करना ही करना है l पर यह बात अज्ञानी,प्रेमी भगत की है, लेकिन जो ज्ञानी है भगवान को जाणता है उसने सही मायनेमे भगवान के नाम का जाप पुरे शुध्द श्रध्दा भाव, भक्ती और स्पष्ट उच्चार सहित और पुरा नाम का उच्चारण करना ही उचित है l अन्यथा करके भी कुछ मतलब नही* 🙏🙏🙏

, 💐🙏💐 #जय__श्री__राम_ 💐🙏💐🙏🙏#जय__जय__सिया__राम_🙏🙏 *👏राम राम🚩राम राम👏💐💐राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥👏👏 💐💐सीताराम सीताराम सीताराम कहिये,जाहि विधि राखे राम,ताहि विधि रहिये॥👏👏💐💐मुख में हो राम नाम, राम सेवा हाथ में,तू अकेला नहिं प्यारे, राम तेरे साथ में।विधि का विधान जान हानि लाभ सहियेजाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये॥👏👏💐💐सीताराम सीताराम सीताराम कहिये,जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये।👏👏💐💐किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा,होगा प्यारे वही जो, रामजी को भायेगा।फल आशा त्याग शुभ कर्म करते रहिये,जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये॥👏👏💐💐सीताराम सीताराम सीताराम कहियेजाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये👏👏💐💐ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के,महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे।धन्यवाद निर्विवाद राम कहते रहिये,जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये॥👏👏💐💐सीताराम सीताराम सीताराम कहियेजाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये👏👏💐💐आशा एक रामजी से, दूजी आशा छोड़ दे,नाता एक रामजी से, दूजे नाते तोड़ दे।साधु संग राम रंग अंग अंग रंगिये,काम रस त्याग प्यारे, राम रस पगिये॥👏👏💐💐सीताराम सीताराम सीताराम कहियेजाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये👏👏💐💐परमेश्वर राम जी की जय हो👏👏🍀💐🍀💐🍀💐🍀🍀💐🍀💐🍀🙏🙏*सभी भक्त प्रेम से बोलो*✍️ 🙏"जय श्री राम रामाय नमः 🙏

💐💐🍁💐💐🍁💐💐🍁💐💐🍁*जन्म के रिश्ते ईश्वर का प्रसाद जैसे हैं लेकिन खुद के बनाये रिश्ते आपकी पूँजी हैं दिल समुद्र जैसा रखना नदियां ख़ुद ही मिलने आयेगी**ढलना तो एक दिन है सभी को चाहे इंसान हो या सूरज मगर हौसला सूरज से सीखो रोज़ ढल के भी हर दिन उम्मीद से निकलता है**जब तक किसी भी बात की पूरी जानकारी ना हो तब तक हमें वहाँ मौन रहना ही उत्तम है क्यूंकि अधूरा सत्य पूर्ण झूठ से कई गुना ज्यादा खतरनाक होता है**💐💐💐Good Morning*💐💐💐*,

   4 * Relationships of birth are like Prasad of God but relationships made by you are your capital, keeping the heart like sea, rivers will come to meet themselves * * Molding is a day for everyone, whether human being or not.

"सब भरोस तजि जो भज रामहि | प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि || सोइ भव तर कछु संसय नाहीं | नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं ||" जो भी सब भरोसा छोड़ कर राम को भजता है और प्रेम पूर्वक उनके गुणगान करता है वह भवसागर से तर जाता है, इसमें संदेह नही | नाम प्रताप कलियुग में प्रकट है | by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब Jay Shree Ram🙏,

"Subjugate everything  Gav gun village with love ||  Soi bhav thar tachu sansay na.  Naam Pratap Pragat Kali Maa Nahi || "         Whoever relinquishes all faith and worships Rama and lovingly

अयोध्या प्रभु श्री राम जी की मंदिर निर्माण की पहली तस्वीर है! भक्तों अगर ख़ुशी हुई,तो एक बार सच्चे मन से जय श्री राम बोल दो !! by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🙏 🚩🔱,

अयोध्या प्रभु श्री राम जी की मंदिर निर्माण की पहली तस्वीर है! भक्तों अगर ख़ुशी हुई,तो एक बार सच्चे मन से जय श्री राम बोल दो !!🙏 🚩🔱 Ayodhya is Lord Ram's first picture of temple construction! If the devotees are happy, then say Jai Shri Ram with a sincere heart !! 🙏

♥️♥️♥️राधा नाम में कितनी मस्ती है, यह पूछो इन दीवानों से।इस प्रेम के प्याले को प्राणी, एक बार तो पी कर ज़रा॥जो भक्ति मार्ग पर चलते हैं, वो जग में अमर हो जाते हैं।यह प्यार हकीकी श्यामा की, तू नींद से जग कर देख ज़रा...॥🙏♥️🙏,

♥️♥️♥️ राधा नाम में कितनी मस्ती है,  यह पूछो इन दीवानों से। इस प्रेम के प्याले को प्राणी,  एक बार तो पी कर ज़रा॥ जो भक्ति मार्ग पर चलते हैं,  वो जग में अमर हो जाते हैं। यह प्यार हकीकी श्यामा की,  तू नींद से जग कर देख ज़रा...॥🙏♥️🙏

#🌺 श्री गणेश #🙏 सिद्धिविनायक गणेश #🙏 ईश्वर एक - रूप अनेक #🙏 ईश्वर दर्शन #🌞 Good,

#🌺 श्री गणेश #🙏 सिद्धिविनायक गणेश #🙏 ईश्वर एक - रूप अनेक #🙏 ईश्वर दर्शन #🌞 Good

#सत्संगसतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥हे तात! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाए, तो भी वे सब मिलकर (दूसरे पलड़े पर रखे हुए) उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो लव (क्षण) मात्र के सत्संग से होता है॥हमारे देश क पौराणिक और धार्मिक कथा साहित्य बढ़ा समृद्धिशाली हैं, ऋषि- मुनियों ने भारतीय ज्ञान, नीति,सत्य प्रेम न्याय संयम धर्म तथा उच्च कोटि के नैतिक सिद्धांतों को जनता तक पोहचाने के लिए बढे ही मनो वैज्ञानिक ढंग से अनेक प्रकार की धार्मिक कथाओं की रचना की हैं।इनमें दुष्ट प्रवृत्तियों की हमेशा हार दिखाकर उन्हें छोड़ने की प्रेंडा दी गई हैं,इस प्रकार ये कथाएं हमें पापबुध्धि से छुड़ाती हैं।हमारी नैतिक बुध्धि को जगाती हैं जिससे मनुष्य सब्य, सुसंस्कृत और पवित्र बनता हैं भगवान की कथा को भव-भेषज, सांसारिक कष्ट पीड़ाओं और पतन से मुक्ति दिलाने वाली ओषधि कहा जाता हैं,इसलिए कथा सुनने तथा सत्संग का बोहोत महत्त्व होता हैं।वेद व्ययास जी ने भगवत की रचना इसलिए की ताकि लोग कथा के दुवारा ईश्वर के आदर्श रूप को समझें और उसको अपनाकर जीवनलाभ उठाये।भगवान की कथा को आधिभौतिक आदिदैविक एवं आधात्मिक तापों को काटने वाली कहा गया हैं यानि इनका प्रभाव मृत्तु के बाद ही नहीं जीवन में भी दिखाई देने लगता हैं. सांसारिक सफलताओं से लेकर पारलौकिक उपलब्धियों तक उसकी गति बनी रहने से जीवन की दिशा ही बदल जाती हैं।पाप और पूण्य का सही स्वरूप भगवत गीता से समझ आता हैं,इसे अपने हर पापों का छय तथा पुण्यों की वृद्धि की जा सकती हैं,व्यक्ति अपने बंधनो को छोड़ने और तोड़ने में सफल हो जाता हैं,तथा मुक्ति का अधिकारी बन जाता हैं,इससे अलावा कथा सुनने से जीवन की समसयाओं कुंठाओं विडम्बनाओं का समाधान आसानी से मिल जाता हैं।आत्मानुशासन पांच में कहा गया हैं की जो बुध्धिमान हो जिसने समस्त शास्त्रों का रहस्य प्राप्त किया हो लोक मर्यादा जिसके प्रकट हुई हो कांतिमान हो, उपशमि हो, प्रश्न करने से पहले ही जिसने उत्तर जाना हो,बाहूल्यता से प्रश्नों को सहने वाला हो, प्रभु हो, दूसरे की तथा दूसरे के द्वारा अपनी निंदारहित गूढ़ से दूसरे के मन को हरने वाला हो गुण निधान हो जिसके वचन स्पष्ट और मधुर हों सभा का ऐसा नायक धर्मकथा कहें।स्कन्दपुराण में सूतजी कहते हैं- श्री मद्भागवत का जो श्रवण करता हैं,वह अवस्य ही भगवान के दर्शन करता हैं. किन्तु कथा का श्रवण, पाठन, श्रद्धाभक्ति, आस्था के साथ-साथ विधिपूर्वक होना चाहिए अन्यथा सफल की प्राप्ति नहीं होती।श्रीमद्भागवत जी में लिखा हैं की जहाँ भगवत कथा की अमृतमयी सरिता नहीं बहती, जहाँ उसके कहने वाले भक्त, साधुजन निवास नहीं करते, वह चाहें ब्र्म्हलोक ही कियों ना हो, उसका उसका सेवन नहीं करना चाहिए।धर्मिककथा, प्रवचन आदि का महात्म केवल उसके सुनने मात्र तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उनपर स्रद्धपूर्वक मनन ,चिंतन और आचरण करने में हैं। श्रद्धा के लिए मात्र जगदिखाने के लिए कथा आदि सुनने का कोई फल नहीं मिलता. एक बार किसी भक्त ने नारद ने पूछा- भगवान की कथा के प्रभाव से लोगों के अंदर भाव और वैराग्य के भव जागने और पुष्ट होने चाहिए।वह क्यों नहीं होते, नारद ने कहा- ब्राम्हण लोग केवल अन्न, धनादि के लोभवश घर-घर एवं जन-जन को भगवतकथा सुनाने लगे हैं। इसलिए भगवत का प्रभाव चला गया हैं. वीतराग शुकदेवजी के मुहं से राजा परीक्षित ने भगवत पुराण की कथा सुनकर मुक्ति प्राप्त की और स्वर्ग चले गए। सुकदेव ने परमार्थभाव से कथा कही थी और परीक्षित ने उसे आत्मकलियांड के लिए पूर्ण श्रद्धाभाव से सुनकर आत्मा में उत्तर लिया था इसलिए उन्हें मोछ मिला।सत्संग के विषय में कहा जाता हैं की भगवान की कथाएँ कहने वाले और सुनने वाले दोनों का ही मन और शरीर दिव्य एवं तेजमय होता चला जाता हैं. इसी तरह कथा सुनने से पाप कट जाते है और प्रभु कृपा सुलभ होकर परमांनद की अनुभूति होती हैं।भय विपत्ति रोग दरिद्रता में सांत्वना उत्साह और प्रेणा की प्राप्ति होती हैं मन और आत्मा की चिकित्साह पुनरुद्धार प्राणसंचार की अद्भुत शक्तियां मिलती हैं. विपत्ति में धैर्य, आवेस में विवेक व् कलिआण चिंतन में मदत प्राप्त होती हैं। *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब* जय माँ भवानी जय त्रिदेव श्री ब्रह्मा विष्णु महेश्वर#spiritual discourse Equitable Mud Mangal Moola. Soi fruit fulfills all means. Taat Swarga Apberg Sukh Dhariya Libra A part. Tul na tahi sakal mili jo sukh lav satsang Hey Tat Even if all the pleasures of heaven and salvation are placed in one pan of the scales, they cannot be equal to the happiness that is held by the mere satsang of love (moment). The mythological and religious fiction literature of our country is very prosperous, sages and sages have increased many kinds of religious stories in a psychoanalytic manner, to spread the knowledge of Indian knowledge, policy, true love, justice, restraint religion and high moral standards to the public. Is composed In these, the tendencies of evil tendencies have always been preached to leave them, thus these stories liberate us from sin. We awaken our moral intelligence by which human beings become sane, cultured and holy. The story of God is said to be a goddess of salvation from worldly suffering, worldly sufferings and fall, so listening to stories and satsang is very important. Ved Vyayas Ji composed Bhagavat so that people understand the ideal form of God through the story and adopt it and bring them life. The story of God has been said to cut off half-physical, fundamental and semiotic temperatures, that is, their effects start to appear in life not only after death. From the successes of the world to the transcendental achievements, the direction of life itself changes. The true nature of sin and virtue is understood by the Bhagavad Gita, it can be added to all its sins and increased by virtue, a person is able to leave and break his bondage, and becomes a liberator, by this Apart from listening to the story, problems of life, frustrations and problems can be easily solved. Atmanushasan five states that the wise one who has obtained the secret of all scriptures, the public dignity that has appeared, should be radiant, is sublime, the one who has to answer before asking the questions, is to bear the questions with greatness, is the Lord , One who defeats another's mind by another and by another without his slanderous esoteric virtue, whose words should be clear and melodious, should say such a hero of the assembly. In Skandpuran, Sutji says- The person who is listening to Shri Madbhagavat, he only sees God. But the story should be methodical along with listening, reading, devotion, faith, otherwise the success is not achieved. It is written in Shrimad Bhagwat ji that where the amritamayi sarita of the Bhagavad Katha does not flow, where the devotees who say it, the Sadhujans do not reside, they should not consume it even if it is not Brahmalok. The greatness of the scriptures, discourses, etc. are not limited only to his hearing, but to meditate on them, contemplate and conduct them. There is no result of listening to Katha etc. for reverence, just for showing Jagad. Once a devotee asked Narada - the effect of the story of God should awaken and reinvigorate the feelings and disinterest in people. Why are they not, Narada said - Brahmins have started narrating the Bhagavatakas only to the glorious house-to-house and people of food That is why the influence of Bhagwat is gone. King Parikshit got liberation after hearing the story of Bhagavata Purana from the mouth of Vitarag Shukdevji and went to heaven. Sukdev told the story with utmost devotion and Parikshit listened to him with utmost devotion for autobiography and took a reply in the soul, so he got a redemption. It is said about the satsang that the mind and body of both those who tell and listen to the stories of God, become divine and sparkling. In the same way, sins are cut off by listening to the story and there is a feeling of supreme bliss by getting the grace of God. In fear of disease, poverty, poverty, solace, excitement and inspiration are attained, the healing and mental revival of mind and soul are amazing powers of life. Patience in disaster, wisdom in feeling and help in Kalyan contemplation. * By social worker Vanita Kasani Punjab * Jai Maa Bhavani Jai Tridev Shri Brahma Vishnu Maheshwar,

#सत्संग सतसंगत मुद मंगल मूला।  सोई फल सिधि सब साधन फूला॥ तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥ हे तात! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाए, तो भी वे सब मिलकर (दूसरे पलड़े पर रखे हुए) उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो लव (क्षण) मात्र के सत्संग से होता है॥ हमारे देश क पौराणिक और धार्मिक कथा साहित्य बढ़ा समृद्धिशाली हैं, ऋषि- मुनियों ने भारतीय ज्ञान, नीति,सत्य प्रेम न्याय संयम धर्म तथा उच्च कोटि के नैतिक सिद्धांतों को जनता तक पोहचाने के लिए बढे ही मनो वैज्ञानिक ढंग से अनेक प्रकार की धार्मिक कथाओं की रचना की हैं। इनमें दुष्ट प्रवृत्तियों की हमेशा हार दिखाकर उन्हें छोड़ने की प्रेंडा दी गई हैं,इस प्रकार ये कथाएं हमें पापबुध्धि से छुड़ाती हैं। हमारी नैतिक बुध्धि को जगाती हैं जिससे मनुष्य सब्य, सुसंस्कृत और पवित्र बनता हैं भगवान की कथा को भव-भेषज, सांसारिक कष्ट पीड़ाओं और पतन से मुक्ति दिलाने वाली ओषधि कहा जाता हैं,इसलिए कथा सुनने तथा सत्संग का बोहोत महत्त्व होता हैं। वेद व्ययास जी ने भगवत की रचना इसलिए की ताकि लोग कथा के दुवारा ईश्वर

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁*शास्त्रों में यहाँ तक लिखा है कि पापी-से-पापी मनुष्य भी इतने पाप नहीं कर सकता, जितने पापों का नाश करने की शक्ति भगवन्नाम में है !* वह शक्ति 'हे मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभु!' इस पुकार में है। इसमें शब्द तो बाहर की वाणी से, क्रिया से निकलते हैं, पर आह भीतर से, स्वयं से निकलती है। भीतर से जो आवाज निकलती है, उसमें एक ताकत होती है। वह ताकत उसकी होती है, जिसको वह पुकारता है । जैसे, बच्चा रोता है और माँ को पुकारता है तो उसका माँ के साथ भीतर से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, इसलिए माँ ठहर नहीं सकती, दूसरा काम कर नहीं सकती। इसी तरह सच्चे हृदय से भगवन्नाम का उच्चारण करने से भगवान् ठहर नहीं सकते, उनके सब काम छूट जाते हैं! ओतात्पर्य है कि भगवन्नाम के जप में एक अलौकिक, विलक्षण ताकत है, जिससे जीव का बहुत जल्दी कल्याण हो जाता है। *राम ! राम !! राम !!! *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब* 🌺 जय श्री रामभक्त हनुमान 🌺विचार * Idea Sanjeevani * 🍁 * It is even written in the scriptures that even a sinner-to-sinner cannot commit as many sins as the power to destroy sins is in God. * That power 'O my Nath! Oh my God! This call is in In this, words come from outside speech, from action, but ah comes from inside, itself. There is a strength in the sound that comes from within. The strength is his, whom he calls. For example, if the child cries and calls the mother, she has a close relationship with the mother from within, so the mother cannot stay, cannot do another work. In the same way, God cannot stop chanting Bhagavanamam with a true heart, all his works are left out! O This implies that the chanting of the Bhagavannama has a supernatural, eccentric power, which leads to the welfare of the creature very quickly. *RAM ! RAM !! RAM !!! * By social worker Vanita Kasani Punjab * 🌺 Jai Shree Rambhakta Hanuman,

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁 *शास्त्रों में यहाँ तक लिखा है कि पापी-से-पापी मनुष्य भी इतने पाप नहीं कर सकता, जितने पापों का नाश करने की शक्ति भगवन्नाम में है !*    वह शक्ति 'हे मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभु!' इस पुकार में है। इसमें शब्द तो बाहर की वाणी से, क्रिया से निकलते हैं, पर आह भीतर से, स्वयं से निकलती है। भीतर से जो आवाज निकलती है, उसमें एक ताकत होती है। वह ताकत उसकी होती है, जिसको वह पुकारता है । जैसे, बच्चा रोता है और माँ को पुकारता है तो उसका माँ के साथ भीतर से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, इसलिए माँ ठहर नहीं सकती, दूसरा काम कर नहीं सकती। इसी तरह सच्चे हृदय से भगवन्नाम का उच्चारण करने से भगवान् ठहर नहीं सकते, उनके सब काम छूट जाते हैं!  ओ तात्पर्य है कि भगवन्नाम के जप में एक अलौकिक, विलक्षण ताकत है, जिससे जीव का बहुत जल्दी कल्याण हो जाता है।            *राम ! राम !! राम !!!      *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब* 🌺 जय श्री रामभक्त हनुमान 🌺विचार * Idea Sanjeevani * 🍁  * It is even written in the scriptures that even a sinner-to-sinner cannot commit as

धर्म के चार पायदान (अंग) है, by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सत्य, तप, दान (दया), और शौच (पवित्रता)। अभी कलयुग चल रहा है, जिसमे धर्म केवल एक पायदान पर खड़ा है, वो है दान (दया), धर्म के तीन पायदान कलयुग में नही है, सत्य, तप व शौच!1. सत्य --- सत्य ही परमात्मा है । सत्य और परमात्मा भिन्न नही है । जहाँ सत्य है वहीँ परमात्मा है । जो असत्य बोलता है,उसके पुण्यो का क्षय होता है । सत्य का आश्रय लेकर नर नारायण के समीप जा सकता है । जो मितभाषी है वह सत्यवादी हो सकता है ।2. तप---- दुःख सहकर परमात्मा की आराधना करना ही तप है ।दुःख सहता हुआ प्रभु का भजन करे वही श्रेष्ठ है । जीभ जो माँगे वह सब कुछ उसे देते मत रहो । कुछ सहन करना भी सीखे ।इन्द्रियो का स्वामी आत्मा है । इन्द्रिय जो कुछ माँगे उसे देने पर आत्मा उसका गुलाम बन जायेगा । उपवास करने से पाप भस्मीभूत होते है । भगवान के लिए कष्ट सहना , दुःख सहना ही तप है । वाणी मे भी संयम होना चाहिए ।3. पवित्रता ---- कलियुग मे तो बाहर से सब पवित्र लगते है किन्तु अन्दर से सभी मलिन हो गये है ।वस्त्रो का दाग तो मिट जाता है किन्तु हृदय की कालिमा कभी नहीं मिट सकती । जीवात्मा सब कुछ छोड देता है किन्तु मन को नही ।पूर्वजन्म का शरीर नहीँ रहता किन्तु मन तो रहता ही है ।लोग वस्त्र , अन्नादि की देखभाल तो खूब करते हैँ किन्तु साथ जाने वाले मन की देखभाल नहीँ कर पाते जो मृत्यु के बाद भी साथ जाने वाला है । मृत्यु के बाद साथ जाने वाले मन को पवित्र रखे ।4. दया---- प्राणी मात्र के प्रति सहानुभूति रखना दया कहा जाता है । श्रुति कहती है कि जो केवल अपने लिए अन्न पकाता है वह अन्न नही पाप खाता है ।अपने साथ ही अतिथि, बालक, गाय, आदि के लिए भी भोजन का प्रबन्ध करना चाहिए । *!! जय माता दी !!* *!! जय माँ भवानी !!*Religion has four pedestals (organs), by philanthropist Vanita Kasani Punjab, truth, tenacity, charity (mercy), and defecation (purity). Right now the Kalyug is going on, in which religion is standing on only one position, that is charity (mercy), three places of religion is not in the Kalyuga, truth, tenacity and defecation! 1. Truth --- Truth is divine. Truth and God are not different. Where there is truth, there is God. He who speaks untrue, his virtue is decayed. The male can approach Narayana by taking shelter of truth. One who is reticent may be truthful. 2. Tenacity ---- Worshiping God with sorrow is austerity. To worship God with sorrow is the best. Do not give everything that the tongue asks for. Also learn to bear something. The Lord of India is a soul. The soul will become its slave when it is given to the senses. Sins are consumed by fasting. Suffering for God, suffering is tenacity. There should also be restraint in speech. 3. Purity ---- In Kali Yuga, all seem pure from outside, but all have been smeared from inside. The stain of the clothes is erased, but the heart can never disappear. The person leaves everything but the mind does not. The body of the previous birth does not exist, but the mind remains. People care a lot about clothes, birthdays, but they are unable to take care of the mind that goes along even after death. Going to do. After death, keep the mind that goes along with it pure. 4. Kindness ---- To be sympathetic to a mere creature is called kindness. Shruti says that he who cooks food only for himself does not eat food and sins. One should also provide food for guest, child, cow, etc. * !! Hail mother goddess !! * * !! Jai Maa Bhavani !! *

धर्म के चार पायदान (अंग) है, by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सत्य, तप, दान (दया), और शौच (पवित्रता)। अभी कलयुग चल रहा है, जिसमे धर्म केवल एक पायदान पर खड़ा है, वो है दान (दया), धर्म के तीन पायदान कलयुग में नही है, सत्य, तप व शौच! 1. सत्य ---  सत्य ही परमात्मा है ।  सत्य और परमात्मा भिन्न नही है । जहाँ सत्य है वहीँ परमात्मा है । जो असत्य बोलता है,उसके पुण्यो का क्षय होता है । सत्य का आश्रय लेकर नर नारायण के समीप जा सकता है । जो मितभाषी है वह सत्यवादी हो सकता है । 2. तप----  दुःख सहकर परमात्मा की आराधना करना ही तप है । दुःख सहता हुआ प्रभु का भजन करे वही श्रेष्ठ है । जीभ जो माँगे वह सब कुछ उसे देते मत रहो । कुछ सहन करना भी सीखे ।इन्द्रियो का स्वामी आत्मा है । इन्द्रिय जो कुछ माँगे उसे देने पर आत्मा उसका गुलाम बन जायेगा । उपवास करने से पाप भस्मीभूत होते है । भगवान के लिए कष्ट सहना , दुःख सहना ही तप है । वाणी मे भी संयम होना चाहिए । 3. पवित्रता ----  कलियुग मे तो बाहर से सब पवित्र लगते है किन्तु अन्दर से सभी मलिन हो गये है ।वस्त्रो का दाग तो मिट जाता है किन्तु हृदय की कालिमा कभी नहीं मिट सक

सनातन हिन्दू धर्म की आचरण संहिता ।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबहिन्दू धर्म में आचरण के सख्त नियम हैं जिनका उसके अनुयायी को प्रतिदिन जीवन में पालन करना चाहिए। इस आचरण संहिता में मुख्यत: दस प्रतिबंध हैं और दस नियम हैं। यह सनातन हिन्दू धर्म का नैतिक अनुशासन है। इसका पालन करने वाला जीवन में हमेशा सुखी और शक्तिशाली बना रहता है।1. अहिंसा – स्वयं सहित किसी भी जीवित प्राणी को मन, वचन या कर्म से दुख या हानि नहीं पहुंचाना। जैसे हम स्वयं से प्रेम करते हैं, वैसे ही हमें दूसरों को भी प्रेम और आदर देना चाहिए।अहिंसा का लाभ. किसी के भी प्रति अहिंसा का भाव रखने से जहां सकारात्मक भाव के लिए आधार तैयार होता है वहीं प्रत्येक व्यक्ति ऐसे अहिंसकर व्यक्ति के प्रति भी अच्छा भाव रखने लगता है। सभी लोग आपके प्रति अच्छा भाव रखेंगे तो आपके जीवन में कअच्छा ही होगा।2. सत्य – मन, वचन और कर्म से सत्यनिष्ठ रहना, दिए हुए वचनों को निभाना, प्रियजनों से कोई गुप्त बात नहीं रखना।सत्य का लाभ. सदा सत्य बोलने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता कायम रहती है। सत्य बोलने से व्यक्ति को आत्मिक बल प्राप्त होता है जिससे आत्मविष्वास भी बढ़ता है।3. अस्तेय – चोरी नहीं करना। किसी भी विचार और वस्तु की चोरी नहीं करना ही अस्तेय है। चोरी उस अज्ञान का परिणाम है जिसके कारण हम यह मानने लगते हैं कि हमारे पास किसी वस्तु की कमी है या हम उसके योग्य नहीं हैं। किसी भी किमत पर दांव-पेच एवं अवैध तरीकों से स्वयं का लाभ न करें।अस्तेय का लाभ. आपका स्वभाव सिर्फ आपका स्वभाव है। व्यक्ति जितना मेहनती और मौलीक बनेगा उतना ही उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। इसी ईमानदारी से सभी को दिलों को ‍जीतकर आत्म संतुष्ट रहा जा सकता है। जरूरी है कि हम अपने अंदर के सौंदर्य और वैभव को जानें।4-ब्रह्मचर्य. ब्रह्मचर्य के दो अर्थ है- ईश्वर का ध्यान और यौन ऊर्जा का संरक्षण। ब्रह्मचर्य में रहकर व्यक्ति को विवाह से पहले अपनी पूरी शक्ति अध्ययन एवं प्रशिक्षण में लगाना चाहिए। पश्चात इसके दांपत्य के ढांचे के अंदर ही यौन क्रिया करना चाहिए। वह भी विशेष रातों में इससे दूर रहना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करने में काफी बातों का ध्यान रखा जाता है- जैसे योनिक वार्ता एवं मजाक, अश्लील चित्र एवं चलचित्र के देखने पर प्रतिबंध। स्त्री और पुरुष को आपस में बातचीत करते समय मर्यादित ढंग से पेश आना चाहिए। इसी से ब्रह्मचर्य कायम रहता है।ब्रह्मचर्य का लाभ. यौन ऊर्जा ही शरीर की शक्ति होती है। इस शक्ति का जितना संचय होता है व्यक्ति उतना शारीरिक और मानसिक रूप से शक्तिशाली और ऊर्जावान बना रहता है। जो व्यक्ति इस शक्ति को खो देता है वह मुरझाए हुए फूल के समान हो जाता है।5 क्षमा – यह जरूरी है कि हम दूसरों के प्रति धैर्य एवं करुणा से पेश आएं एवं उन्हें समझने की कोशिश करें। परिवार एवं बच्चों, पड़ोसी एवं सहकर्मियों के प्रति सहनशील रहें क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति परिस्थितिवश व्यवहार करता है।क्षमा का लाभ. परिवार, समाज और सहकर्मियों में आपके प्रति सम्मान बढ़ेगा। लोगों को आप समझने का समय देंगे तो लोग भी आपको समझने लगेंगे।6 धृति – स्थिरता, चरित्र की दृढ़ता एवं ताकत। जीवन में जो भी क्षेत्र हम चुनते हैं, उसमें उन्नति एवं विकास के लिए यह जरूरी है कि निरंतर कोशिश करते रहें एवं स्थिर रहें। जीवन में लक्ष्य होना जरूरी है तभी स्थिरता आती है। लक्ष्यहिन व्यक्ति जीवन खो देता है।धृति का लाभ. चरित्र की दृढ़ता से शरीर और मन में स्थिरता आती है। सभी तरह से दृढ़ व्यक्ति लक्ष्य को भेदने में सक्षम रहता है। इस स्थिरता से जीवन के सभी संकटों को दूर किया जा सकता है। यही सफलता का रहस्य है।7 दया – यह क्षमा का विस्त्रत रूप है। इसे करुणा भी कहा जाता है। जो लोग यह कहते हैं कि दया ही दुख का कारण है वे दया के अर्थ और महत्व को नहीं समझते। यह हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए एक बहुत आवश्यक गुण है।दया का लाभ. जिस व्यक्ति में सभी प्राणियों के प्रति दया भाव है वह स्वयं के प्रति भी दया से भरा हुआ है। इसी गुण से भगवान प्रसन्न होते हैं। यही गुण चरित्र से हमारे आस पास का माहौल अच्छा बनता है।8 आर्जव- दूसरों को नहीं छलना ही सरलता है। अपने प्रति एवं दूसरों के प्रति ईमानदारी से पेश आना।आजर्व का लाभ. छल और धोके से प्राप्त धन, पद या प्रतिष्ठा कुछ समय तक ही रहती है, लेकिन जब उस व्यक्ति का पतन होता है तब उसे बचाने वाला भी कोई नहीं रहता। स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति आदि से जीवन में संतोष और सुख की प्राप्ति होती है।9 मिताहार- भोजन का संयम ही मिताहार है। यह जरूरी है कि हम जीने के लिए खाएं न कि खाने के लिए जिएं। सभी तरह का व्यसन त्यागकर एक स्वच्छ भोजन का चयन कर नियत समय पर खाएं। स्वस्थ रहकर लंबी उम्र जीना चाहते हैं तो मिताहार को अपनाएं। होटलों एवं ऐसे स्थानों में जहां हम नहीं जानते कि खाना किसके द्वारा या कैसे बनाया गया है, वहां न खाएं।मिताहार का लाभ. आज के दौर में मिताहार की बहुत जरूरत है। अच्छा आहार हमारे शरीर को स्वस्थ बनाएं रखकर ऊर्जा और स्फूति भी बरकरार रखता है। अन्न ही अमृत है और यही जहर बन सकता है।10 शौच – आंतरिक एवं बाहरी पवित्रता और स्वच्छता। इसका अर्थ है कि हम अपने शरीर एवं उसके वातावरण को पूर्ण रूप से स्वच्छ रखें। हम मौखिक और मानसिक रूप से भी स्वच्छ रहें।शौच का लाभ. वातावरण, शरीर और मन की स्वच्छता एवं व्यवस्था का हमारे अंतर्मन पर सात्विक प्रभाव पड़ता है। स्वच्छता सकारात्मक और दिव्यता बढ़ती है। यह जीवन को सुंदर बनाने के लिए बहुत जरूरी है। सनातन हिन्दू धर्म के दस नियम।1 ह्री – पश्चात्ताप को ही ह्री कहते हैं। अपने बुरे कर्मों के प्रति पश्चाताप होना जरूरी है। यदि आपमें पश्चाताप की भावना नहीं है तो आप अपनी बुराइयों को बढ़ा रहे हैं। विनम्र रहना एवं अपने द्वारा की गई भूल एवं अनुपयुक्त व्यवहार के प्रति असहमति एवं शर्म जाहिर करना जरूरी है, इसका यह मतलब कतई नहीं की हम पश्चाताप के बोझ तले दबकर फ्रेस्ट्रेशन में चले जाएं।ह्री का लाभ पश्चाताप हमें अवसाद और तनाव से बचाता है तथा हममें फिर से नैतिक होने का बल पैदा करता है। मंदिर, माता-पिता या स्वयं के समक्ष खड़े होकर भूल को स्वीकारने से मन और शरीर हल्का हो जाता है।2 संतोष – प्रभु ने हमारे निमित्त जितना भी दिया है, उसमें संतोष रखना और कृतज्ञता से जीवन जीना ही संतोष है। जो आपके पास है उसका सदुपयोग करना और जो अपके पास नहीं है, उसका शोक नहीं करना ही संतोष है। अर्थात जो है उसी से संतुष्ट और सुखी रहकर उसका आनंद लेना।संतोष का लाभ. यदि आप दूसरों के पास जो है उसे देखर और उसके पाने की लालसा में रहेंगे तो सदा दुखी ही रहेगें बल्कि होना यह चाहिए कि हमारे पास जो है उसके होने का सुख कैसे मनाएं या उसका सदुपयोग कैसे करें यह सोचे इससे जीवन में सुख बढ़ेगा।3 दान – आपके पास जो भी है वह ईश्वर और इस कुदरत की देन है। यदि आप यह समझते हैं कि यह तो मेरे प्रयासों से हुआ है तो आपमें घमंड का संचार होगा। आपके पास जो भी है उसमें से कुछ हिस्सा सोच समझकर दान करें। ईश्वर की देन और परिश्रम के फल के हिस्से को व्यर्थ न जाने दें। इसे आप मंदिर, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं में दान कर सकते हैं या किसी गरीब के लिए दान करें।दान का लाभ. दान किसे करें और दान का महत्व क्या है यह जरूर जानें। दान पुण्य करने से मन की ग्रंथियां खुलती है और मन में संतोष, सुख और संतुलन का संचार होता है। मृत्युकाल में शरीर आसानी से छुट जाता है।4 आस्तिकता – वेदों में आस्था रखने वाले को आस्तिक कहते हैं। माता-पिता, गुरु और ईश्वर में निष्ठा एवं विश्वास रखना भी आस्तिकता है।आस्तिकता का लाभ. आस्तिकता से मन और मस्तिष्क में जहां समारात्मकता बढ़ती हैं वहीं हमारी हर तरह की मांग की पूर्ति भी होती है। अस्तित्व या ईश्वर से जो भी मांगा जाता है वह तुरंत ही मिलता है। अस्तित्व के प्रति आस्था रखना जरूरी है।5 ईश्वर प्रार्थना – बहुत से लोग पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन सनातन हिन्दू धर्म में ईश्वर या देवी-देवता के लिए संध्यावंदन करने का निर्देश है। संध्यावंदन में प्रार्थना, स्तुति या ध्यान किया जाता है वह भी प्रात: या शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद।ईश्वर की प्रार्थना का लाभ. पांच या सात मिनट आंख बंद कर ईश्वर या देवी देवता का ध्यान करने से व्यक्ति ईथर माध्यम से जुड़कर उक्त शक्ति से जुड़ जाता है। पांच या सात मिनट के बाद ही प्रार्थना का वक्त शुरू होता है। फिर यह आप पर निर्भर है कि कब तक आप उक्त शक्ति का ध्यान करते हैं। इस ध्यान या प्रार्थना से सांसार की सभी समस्याओं का हल मिल जाता है।6 सिद्धांत श्रवण- निरंतर वेद, उपनिषद या गीता का श्रवण करना। वेद का सार उपनिषद और उपनिषद का सार गीता है। मन एवं बुद्धि को पवित्र तथा समारात्मक बनाने के लिए साधु-संतों एवं ज्ञानीजनों की संगत में वेदों का अध्ययन एक शक्तिशाली माध्यम है।सिद्धांत श्रवणका लाभ. जिस तरह शरीर के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत होती है उसी तरह दिमाग के लिए समारात्मक बात, किताब और दृष्य की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक वातावरण से हमें यह सब हासिल होता है। यदि आप इसका महत्व नहीं जानते हैं तो आपके जीवन में हमेशा नकारात्मक ही होता रहता है।7 मति – हमारे धर्मग्रंथ और धर्म गुरुओं द्वारा सिखाई गई नित्य साधना का पालन करना। एक प्रामाणिक गुरु के मार्गदर्शन से पुरुषार्थ करके अपनी इच्छा शक्ति एवं बुद्धि को आध्यात्मिक बनाना।मति का लाभ संसार में रहें या संन्यास में निरंतर अच्छी बातों का अनुसरण करना जरूरी है तभी जीवन को सुंदर बनाकर शांति, सुख और समृद्धि से रहा जा सकता है। इसके सबसे पहले अपनी बुद्धि को पुरुषार्थ द्वारा आध्यात्मिक बनाना जरूरी है।8व्रत – अतिभोजन, मांस एवं नशीली पदार्थों का सेवन नहीं करना, अवैध यौन संबंध, जुए आदि से बचकर रहना- ये सामान्यत: व्रत के लिए जरूरी है।इसका गंभीरता से पालन चाहिए अन्यथा एक दिन सारी आध्यात्मिक या सांसारिक कमाई पानी में बह जाती है। यह बहुत जरूरी है कि हम विवाह, एक धार्मिक परंपरा के प्रति निष्ठा, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य जैसे व्रतों का सख्त पालन करें।बृत का लाभ व्रत से नैतिक बल मिलता है तो आत्मविश्वास तथा दृढ़ता बढ़ती है। जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए व्रतवान बनना जरूरी है। व्रत से जहां शरीर स्वस्थ बना रहता है वही मन और बुद्धि भी शक्तिशाली बनते हैं।9जप – जब दिमाग या मन में असंख्य विचारों की भरमार होने लगती है तब जप से इस भरमार को भगाया जा सकता है। अपने किसी इष्ट का नाम या प्रभु स्मरण करना ही जप है। यही प्रार्थना भी है और यही ध्यान भी है।जप का लाभ हजारों विचार को भगाने के लिए मात्र एक मंत्र ही निरंतर जपने से सभी हजारों विचार धीरे-धीरे लुप्त हो जाते हैं। हम रोज स्नान करके अपने आपको स्वच्छ रखते हैं, उसी जप से मन की सफाई हो जाती है। इसे मन में झाडू लगना भी कहा जाता।10 तप – मन का संतुलन बनाए रखना ही तप है। व्रत जब कठीन बन जाता है तो तप का रूप धारण कर लेता है। निरंतर किसी कार्य के पीछे पड़े रहना भी तप है। निरंतर अभ्यास करना भी तप है। त्याग करना भी तप है। सभी इंद्रियों को कंट्रोल में रखकर अपने अनुसार चलापा भी तप है। उत्साह एवं प्रसन्नता से व्रत रखना, पूजा करना, पवित्र स्थलों की यात्रा करना। विलासप्रियता एवं फिजूलखर्ची न चाहकर सादगी से जीवन जीना। इंद्रियों के संतोष के लिए अपने आप को अंधाधुंध समर्पित न करना भी तप है।तप का लाभ जीवन में कैसी भी दुष्कर परिस्थिति आपके सामने प्रस्तुत हो, तब भी आप दिमागी संतुलन नहीं खो सकते, यदि आप तप के महत्व को समझते हैं तो। अनुशासन एवं परिपक्वता से सभी तरह की परिस्थिति पर विजय प्राप्त की जा सकती है।अंत: जो व्यक्ति यम और नियम का पालन करता है वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने की ताकत रखता है। यह प्रतिबंध और नियम सभी धर्मों का सार है।Code of Conduct of Sanatan Hinduism. By social worker Vanita Kasani Punjab There are strict rules of conduct in Hinduism which its followers should follow in daily life. This code of conduct mainly consists of ten restrictions and ten rules. This is a moral discipline of Sanatan Hinduism. The one who follows it always remains happy and powerful in life. 1. Ahimsa - Do not hurt or harm any living creature including yourself by mind, word or deed. Just as we love ourselves, we should also love and respect others. Benefits of Ahimsa By having a sense of non-violence towards anyone, where the basis for a positive feeling is prepared, each person also starts to have a good attitude towards such a non-violent person. If all people have good feelings towards you, it will be good in your life. 2. Truth - Remain honest with mind, speech and deeds, keep the words given, do not keep any secret from loved ones. Benefit of truth. By always speaking the truth, a person's reputation and credibility are maintained. By speaking the truth, one gets spiritual strength, which also increases confidence. 3. Asthe - Do not steal. It is unhealthy not to steal any idea and object. Stealing is the result of ignorance that causes us to believe that we lack something or that we are not worthy of it. Do not take advantage of yourself at any cost through betting and illegal methods. Benefits of Asthe. Your nature is just your nature. The more hardworking and mulik a person becomes, the more his personality improves. With this honesty, everyone can be satisfied by winning hearts. It is important that we know the beauty and splendor inside us. 4-Brahmacharya. Brahmacharya has two meanings - meditation of God and conservation of sexual energy. Being in Brahmacharya, one should put all his strength in studies and training before marriage. After this, sexual activity should be done within the framework of its nubile. He should also stay away from it on special nights. In observance of Brahmacharya many things are taken care of - like vaginal talk and jokes, ban on viewing pornographic images and movies. Women and men should behave decently while talking among themselves. This is how celibacy prevails. Benefits of Brahmacharya. Sexual energy is the power of the body. The amount of this power is stored, the person remains physically and mentally powerful and energetic. The person who loses this power becomes like a withered flower. 5 Forgiveness - It is important that we treat others with patience and compassion and try to understand them. Be tolerant of family and children, neighbors and colleagues as each person behaves in a circumstance. Benefit of forgiveness. Respect for you will increase in family, society and colleagues. If people give you time to understand, then people will also start understanding you. 6 Dhriti - Stability, firmness and strength of character. For the progress and development in whatever field we choose in life, it is necessary to keep trying and remain stable. It is important to have goals in life only when stability comes. A goalless person loses life. Benefits of Dhriti. Consistency of character brings stability to body and mind. In all ways, a strong person is able to hit the target. All the crises of life can be overcome by this stability. This is the secret of success. 7 Daya - This is an elaborate form of forgiveness. It is also called compassion. Those who say that mercy is the cause of sorrow do not understand the meaning and importance of mercy. It is a very essential quality for our spiritual development. Benefit of kindness. A person who has compassion for all beings is also full of kindness towards himself. God is pleased with this quality. This quality character makes the environment around us good. 8 Arjava - It is easy to not deceive others. Be honest towards yourself and others. Benefits of Aajarva. Money, position or prestige obtained by deceit and deception remains for some time, but when that person falls, there is no one to save him. One gets satisfaction and happiness in life by owning property etc. Dieting 9 - Dietary restraint is dietary. It is important that we eat to live and not to eat. Quit all kinds of addiction and choose a clean food and eat at the appointed time. If you want to live long by staying healthy then adopt dieting. Do not eat in hotels and places where we do not know by whom or how the food is made. Benefits of dieting. Dieting is very much needed today. Good diet keeps our body healthy and also maintains energy and cleanliness. Food is nectar and it can become poison. 10 Poop - Internal and external purity and cleanliness. This means that we should keep our body and its environment completely clean. We should be clean both verbally and mentally. Benefits of defecation. Cleanliness and order of environment, body and mind have a sattvic effect on our inner being. Cleanliness is positive and divinity increases. It is very important to make life beautiful. Ten rules of Sanatan Hinduism. 1 Hari - Repentance is called Hri. It is necessary to be repentant of your evil deeds. If you do not have a feeling of remorse, then you are increasing your evils. It is necessary to be humble and to express disagreement and shame about the mistake and inappropriate behavior we have done, it does not mean that we should go under the burden of repentance and go to freedom. Benefit of Hri Repentance saves us from depression and stress and instills in us the power to be moral again. Standing in front of the temple, parents or yourself, the mind and body lighten up by accepting the mistake. 2 Satisfaction - Whatever the Lord has given for our sake, satisfaction is the satisfaction and living life with gratitude. It is a satisfaction to use what you have and not to grieve what you do not have. That is to enjoy what you have, being satisfied and happy. Benefits of satisfaction. If you look after what others have and crave to get it, you will always remain unhappy rather it should be that how to celebrate the happiness of what we have or how to use it properly, it will increase happiness in life. 3 Donation - Whatever you have is the gift of God and this nature. If you understand that this has happened due to my efforts, then there will be pride in you. Thinkfully donate some part of what you have. Do not let the portion of the fruit of God's giving and labor go in vain. You can donate it to temples, religious and spiritual institutions or donate it to a poor person. Benefit of charity. Who should donate and know what is the importance of donation. Performing charity opens the glands of the mind and brings satisfaction, happiness and balance in the mind. The body is easily lost in death. 4 Theism - A believer in the Vedas is called a believer. It is also theism to have loyalty and faith in parents, gurus and God. Benefit of theism While theism increases the correctness in the mind and brain, our every kind of demand is also fulfilled. Whatever is sought from existence or God is immediately met. It is important to have faith in existence. 5 God Prayer - Many people offer prayers, but in Sanatan Hinduism, there is a directive to worship for God or Goddess. Prayers, praises or meditation are done in the evening, that too in the morning or in the evening immediately after sunset. Benefits of God Prayer. Five or seven minutes after closing the eyes and meditating on God or Goddess, the person connects with the said power by connecting through ether medium. The prayer time begins only after five or seven minutes. Then it is up to you how long you meditate on the said power. This meditation or prayer solves all the problems of the world. 6 Siddhanta Sravana- Continually listening to the Vedas, Upanishads or Gita. The essence of the Veda is the Upanishads and the essence of the Upanishads is the Gita. The study of the Vedas is a powerful medium in the company of sages and saints to make the mind and intellect pure and correct. Benefit of principle listening. Just as nutritious food is required for the body, similarly for the mind, a corrective thing, book and view is required. We get all this through spiritual environment. If you do not know its importance, then there is always a negative in your life. 7 Mati - To follow the regular practice taught by our scriptures and religious teachers. Spiritualize your will power and intellect by making effort under the guidance of an authentic guru. It is important to stay in the world or to follow the good things continuously in retirement, only then life can be made beautiful, peace, happiness and prosperity. First of all it is necessary to spiritualize your intellect through effort. 8 Fast - Over-eating, not consuming meat and drugs, avoiding illegal sex, gambling etc. - This is generally necessary for fasting. It should be followed seriously, otherwise one day all the spiritual or worldly earnings flow into the water. It is very important that we observe strict observances like marriage, allegiance to a religious tradition, vegetarianism and celibacy. If you get moral strength from fasting, then confidence and perseverance increases. To achieve success in life, it is important to become fast. By fasting, where the body remains healthy, the mind and intellect also become powerful. 9 Chanting - When the mind or mind starts to get filled with innumerable thoughts, then this chant can be overcome by chanting. Chanting is the name or remembrance of one of your favorite people. This is also prayer and this is also meditation. Benefits of chanting To chase away thousands of thoughts, by chanting only one mantra continuously, all the thousands of thoughts are gradually lost. We keep ourselves clean by bathing daily, with that chanting the mind gets cleansed. It is also called sweeping in the mind. 10 Tapa - Maintaining the balance of mind is tenacity. When the fast becomes difficult then it takes the form of penance. Continuously lagging behind a task is also austerity. Continuous practice is also austerity. Renunciation is also austerity. Keeping all the senses under control, chalpa according to yourself is also austerity. Fasting with enthusiasm and happiness, worshiping, traveling to holy places. Live a life of simplicity by not wanting luxury and extravagance. Not dedicating yourself indiscriminately to the satisfaction of the senses is also austerity. Benefits of austerity No matter what difficult situation in life is presented to you, even then you cannot lose your mind balance, if you understand the importance of austerity. All kinds of situations can be overcome with discipline and maturity. The person who follows Yama and Niyam has the strength to succeed in any area of ​​life. This restriction and rule is the essence of all religions.

सनातन हिन्दू धर्म की आचरण संहिता । By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हिन्दू धर्म में आचरण के सख्त नियम हैं जिनका उसके अनुयायी को प्रतिदिन जीवन में पालन करना चाहिए। इस आचरण संहिता में मुख्यत: दस प्रतिबंध हैं और दस नियम हैं। यह सनातन हिन्दू धर्म का नैतिक अनुशासन है। इसका पालन करने वाला जीवन में हमेशा सुखी और शक्तिशाली बना रहता है। 1. अहिंसा – स्वयं सहित किसी भी जीवित प्राणी को मन, वचन या कर्म से दुख या हानि नहीं पहुंचाना। जैसे हम स्वयं से प्रेम करते हैं, वैसे ही हमें दूसरों को भी प्रेम और आदर देना चाहिए। अहिंसा का लाभ. किसी के भी प्रति अहिंसा का भाव रखने से जहां सकारात्मक भाव के लिए आधार तैयार होता है वहीं प्रत्येक व्यक्ति ऐसे अहिंसकर व्यक्ति के प्रति भी अच्छा भाव रखने लगता है। सभी लोग आपके प्रति अच्छा भाव रखेंगे तो आपके जीवन में कअच्छा ही होगा। 2. सत्य – मन, वचन और कर्म से सत्यनिष्ठ रहना, दिए हुए वचनों को निभाना, प्रियजनों से कोई गुप्त बात नहीं रखना। सत्य का लाभ. सदा सत्य बोलने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता कायम रहती है। सत्य बोलने से व्यक्ति को आत्मिक बल प्राप्त होता है जिसस

पवित्र और चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजीमहराज की सम्पूर्ण कथा!!!!!By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे "श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर" के नाम से जाना जाता है। भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहांँ आने वालों का ताँंता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहांँ पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं । सम्पूर्ण भारत से आने वाले लगभग एक हजार रोगी और उनके स्वजन यहाँं नित्य ही डेरा डाले रहते हैं ।बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें "घाटे वाले बाबा जी" भी कहा जाता है । इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है । यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है । इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है । इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है जिससे पवित्र जल की धारा निरंतर बह रही है। यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है जिसे भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं । यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन है किन्तु मन्दिर का निर्माण इसी सदी में कराया गया है । मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की, लेकिन वे असफ़ल रहे । वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई । थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा । ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया । भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंँचे, जहांँ से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था ।ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका वजन करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता । असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया । इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया । यज्ञ हवन और ब्राह्मण भोज एवं धर्म ग्रन्थों का पाठ किया गया । एक बार फ़िर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई । यह ज्योति सारे विश्व का अंधकार दूर करने में सक्षम है । बालाजी महाराज के अलावा यहांँ श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान ( भैरव ) की मूर्तियांँ भी हैं । प्रेतराज सरकार जहां द्ण्डाधिकारी के पद पर आसीन हैं वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर । यहां आने पर ही सामान्यजन को ज्ञात होता है कि भूत प्रेतादि किस प्रकार मनुष्य को कष्ट पहुंँचाते हैं और किस तरह सहज ही उन्हें कष्ट बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है । दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुँचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है । बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढाया जाता है । इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं और शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं । प्रसाद हमेशा थाली या दोने में रखकर दिया जाता है। लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है और भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर बड़बड़ाने लगते है । स्वतः ही वह हथकडी और बेड़ियों में जकड़ जाता है । कभी वह अपना सिर धुनता है कभी जमीन पर लोट पोट कर हाहाकार करता है । कभी बालाजी के इशारे पर पेड़ पर उल्टा लटक जाता है । कभी आग जलाकर उसमें कूद जाता है । कभी फाँसी या सूली पर लटक जाता है । मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वतः ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं अन्यथा समाप्त कर दिये जाते हैं । बालाजी उन्हें अपना दूत बना लेते हैं। संकट टल जाने पर बालाजी की ओर से एक दूत मिलता है जोकि रोग मुक्त व्यक्ति को भावी घटनाओं के प्रति सचेत करता रहता है। बालाजी महाराज के मन्दिर में प्रातः और सायं लगभग चार चार घंटे पूजा होती है । पूजा में भजन आरतियों और चालीसों का गायन होता है। इस समय भक्तगण जहांँ पंक्तिबद्ध हो देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं वहीं भूत प्रेत से ग्रस्त रोगी चीखते चिल्लाते उलट पलट होते अपना दण्ड भुगतते हैं । बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है । भक्ति-भाव से उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन आदि किए जाते हैं । बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। पृथक रूप से उनकी आराधना - उपासना कहीं नहीं की जाती, न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं। कुछ लोग बालाजी का नाम सुनते ही चाैंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहाँ जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी - जो बालाजी के प्रति भक्ति-भाव रखने वाला है, इन तीनों देवों की आराधना कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।किसी ने सच ही कहा है—"नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं, मेंहदीपुर दरबार में ।"प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है, किन्तु भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं और प्रेम-श्रद्धा से चढ़ा हुआ प्रसाद बाबा सहर्ष स्वीकार भी करते हैं।कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव भगवान शिव के अवतार हैं और उनकी ही तरह भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं । भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रह्मा का पाँचवाँ कटा शीश रहता है । वे कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं । उनकी मूर्तियों पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है । शास्त्र और लोककथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन है, जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं। श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं । भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं। इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन, कीर्तन, आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं । प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के बड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ा दिया करते हैं ।सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूत-प्रेतादि उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं। वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं, जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है।कलियुग में बालाजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं , जो अपने भक्त को सहज ही अष्टसिद्धि, नवनिधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।The complete story of the sacred and wondrous Mehndipur Balajimaharaja !!!!! By socialist Vanita Kasani Punjab, Balaji has a very famous and famous temple in Mehendipur town located on the border line of Sawai Madhopur and Jaipur in Rajasthan which is known as "Shri Mehendipur Balaji Temple". Bhoota Pratardi keeps a wave of those who come here for the prevention of upper obstacles. Tantra Mantri People with upper powers also return here healthy without medicine and Tantra Mantra. About one thousand patients and their relatives from all over India are camping here regularly. The temple of Balaji is situated between two hills at a place called Mehndipur, hence they are also called "Losers Baba Ji". The idol of Bajrang Bali situated in this temple is not made by any artist, but it is self-proclaimed. This idol also serves as the back wall of the temple as a part of the mountain. The rest of the temple has been constructed considering this idol as the head. There is a very subtle hole on the left side of the chest of this idol from which the stream of holy water is continuously flowing. This water keeps collecting in a pool situated under the feet of Balaji, which the devotees take with them in the form of Charanamrita. This statue is about 1000 years old, but the temple was built in this century. During the Muslim rule, some emperors tried to destroy this idol, but they failed. The deeper the root of the idol became, the deeper he dug it. He had to give up this mischief after losing his tiredness. During the British rule in 1910, Balaji automatically renounced his hundreds of years old Chola. The devotees took this Chola to the nearby Mandavar railway station, from where they had to go to the Chola to flow into the Ganges. The British Station Master stopped the Chola from being taken free and weighed it, but the miraculous Chola would sometimes become more full of heart and sometimes lose two minds. Confused, the station master eventually had to let the Chola go unchallenged and he too saluted Balaji's miracle. After this Balaji was offered a new Chola. Yagya Havan and Brahmin Bhoj and Dharma texts were recited. Once again, a new flame lit a new flame. This light is capable of dispelling the darkness of the whole world. Apart from Balaji Maharaj, there are statues of Shri Phantraj Sarkar and Shri Kotwal Kaptan (Bhairav) here. While the Phantaraj Sarkar occupies the post of magistrate, Bhairav ​​ji holds the post of Kotwal. It is only after coming here that the common man knows how the ghosts are causing trouble to human beings and how easily they get rid of the troubles. The grieving person has to reach the temple and offer offerings to the three deities. Balaji is offered rice to Laddu Phantaraj Sarkar and Urad's Prasad to the Kotwal Captain (Bhairav). Out of this prasad, two laddus are fed to the patient and the remaining prasad is put to animal birds. It is said that in the form of birds and animals, only the messengers of the gods are receiving the offerings. Prasad is always offered by placing it in a plate or two. As soon as the laddus are eaten, the patient starts to move and the ghost begins to mutter on his own body. He automatically gets caught in handcuffs and fetters. Sometimes he tilts his head, sometimes he shouts by rolling on the ground. Sometimes at the behest of Balaji, he hangs upside down on the tree. Sometimes a fire burns and jumps into it. Sometimes it hangs on a gallows or a cross. Being fed up with the killings, the ghosts are surrendered automatically at the feet of Balaji, otherwise they are eliminated. Balaji makes them his messengers. After the crisis is over, a messenger is found from Balaji, who keeps the disease-free person alert for future events. Balaji Maharaj's temple is worshiped every four hours in the morning and evening. The puja consists of singing bhajan aartis and chalis. At this time, devotees offer offerings to the deities wherever they are lined up, while ghosts suffering from ghosts shout their punishments by shouting back and forth. In the Balaji temple, the phantom government holds the post of magistrate. Chola is also offered on the Deity of the Phantaraj Sarkar. The Phantaraja Sarkar is worshiped as the God who punishes evil spirits. Their aarti, chalisa, kirtan, bhajan etc. are done with devotion. The Phantaraj Sarkar is worshiped as the assistant deity of Balaji. They are not worshiped separately, nor do they have any temple. There is no mention of Phantaraj Sarkar anywhere in Vedas, Puranas, Religions etc. Phantaraj is the god of reverence and emotion. Some people get shocked as soon as they hear Balaji's name. They believe that only the person suffering from ghosts and obstacles should go there. This is not true. Anyone - who has a devotion towards Balaji, can worship these three gods. Many devotees come regularly from the country and abroad to Balaji's court only to make offerings. Someone has told the truth - "Atheists also become believers, in the Mehndipur court." The Bhootaraj Sarkar is offered cooked rice, but the devotees often offer Bundi laddus to the three deities and even accept Prasad Baba gladly. Kotwal Captain Sri Bhairav ​​Dev is an incarnation of Lord Shiva and like him, he gets pleased with a little worship of devotees. Bhairav ​​Maharaj is Chaturbhuji. In his hands is the fifth truncated head of Trishul, Damru, Khappar and Prajapati Brahma. They wear red clothes at the waist, not Baghambar. They wrap ashes. His idols are smeared with sesame oil containing jasmine aroma and offered chola. The scriptures and folklore describe many forms of Bhairav ​​Dev, of which a dozen are authentic. Sri Bal Bhairav ​​and Shri Batuk Bhairav ​​are the child forms of Bhairava Dev. Devotees often worship these forms of Bhairav ​​Dev. Bhairav ​​Dev is the Kotwal of Balaji Maharaj's army. He is also known as the Kotwal captain. In the Balaji temple your bhajans, kirtans, aarti and chalisa are sung with reverence. In the form of prasad, you are offered urad dal ki kheer and kheer. But devotees also offer Bundi ladoos. Even ordinary seekers are able to remove the ghosts by worshiping Balaji. Balaji assists him in this task. He gives an angel to his worshiper, who stays with him every day. In Kali Yuga, Balaji is the only deity who can easily grant Ashtasiddhi, Navnidhi and then salvation to his devotee.,

पवित्र और चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजीमहराज की सम्पूर्ण कथा!!!!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे "श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर" के नाम से जाना जाता है।  भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहांँ आने वालों का ताँंता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहांँ पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं । सम्पूर्ण भारत से आने वाले लगभग एक हजार रोगी और उनके स्वजन यहाँं नित्य ही डेरा डाले रहते हैं । बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें "घाटे वाले बाबा जी" भी कहा जाता है । इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है । यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है ।  इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है । इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सू

Guruwar ke Upay: आज साल 2021 के फरवरी महीने का पहला सोमवार है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हिंदू धर्म में हर दिन का अपना खास महत्व है और यह किसी न किसी भगवान से जुड़ा है। गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। गुरु (Guru) एक महत्वपूर्ण ग्रह है। बृहस्पति को देवताओं का गुरु भी कहा जाता है। धर्मिक ग्रंथों में बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) की आराधना के कई तरीकों बताए गए हैं। जिन्हें करने से आपकी कुंडली का बृहस्पति (Brihaspati) मजबूत होगा और आपके सारे बिगड़े काम बन जाएंगे।धार्मिक मान्यता के मुताबिक गुरुवार को विष्णु भगवान का दिन माना जाता है। इस दिनभगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।भगवान विष्णु को जगत का पालन हार भी कहा जाता है। विष्णु भगवान के आशीर्वाद से सभी तरह की परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। भाग्य साथ नहीं दे रहा है या कोई भी समस्या चल रही है तो गुरुवार के दिन कुछ आसान उपाय करने से आपकी किस्मत बदल सक ती है।हिंदू शास्त्रों में बृहस्पतिवार को धन और समृद्धि के लिए खासतौर पर माना जाता है। भगवान विष्णु की आराधना के लिए बृहस्पतिवार का दिन सर्वोत्तम माना गया है। मान्यता के मुताबिक गुरुवार को भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से मनुष्य का जीवन सुखों से भर जाता है। गुरुवार को लक्ष्मी-नारायण दोनों की एक साथ पूजा करने से जीवन में खुशियां आती है और पति-पत्नी के बीच कभी दूरियां नहीं आतीं। साथ ही धन में भी वृद्ध‍ि होती है।जीवन में कई तरह की परेशानियां आती हैं जिनका हम चाहते हुए भी हल नहीं निकल पाते है। कुछ समस्याएं जैसे कड़ी मेहनत करने पर भी हमें उसका फल नहीं मिलता। सही जीवनसाथी की तलाश खत्म नहीं होती। घरेलू समस्याएं, मानसिक तनाव जैसी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए गुरुवार को पूजा करने से सुख शांति मिलती है। इतना ही नही अगर कुंडली में अगर गुरु खराब है तो मनुष्य अपने जीवन में कभी भी तरक्की नही कर सकता। गुरु को धन, वैवाहिक जीवन और संतान का कारक भी माना जाता है।गुरुवार को केसर, पीला चंदन या फिर हल्दी का दान करना बहुत शुभ माना गया है। ऐसा करने से गुरु मजबूत होता है, जिससे आरोग्य और सुख की वृद्धि होती है। साथ ही घर में सुख-शांति का वास होता है। अगर आप इनका दान नहीं कर पाते हैं तो कोई बात नहीं इन्हें तिलक के रूप में लगाने से भी लाभ मिलता है इस दिन अगर आप कुछ उपाय करते हैं तो आपको जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या की नहीं होगी।तो चलिए जानते हैं गुरुवार के इन उपायों के बारे में.गुरुवार के उपाय (Guruwar ke Upay)- ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर स्नान करें।- स्नान के समय 'ॐ बृ बृहस्पते नमः' का जाप भी करें।- गुरु के भी प्रकार के दोष को दूर करने के लिए आप गुरुवार के दिन नहाने के पानी में चुटकी भर हल्दी डालकर स्नान करें।- इसके साथ ही साथ नहाते वक्त 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप जरूर जाप करें।- गुरुवार का व्रत रखें और केले के पौधे में जल अर्पित कर पूजा अर्चना करें। ऐसा करने से विवाह में आने वाली रुकावटों का समाधान होता है और अगर आप विवाहित हैं तो आपके वैवाहिक जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आती।- स्नान के बाद पीले रंग को वस्त्र धारण करें।- स्नान के बाद भगवान विष्णु (Vishnu Bhagwan) की प्रतिमा व चित्र का सामने घी का दीया जलाएं।- भगवान विष्णु (Vishnu Bhagwan) को पीले रंग के फूलों के साथ तुलसी का एक छोटा सा पत्ता अर्पित करें।- अपने माथे पर हल्दी, चंदन या केसर का तिलक धारण करें।- मान्यता के मुताबिक भगवान बृहस्पति (Bhagwan Brihaspati) को पीले रंग की चीजें बहुत पसंद हैं। इसलिए इस दिन ब्राह्मणों को पीले रंग की वस्तुएं जैसे- चने की दाल, फल आदि दान करें।- इस दिन सुबह के समय चने की दाल और थोड़ा-सा गुड़ को घर के मुख्य द्वार पर रखें।- इस दिन को धार्मिक महत्व के लिहाज भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। घर में धन की बरक्कत के लिए गुरुवार का दिन सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन पीले रंग की चीजों को विशेष महत्व दिया जाता है।- गुरुवार के दिन न तो किसी को उधार दें और न हीं किसी से उधार लें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आपकी कुंडली में गुरु की स्थिति खराब हो सकती है और आपको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।- अगर आप गुरुवार का व्रत रखते हैं तो, इस दिन सत्यनारायण की व्रत कथा जरूर सुनें या पढ़े।बृहस्पति के दिन इन मंत्रों का करें जाप,धन-संपदा और वैभव में होगी बरकतॐ बृं बृहस्पतये नम:।ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।ॐ गुं गुरवे नम:।Guruwar ke Upay: Today is the first Monday of February of the year 2021. By philanthropist Vanita Kasani, every day has its own special significance in Punjab Hinduism and it is associated with some God. Thursday is also called Thursday. Guru is an important planet. Brihaspati is also called the Guru of the Gods. Many ways of worshiping Brihaspati Dev have been described in religious texts. By doing this, Brihaspati will strengthen your horoscope and all your bad works will be done. According to religious beliefs, Thursday is considered the day of Lord Vishnu. Lord Vishnu is specially worshiped on this day. Lord Vishnu is also called the necklace of the world. With the blessings of Vishnu God gets rid of all kinds of troubles. If luck is not supporting you or any problem is going on, then by taking some easy measures on Thursday, your luck can be changed. In the Hindu scriptures, Thursday is considered especially for wealth and prosperity. Thursday is considered best for worshiping Lord Vishnu. According to the belief, by worshiping Lord Vishnu on Thursday, a person's life is filled with happiness. Worshiping both Lakshmi and Narayan on Thursday together brings happiness in life and there is no distance between husband and wife. There is also an increase in wealth. There are many kinds of problems in life, which we cannot solve even if we want to. There are some problems like we do not get the result even after working hard. The search for the right partner is not over. Worshiping on Thursday to get rid of problems such as domestic problems, mental stress, brings peace and happiness. Not only this, if the guru is bad in the horoscope then man can never progress in his life. Guru is also considered to be a factor of wealth, marital life and children. Donating saffron, yellow sandalwood or turmeric on Thursday is considered very auspicious. By doing this, the Guru becomes strong, which leads to the growth of health and happiness. At the same time there is a residence of happiness and peace in the house. If you are not able to donate them, then it does not matter if you apply them in the form of tilak, if you do some remedies on this day, then you will not have any problem in life. So let's know about these measures on Thursday. Thursday measures (Guruwar ke Upay) - Get up and take bath in Brahma Muhurta. - At the time of bath also chant 'Om Brihaspate Namah'. To remove any type of defect of Guru, you should take a pinch of turmeric in bath water and bathe on Thursday. Also, while chanting, chant the mantra 'Om Namo Bhagwate Vasudevay'. - Keep a fast on Thursday and offer water in a banana plant and worship it. Doing this resolves the interruptions in the marriage and if you are married, then there is no problem in your marital life. - Wear yellow clothes after bathing. After the bath, light a lamp of ghee in front of the statue and picture of Lord Vishnu (Vishnu Bhagwan). - Offer a small leaf of Tulsi with yellow flowers to Lord Vishnu (Vishnu Bhagwan). - Put turmeric, sandalwood or saffron tilak on your forehead. According to the belief, Lord Jupiter (Bhagwan Brihaspati) likes yellow things a lot. Therefore, on this day, donate yellow things like gram lentils, fruits etc. to Brahmins. On this day keep gram lentils and a little jaggery at the main entrance of the house. - This day is also considered very important in terms of religious importance. Thursday is considered to be the most auspicious for the destruction of wealth in the house. Yellow colored things are given special importance on this day. - Do not lend to anyone on Thursday nor borrow from anyone. If you do this then the position of the guru in your horoscope may worsen and you may face financial crisis. - If you keep a fast on Thursday, then definitely listen or read the story of Satyanarayana on this day. Chant these mantras on the day of Jupiter, there will be blessings in wealth and wealth. ॐ Bri Brihaspataye Nam:. ॐ Klein Brihaspataye Nam:. ां Grand Green Gruns: Gurve Nam:. Om and Shri Brihaspataye Namah. ॐ Gum Gurve Nam:.,

Guruwar ke Upay: आज साल 2021 के फरवरी महीने का पहला सोमवार है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हिंदू धर्म में हर दिन का अपना खास महत्व है और यह किसी न किसी भगवान से जुड़ा है। गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। गुरु (Guru) एक महत्वपूर्ण ग्रह है। बृहस्पति को देवताओं का गुरु भी कहा जाता है। धर्मिक ग्रंथों में बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) की आराधना के कई तरीकों बताए गए हैं। जिन्हें करने से आपकी कुंडली का बृहस्पति (Brihaspati) मजबूत होगा और आपके सारे बिगड़े काम बन जाएंगे। धार्मिक मान्यता के मुताबिक गुरुवार को विष्णु भगवान का दिन माना जाता है। इस दिनभगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।भगवान विष्णु को जगत का पालन हार भी कहा जाता है। विष्णु भगवान के आशीर्वाद से सभी तरह की परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। भाग्य साथ नहीं दे रहा है या कोई भी समस्या चल रही है तो गुरुवार के दिन कुछ आसान उपाय करने से आपकी किस्मत बदल सक ती है। हिंदू शास्त्रों में बृहस्पतिवार को धन और समृद्धि के लिए खासतौर पर माना जाता है। भगवान विष्णु की आराधना के लिए बृहस्पतिवार का दिन सर्वोत्तम माना गया है। म

🌹✍🏼🙏🏻🌹🙏🏻 *राम मंदिर* निर्माण के लिए रामजी की कृपा से चारों तरफ से धन आ रहा है। BY समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *रंक से राजा तक और गिलहरी से लेकर वनराज* तक सब रामकाज मे लगे है।*मेरी विनती* बस इतनी है कि रामकाज के लिए *नोट* भले ही मत देना लेकिन यह रामकाज जिस विभूति के कारण शुरू हुआ है,उस *महापुरुष मोदी* को वोट जरुर देना।क्यो किनोटों (धन) से मंदिर बनना होता तो कब का बन गया होता क्यो कि नोटों की कमी तो कभी थी ही नही।यह मंदिर बन रहा है आपके वोटों से। इस बात को समझें और वोट की ताकत पहचाने।राम मंदिर आपके नोट से नही वोट से बन रहा है।नोट तो आज वो भी दे रहे है जो कल तक खिल्ली उड़ाते हुए पुछते थे-- *राम मंदिर वही बनाएंगे लेकिन तारीख नही बताएंगे।*-- राम मंदिर की जगह अस्पताल-स्कूल-बगीचा बनाने का ज्ञान देने वाले भी नोट दे रहे है।---आज राम मंदिर विरोधी भी नोट दे रहे है लेकिन ऐसे लोगों ने राम मंदिर बनाने के लिए कभी वोट नही दिया।🏹🏹इसीलिए फिर बता रही हुॕ------- 🙏🏻🌹🙏🏻*राम मंदिर आपके नोटो से नही, आपके वोटों से बन रहा है।*और ईट तोड़ने का आपको अगर सौभाग्य नहीं मिला हो तो ईंट जोड़ने का सौभाग्य जरूर ले.... 🙏🏻*राम मंदिर मे भले ही एक भी नोट मत देना लेकिन हर चुनाव मे मोदी को वोट जरुर देना।**जय सियाराम*🙏🏻🚩🇮🇳🚩 :,🌹✍🏼🙏🏻🌹🙏🏻 ,

🌹✍🏼🙏🏻🌹🙏🏻 *राम मंदिर* निर्माण के लिए रामजी की कृपा से चारों तरफ से धन आ रहा है। BY समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *रंक से राजा तक और गिलहरी से लेकर वनराज* तक सब रामकाज मे लगे है।*मेरी विनती* बस इतनी है कि रामकाज के लिए *नोट* भले ही मत देना लेकिन यह रामकाज जिस विभूति के कारण शुरू हुआ है,उस *महापुरुष मोदी* को वोट जरुर देना।क्यो किनोटों (धन) से मंदिर बनना होता तो कब का बन गया होता क्यो कि नोटों की कमी तो कभी थी ही नही।यह मंदिर बन रहा है आपके वोटों से। इस बात को समझें और वोट की ताकत पहचाने।राम मंदिर आपके नोट से नही वोट से बन रहा है।नोट तो आज वो भी दे रहे है जो कल तक खिल्ली उड़ाते हुए पुछते थे-- *राम मंदिर वही बनाएंगे लेकिन तारीख नही बताएंगे।*-- राम मंदिर की जगह अस्पताल-स्कूल-बगीचा बनाने का ज्ञान देने वाले भी नोट दे रहे है।---आज राम मंदिर विरोधी भी नोट दे रहे है लेकिन ऐसे लोगों ने राम मंदिर बनाने के लिए कभी वोट नही दिया।🏹🏹इसीलिए फिर बता रही हुॕ------- 🙏🏻🌹🙏🏻*राम मंदिर आपके नोटो से नही, आपके वोटों से बन रहा है।*और ईट तोड़ने का आपको अगर सौभाग्य नहीं मिला हो तो ईंट जोड़ने का सौभाग्य

मंगलवार को हनुमान जी की पूजा करने से वो प्रसन्न होते हैं। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, हनुमान जी अपने भक्तों पर अपार कृपा बरसाते हैं और उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। मंगलवार का दिन अत्यंत शुभ और मंगलकारी हैं। मंगलवार को हनुमान जी के उपाय जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं । अगर नौकरी-रोजगार की तलाश में हैं और हर तरफ से निराशा ही निराशा हैं तो इस मंगलवार के दिन आजमाएं ये उपाय।बेरोजगार या व्यापार में हानिआप बेरोजगार है या आपका व्यापार नहीं चल रहा है तो आप मंदिर में बैठकर 11 मंगलवार तक सुंदरकांड का पाठ करें। यह पाठ शुरू करने के लिए हनुमान जयंती के दिन चुनेंगे तो अतिउत्तम रहेगा।नौकरी में परेशानीयदि आप नौकरी पाना चाहते हैं तो नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाएं, तो जेब में लाल रूमाल या कोई लाल कपड़ा रखें लेकिन यह कपड़ा या रूमाल बजरंगबली के चरणों में रखा हुआ होना चाहिए।पानी से धोकर स्वच्छ कर लेंहनुमान जी श्रीराम के भक्त हैं। राम जी की पूजा करने या उनका नाम लेने से हनुमान जी स्वयं प्रसन्न हो जाते हैं। मंगलवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद बड़ (बरगद) के पेड़ का एक पत्ता तोड़कर उसे पानी से धोकर स्वच्छ कर लें। इस पत्ते को कुछ देर हनुमानजी के सामने रखें और इसके बाद केसर से इस पर श्रीराम लिखें। पूजा के बाद पत्ते को अपने पर्स में रख लें। ऐसा करने से पूरे वर्ष धन की कमी नहीं होती है। आपका बटुआ पैसों से भरा रहेगा।नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सूचना सामान्‍य उद्देश्‍य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्‍यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्‍न माध्‍यमों जैसे ज्‍योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्‍वयं की जिम्‍मेंदारी होगी ।He is pleased to worship Hanuman on Tuesday. By social worker Vanita Kasani Punjab, Hanuman ji shows immense grace to his devotees and fulfills their wishes. Tuesday is auspicious and auspicious. On Tuesday, Lord Hanuman's remedy gives relief from all the troubles of life. If you are looking for job-employment and there is disappointment from all sides, then try these measures on this Tuesday. Unemployed or loss in business If you are unemployed or your business is not running, then you should sit in the temple and recite Sunderkand till 11 Tuesday. If you choose on the day of Hanuman Jayanti to start this lesson, then it will be excellent. If you want to get a job then go for a job interview, then keep a red handkerchief or a red cloth in the pocket but this cloth or handkerchief should be placed at the feet of Bajrangbali. Wipe clean with water Hanuman ji is a devotee of Shri Ram. Hanuman ji himself gets pleased by worshiping Ram or taking his name. After bathing in the morning on Tuesday, break a leaf of the banyan tree and wash it with water and clean it. Keep this leaf in front of Hanumanji for some time and then write Sri Ram on it with saffron. After the puja keep the leaf in your purse. By doing this there is no shortage of funds throughout the year. Your wallet will be full of money. Note- The information and information given above is given for general purpose. We do not claim to check its veracity. This information has been taken from various media such as astrologers, scriptures, panchgas, etc. This user will have his own responsibility.

मंगलवार को हनुमान जी की पूजा करने से वो प्रसन्न होते हैं। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, हनुमान जी अपने भक्तों पर अपार कृपा बरसाते हैं और उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। मंगलवार का दिन अत्यंत शुभ और मंगलकारी हैं। मंगलवार को हनुमान जी के उपाय जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं । अगर नौकरी-रोजगार की तलाश में हैं और हर तरफ से निराशा ही निराशा हैं तो इस मंगलवार के दिन आजमाएं ये उपाय। बेरोजगार या व्यापार में हानि आप बेरोजगार है या आपका व्यापार नहीं चल रहा है तो आप मंदिर में बैठकर 11 मंगलवार तक सुंदरकांड का पाठ करें। यह पाठ शुरू करने के लिए हनुमान जयंती के दिन चुनेंगे तो अतिउत्तम रहेगा।नौकरी में परेशानी यदि आप नौकरी पाना चाहते हैं तो नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाएं, तो जेब में लाल रूमाल या कोई लाल कपड़ा रखें लेकिन यह कपड़ा या रूमाल बजरंगबली के चरणों में रखा हुआ होना चाहिए। पानी से धोकर स्वच्छ कर लें हनुमान जी श्रीराम के भक्त हैं। राम जी की पूजा करने या उनका नाम लेने से हनुमान जी स्वयं प्रसन्न हो जाते हैं। मंगलवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद बड़ (बरगद) के पेड़ का एक पत्ता तोड